NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
विधानसभा चुनाव
भारत
राजनीति
जनादेश-2022:  इस बार कहीं नहीं दिखा चुनाव आयोग, लगा कि सरकार ही करा रही है चुनाव!
आमतौर पर चुनाव आयोग की निष्पक्षता कभी संदेह से परे नहीं रही। उस पर पक्षपात के छिट-पुट के आरोप लगते ही रहे हैं। लेकिन पिछले सात-आठ वर्षों से हालत यह हो गई है कि जो भी नया मुख्य चुनाव आयुक्त आता है, वह अपने पूर्ववर्ती को पीछे छोड़ते हुए इस संस्था की साख गिराने में नए-नए आयाम जोड़ता नजर आता है। 
अनिल जैन
08 Mar 2022
 Election commission
Image courtesy : The Financial Express

हमारे देश में कैसा भी चुनाव रहा हो और किसी भी पार्टी की सरकार रही हो, आमतौर पर चुनाव आयोग की निष्पक्षता कभी संदेह से परे नहीं रही। उस पर पक्षपात के छिट-पुट के आरोप लगते ही रहे हैं। इस सिलसिले में अगर हम मौजूदा चुनाव आयोग की भूमिका को देखें तो उसके कामकाज के तौर तरीके बताते हैं कि वह अपनी बची-खुची साख को भी मटियामेट करने के लिए दृढ़ संकल्पित है। पिछले सात-आठ वर्षों से तो हालत यह हो गई है कि जो भी नया मुख्य चुनाव आयुक्त आता है, वह अपने पूर्ववर्ती को पीछे छोड़ते हुए इस संस्था की साख को गिराने में नए-नए आयाम जोड़ता नजर आता है। 

यही वजह है कि हर चुनाव में चाहे वह लोकसभा का हो या विधानसभा का या फिर स्थानीय निकाय का, मतदान के समय इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) में गड़बड़ी, कई लोगों के नाम मतदाता सूची से गायब हो जाने, मतदान के बाद ईवीएम बदले जाने, ईवीएम मशीनों की सील टूटी पाए जाने और मतगणना में धांधली की शिकायतें हर तरफ से आने लगती हैं। अब तो जिन क्षेत्रों में मतदान हो चुका है, वहां से उन स्ट्रांग रूम की सील टूटी पाए जाने की शिकायतें भी आने लगी हैं, जहां मतदान के बाद ईवीएम को मतगणना होने तक रखा जाता है।

चुनाव आयोग के खिलाफ यह शिकायत तो अब आम हो चुकी है कि वह सत्तारूढ़ दल के शीर्ष नेतृत्व की सुविधा के मुताबिक चुनाव कार्यक्रम घोषित करता है। यह भी माना जाता है कि आचार संहिता के उल्लंघन के मामलों में आयोग सिर्फ विपक्षी नेताओं के खिलाफ ही कार्रवाई करता है और सत्तारूढ़ दल के नेताओं को क्लीन चिट दे देता है। चुनाव की निष्पक्षता पलड़ा हमेशा ही सरकार और सत्तारूढ दल के पक्ष में झुका देखते हुए अब तो कई लोग उसे चुनाव मंत्रालय और केंचुआ तक कहने लगे हैं। 

अभी उत्तर प्रदेश सहित जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के मतदान प्रक्रिया सम्पन्न हुई है, उनमें तो चुनाव की तारीखों के ऐलान से लेकर अंतिम दौर का मतदान खत्म होने तक लगा ही नहीं कि देश में चुनाव आयोग नाम की कोई संस्था अस्तित्व में है। पूरी चुनाव प्रक्रिया के दौरान वह एक स्वतंत्र संवैधानिक संस्था के रूप में नहीं बल्कि केंद्र में सत्तारूढ़ दल की सहयोगी पार्टी के रूप में काम करता दिखाई दिया है। 

नियमानुसार हर चुनाव में मतदान से 36 घंटे पहले प्रचार बंद हो जाता है लेकिन इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले चरण के मतदान से एक दिन पहले एक टीवी न्यूज एजेंसी को इंटरव्यू दिया, जिसका सभी चैनलों पर सीधा प्रसारण हुआ। मतदान के हर चरण से एक दिन पहले सरकारी टेलीविजन पर सुबह से रात तक विभिन्न विभागों के केंद्रीय मंत्रियों के लाइव इंटरव्यू दिखाए जाते रहे, जिनमें उन्होंने अपने मंत्रालय की योजनाओं और तथाकथित उपलब्धियों का बखान करते हुए भाजपा का प्रचार किया। यही नहीं, प्रधानमंत्री मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह सहित भाजपा के तमाम बड़े-छोटे नेता मतदान वाले दिन भी अन्य चुनाव क्षेत्रों में चुनावी रैलियां और रोड शो करते रहे और टीवी चैनलों पर उनका सीधा प्रसारण होता रहा। चुनाव कानूनों और नियमों के मुताबिक यह सब नहीं हो सकता, नहीं होना चाहिए लेकिन हुआ है और यह सब होता देख कर भी चुनाव आयोग खामोश बना रहा। 

यहीं नहीं, प्रधानमंत्री मोदी ने खुलेआम अपनी चुनावी रैलियों में हिंदुओं से एकजुट होने की अपील की। उन्होंने अपनी सरकार द्वारा प्रमुख धार्मिक स्थलों को विकसित किए जाने का हवाला दिया और उसके आधार पर अपनी पार्टी के लिए लोगों से वोट मांगे। वे पूरे चुनाव के दौरान बिना किसी आधार के विपक्षी दलों को आतंकवादियों का मददगार बता रहे हैं। उन्होंने गाली-गलौज वाली भाषा का इस्तेमाल करते हुए विपक्षी नेताओं को चोर, लुटेरा और माफिया तक कहा। यहां प्रधानमंत्री पद की मर्यादा और गरिमा की बात न भी करें तो आदर्श चुनाव आचार संहिता और स्थापित परंपराओं के मुताबिक ऐसा नहीं किया जा सकता। लेकिन मोदी बेरोक-टोक यह सब करते रहे।

चुनावों में सरकारी मशीनरी खासकर पुलिस और अर्धसैनिक बलों का दुरुपयोग भी अब आम बात हो गई है और इस बारे में की जाने वाली प्रमाण सहित शिकायतों का भी चुनाव आयोग कोई संज्ञान नहीं लेता है। इस बार तो हद यह हो गई कि प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय निर्वाचन क्षेत्र बनारस में मतदान ड्यूटी के लिए उत्तर प्रदेश के किसी पड़ोसी राज्य से नहीं बल्कि मोदी के गृह राज्य गुजरात की पुलिस को बुला कर तैनात किया गया। इतना नहीं, कई जगहों पर तो गुजरात से आए पुलिसकर्मियों ने बाकायदा 'आएगा तो योगी ही’ कहते हुए भाजपा का चुनाव प्रचार भी किया, जिसके वीडियो सोशल मीडिया में देखे जा सकते हैं। 

हमेशा की तरह इस बार भी पांचों राज्यों में मतदान के हर चरण में ईवीएम में गड़बड़ी की शिकायतें आईं। शिकायत आमतौर पर यही रही कि वोट किसे भी दिया जाए, वह जा रहा है सिर्फ भाजपा के खाते में ही। इस तरह की शिकायतों का सिलसिला पिछले छह-सात साल से बना हुआ है। हैरानी की बात है कि किसी भी चुनाव में कहीं से यह शिकायत अभी तक सुनने को नहीं मिली है कि भाजपा को दिया गया वोट किसी अन्य पार्टी के खाते में चला गया हो। ऐसा क्यों हुआ ओर क्यों होता आ रहा है, इसका कोई संतोषजनक जवाब चुनाव आयोग के पास नहीं है। यह मामला एक से अधिक बार सुप्रीम कोर्ट तक भी गया और सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह की गड़बड़ियों को दूर करने के सख्त निर्देश भी चुनाव आयोग को दिए, लेकिन उसका कोई असर नहीं हुआ। 

आयोग की विश्वसनीयता सिर्फ ईवीएम की गड़बड़ियों को लेकर ही सवालों के घेरे में नहीं है। जिन क्षेत्रों में मतदान हो चुका होता है, वहां से उन स्ट्रांग रूम की सील टूटी पाए जाने की शिकायतें भी आने लगती हैं, जहां मतदान के बाद ईवीएम को मतगणना होने तक रखा जाता है। चुनाव आयोग की साख और नीयत पर इससे बड़ा सवाल और क्या हो सकता है कि मतदान प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद से मतगणना शुरू होने तक विपक्षी दल के नेता और कार्यकर्ता स्ट्रांग रूम के बाहर दिन-रात पहरा देना पड़े। 

ऐसा पहले भी कई चुनावों में हो चुका है और इस समय उत्तराखंड तथा गोवा में भी हो रहा है। दोनों ही राज्यों में विपक्षी दलों खासकर कांग्रेस के नेताओं को ईवीएम बदले जाने या उनमें किसी किस्म की गड़बड़ी की आशंका सता रही है। इसी आशंका के चलते वे हर जिले में मतगणना केंद्रों पर स्ट्रांग रूम के बाहर पहरा दे रहे हैं। पंजाब में ऐसा नहीं हो रहा है तो इसलिए कि वहां भाजपा बड़ी ताकत के तौर पर चुनाव नहीं लड़ी है। इसलिए वहां 'चुनाव के बाद नतीजा चाहे जो सरकार भाजपा की ही बनेगी’ वाली स्थिति नहीं है। इसलिए वहां कांग्रेस या अन्य पार्टियां को किसी तरह चिंता नहीं है। 

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में तो इससे आगे की भी बात सुनने को मिली है, जो कि बहुत चिंताजनक है। उत्तर प्रदेश के विभिन्न इलाकों में गए कई स्वतंत्र पत्रकारों और टिप्पणीकारों ने इसे सुना है और सोशल मीडिया मे साझा किया है कि विपक्षी पार्टियों के नेताओं ने प्रचार के दौरान मतदाताओं से अपने उम्मीदवार को 10 हजार से ज्यादा वोटों से जिताने की अपील की। कई जगह सुनने को मिला कि 10 हजार वोट का मार्जिन चुनाव आयोग के लिए लेकर चलना है। चुनाव आयोग से उनका मतलब आयोग से लेकर स्थानीय प्रशासन तक से रहा। उनका कहना रहा कि अगर 10 हजार से कम वोट का अंतर रहा तो गिनती के समय धांधली हो सकती है। इन नेताओं और उम्मीदवारों को एक चिंता पोस्टल बैलेट को लेकर भी है। 

पोस्टल बैलेट को पहले कभी भी चुनावी राजनीति में बहुत अहम नहीं माना गया। शायद ही कभी इसकी वजह से नतीजे प्रभावित हुए होंगे। लेकिन अचानक पोस्टल बैलेट का महत्व बढ़ रहा है। चुनाव लड़ रही भाजपा विरोधी पार्टियों को पोस्टल बैलेट का डर सता रहा है। उनको चुनाव आयोग पर भी संदेह है और प्रशासन पर भी। इसीलिए उन्हें लग रहा है कि सिस्टम का फायदा उठा कर भाजपा पोस्टल बैलेट के सहारे नतीजों को प्रभावित कर सकती है। ध्यान रहे पहले पोस्टल बैलेट से वोटिंग का अधिकार सेना के जवानों-अधिकारियों और चुनाव कराने वाले कर्मचारियों को ही था, लेकिन अब 80 साल से ज्यादा उम्र वाले बुजुर्गों और 40 फीसदी से ज्यादा विकलांगता वालों को भी पोस्टल बैलेट से वोट डालने की अनुमति मिल गई है। इसलिए इस बार पहले के मुकाबले पोस्टल बैलेट से ज्यादा वोट पड़े हैं और उनका महत्व बढ़ गया है। 

पहले मतगणना शुरू होने पर पोस्टल बैलेट की गिनती सबसे पहले होती थी और उसके बाद ईवीएम खोले जाते थे लेकिन अब मतगणना खत्म होने तक पोस्टल बैलेट गिने जाते हैं। पहले पोस्टल बैलेट बूथ लेवल ऑफिसर यानी बीएलओ के जरिए दिए जाते थे, लेकिन अब डाक से भेजे जाने लगे हैं। सबसे ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि पोस्टल बैलेट से वोट भेजने वाले सरकारी कर्मचारियों को अपने पहचान पत्र की कॉपी उसके साथ लगानी होती है। इससे वोट की गोपनीयता भंग होती है और अगर सरकारी कर्मचारी ने सरकार की विरोधी पार्टी को वोट किया हो तो उसके लिए अलग खतरा पैदा होता है।

उत्तर प्रदेश में पहले चरण के मतदान के समय गाजियाबाद के एक बूथ पर ऐसी घटना हुई कि वोट डालने पहुंचे मुस्लिम परिवार के कई सदस्यों के वोट पोस्टल बैलेट से डाले जा चुके थे, जबकि उनको इसके बारे में कुछ पता हीं नही था। तभी विपक्षी पार्टियों को आशंका सता रही है कि पोस्टल बैलेट के जरिए उनके उम्मीदवारों की जीत को हार में बदला जा सकता है, खास कर उन सीटों पर, जहां जीत-हार का अंतर कम होगा। बिहार विधानसभा के पिछले चुनाव में ऐसा होने के आरोप लगे हैं, जिस पर चुनाव आयोग ने कोई सफाई नहीं दी है।

हैरानी उस समय और ज्यादा होती है जब चुनाव आयोग की निष्क्रियता या उसके पक्षपातपूर्ण रवैये जब कोई विपक्षी दल सवाल उठाता है तो उसका जवाब चुनाव आयोग नहीं, बल्कि उसकी ओर से भाजपा के नेता और केंद्रीय मंत्री देने लगते हैं। इतना ही नहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद भी अपनी चुनावी रैलियों में विपक्ष की शिकायतों का फूहड़ तरीके से मजाक उड़ाते हुए चुनाव आयोग का बचाव करते नजर आते हैं। 

जाहिर है कि केंद्र सरकार ने अन्य संवैधानिक संस्थाओं की तरह चुनाव आयोग स्वायत्तता का भी अपहरण कर लिया है। अब चुनाव आयोग एक तरह से सरकार का रसोईघर बन गया है और मुख्य चुनाव आयुक्त रसोइए की भूमिका निभाते हुए वही पकाते हैं जो केंद्र सरकार और सत्ताधारी पार्टी चाहती है।

ये भी पढ़ें: असम: आख़िर चुनाव आयोग की भूमिका सवालों के घेरे में क्यों है?

Assembly Elections 2022
election commission of India
Central Government
Narendra modi
BJP
Modi government
ECI

Related Stories

हार्दिक पटेल का अगला राजनीतिक ठिकाना... भाजपा या AAP?

लोकसभा और विधानसभा उपचुनावों में औंधे मुंह गिरी भाजपा

ख़बरों के आगे-पीछे: गुजरात में मोदी के चुनावी प्रचार से लेकर यूपी में मायावती-भाजपा की दोस्ती पर..

विश्लेषण: विपक्षी दलों के वोटों में बिखराव से उत्तर प्रदेश में जीती भाजपा

पंजाब ने त्रिशंकु फैसला क्यों नहीं दिया

ख़बरों के आगे-पीछे: राष्ट्रीय पार्टी के दर्ज़े के पास पहुँची आप पार्टी से लेकर मोदी की ‘भगवा टोपी’ तक

आर्थिक मोर्चे पर फ़ेल भाजपा को बार-बार क्यों मिल रहे हैं वोट? 

पांचों राज्य में मुंह के बल गिरी कांग्रेस अब कैसे उठेगी?

विचार: क्या हम 2 पार्टी सिस्टम के पैरोकार होते जा रहे हैं?

यूपी चुनाव के मिथक और उनकी हक़ीक़त


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License