NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अर्थव्यवस्था
आर्थिक सर्वे : दस नए-पुराने झूठ और एक संदेश
आर्थिक सर्वेक्षण हमेशा की तरह एक चाहत भरी सूची पेश करता है, यदि मोदी सरकार इस सूची के तहत काम करने का प्रयास करती है, तो देश और भी गहरे संकट में चला जाएगा।
सुबोध वर्मा
01 Feb 2020
Translated by महेश कुमार
Budget

वर्ष 2019-20 का आर्थिक सर्वेक्षण (वित्तीय वर्ष जो अब समाप्त हो रहा है) जिसे सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन ने लिखा था, को 31 जनवरी को संसद में पेश किया गया। इस वर्ष अर्थव्यवस्था ने कैसा काम किया यह उस सब का बड़ा संकलन है। लेकिन इससे भी बड़ी बात है कि आर्थिक सर्वेक्षण अब चाहत भरी सूची तैयार करने वाली संस्था भी बन गई है, फिर आर्थिक सलाहकार कोई भी हो वह केवल शानदार विचारों का पुलिंदा बन कर रह जाता है। सरकार जो जनता की राय के प्रति संवेदनशील होती है वह सर्वेक्षण के विचारों को लागू कर या न करे यह उसके पाले की बात है। अब तक का यह एक सामान्य रिकॉर्ड है।

लेकिन सर्वेक्षण ने इस बार सरकार के मूड और उसके झुकाव को जकड़ लिया है - वास्तव में इसकी आत्मा को, जो अपने आप में काफ़ी प्रशंसनीय काम है। जैसा कि दोपहर में सीईए ने अपने संवाददाता सम्मेलन में घोषणा की, सर्वेक्षण का मुख्य विषय "धन निर्माण" था। यह कहकर  उन्होंने ख़ुद को ठोस रूप से प्रधानमंत्री के साथ जोड़ लिया, जो ख़ुद इस बात पर ज़ोर देते रहे हैं कि उद्योगपति और बड़े व्यवसायी देश के धन निर्माता हैं और उन्हें पूरा समर्थन देने की ज़रूरत है। सर्वेक्षण इस मद में गर्व से घोषणा करता है कि धन सृजन के दो मुख्य स्तंभ हैं: बाज़ार का अदृश्य हाथ और भरोसे का हाथ (यानी जिसे बड़ी कंपनियों पर भरोसा करने के लिए संदर्भित किया गया है और बदले में वे सरकार पर भरोसा करते हैं)।

संक्षेप में, सर्वेक्षण को घोषणापत्र की तरह यह सुनिश्चित करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है कि भारत को पूरी तरह से बाज़ार संचालित होना चाहिए, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि बड़े व्यवसाय यानी पूँजीपतियों को धन बनाने के लिए खुली छूट मिल सके। क्या यह धन लोगों को वितरित किया जाएगा? सर्वे कहता है, पहले धन पैदा करना होगा, तभी वितरण का मुद्दा आएगा!

मंदी

फिर सर्वेक्षण यह बताने के लिए आगे बढ़ता है कि वास्तव में आर्थिक विकास की रफ़्तार (वर्ष 2019-20) मे केवल 5 प्रतिशत धीमी हुई है, यह समझाते हुए कि यह विभिन्न कारकों के कारण हुआ है, जैसे कि घरेलू ख़र्च में सुस्ती, संकटग्रस्त ग़ैर-बैंकिंग वित्त कंपनियां (एनबीएफ़सी), जर्जर होती विश्व अर्थव्यवस्था और कम टैक्स राजस्व संग्रह इसके लिए ज़िम्मेदार हैं। इनमें से जो  अंतिम बात है वह कोई कारण नहीं है बल्कि एक प्रभाव है, यह सब तो किसी भी कॉलेज के अर्थशास्त्री को पता होगा।

जहां तक जर्जर होती विश्व अर्थव्यवस्था की बात है, हां इसका असर ज़रूर हुआ है, लेकिन तब भारत तो पहले से ही ज्यादा संकटग्रस्त दुनिया की तरफ़ बढ़ रहा था। इसके लिए बैंकिंग प्रणाली और ख़राब ऋणों के कारण वित्तीय क्षेत्र में बढ़ता संकट भी कारण हो सकते हैं लेकिन निश्चित रूप से इसके लिए सरकार स्वयं ज़िम्मेदार है?

पहला कारक वास्तव में सही है – डूबती घरेलू खपत गहरे आर्थिक संकट का संकेत है, जिसने घरों को अपने ख़र्च में कटौती करने पर मजबूर किया है। यह बात अलग है कि यह गिरावट 2017-18 में शुरू हुई थी, नवीनतम राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय की रिपोर्ट के अनुसार जिसे दबा दिया गया था फिर लीक के जरिए पता चला, और इसलिए यह समस्या तब ही शुरू हो गई थी जब बढ़ोतरी हो रही थी, यह वह मुख्य प्रश्न है जिसे सीईए पूछने में विफल रहा है या उसका उत्तर देने में - क्यों?

परिवारों के पास ख़र्च करने के लिए पैसा नहीं है क्योंकि आय कम है, काम कर रहे अधिकांश लोगों की वास्तविक आय (मूल्य वृद्धि से समायोजित) या तो कम हो गई है या फिर ठहर गई है, नौकरियां अनिश्चित हो गई हैं और बेंतहा बेरोज़गारी बढ़ गई है। ये सभी तथ्य जाने-माने हैं और इनका दस्तावेजीकरण भी हुआ हैं। सर्वेक्षण विलक्षण रूप से इसमें से किसी भी तथ्य का विश्लेषण करने में विफल रहता है। जहां तक आर्थिक सर्वेक्षण का संबंध है यह इस पर ध्यान नहीं देता है। लेकिन भारत गंभीर आर्थिक संकट से गुज़र रहा है - और वित्त मंत्रालय के दिग्गजों के पास लोगों की पीड़ा और उस पीड़ा को दूर करने के लिए कोई उपाय नहीं है?

समाधान

सर्वेक्षण अपना अधिकांश ध्यान इस बात पर लगाता है कि भारत को क्या करना चाहिए और वह भविष्य में क्या बनाना चाहता है। प्राचीन ग्रंथों (अर्थशास्त्रा और तिरुवल्लुवर के थिरुकुरल) के उद्धरण और फिर, आश्चर्यचकित करते हुए एडम स्मिथ के उद्धरण पेश कराते हुए सभी सामान्य कौष्ठक को टिक करने के बाद, सर्वेक्षण उन विचारों पर आकर ठहरता है जिन्हे हाल के इतिहास ने नकार दिया है।

इस ‘न्यू इंडिया’ के 10 विचार हैं: धन सृजन जो सभी को लाभ पहुंचाएगा; बाजार धन सृजन को सक्षम करते हैं; भरोसा जनता की भलाई का काम है; ज़मीनी स्तर के उद्यमी अपने क्षेत्रों में संपत्ति बनाते हैं; व्यापार-समर्थक नीतियां समान अवसर देती हैं; सरकार के अराजक हस्तक्षेप  को हटा देना चाहिए।  "दुनिया के लिए भारत में निर्मित करो" के द्वारा रोज़गार सृजन; व्यापार करने की आसानी में सुधार हो; बैंकिंग क्षेत्र के लिए फिन-टेक; और "थालीनोमिक्स"।

इनमें से कुछ सिर्फ जुमले या खाली बयानबाज़ी हैं। उद्यमी अपने ही क्षेत्र में धन का सृजन करते हैं - हाँ, तो क्या? उद्यमी कैसे पैदा होंगे या कहाँ से आएंगे और वे किसको अपना सामान या सेवाएं बेचेंगे? इसका कोई जवाब नहीं है।

‘थालीनॉमिक्स’ व्यवहारिक अर्थशास्त्र को नाम के लिए शामिल करने का एक दयनीय प्रयास है, जबकि वास्तव में यह तर्क और डाटा का एक संदिग्ध सेट है कि भोजन की क़ीमतें कम हो गई हैं - सिवाय इसके कि वे इस साल फिर से बढ़ गई हैं!

लेकिन 10 स्तंभों वाले उपाय का गुलदस्ता देश के लोगों पर युद्ध की गंभीर घोषणा है। यह अर्थव्यवस्था में सरकारी हस्तक्षेपों को दूर करने का एक रास्ता है ताकि धन का निर्माण कॉर्पोरेट घरानों द्वारा किया जा सके। इसका मतलब है कि सब्सिडी को कम करना, ऐसे ऐसे क़ानूनों को हटाना जो किसी भी सरकारी अड़चन/विनियमन का कारण बनते हैं, जैसे कि मूल्य नियंत्रण, आयात, प्राकृतिक संसाधन उपयोग, श्रम संबंध – और सब कुछ।

नौकरी पैदा करने के नाम पर, बुद्धिमान लोगों को एक ही बात प्रभावित करती है वह है चीनी मॉडल (जैसा कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी देखती है) जो दुनिया के लिए सबसे बड़ा विनिर्माण या उत्पाद की असेंबली का केंद्र है। जहां विभिन्न घटकों को आयात किया जाता है और इन्हें जोड़ कर उत्पाद बनाया जाता है ताकि उसे फिर बाहर भेजा जा सके। यह कहने के बजाय कि 'मेक इन इंडिया' विफल हो गया है, यह कह दिया गया कि इसे बाद में नए विचार के साथ जोड़ दिया जाएगा।

यह सोचना कि मोबाइल फोन निर्माताओं और कुछ ऑटो निर्माताओं के अलावा, अन्य लोग किसी अन्य उत्पाद को बनाने के लिए भारत का चयन करेगा, आकाश में सिक्का उछालने जैसा है। और, विशेष रूप से वर्तमान "संकटग्रस्त दुनिया" में तो नहीं। और, यह सोचना कि इससे भारतीयों को रोज़गार मिलने में मदद मिलेगी तो इससे ज़्यादा ख़ुशमिज़ाजी की बात कुछ नहीं हो सकती है। अगर सब कुछ ठीक हो भी जाता है तो बदले में कुछ लाख नौकरियां, बस। यह सब तब जब सात करोड़ से अधिक लोग बेरोज़गार हैं और हर महीने कम से कम 60-70 लाख लोग नौकरी की तलाश में इसमें जुड़ जाते है, तो यह एक दुखद और दिवालिया विचार है।

तो, इसकी हद क्या है? आर्थिक सर्वेक्षण से पता चलता है कि सरकार क्या सोच रही है, भले ही उसकी सभी इच्छाओं को अंततः गंभीरता से न लिया जाए। हालाँकि, सोच वही है जिसके आधार पर नरेंद्र मोदी सरकार अब तक काम कर रही है, जैसे कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती, सुरक्षात्मक श्रम क़ानूनों को नष्ट करना, प्रमुख क्षेत्रों में विदेशी निवेश को खोलना, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को औने-पौने दामों पर बेचना आदि। इन उपायों ने अर्थव्यवस्था को ठीक होने में मदद नहीं की है क्योंकि मूल कारण - कम आय, भयावह बेरोज़गारी शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की बिगड़ती स्थिति है और इसके साथ बढ़ती कीमतों को भी नज़रअंदाज़ किया जा रहा है। केंद्रीय बजट संभवतः कुछ मीठी गोलियों के साथ, इसी तरह की तर्ज पर होगा।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Economic Survey: Ten New/Old Lies and One Message

economic survey
Modi government
union budget
CEA
Krishnamurthy Subramanian
Thalinomics
Wealth Creation
unemployment
Assemble in India

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

डरावना आर्थिक संकट: न तो ख़रीदने की ताक़त, न कोई नौकरी, और उस पर बढ़ती कीमतें

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

आख़िर फ़ायदे में चल रही कंपनियां भी क्यों बेचना चाहती है सरकार?

मोदी@8: भाजपा की 'कल्याण' और 'सेवा' की बात

तिरछी नज़र: ये कहां आ गए हम! यूं ही सिर फिराते फिराते

'KG से लेकर PG तक फ़्री पढ़ाई' : विद्यार्थियों और शिक्षा से जुड़े कार्यकर्ताओं की सभा में उठी मांग

UPSI भर्ती: 15-15 लाख में दरोगा बनने की स्कीम का ऐसे हो गया पर्दाफ़ाश


बाकी खबरें

  • पुलकित कुमार शर्मा
    आख़िर फ़ायदे में चल रही कंपनियां भी क्यों बेचना चाहती है सरकार?
    30 May 2022
    मोदी सरकार अच्छे ख़ासी प्रॉफिट में चल रही BPCL जैसी सार्वजानिक कंपनी का भी निजीकरण करना चाहती है, जबकि 2020-21 में BPCL के प्रॉफिट में 600 फ़ीसदी से ज्यादा की वृद्धि हुई है। फ़िलहाल तो इस निजीकरण को…
  • भाषा
    रालोद के सम्मेलन में जाति जनगणना कराने, सामाजिक न्याय आयोग के गठन की मांग
    30 May 2022
    रालोद की ओर से रविवार को दिल्ली में ‘सामाजिक न्याय सम्मेलन’ का आयोजन किया जिसमें राजद, जद (यू) और तृणमूल कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों के नेताओं ने भाग लिया। सम्मेलन में देश में जाति आधारित जनगणना…
  • सुबोध वर्मा
    मोदी@8: भाजपा की 'कल्याण' और 'सेवा' की बात
    30 May 2022
    बढ़ती बेरोज़गारी और महंगाई से पैदा हुए असंतोष से निपटने में सरकार की विफलता का मुकाबला करने के लिए भाजपा यह बातें कर रही है।
  • भाषा
    नेपाल विमान हादसे में कोई व्यक्ति जीवित नहीं मिला
    30 May 2022
    नेपाल की सेना ने सोमवार को बताया कि रविवार की सुबह दुर्घटनाग्रस्त हुए यात्री विमान का मलबा नेपाल के मुस्तांग जिले में मिला है। यह विमान करीब 20 घंटे से लापता था।
  • भाषा
    मूसेवाला की हत्या को लेकर ग्रामीणों ने किया प्रदर्शन, कांग्रेस ने इसे ‘राजनीतिक हत्या’ बताया
    30 May 2022
    पंजाब के मानसा जिले में रविवार को अज्ञात हमलावरों ने सिद्धू मूसेवाला (28) की गोली मारकर हत्या कर दी थी। राज्य सरकार द्वारा मूसेवाला की सुरक्षा वापस लिए जाने के एक दिन बाद यह घटना हुई थी। मूसेवाला के…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License