NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
मज़दूर-किसान
स्वास्थ्य
भारत
राजनीति
बंद कर दिए गए क्वारंटीन सेंटरों के चलते गांव लौटे प्रवासी मज़दूर खुले में दिन-रात बिताने को मजबूर
गांव से बाहर जिस स्कूल को क्वारंटीन सेंटर में बदला गया था उसे अब बंद कर दिया गया है। यानी अब बाहर से आने वाले किसी भी व्यक्ति को अपने भरोसे ही क्वारंटीन होना पड़ेगा। जिनके घर में काफी जगह है उनके लिए तो कोई दिक्कत नहीं लेकिन जिनके पास ऐसी सुविधा नहीं उनके लिए 14 दिन खुले में गुजारना कम चुनौतीपूर्ण नहीं है।
सरोजिनी बिष्ट
06 Jun 2020
तेजबहादुर और परशुराम

उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के पिपरा काजी गांव के परशुराम वर्मा आख़िरकार अपने गांव पहुंच ही गए। लेकिन गांव आने पर उन्हें पता चला कि प्रशासन की ओर से जिस स्कूल को क्वारंटीन सेंटर में बदला गया था अब उसे बंद कर दिया गया है यानी अब बाहर से आने वाले किसी भी व्यक्ति को अपने भरोसे ही क्वारंटीन होना पड़ेगा। उनके लिए यह स्थिति असहज थी क्योंकि घर में इतनी जगह नहीं की अलग से  कमरे का इंतजाम हो सके, उस पर घर में चौरासी वर्षीय  वृद्ध मां जिनकी सुरक्षा का पूरा ध्यान रखना था सो उन्होंने घर के बाहर बगिया में ही चारपाई डाल कर वहीं अलग रहना उचित समझा। और अब इस धूप और बारिश के बीच खुले आसमान के नीचे उन्हें दिन काटने पर मजबूर होना पड़ रहा है।

सत्तावन वर्षीय परशुराम वर्मा दिल्ली में एक बर्तन की दुकान में काम करते थे। लॉकडाउन हुआ तो काम से हाथ धो बैठे। लंबे इंतजार के बाद जब ट्रेनों का परिचालन शुरू हुआ तो गांव वापसी की ओर बढ़ गए। उन्होंने बताया कि दो महीने तो इस उम्मीद में घर  वापस नहीं आए कि शायद हालात सुधरें और दुकान का कामकाज दोबारा चालू हो जाए पर अब जब हौसले ने जवाब दे दिया तो  गांव लौटने से बेहतर और कोई उपाय नहीं लगा और अब वापसी की मजबूरी भी हो चली थी क्योंकि जब तक पैसा था थोड़ा बहुत खर्चा चलता रहा लेकिन अब तो हाथ में पैसा भी नहीं बचा था।

IMG-20200606-WA0010.jpg

परशुराम जी ने बताया कि दिल्ली से घर तक की दूरी लगभग चौदह घंटे की है लेकिन जैसा हो रहा है, यात्रियों को बिना जानकारी दिए ट्रेन का रास्ता बदल दिया गया और चौदह घंटे का सफर चालीस घंटे में पूरा करके किसी तरह गांव पहुंचे पर यहां पहुंचने पर पता चला कि गांव से बाहर जिस स्कूल को क्वारंटीन सेंटर में बदला गया था उसे अब बंद कर दिया गया है। उन्होंने कहा ऐसा नहीं होना चाहिए था अभी दूसरे राज्यों से लोगों का आना जारी है ऐसे में क्वारंटीन सेंटरों को बंद कर देना बिलकुल सही नहीं। उनके मुताबिक उनके गांव में कुछ लोग और भी हैं जो घर के बाहर ही रह रहे हैं। उन्होंने अपनी परेशानियों का जिक्र करते हुए बताया कि "हमारे घर के बाहर जगह है तो यहीं खटिया डाल दी हालांकि खुले आसमान के नीचे दिन रात रहना आसान नहीं, खतरे कई हैं लेकिन और कोई दूसरा रास्ता भी नहीं। अब किसी तरह चौदह दिन कट जाएं तो गनीमत है।"

IMG-20200606-WA0011.jpg

परशुराम जी की तरह ही इसी गांव के रामसूरत वर्मा और तेजबहादुर भी घर के बाहर दिन गुजार रहे हैं। तेजबहदुर दिल्ली में एक मशीन बनाने वाली फैक्ट्री में वर्कर थे । जब  गांव वापस लौटने की सोची तो पैदल ही निकाल पड़े अस्सी किलोमीटर पैदल चले तब कहीं जाकर रास्ते में कोई वाहन मिला। जेब में मामूली पैसे और पेट में भूख लेकर अपने गांव आखिरकार किसी तरह पहुंचे।

इसी तरह रामसूरत वर्मा मुंबई में टेलरिंग का काम करते थे लेकिन लॉकडाउन ने सब चौपट कर दिया सो गांव चले आए अब लोगों के सामने भी यही समस्या थी कि क्वारांटाइन सेंटर बंद होने की सूरत में कहां क्वारंटाइन हुआ जाए घर में अलग स्पेस न होने के कारण इन्होंने भी खुले आसमान के नीचे ही दिन बिताना उचित समझा।

गांव के लोगों ने बताया कि पहले हर बाहर से आने वाले को स्कूल में रखा जा रहा था लेकिन एकाएक यूं क्वारंटाइन सेंटरों को बंद करने का कारण समझ नहीं आता जबकि अभी भी लोग बाहर प्रदेशों से गांव की ओर आ ही रहे हैं। जिनके घर में काफी जगह है उनके लिए तो कोई दिक्कत की बात नहीं लेकिन जिनके पास ऐसी सुविधा नहीं उनके लिए चौदह दिन खुले में गुजारना कम चुनौतीपूर्ण नहीं है। कभी बारिश, कभी धूप परेशानी का सबब बन रहे हैं। जब गांव की प्रधान  कृष्णवती जी से इस बाबत बात की तो उन्होंने बताया कि हां, यह सही है कि सरकार के आदेशानुसार अब सेंटरों की बंद कर दिया गया है और सब को होम क्वारंटीन होने के लिए कहा गया है क्योंकि अब सेंटरों की देखरेख साफ-सफाई और अन्य खर्चे वहन करना सरकार की ओर से नहीं हो पा रहा।

पास के गॉव की एक सफाईकर्मी ने बताया कि  प्रशासन की ओर से उन्हें आदेश है कि अब क्वारंटीन स्थलों की सफाई  करने आने की ज़रूरत नहीं क्योंकि अब सरकार उन्हें अलग से इस काम के लिए पैसा देने की स्थिति में नहीं।

बाहर से आए  प्रवासी श्रमिकों का कहना है कि उनसे कहा गया था कि उन्हें सरकार की ओर से एक हजार रुपये और पैंतीस किलो अनाज दिया जाएगा लेकिन अभी तक कुछ नहीं दिया गया। श्रमिकों का कहना था कि शायद इसलिए ही क्वारंटीन सेंटर बंद कर दिए गए कि न तो किसी का ब्यौरा ही प्रशासन के पास रहेगा और न ही कुछ देने की नौबत रहेगी।

ज़ाहिर है ये उन प्रवासी श्रमिकों का गुस्सा है जो दूसरे प्रदेशों में अपना सब कुछ गंवा कर आए हैं।  हम जानते हैं कि क्वारंटीन सेंटरों की हालात पहले भी अच्छी नहीं थी लेकिन जितना भी था कम से कम बाहर से आने वाले श्रमिकों, कामगारों के सिर पर एक छत तो थी जो उन्हें कई तकलीफों से बचा रही थी फिर जो अपना सब कुछ गवां कर आए हों उनके लिए सेंटरों में दो वक़्त का खाना मिलना भी उनकी तकलीफों पर मरहम लगाने से कम न था, लेकिन अब वह बी नहीं रहा।

(सरोजिनी बिष्ट स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

Coronavirus
COVID-19
Lockdown
migrants
Quarantine
Self quarantine
Migrant workers
UttarPradesh
Yogi Adityanath
yogi sarkar

Related Stories

मनरेगा मज़दूरों के मेहनताने पर आख़िर कौन डाल रहा है डाका?

ब्लैक राइस की खेती से तबाह चंदौली के किसानों के ज़ख़्म पर बार-बार क्यों नमक छिड़क रहे मोदी?

ग्राउंड रिपोर्ट: किसानों के सामने ही ख़ाक हो गई उनकी मेहनत, उनकी फसलें, प्रशासन से नहीं मिल पाई पर्याप्त मदद

कर्नाटक: मलूर में दो-तरफा पलायन बन रही है मज़दूरों की बेबसी की वजह

हैदराबाद: कबाड़ गोदाम में आग लगने से बिहार के 11 प्रवासी मज़दूरों की दर्दनाक मौत

ग़ौरतलब: किसानों को आंदोलन और परिवर्तनकामी राजनीति दोनों को ही साधना होगा

यूपी चुनाव: पूर्वी क्षेत्र में विकल्पों की तलाश में दलित

बनारस की जंग—चिरईगांव का रंज : चुनाव में कहां गुम हो गया किसानों-बाग़बानों की आय दोगुना करने का भाजपाई एजेंडा!

यूपी चुनाव: बग़ैर किसी सरकारी मदद के अपने वजूद के लिए लड़तीं कोविड विधवाएं

यूपी: महामारी ने बुनकरों किया तबाह, छिने रोज़गार, सरकार से नहीं मिली कोई मदद! 


बाकी खबरें

  • corona
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के मामलों में क़रीब 25 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई
    04 May 2022
    देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 3,205 नए मामले सामने आए हैं। जबकि कल 3 मई को कुल 2,568 मामले सामने आए थे।
  • mp
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    सिवनी : 2 आदिवासियों के हत्या में 9 गिरफ़्तार, विपक्ष ने कहा—राजनीतिक दबाव में मुख्य आरोपी अभी तक हैं बाहर
    04 May 2022
    माकपा और कांग्रेस ने इस घटना पर शोक और रोष जाहिर किया है। माकपा ने कहा है कि बजरंग दल के इस आतंक और हत्यारी मुहिम के खिलाफ आदिवासी समुदाय एकजुट होकर विरोध कर रहा है, मगर इसके बाद भी पुलिस मुख्य…
  • hasdev arnay
    सत्यम श्रीवास्तव
    कोर्पोरेट्स द्वारा अपहृत लोकतन्त्र में उम्मीद की किरण बनीं हसदेव अरण्य की ग्राम सभाएं
    04 May 2022
    हसदेव अरण्य की ग्राम सभाएं, लोहिया के शब्दों में ‘निराशा के अंतिम कर्तव्य’ निभा रही हैं। इन्हें ज़रूरत है देशव्यापी समर्थन की और उन तमाम नागरिकों के साथ की जिनका भरोसा अभी भी संविधान और उसमें लिखी…
  • CPI(M) expresses concern over Jodhpur incident, demands strict action from Gehlot government
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    जोधपुर की घटना पर माकपा ने जताई चिंता, गहलोत सरकार से सख़्त कार्रवाई की मांग
    04 May 2022
    माकपा के राज्य सचिव अमराराम ने इसे भाजपा-आरएसएस द्वारा साम्प्रदायिक तनाव फैलाने की कोशिश करार देते हुए कहा कि ऐसी घटनाएं अनायास नहीं होती बल्कि इनके पीछे धार्मिक कट्टरपंथी क्षुद्र शरारती तत्वों की…
  • एम. के. भद्रकुमार
    यूक्रेन की स्थिति पर भारत, जर्मनी ने बनाया तालमेल
    04 May 2022
    भारत का विवेक उतना ही स्पष्ट है जितना कि रूस की निंदा करने के प्रति जर्मनी का उत्साह।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License