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नौ साल पहले तालिबान द्वारा एक नौजवान का किया गया अपहरण बना अंतहीन आघात
वर्ष 2000 में तालिबान लड़ाकों ने एक किशोर का अपहरण किया था। जब यूनाइटेड किंगडम में डॉक्टरों की एक टीम ने उसका मानसिक मूल्यांकन किया, तो तालिबान शासन के तहत जीवन की एक परेशान करने वाली तस्वीर उभर कर सामने आई है।
विक्रम शर्मा
10 Sep 2021
Translated by महेश कुमार
नौ साल पहले तालिबान द्वारा एक नौजवान का किया गया अपहरण बना अंतहीन आघात

दो दशकों के बाद अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की वापसी कोई सामान्य घटना नहीं है। यह अमेरिकी वर्चस्व के अंत और क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय गठजोड़ों में एक नए चरण का प्रतीक है। अपने पिछले कार्यकाल में, तालिबान ने कट्टर इस्लाम के संस्करण को लागू किया था और कई लोगों को निशाना बनाया, जिनके बारे में उनका मानना था कि वे संयुक्त राज्य या उसके सहयोगियों का समर्थन करते हैं। तालिबन ने ऐसे लड़ाकों की भी भर्ती की, जिन्होंने अगर भागने का प्रयास किया, तो उन्हें भयंकर प्रतिशोध का सामना करना पड़ सकता था। अब, कई लोग नए प्रतिशोध के अगले चरण के प्रति आगाह कर रहे हैं। यूनाइटेड किंगडम में चिकित्सा डॉक्टरों और मनोचिकित्सकों द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट जो 2012 में तालिबान की पकड़ से भागे एक युवा लड़के की रेजीडेंसी याचिका से संबंधित है, और जो आम लोगों पर युद्ध, कब्जे या सशस्त्र संघर्ष के प्रभाव को दर्शाती है। किशोर, जो अब एक वयस्क है, यूके में रहता है और मनोरोग चिकित्सा ले रहा है।

2012 में, जब ज़बीउद्दीन (पहचान छिपाने के लिए यहां नाम बदला गया है) सिर्फ तेरह साल का था, तालिबान के शूटर उत्तर पश्चिमी पाकिस्तान के अशांत क्षेत्र खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में उसके घर में घुस गए थे। उन्होंने उसके बड़े भाई को गोली मार दी, जो उसकी आंखों के सामने ही मर गया था। महीनों बाद, ईद-उल-फितर पर, जबीउद्दीन का अपहरण कर लिया गया और उसे सीमा पार अफ़ग़ानिस्तान ले जाया गया। उसे इस दौरान एके-47 असॉल्ट राइफल, हैंड ग्रेनेड, रॉकेट से चलने वाले ग्रेनेड (RPG) और अन्य हथियारों से परिचित कराया गया। तीन लंबे वर्षों तक कैद में रहने के कारण, तालिबान ने उसे पहाड़ों पर अपने ठिकानों पर हथियार और गोला-बारूद पहुँचाने का काम दिया था। उसे नियमित रूप से गाली दी जाती थी और प्रताड़ित किया जाता था, लेकिन उसका सबसे बुरा सपना तब सच हो गया जब उसके बंधकों ने उसे "विश्वासघात करने वालों" का सिर कलम करते देखने पर मजबूर किया।

एक रात, जब सुरक्षा बल और तालिबान के बीच भीषण गोलाबारी चल रही थी, जबीउद्दीन चुपके से बाहर निकल आया और अंधेरे में गायब हो गया। किसी भी युवा लड़के की तरह, वह घर गया, और कई महीनों के संघर्ष के बाद, यूनाइटेड किंगडम के भीतर अपना रास्ता खोज लिया।

अब वह बीस वर्ष का हो गया है और जबीउद्दीन भावनात्मक रूप से डरा हुआ एक युवक है। वह उन लोगों की चीखों के साथ ज़िंदा है जिन्हें उसके सामने प्रताड़ित किया गया था और जिनका सिर कलम कर दिया गया था। उसके दिमाग में बार-बार वे आवाजें कौंधती हैं और भयंकर नजारे आखोन के सामने आज भी घूमते हैं। उसके दिमाग में गोलियों की आवाजें बजती रहती हैं, जबकि कैद में दी गई यातना और दुर्व्यवहार उसके आघात को बढ़ा देता है। उसकी मनोवैज्ञानिक समस्याओं की सूची लंबी है, और उसका यह आघात निश्चित रूप से जीवन भर रहेगा।

यूनाइटेड किंगडम में डॉक्टरों की एक टीम ने जबीउद्दीन का मनोरोगी मूल्यांकन किया जिसके के बाद सत्रह पन्नों की एक रिपोर्ट तैयार की और बताया कि तालिबान शासन के तहत आम जीवन की एक परेशान करने वाली तस्वीर उभर कर आती है, जो क्रूरता से भरी हुई है। 2017 में जबीउद्दीन के इमीग्रेशन/आव्रजन मामले के संबंध में यूनाइटेड किंगडम की एक अदालत में गोपनीय रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी। चूंकि जबीउद्दीन अब यूनाइटेड किंगडम में रहता है और अभी भी मनोवैज्ञानिक चिकित्सा के जरिए उसका इलाज चल रहा है। वह अपने बड़े भाई, जोकि खुद तालिबान एक पूर्व लड़ाका है और वह अपनी ब्रिटिश पत्नी के साथ रहता है।

इस संवाददाता को मिली रिपोर्ट के अनुसार, जबीउद्दीन की भयानक कहानी वर्ष 2000 की शुरुआत में तथाकथित "उत्तर पश्चिम सीमा प्रांत या एनडब्ल्यूएफपी" के एक धूल भरे गांव से  शुरू हुई थी। जबीउद्दीन इस क्षेत्र को अफ़ग़ानिस्तान-पाकिस्तान की "सरहद" या सीमा के रूप में संदर्भित करता है। तालिबान ने जबीउद्दीन के बड़े भाई को भर्ती किया था, और उसे अफ़ग़ानिस्तान में उनके शिविर में प्रशिक्षित दिया गया था। वह काफी हताश था और तालिबान की पकड़ से जल्दी से जल्दी भागना चाहता था।

एक साल बाद हुए 9/11 के आतंकी हमलों के बाद, संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके सहयोगियों ने अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के नेतृत्व वाले इस्लामिक अमीरात को सत्ता से उखाड़ दिया था। वर्ष 2004 में, जबीउद्दीन अपने भाइयों और माता-पिता को छोड़कर भाग गया था, और यूनाइटेड किंगडम में बस गया था। खैबर पखतुनवा यानि केपी बैडलैंड्स में, तालिबान ने उसके परिवार को प्रताड़ित किया और मार डाला, जो पहले अपनी ज़िंदगी को बचाने के लिए एक गाँव से दूसरे गाँव भाग रहे थे। अफ़ग़ानिस्तान पर अमेरिका के आक्रमण के बाद, तालिबान कमज़ोर पड़ गया था।   फिर वे 2012 में फिर से इकट्ठा हुए – यह वह वर्ष है जब जबीउद्दीन को उठाया गया था - उन्होंने परिवार पर हमला किया और उसके सबसे बड़े भाई को मार डाला।

जबीउद्दीन, ईद पर तालिबान द्वारा अगवा किए गए 22 बच्चों में से एक था। उसने अपने डॉक्टरों को बताया कि “उन्होंने हमारे हाथ बांध दिए थे और हमें 24 घंटे तक अफ़ग़ानिस्तान में  तालिबान के अड्डे में घुमाया गया था। हम में से कई लोगों को रास्ते में थप्पड़ मारे गए और पीटा गया”।

वह भागना चाहता था लेकिन भागने की कोशिश करने वाले लोगों के सिर काटते देख उसने भागने का इरादा छोड़ दिया, जघन्य और नृशंस हत्याओं ने उसके और अन्य बंदियों में भय पैदा कर दिया था। जबीउद्दीन को कलाश्निकोव राइफलों के बटों से पीटा जाता था और इसके कारण वह निरंतर भय में रहता था। उसने कई बार मौत को चकमा दिया जब युद्धग्रस्त देश में नियमित रूप से गोलियोंयां चलती और उसे छु कर चली जाती थी। आखिरकार, एक झड़प के दौरान वह कैंप से भाग निकला, पाकिस्तान की सीमा पर चला गया और घर पहुंच गया। तब तक उनके माता-पिता एक शरणार्थी शिविर में रह रहे थे। उसे थोड़े समय के लिए रिश्तेदारों के घर रखा गया, क्योंकि परिवार को तालिबान द्वारा दोबारा से पकड़े जाने का डर था।

कहीं छिपने से बेहतर, जबीउद्दीन के पास देश छोड़ने का एकमात्र विकल्प बचा था। वह और कुछ अन्य लोग उत्तरी फ्रांस के एक प्रमुख नौका बंदरगाह, कैलिस चले गए थे। फ्रांस में उसकी चिंताएँ कम नहीं हुईं, क्योंकि जब भी वह भोजन खरीदने के लिए दुकानों पर जाता था, तो स्थानीय लोग उसके साथ मारपीट करते थे। एक स्वयंसेवक और सामाजिक कार्यकर्ता ने आखिरकार उनसे संपर्क किया और घटनाओं के उसके पक्ष की जानकारी हासिल की। उसने अपने भाई को यूनाइटेड किंगडम में खोज़ निकाला। हालांकि, चार साल पहले वे अक्टूबर 2016 में नॉर्थ वेल्स में फिर से मिले और साथ हो गए। 

मनोवैज्ञानिक सवालों के साथ जद्दोजहद 

रात के अँधेरे में, जब घर में सब सो रहे होते थे तो ज़बीउद्दीन जागता रहता था, अधिक समय वह अपने से ही बातें करता रहता था, आवाज़ें सुनता था, जो उसे मतिभ्रम कर देती थी। सिर कलम करने के फ्लैशबैक से पैदा हुए दुःस्वप्न को देखने से वह शायद ही सो पाता था। गाली-गलौज की ज्वलंत छवियां, रोने की आवाजें और लोगों की पिटाई की चीखें उसे सताती थी। पूरी रात वह स्वचालित हथियारों की आवाज सुनता रहता, जो उसे डराती थी। बेचैन और पसीना-पसीना होने के बाद वह दरवाजे और खिड़कियों से बाहर झांकता और सोचता कि क्या तालिबान लड़ाके उसे उठाने यहां आएंगे। उसे डर है कि कैद में रहने वाले अन्य लोगों की तरह वे उसका भी सिर काट देंगे, जिन्होंने भागने के असफल प्रयास किए थे।

तीन लंबे वर्षों तक, जबीउद्दीन ने तालिबान की कैद में नरक का अनुभव किया था, जो दुर्व्यवहार और यातना से भरा हुआ था। अब एक आज़ाद व्यक्ति के रूप भी उसका जीवन बेहतर नहीं है। उनके क्रूर तरीके भागने के पांच साल बाद भी उनकी याद में ताजा हैं। वे यादें उसके मानसिक स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रही है।

"ज़बी [उद्दीन] ने तालिबान द्वारा किए गए अत्यधिक शारीरिक, मनोवैज्ञानिक यातना और दुर्व्यवहार को सहन किया है। जिनके फलस्वरूप वह गहरी चिंता और अवसाद के लक्षणों से पीड़ित हो गया है। ब्रिटेन के एक अस्पताल के डॉक्टरों ने, जिन्होंने उनका मनोरोग मूल्यांकन किया, ने निष्कर्ष निकाला है कि आज वह लंबे समय तक जटिल पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर के साथ-साथ संभावित मानसिक लक्षणों से जुड़े गंभीर डिग्री के अवसादग्रस्तता विकार से पीड़ित है।“

डॉक्टरों ने नोट बताया कि ज़बी की मनोवैज्ञानिक लड़ाई उसके रोज़मर्रा के जीवन में लौटने में एक बड़ी बाधा है। "उनके भीतर धैर्ययुक्त और पल भर के लिए आने वाले आत्मघाती विचार हैं लेकिन कोई सक्रिय आत्महत्या करने की योजना नज़र नहीं आती है।“

वर्ष 2017 में, जब वह डॉक्टरों के साथ साक्षात्कार के लिए पहली बार कमरे में गया तो उन्होंने कहा, जबीउद्दीन, मामूली रूप से चिंतित और आशंकित दिखाई दिया था। सामान्य कपड़े पहने हुए और अच्छी तरह से तैयार हुआ, वह पूरे समय तनाव में रहा, क्योंकि उसने अपने अनुभवों को विस्तार से बताया था। उसने पश्तो में बात की और उनके भाई ने डॉक्टरों के लिए उसका अनुवाद किया। उनके भाई और भाभी को छोड़कर, उनके बाकी परिवार का वर्तमान ठिकाना अज्ञात है।

"उसकी चिंता का स्तर निष्पक्ष रूप से काफी ऊंचा था लेकिन उसने जवाब बड़े आश्वासन के साथ दिए। उसका ध्यान और एकाग्रता कम थी। डॉक्टरों ने पाकिस्तान मूल के युवक से हुई  मुलाक़ात के बारे में कहा कि वह पूरे सत्र के दौरान, स्पष्ट रूप से डरा हुआ था क्योंकि वह कैद में हुए दुर्व्यवहार और यातना का ग्राफिक विवरण दे रहा था।” उन्होंने नोट किया कि जबीउद्दीन की बातें सुसंगत और गति और प्रवाह में धीमी थी, और सामग्री में सामान्य थी जोकि "खराब मूड और निराशा की भावना का सबूत है। उसका प्रभाव प्रतिक्रियाशील था और उसने अपने भविष्य के बारे में भय और चिंता व्यक्त की थी।" 

लेकिन युवक की खोपड़ी और क्षतिग्रस्त कान पर कई निशान थे क्योंकि कलाश्निकोव बटों के हमले के कारण वह एक तरफ से बहरा हो गया था जो कैद में उसकी पीड़ा और दर्द की दर्दनाक कहानी दर्शाता है। डॉक्टरों का कहना है कि एक कान में बहरापन उसकी परेशानी को बढ़ा देता है और उसके मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को भी तीव्र कर देता है। उन्होंने लिखा है कि "उसे लंबे उपचार की जरूरत है और उसके निरंतर संभावित जोखिम पर निगरानी रखने की जरूरत है।“

जबीउद्दीन के भाई ने डॉक्टरों से कहा कि वह मूड बदलने की प्रक्रिया से पीड़ित है - वह मिनटों में सामान्य से गुस्से में आ जाता है या फिर चंचल हो जाता है। डॉक्टरों का यह भी कहना है कि वह अनायास ही रोता है, चिड़चिड़ा होता है और उसे भूख कम लगती है। डॉक्टरों ने ध्यान दिया कि ज़बी, जिसका बचपन में मानसिक बीमारी का कोई इतिहास नहीं है, अब"... नींद न आने और सामान्य जीवन का आनंद न उठा पाने की बीमारी से पीड़ित है साथ ही वह गतिविधियों में रुचि नहीं लेता है।“

वे कहते हैं कि उसके भीतर धैर्ययुक्त आत्मघाती विचार आते हैं। “कुछ मौकों पर, उसने अपने बाएं हाथ (जानबूझकर खुद को नुकसान पहुंचाने के लिए) को सतही रूप से जलाने की कोशिश की थी। उसके मन में पागलपन के विचार आते हैं, परिवार द्वारा दिए जाने वाली किसी भी भोजन को शक़ की निगाह से देखता हैं और तालिबान के संभावित खतरे को महसूस कर यूके में अपने घर के बाहर भी नज़र रखता है।”

मनोचिकित्सकों ने सतही जांच के बाद पाया कि उनके जानने समझने (संज्ञानात्मक) की शक्ति  पूरी तरह से बरकरार हैं, जिसमें उपयुक्त समय, स्थान और व्यक्तिगत अभिविन्यास शामिल हैं। उन्होंने लिखा कि "हालांकि उसका अपने बारे में खराब विचार है और आत्मविश्वास भी कम है, फिर भी उसने बेहतर होने के लिए कुछ इच्छा व्यक्त की है।" उन्होंने कहा कि आसन्न घातक  खतरे का डर, जिसका वास्तविकता में कुछ आधार हो सकता है, जिसने उसकी मनोस्थिती में इस प्रवृत्ति को बढ़ा दिया है, जो उसके नाजुक मानसिक स्वास्थ्य के लिए "बेहद हानिकारक" साबित हो सकता है। "उसकी पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर प्रकृति में जटिल है और जो उनके लिए सामान्य जीवन को जीना बहुत मुश्किल बना रहा है।"

डॉक्टर ने बताया कि, पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर के रोगियों के ठीक होने की उम्मीद की जा सकती है, लेकिन कुछ मामलों में स्थिति गंभीर या जटिल हो सकती है और यहां तक कि "स्थायी रूप से व्यक्तित्व में बदलाव" भी हो सकता है।

लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

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