NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
मज़दूर-किसान
स्वास्थ्य
विज्ञान
भारत
चावल से इथेनॉल का उत्पादन : सवाल वैधानिकता का नहीं, भूख से तड़पते देश में नैतिकता का है
भूखे लोगों के बीच चावल को इथेनॉल में बदलने का फ़ैसला क्रूर, कठोर और निर्लज्ज है।
डी रघुनंदन
26 Apr 2020
चावल
प्रतीकात्मक तस्वीर

17वीं या 18वीं शताब्दी में एक फ्रेंच राजकुमारी से कहा गया कि किसान परेशान हैं, उनके पास खाने के लिए रोटी नहीं है। जवाब में राजकुमारी ने कहा, ''तो उन्हें केक खाने को दिया जाए!'', यह बात एक ऐतिहासिक मुहावरा बन गई। इस मुहावरे का इस्तेमाल फ्रांस के कुलीन वर्ग का किसानों की समस्याओं से मुंह मोड़ने और उनकी स्थिति समझने की अक्षमता दिखाता था।

भारतीय सरकार ने हाल में बड़ी मात्रा में चावल को इथेनॉ़ल में बदलने का फ़ैसला लिया, ताकि सेनेटाइज़र और पेट्रोल में डाला जाने वाला बॉयो-फ्यूल बनाया जा सके। यह फ़ैसला क्रूर और अंसवेदनशील है।

यह फ़ैसला तब लिया गया है, जब अनौपचारिक सेक्टर में काम करने वाले लाखों प्रवासी और दैनिक मज़दूर, स्वरोज़गार में लगे कर्मचारी और दूसरे ग़रीब लोगों को रोज़ाना खाने के लाले पड़ रहे हों। इन लोगों को रहने की दिक्कत के साथ-साथ जरूरी चीजों की पूर्ति और कोरोना महामारी से सुरक्षा के लिए आर्थिक मदद भी नहीं मिल पा रही है।  

इन तबकों को अनाज पहुंचाने के केंद्र सरकार के ऊंचे-ऊंचे दावे मीडिया में आती खबरों से खारिज हो जाते हैं। यह लोग अपने गुज़ारे के लिए स्थानीय स्वयंसेवियों की छिटपुट मदद पर निर्भर हैं और किसी तरह जिंदा रहने की कोशिश कर रहे हैं। राज्य सरकारें भी सांस्थानिक अनाज वितरण और दूसरे ढांचे बनाने में नाकामयाब रही हैं। लेकिन सभी राज्य केंद्र से वित्तीय सहायता न मिलने की समस्या से जूझ रहे हैं। ऊपर से लॉकडॉउन के चलते उनके राजस्व में बहुत कमी आ गई है।

लोग भूख से तड़प रहे हैं, लेकिन भंडार नहीं खोले जा रहे हैं

सरकार के पास 6 करोड़ टन अनाज है, जिसमें से 3.1 करोड़ टन चावल और 2.75 करोड़ टन गेहूं है।

कई विशेषज्ञों, नागरिक-सामाजिक संगठनों और कर्मचारी संघों ने केंद्र से इस भंडार से जरूरी मात्रा में अनाज जारी करने के लिए कहा है। इसे सीधे पहुंचाया जाए या राज्य सरकारों को देकर पीडीएस के ज़रिए मजबूर प्रवासियों और दूसरे गरीबों तक पहुंचाया जाए। इसके लिए किसी भी तरह के दस्तावेज़ या राशन कार्ड न मांगे जाएं। इतने इस्तेमाल के बाद भी सरकार के पास ''अनिवार्य शर्त'' का 2.1 करोड़ टन अनाज रिजर्व होगा।

लेकिन केंद्र ने इन अपीलों पर कान बंद कर रखे हैं। यहां तक कि केंद्रीय खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्री ने दावा किया कि ऐसा करने से आपात स्थिति के लिए बचाकर रखा गया भंडार खत्म हो जाएगा। आखिर इससे बड़ा आपात और क्या हो सकता है? अब सरकार इस नतीजे पर पहुंची कि ग़रीबों और ज़रूरतमंदों तक इस अनाज को न पहुंचाकर, इसका इस्तेमाल इथेनॉल बनाने में किया जाए, ताकि बॉयो-फ़्यूल और सेनेटाइज़र बनाए जा सकें। इसके लिए बॉयो-ऊर्जा नीति 2018 के जरूरी प्रावधानों का इस्तेमाल किया गया। क्या वाकई ऐसी जरूरत है?

फिलहाल बॉयो-ऊर्जा की कोई जरूरत नहीं

बॉयो ऊर्जा नीति तेल के आयात को कम करने के लिए, अलग-अलग नवीकरणीय माध्यमों से इथेनॉल बनाने के मकसद से बुनी गई है. ताकि 20 फ़ीसदी पेट्रोल और पांच फ़ीसदी डीजल की हिस्सेदारी को इस ईंधन से पूरा किया जा सके.

अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में तेल की कीमतों में 1999 के बाद की ऐतिहासिक गिरावट है। इनमें थोड़ा सा उछाल सिर्फ इसलिए आया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान के जहाजों पर हमले की बात कही है। दुनिया में इस वक़्त तेल की बहुतायत है और भारत ने इस स्थिति का फायदा उठआने के लिए कुछ कदम भी उठाए हैं, ताकि अपने तेल भंडार की वृद्धि की जा सके।

लॉकडॉउन में तेल के उपयोग में बहुत ज़्यादा कमी आ गई है। खासकर यात्री गाड़ियों में लगने वाले पेट्रोल में। इसका बहुत कम उपयोग हो रहा है, यहां तक कि सार्वजनिक ट्रांसपोर्ट बंद होने से डीजल उपयोग में भी भारी कमी आई है। भले ही केंद्र सरकार ने कितनी ही रियायतों की बात कही हो, पर लॉकडॉउन के चलते ट्रकों के पहिए थम गए हैं।

इस पृष्ठभूमि में जब तेल की कीमतें बहुत कम हैं, तब हमें बॉयो-इथेनॉल की क्या जरूरत है?

सेनेटाइज़र के लिए भी ज़रूरी इथेनॉल उपलब्ध है

बताते चलें कि ऐतिहासिक तौर पर भारत को बॉयो-इथेनॉल के संवर्द्धन में बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ा है। यह आमतौर पर गन्ना उद्योग में सह-उत्पाद से मिलता रहा है। भारत सालाना करीब 2,500 से 3,000 मिलियन लीटर इथेनॉल का उत्पादन करता है। इसका इस्तेमाल शराब उद्योग और रसायन उद्योग में किया जाता है।

भारत ने इथेनॉल से बने पेट्रोल का हिस्सा कुल खपत का बीस फ़ीसदी करने का लक्ष्य रखा था। लेकिन सरप्लस इथेनॉल न होने के चलते भारत इस हिस्सेदारी को पांच फ़ीसदी भी नहीं पहुंचा पाया। नतीज़तन भारत अक्सर ब्राजील से इथेनॉ़ल आयात करता है। अगर अब भी जरूरत है, तो ऐसा किया जा सकता है।

लॉकडॉउन में सभी शराब बनाने वाली डिस्टिलरीज़ और रिटेल दुकानें पूरी तरह बंद हैं। इसलिए फिलहाल इथेनॉल का इस उद्योग में कोई उपयोग नहीं है। बल्कि सरकार ने बहुत सारी डिस्टीलरीज़ को सेनेटाइज़र बनाने के काम में लगा दिया है। फिर लॉकडॉउन के दौरान सभी केमिकल इंडस्ट्रीज़ भी बंद हैं। इसलिए फिलहाल पीने योग्य और न पीने वाली तमाम एल्कोहल बनाने के लिए पर्याप्त मात्रा में इथेनॉल की उपलब्धता है।

मोटे अनुमानों के मुताबिक़, आज सेनेटाइज़र बनाने वालों के लिए करीब 50 करोड़ टन लीटर इथेनॉल मौजूद है। अक्टूबर, 2020 में शुरू हो रहे अगले गन्ने के मौसम से नई इथेनॉल भी सेनेटाइज़र बनाने वालों को मिलने लगेगी। अगर सेनेटाइज़र में 70 फ़ीसदी इथेनॉल इस्तेमाल कर ली जाती है, तो करीब 70 करोड़ टन लीटर सैनिटाइज़र बनाया जा सकता है। क्या चावल का इस्तेमाल इस उद्देश्य के लिए करने का कोई तुक है?

ज़मीन ईंधन नहीं, अनाज के लिए है

इस मुद्दे पर बचाव की स्थिति में सरकारी सूत्रों का कहना है कि जो भी किया जा रहा है, वो उनके क्षेत्राधिकार में है। चावल का इस्तेमाल कर इथेनॉल बनाने में कोई भी अवैधानिक काम नहीं किया गया। राष्ट्रीय बॉयो-नीति 2018 के तहत ऐसे प्रावधान हैं।

ऐसा करने का फ़ैसला निश्चित तौर पर 'बॉयो-ईंधन समन्वय समिति (NBCC)' ने लिया होगा। मुख्य मुद्दा यहां सरकार के काम की वैधानिकता का नहीं, बल्कि फ़ैसले की बड़ी अनैतिकता का है। यहां कुछ मुद्दे स्वामित्व के भी हैं। क्या सरकार अपना उद्देश्य और बॉयो-ईंधन नीति के प्रावधान बताकर चालाकी दिखा रही है।

पहली बात तो बॉयो-ईंधन नीति में गैर-खाद्यान्न बॉयोमास के इस्तेमाल पर जोर दिया गया है। विशेष परिस्थितियों में 'अधिशेष' अनाज के इस्तेमाल का प्रावधान बाद में जोड़ा गया था। यही बात यूनाईटेड नेशंस फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइज़ेशन (FAO) लगातार कहता आया है। 'ज़मीन ईंधन के लिए नहीं, अनाज के लिए है' के नारे तले FAO अनाज के दानों से इथेनॉल बनाने का विरोध करता है।

परिभाषा के अंतर्गत पैराग्राफ 3.1 कहता है कि बॉयो-इथेनॉल के उत्पादन के लिए नवीकरणीय ऊर्जा संसाधन, ''अपशिष्ट पदार्थों, कृषि उत्पादों के अवशिष्ट, तेलीय पेड़ों, ना खाने वाले तेलों और जंगल के जैवनिम्नीकृत हिस्से, उद्योग और नगरपालिका के जैवनिम्नीकृत अपशिष्ट'' हैं। पैराग्राफ 3.2 में आगे गन्ने, सोर्घुम, मक्के, कसावा और सड़े हुए आलू से निकलने वाले स्टॉर्चयुक्त पदार्थों को संसाधन के तौर पर इस्तेमाल करने की बात है। यहां भी चावल की बात नहीं है। यहां तक कि एडवांस और सेकंड जेनरेशन के बॉयो-ईंधन को भी 'गैर खाद्यान्न फ़सलों' और कच्चे माल के तौर पर परिभाषित किया गया है, जो खाद्यान्न फ़सलों के साथ ज़मीन घेरने की प्रतिस्पर्धा नहीं करते।

हालांकि 2018 की नीति से सरकार को कुछ खाद्यान्न अनाजों को बॉयो इथेनॉल में बदलने की छूट मिलती है। पैराग्राफ 2.2 (C) के तहत कुछ विशेष परिस्थितियों में 'बॉयो-ईंधन के लिए नये कच्चे माल को विकसित' करना परिभाषित किया गया है।

शुरूआत में इस नीति के तहत केवल 'गैर खाद्यान्न कच्चे माल' को ही अनुमति दी गई थी, 2018 में शामिल किए गए नए प्रावधानों से खाद्यान्न अनाजों को भी 'अधिशेष की स्थिति' में उपयोग की अनुमति (पैरा 5.2) दे दी गई। पैराग्राफ 5.3 के मुताबिक़, ''किसी कृषि फस़ल वर्ष के दौरान जब अनाज की पूर्ति मंत्रालय द्वारा लगाए अनुमान से ज़्यादा हो जाए, तो इस अधिशेष का इस्तेमाल इथेनॉल बनाने में किया जा सकता है। इसके लिए नेशनल बॉयो कोआर्डिनेशन कमेटी की अनुमति लेनी होगी।''

सवाल यह उठता है कि क्या मंत्रालय ने 2020 को अधिशेष उत्पादन का साल घोषित कर दिया है? जबकि फ़सल कटाई के बाद से ट्रांसपोर्ट और दूसरे प्रबंध बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। ऊपर से ऐसे अहम वक़्त में जब देश में महामारी फैली है, लॉकडॉउन लागू है, लाखों लोग मुसीबत में हैं, तब अनाज भंडार का उपयोग इथेनॉ़ल बनाने के लिए करने की अनुमति दे दी गई, पहली बार ऐसा फ़ैसला लिया गया है। यह फैसला केंद्रीय कैबिनेट को लेना था, जो सभी तरह के तत्वों को ध्यान में रखती। लेकिन महज़ एक कमेटी ने इसका फ़ैसला ले लिया, जो किसी भी कीमत पर केवल इथेनॉ़ल के उत्पादन में रुचि रखती है।

किसी भी तरह सोचें, तो यह देश के लिए अहम वक़्त है। यहां मामला वैधानिकता से आगे नैतिकता का है। इस देश के लोगों को खाना चाहिए। भूखे लोगों की नाक के नीचे अनाज को इथेनॉ़ल में बदलना बेहद क्रूर, विपत्तिकारी और असंवेदनशील है। अगर सरकार को लगता है कि भारतीय लोगों को चावल की जरूरत नहीं है, तो उन देशों को निर्यात कर दे, जहां जरूरत है, या लाखों प्रवासियों को मुहैया करा दे, खुद भारत के पड़ोस में ही कितनी बड़ी संख्या में प्रवासी मौजूद हैं। चावल के भंडार को बॉयो-ईंधन में बदलना, जिसकी भारत को फिलहाल जरूरत नहीं है, या इसे सेनेटाइज़र में उत्पादित करना, जिसके लिए भी किसी दूसरे कच्चे माल का उपयोग किया जा सकता है, यह कदम बेहद आपराधिक प्रवृत्ति भरे हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल लेख को नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके पढ़ा जा सकता है।

Ethanol from Rice: Let Them Eat cake!

Biofuel Policy
ethanol
Hand Sanitisers
Foodgrain Surplus
Rice Exports
Hunger
Food Distribution
COVID-19
Rice IntoEntahol

Related Stories

यूपी चुनाव: बग़ैर किसी सरकारी मदद के अपने वजूद के लिए लड़तीं कोविड विधवाएं

यूपी चुनावों को लेकर चूड़ी बनाने वालों में क्यों नहीं है उत्साह!

लखनऊ: साढ़ामऊ अस्पताल को बना दिया कोविड अस्पताल, इलाज के लिए भटकते सामान्य मरीज़

किसान आंदोलन@378 : कब, क्या और कैसे… पूरे 13 महीने का ब्योरा

पश्चिम बंगाल में मनरेगा का क्रियान्वयन खराब, केंद्र के रवैये पर भी सामाजिक कार्यकर्ताओं ने उठाए सवाल

यूपी: शाहजहांपुर में प्रदर्शनकारी आशा कार्यकर्ताओं को पुलिस ने पीटा, यूनियन ने दी टीकाकरण अभियान के बहिष्कार की धमकी

दिल्ली: बढ़ती महंगाई के ख़िलाफ़ मज़दूर, महिला, छात्र, नौजवान, शिक्षक, रंगकर्मी एंव प्रोफेशनल ने निकाली साईकिल रैली

पश्चिम बंगाल: ईंट-भट्ठा उद्योग के बंद होने से संकट का सामना कर रहे एक लाख से ज़्यादा श्रमिक

भारत में भूख की अंतहीन छाया

मध्य प्रदेश: महामारी से श्रमिक नौकरी और मज़दूरी के नुकसान से गंभीर संकट में


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License