NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
यूरोप
अफ्रीका
अफ़्रीकी प्रवासियों के प्रति बढ़ते नस्लीय भेदभाव का ज़िम्मेदार कौन है?
यह यूरोप की अफ़्रीका को उधार पर ज़िन्दा रखने की लालची प्रवृत्ति है जिसने प्रवासन की प्रक्रिया को हवा दी है, और बदले में यूरोपीय संघ में विदेशियों से घृणा की राजनीति फल-फूल रही है.
विजय प्रसाद
25 Oct 2019
african migrants in europe
प्रतीकात्मक तस्वीर

अगर आप यूरोप में किसी अफ़्रीकी प्रवासी से पूछेंगे, जो भूमध्य सागर को नाव के सहारे पार कर आया है कि क्या वह दोबारा फिर से इस यात्रा के लिए तैयार है तो उनमें से अधिकांश का जवाब होगा “हाँ”. इनमें से कई ऐसे लोग होंगे जिन्होंने ख़तरनाक सहारा रेगिस्तान के सफ़र को वैन और ट्रक के ज़रिये पूरा किया होगा, और कईयों ने समुद्री नावों पर चढ़कर उछाल मारते हुए पानी को पार करने के लिए संघर्ष किया होगा. अपनी इस यात्रा के दौरान उन्होंने अपने साथ यात्रा कर रहे कई सह-यात्रियों को प्यास से मरते या डूबते देखा होगा, लेकिन इस सबके बावजूद कोई चीज़ एक बार फिर से रेत और समुद्र को पार करने के उनके दृढ निश्चय से डिगा नहीं सकती.

यूरोपियन समुत्र तट रक्षकों से मिलने वाले दुर्व्यवहार और यूरोपियन समाज के भीतर व्याप्त ज़बरदस्त नस्लवादी घृणा भी उन्हें इस फ़ैसले के प्रति अफ़सोस या इसपर पुनर्विचार करने पर मजबूर नहीं कर पाती.

माली से आई द्रिसा कहती हैं, “यह सब पैसा कमाने के लिए किया। मुझे अपनी माँ और पिता की फ़िक्र है. मेरी बड़ी बहन और छोटी बहन है. उनकी मदद करने के लिए मुझपर यह दबाव था। इसीलिए यूरोप।”

अफ़्रीकी प्रवासियों को लेकर भ्रांतियां

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम में 17 अक्टूबर को जारी रिपोर्ट से पता चलता है कि यूरोप के जिन लगभग 2,000 अफ़्रीकी प्रवासियों से बातचीत की गई उनमें से 97% लोग यह जानते हुए भी कि यात्रा के अपने क्या ख़तरे हैं या यूरोप में जीवन किस प्रकार का है, वे लोग दोबारा यूरोप आने के लिए फिर से वही जोखिम उठाने के लिए तैयार हैं. इस संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में जो बात मज़बूती से उभर कर आई है वो ये है कि यह अफ़्रीकी प्रवास के बारे में कई मिथकों को तोड़ने का काम करता है.

एक भयानक सोच यह बन गई है कि अफ़्रीकी मूल के लोग किसी भी तरह से यूरोप में "घुसपैठ" में लगे हैं, और उससे भी घटिया सोच यह है कि वे यूरोप में अपना "झुंड" बना रहे हैं. आव्रजन विरोधी बयानबाजियों को देखें तो उसमें बाड़ के निर्माण से लेकर यूरोप को एक किले के रूप में तब्दील करने की बात हो रही है. ऐसा लग रहा है कि जैसे यह कोई युद्ध है और आक्रमणकारियों से आत्मरक्षा के लिए यूरोपवासियों को ख़ुद को हथियारबंद कर लेना चाहिए.

एक साल पहले, संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में गठित नरसंहार की रोकथाम के लिए नियुक्त विशेष सलाहकार, एडामा डेंग ने चेतावनी दी थी कि "यूरोपीय राजनेता अपने नफ़रती बयानों से आग की लपटें उठाने का काम कर रहे हैं, जो घृणा, नस्लीय भेदभाव और हिंसा को वैधता प्रदान करता है.” जहाँ एक तरफ़ चरमपंथी तत्व ‘लोकलुभावनवाद’ के नाम पर मुख्यधारा की राजनैतिक बहसों में भड़काऊ भाषा का विस्तार कर रहे हैं, वहीँ घृणा पर आधारित अपराधों और बयानबाज़ी की मात्रा में वृद्धि जारी है. इस साल मई में संयुक्त राष्ट्र के अपने जेनेवा में दिए गए भाषण में सेनेगल मूल की वकील डेंग ने कहा है, “घृणा पर आधारित अपराध, स्पष्ट तौर पर अत्याचारों पर आधारित अपराधों की पूर्व चेतावनी सूचक हैं- बड़े बड़े जनसंहारों की शुरुआत हमेशा छोटे छोटे कृत्यों और भाषा द्वारा निर्मित होते हैं.”

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट दर्शाती है कि अफ़्रीकी प्रवासियों को लेकर चारों तरफ़ यह घृणा का माहौल सही नहीं है. यूरोप के भीतर बढ़ते प्रवासन की मुख्य वजहें ख़ुद यूरोप के अंदर हैं. पश्चिम एशिया के सीरिया और अफ़ग़ानिस्तान के युद्ध क्षेत्र से आने वाले ही नहीं बल्कि इरीट्रिया और लीबिया से भी जो प्रवासी बम धमाकों की वजह से भारी संख्या में भागकर आ रहे हैं, वे अधिकतर यूरोप के अंदर ही निर्मित होते हैं. और इनकी संख्या उन अफ़्रीकियों से बहुत अधिक है, जो काम की तलाश में यूरोप आते हैं.

सच तो ये है कि 80% से अधिक अफ़्रीकी प्रवासी महाद्वीप के अंदर ही रह जाते हैं. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार अफ़्रीकी जनसंख्या की तुलना में महाद्वीप से बाहर जाने वाले अफ़्रीकी प्रवासन का अनुपात "दुनिया में सबसे कम में से एक है."

यूरोपीय आंकड़ों के अनुसार, यूरोप जाने वाले अधिकतर प्रवासी वैध माध्यमों का ही सहारा लेते हैं- जिसमें दूतावास जाने, वीज़ा के लिए आवेदन, वीज़ा की अनुमति और फिर हवाई यात्रा के द्वारा विदेश गमन की वैधानिक वीज़ा के ज़रिये प्रवासन की तुलना में अनियमित आगमन जिनमें से अधिकतर नाव के सहारे आये होंगे, की संख्या काफ़ी कम होती है. लेकिन यह नस्लवादी सोच है जो इस वास्तविकता को स्वीकार नहीं कर पाती.

प्रवासियों का देश में पैसे भेजना (रेमिटेंस)

यदि आप यूएनडीपी की रिपोर्ट की गहराई में जाएँ तो आप पाएंगे कि 58% यूरोप में स्थित प्रवासी अफ़्रीकियों ने जब बाहर जाने का निर्णय लिया था तो उनमें से अधिकतर या तो घरों में या स्कूल में नौकरी कर रहे थे, वे नौकरी कर रहे थे और उन्हें ठीक ठाक मजदूरी मिल रही थी. अपने देश में असुरक्षा की भावना और यह विचार कि बाहर इससे बेहतर भविष्य होगा. के कारण वे दूसरे देश जाते हैं. आधे से अधिक प्रवासियों को इस यात्रा के लिए उनके परिवारों ने आर्थिक मदद की थी, और 78% ने अपने परिवार को पैसे वापस भेजे थे.

विश्व बैंक के आंकड़े बताते हैं कि अफ़्रीकी देशों के लिए रेमिटेंस में बढ़ोत्तरी हुई है. वैश्विक प्रवृत्ति के अनुरूप, अफ़्रीका के उप-सहारा क्षेत्र को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफ़डीआई) की तुलना में रेमिटेंस के ज़रिये कहीं अधिक विदेशी मुद्रा प्राप्त हुई.

विश्व बैंक के अनुसार 2018 में रेमिटेंस के ज़रिये कुल 46 बिलियन डॉलर की आय हुई जो 2017 की तुलना में 10% अधिक थी. जिन देशों को अधिकतम रेमिटेंस प्राप्त हुए उनमें कोमोरोस, ज़ाम्बिया, लेसोथो, काबो वेर्दे, लाइबेरिया, ज़िम्बाब्वे, सेनेगल, टोगो, घाना और नाइजीरिया प्रमुख हैं.

यूएन कॉन्फ़्रेंस ऑन ट्रेड एंड डेवलपमेंट (यूएनसीटीएडी) के अनुसार, अफ़्रीका के सब-सहारा क्षेत्र में सकल एफ़डीआई प्रवाह 32 बिलियन डॉलर हुआ जो 2017 से 13% अधिक था, जो काफ़ी महत्पूर्ण है, लेकिन यह राशि रेमिटेंस की तुलना में कम थी.

प्रवासियों द्वारा अपने घरों में भेजी जाने वाली धनराशि निगमों और बैंकों द्वारा इन देशों में डॉलर के ज़रिये निवेश से अधिक महत्वपूर्ण है. यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि प्रवासियों की तुलना में बैंकरों को कहीं बेहतर आदर सम्मान दिया जाता है.

अफ़्रीकी ऋण संकट 2.0

अफ़्रीका एक भारी ऋण संकट की दहलीज पर खड़ा है

पिछला ऋण संकट 1980 के दशक में व्यापक तीसरी दुनिया के ऋण संकट के रूप में उभरा था. अफ़्रीका के ग़ैर-औपनिवेशिकीकारण के इस दौर में- उपनिवेशवाद द्वारा इसकी सम्पदा को बुरी तरह लूटे जाने के कारण- अफ़्रीका को अपने विकास के लिए भारी मात्रा में कर्ज लेना पड़ा; लेकिन सबसे बुरा यह हुआ कि इसमें लंदन इंटरबैंक बॉरोइंग रेट (LIBOR) और अमेरिकी ट्रेजरी की ब्याज दरों द्वारा डॉलर-मूल्य के ऋण में हेरफेर किया गया था.

1980 के दशक में आसमान छूते क़र्ज़ ने लंबी अवधि तक कठोर रूप में मितव्ययी बनने और कई कष्टों को जन्म दिया. साफ़ तौर पर यह क़र्ज़ तब तक चुकता नहीं हो सकता था जब तक बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने पूरी तरह से अफ़्रीकी संसाधनों का दोहन नहीं कर लिया और लूट के धन पर टैक्स भी देने से इंकार कर दिया. यही कारण था कि 1996 और 2005 में विश्व बैंक और आईएमएफ़ द्वारा क्रमशः बुरी तरह क़र्ज़ में डूबे ग़रीब देशों (HIPC) और बहुपक्षीय क़र्ज़ राहत पहल (MDRI) जैसी पहल का जन्म हुआ. इन क़दमों के ज़रिये, 2017 तक, 99 अरब डॉलर के ऋण दिए गए, जिससे अफ़्रीका के क़र्ज़ों में ऋण से सकल घरेलू आय के प्रतिशत में 119% से 45% तक कमी आई.

यह ढांचा बदस्तूर जारी रहा- पश्चिमी देशों की बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा अफ़्रीकी महाद्वीप की लूट को जारी रखने के लिए उपयोग किए जाने वाले तंत्र बदस्तूर जारी रहे जिसने ग़लत-मूल्य के हस्तांतरण पर कोई हमला नहीं किया गया, आधार के क्षरण और लाभ हस्तांतरण (BEPS) को जारी रखा. जब 2014 में वस्तुओं के मूल्य में झटके आने शुरू हुए, तो कई अफ़्रीकी देश धीरे-धीरे एक नए क़र्ज़ संकट में डूब गए. ये सभी नए कर्ज सरकारी नहीं हैं, बल्कि इसमें काफ़ी बड़ा अनुपात निजी क्षेत्र से लिया गये ऋण के रूप में है, जो विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार $ 35 बिलियन (2006) से बढ़कर $ 110 बिलियन (2017) तिगुना हो चुका है. ऋण को चुकाने की दर में नाटकीय रूप से वृद्धि हुई है, जिसका अर्थ है स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में गिरती भागेदारी, जैसा कि पहले छोटे उद्योगों और कम्पनियों के लिए पूंजी तक पहुँच थी.

वर्तमान में, विश्व बैंक की संख्या के अनुसार, अफ़्रीका के 54 राज्यों में से आधे देश जीडीपी की तुलना में भारी क़र्ज़ के संकट से जूझ रहे हैं, जिनमें से कईयों के यहाँ यह 60% की दहलीज़ पर पहुँच गया है जो संकट का संकेत है. इस क़र्ज़ वृद्धि की दर ने पूरे महाद्वीप में ख़तरे की घंटी बजा दी है.

इस बात का क्या मतलब निकाला जाए?

इसका मतलब है कि अगर पश्चिम में किसी प्रकार का आर्थिक संकट आता है तो यह अफ़्रीका के वित्त पोषण से खुद को अलग कर लेगा और इस क्षेत्र को एक और बड़े ऋण संकट में डुबो देगा, और लाखों लोगों को बेहतर जीविका के मौक़ों की तलाश के लिए मजबूर करेगा. अफ़्रीकी देशों और परिवारों में प्रवासी अफ्रीकियों द्वारा भेजे जाने वाले रेमिटेंस पर अब कफ़ी भरोसा हो चुका है. ये अब वित्तपोषण के संरचनात्मक धागे का हिस्सा बन चुके हैं.

प्रवासियों के ख़िलाफ़ नस्लीय भेदभाव एक बहुत बड़ी समस्या है, और इसे अपने आपमें ख़ुद से निपटना होगा.

लेकिन इससे भी गहरी एक दूसरी समस्या है जो बिना किसी प्रभावी उत्तर-उपनिवेशवाद की नीतियों के कारण बढ़ी है वह है अफ़्रीका के संसाधनों की लगातार होने वाली लूट की ढांचागत समस्या और इसके खुद की पांवों पर खड़ा होने के लिए ज़रूरी वित्त पोषण की कमी. बहुराष्ट्रीय निगमों को अफ़्रीकी संसाधनों की खुली लूट की अनुमति और लगभग लूट की शर्तों पर विदेशी बैंकों को अफ़्रीका को क़र्ज़ देने की छूट ने सीधे तौर पर संकट का एक अंतहीन जाल निर्मित कर दिया है जिसमें प्रवासन और बदले में रेमिटेंस से मिलने वाली आय एक मरहम-पट्टी का काम करती है.

यूरोप में शरणार्थी या प्रवासी संकट नहीं है. असली संकट तो अफ़्रीका में है, जहाँ चोर आमतौर पर कोई यूरोपीय कम्पनी होती है- जो इस महाद्वीप के साँस लेने की क्षमता को लगातार नज़रअंदाज़ करते रहते हैं.

विजय प्रसाद एक भारतीय इतिहासकार, संपादक और पत्रकार हैं. वे Globetrotter, , स्वतंत्र मीडिया संस्थान के प्रोजेक्ट, में लेखक और मुख्य संवाददाता के रूप में कार्यरत हैं. वे  LeftWord Books के मुख्य संपादक और ट्राईकॉन्टिनेंटल: इंस्टीट्यूट फॉर सोशल रिसर्च के निदेशक हैं. प्रस्तुत विचार व्यक्तिगत हैं.

यह लेख Globetrotter, स्वतंत्र मीडिया संस्थान प्रोजेक्ट, द्वारा प्रस्तुत किया गया है.

सौजन्य: Independent Media Institute

अंग्रेजी में लिखा मूल लेख आप नीचे लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं। 

Who’s Behind Growing Racism Against African Migrants?

Immigration
africa
Human Rights
Economy
Racism
Xenophobia
European Union
Europe
Migration to Europe

Related Stories

क्यूबाई गुटनिरपेक्षता: शांति और समाजवाद की विदेश नीति

क्या जानबूझकर महंगाई पर चर्चा से आम आदमी से जुड़े मुद्दे बाहर रखे जाते हैं?

डेनमार्क: प्रगतिशील ताकतों का आगामी यूरोपीय संघ के सैन्य गठबंधन से बाहर बने रहने पर जनमत संग्रह में ‘न’ के पक्ष में वोट का आह्वान

रूसी तेल आयात पर प्रतिबंध लगाने के समझौते पर पहुंचा यूरोपीय संघ

यूक्रेन: यूरोप द्वारा रूस पर प्रतिबंध लगाना इसलिए आसान नहीं है! 

और फिर अचानक कोई साम्राज्य नहीं बचा था

गतिरोध से जूझ रही अर्थव्यवस्था: आपूर्ति में सुधार और मांग को बनाये रखने की ज़रूरत

पश्चिम बंगालः वेतन वृद्धि की मांग को लेकर चाय बागान के कर्मचारी-श्रमिक तीन दिन करेंगे हड़ताल

तेलंगाना एनकाउंटर की गुत्थी तो सुलझ गई लेकिन अब दोषियों पर कार्रवाई कब होगी?

वित्त मंत्री जी आप बिल्कुल गलत हैं! महंगाई की मार ग़रीबों पर पड़ती है, अमीरों पर नहीं


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    डिजीपब पत्रकार और फ़ैक्ट चेकर ज़ुबैर के साथ आया, यूपी पुलिस की FIR की निंदा
    04 Jun 2022
    ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर पर एक ट्वीट के लिए मामला दर्ज किया गया है जिसमें उन्होंने तीन हिंदुत्व नेताओं को नफ़रत फैलाने वाले के रूप में बताया था।
  • india ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट
    03 Jun 2022
    India की बात के इस एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, अभिसार शर्मा और भाषा सिंह बात कर रहे हैं मोहन भागवत के बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को मिली क्लीनचिट के बारे में।
  • GDP
    न्यूज़क्लिक टीम
    GDP से आम आदमी के जीवन में क्या नफ़ा-नुक़सान?
    03 Jun 2022
    हर साल GDP के आंकड़े आते हैं लेकिन GDP से आम आदमी के जीवन में क्या नफा-नुकसान हुआ, इसका पता नहीं चलता.
  • Aadhaar Fraud
    न्यूज़क्लिक टीम
    आधार की धोखाधड़ी से नागरिकों को कैसे बचाया जाए?
    03 Jun 2022
    भुगतान धोखाधड़ी में वृद्धि और हाल के सरकारी के पल पल बदलते बयान भारत में आधार प्रणाली के काम करने या न करने की खामियों को उजागर कर रहे हैं। न्यूज़क्लिक केके इस विशेष कार्यक्रम के दूसरे भाग में,…
  • कैथरिन डेविसन
    गर्म लहर से भारत में जच्चा-बच्चा की सेहत पर खतरा
    03 Jun 2022
    बढ़ते तापमान के चलते समय से पहले किसी बेबी का जन्म हो सकता है या वह मरा हुआ पैदा हो सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि गर्भावस्था के दौरान कड़ी गर्मी से होने वाले जोखिम के बारे में लोगों की जागरूकता…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License