NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
पुस्तकें
भारत
राजनीति
'एक देश बारह दुनिया'- हाशिये पर छूटे भारत की तस्वीर
पुस्तक- एक देश बारह दुनिया : आज़ाद बाघ, कैद आदिवासी, पिंजरानुमा कोठिरियों में ज़िंदगी के खुलने और बंद होने का आंखों देखा हाल।
शान कश्यप
16 Aug 2021
एक देश बारह दुनिया

उदारवाद और भूमण्डलीकरण के साथ भारत बदलने को तैयार था। तब वित्त मंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने अपने ऐतिहासिक बजट भाषण में कहा था कि देश को एक व्यापक वित्तीय समायोजन (फिस्कल एडजस्टमेंट) की दरकार है, लेकिन गरीबों को इससे बचाना होगा।

25 जुलाई, 1991 को 'द हिन्दू' के एडिटोरियल लेख ने इसे 'स्पेयरिंग द पुअर' करार दिया था। ठीक उसी समय 'द टाइम्स ऑफ इंडिया' में एक पत्रकार गोड्डा, अलीराजपुर, कालाहांडी, कोरापुट, मलकानगिरी, नुआपाड़ा, पलामू, पुडुकोट्टई, रामनाथपुरम और सुरगुजा जैसे भारत के सबसे गरीब जिलों से लगातार रिपोर्टिंग कर रहा था। अंग्रेजी- द शहरी तबके के लिए 'रियलिटी चेक'!

शिरीष खरे की 'एक देश बारह दुनिया'- हाशिये पर छूटे भारत की तस्वीर (राजपाल प्रकाशन, 2021) पालागुम्मि साईनाथ स्कूल ऑफ जर्नलिजम की किताब है! रिपोर्टिंग का काल 2010 का दशक है। इसमें ग्रामीण भारत है, हाशिये का वृत्तांत है, आदिवासी हैं, घुमन्तू जनजातियां हैं, महिलाओं का पितृसत्ता और समाज के विरुद्ध संघर्ष हैं। इन सबके साथ लेखक की मौजूदगी काफी देर तक दर्ज होती रहती है।

लेखक प्रस्तावना में लिखते हैं, "जब सांख्यिकी आंकड़ों के विशाल ढेर में छिपे आम भारतीयों के असल चेहरे नजर नहीं आ रहे हैं", तब उन्होंने असल चेहरे का नक्शा अपने अनुभवों से बयान किया है। भौगौलिक दृष्टि से बहुत बड़ा स्पेस इस किताब में अटता है। मुख्य रूप से महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान। इन्हें रिपोर्ताज कहा गया है। लेकिन, लेखनशैली संस्मरण की शक्ल में है। किस्सागोई वर्तमान काल में। लहजा डायरी एंट्री जैसा। यह किताब को एक 'केटेगरी कन्फ्यूजन' में ले जाता है। रिपोर्ताज, बाइडेफिनिशन, आंखोंदेखा है, लेकिन उसमें कहने वाले की मौजूदगी अगर तफसील से दर्ज हो तो उसे फिर अलग-अलग दृष्टि से पढ़ सकते हैं।

मिसाल के लिए- साईनाथ ने गोड्डा, अलीराजपुर और नन्दपुर (कोरापुट) से लिखते हुए जब प्राथमिक विद्यालयों की बात की है तो वे लेखों में मौजूद नहीं। खरे ने महादेव बस्ती (जिला उस्मानाबाद, महाराष्ट्र) से जब विद्यालय की बात की है तो पाठक उन्हें वहां खड़ा देख सकता है। क्या यह अंतर केवल 'मेथड' की बात है? या यह कोई ऐसा संकेत है जिसे अभी और समझने की जरुरत है। हाशिये का वृत्तांत कहने की बयानी सपाट हो, चोटिल हो, या भावनात्मक हो? या यह सभी हो? उनमें किसे ज्यादा जगह मिले? जिसकी कहानी कही गई हो या उसे जो कहानी कह रहा है?

खरे बारह रिपोर्ताज लेकर आए हैं। उनमें बारह चुनौतियां हैं-मानवता की, समाज की। पहला लेख 'वह कल मर गया' महाराष्ट्र के मेलघाट से कुपोषण की कहानी बताता है। जब लेखक का सहयात्री और स्थानीय रहवासी कालूराम उन्हें "अब लौटा जाए" कहता है तो पाठक पूछता है, "कहां?" पाठक अपनी दुनिया में रंगीन है। वह फील्ड से लाई गई हरे-भरे जंगलों की 'ब्लैक एंड वाइट' तस्वीर से मिलकर क्या करेगा? मेलघाट से जैसे पाठक को अनजान माना गया है वह पाठक 'द इंडियन एक्सप्रेस' और 'न्यूजलॉन्ड्री' में मेलघाट की कहानी पढ़ता रहा है। फिर इस कहानी में नया क्या है? यही खरे की जीत है। इस कहानी का दोहराव। उसे हिन्दी में दर्ज करना। इन मुद्दों के लिए एक नया पाठक समुदाय तलाश निकालना। मेलघाट की पथरीली सड़कों से गुजरते हुए उसके भूगोल में ले जाना।

मेलघाट में बाघ आजाद हैं और आदिवासी पिंजड़ों में, तो मुंबई में भी 'पिंजरेनुमा कोठरियों में जिन्दगी' चल रही है। कमाठीपुरा में बेला से मिलवाया जाता है। कमाठीपुरा का कभी 'कम्फर्ट जोन' होने से अब उसकी गलियों के बंद और खुलने तक की कथा बताई जाती है। वहीं, भूरा गायकवाड़ के सहारे हमें कनाडी बुडरूक (महाराष्ट्र) में घुमन्तू जनजातियों का हाल सुनाया गया है। फिर यह वृत्तांत आष्टी (महाराष्ट्र) कस्बे में एक अन्य घुमन्तु समुदाय तक एक नए चेप्टर तक जारी रहता है।

विस्थापन का मुद्दा मेलघाट में था तो वह अलग सूरत-ए-हाल में सूरत में भी है। हर चेप्टर कहानी भी है, तथ्य भी, साहित्य भी और सामाजिक-विज्ञान भी। खरे ने खासकर अपने कथा के हाशियेपन की सामाजिकता और भूगौलिक विस्तार का बहुत सम्मान किया है। 

गांव से एक और चिट्ठी आई है। वह कहती है कि मैं भी 'भारत' हूं, जो 'न्यू इंडिया' का पता पूछ रही है। खरे जैसे लोग, साईनाथ जैसे लड़ाकू थकते क्यों नहीं? वो क्यों ऐसी खबरें ले आते हैं जो अखबार की ब्रॉडशीट को बदरंग करती है। न्यूज-एंकर और एंकरानियों के ब्रेकिंग न्यूज से जलने वाली आग पर यह लोग क्यों पानी फेरते रहते हैं?

हम कमेंटेटर हो चुके मुल्क को क्यों किसी बेला, मीना खलको, या उस मुंहफट मां की फिक्र हो जो अपने बच्चे की मौत उसी बेबाकी से बताती है जैसे हम क्रिकेट वाली आईपीएल की अपनी फेवरेट टीम का नाम? साईनाथ की किताब ने शब्दों से बहुत डंडे मारे हैं। खरे थोड़े साहित्यिक मिजाज वाले लगें। हम उनकी किताब खरीदे और ऐसे मुद्दों पर लिखने वालों की हिम्मत बढ़ाएं। इतना तो कर सकते हैं।

एक देश बारह दुनिया

शिरीष खरे

नॉन-फिक्शन, रिपोर्ताज (समाज व संस्कृति)

राजपाल प्रकाशन, नई-दिल्ली

पृष्ठ-208

(समीक्षक शान कश्यप जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली में एम.फिल. इतिहास के शोधार्थी हैं।)

Ek Desh Barah Duniya
liberalism
Globalization
Marginalised Communities

Related Stories


बाकी खबरें

  • Nisha Yadav
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    चंदौली: निशा यादव हत्या मामले में सड़क पर उतरे किसान-मज़दूर, आरोपियों की गिरफ़्तारी की माँग उठी
    14 May 2022
    प्रदर्शन के दौरान वक्ताओं ने कहा- निशा यादव का कत्ल करने के आरोपियों के खिलाफ दफ़ा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार किया जाए।
  • Delimitation
    रश्मि सहगल
    कैसे जम्मू-कश्मीर का परिसीमन जम्मू क्षेत्र के लिए फ़ायदे का सौदा है
    14 May 2022
    दोबारा तैयार किये गये राजनीतिक निर्वाचन क्षेत्रों ने विवाद के लिए नए रास्ते खोल दिए हैं, जो इस बात का संकेत देते हैं कि विधानसभा चुनाव इस पूर्ववर्ती राज्य में अपेक्षित समय से देर में हो सकते हैं।
  • mnrega workers
    सरोजिनी बिष्ट
    मनरेगा मज़दूरों के मेहनताने पर आख़िर कौन डाल रहा है डाका?
    14 May 2022
    "किसी मज़दूर ने 40 दिन, तो किसी ने 35, तो किसी ने 45 दिन काम किया। इसमें से बस सब के खाते में 6 दिन का पैसा आया और बाकी भुगतान का फ़र्ज़ीवाड़ा कर दिया गया। स्थानीय प्रशासन द्वारा जो सूची उन्हें दी गई है…
  • 5 वर्ष से कम उम्र के एनीमिया से ग्रसित बच्चों की संख्या में वृद्धि, 67 फीसदी बच्चे प्रभावित: एनएफएचएस-5
    एम.ओबैद
    5 वर्ष से कम उम्र के एनीमिया से ग्रसित बच्चों की संख्या में वृद्धि, 67 फीसदी बच्चे प्रभावित: एनएफएचएस-5
    14 May 2022
    सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, 2015-16 में किए गए सर्वेक्षण में 5 वर्ष से कम उम्र (6-59 महीने) के 58.6 प्रतिशत बच्चे इससे ग्रसित थे जबकि एनएफएचएस-5 के 2019-21 के सर्वे में इस बीमारी से ग्रसित बच्चों की…
  • masjid
    विजय विनीत
    ज्ञानवापी मस्जिद: कड़ी सुरक्षा के बीच चार तहखानों की वीडियोग्राफी, 50 फीसदी सर्वे पूरा
    14 May 2022
    शनिवार को सर्वे का काम दोपहर 12 बजे तक चला। इस दौरान ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के करीब आधे हिस्से का सर्वे हुआ। सबसे पहले उन तहखानों की वीडियोग्राफी कराई गई, जहां हिन्दू धर्म के देवी-देवताओं की…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License