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जांच पर और सवाल करते हैं 9/11 मामले में एफबीआई के सार्वजनिक हुए दस्तावेज 
9/11 हमलों की साजिश में सऊदी अरब की कथित सांठगांठ के बारे में लंबे समय से गोपनीय रखे गए एफबीआई के दस्तावेजों का खुलासा कर दिया गया है, जिसके मुताबिक अमेरिका में रह रहे सऊदी के कुछ धार्मिक अधिकारियों के हमले में शामिल दो विमान अपहर्ताओं के साथ खास संबंध थे। 
अमिताभ रॉय चौधरी
18 Sep 2021
जांच पर और सवाल करते हैं 9/11 मामले में एफबीआई के सार्वजनिक हुए दस्तावेज 

अभी कुछ दिनों पहले, संयुक्त राज्य संघीय ब्यूरो ऑफ इंवेस्टिगेशन (एफबीआई) ने संयुक्त राज्य (यूएस) में रह रहे कुछ सऊदी नागरिकों एवं 9/11 के आतंकी विध्वंसों में शामिल दो विमान अपहर्ताओं के बीच कथित संबंधों के बारे में 2016 के नये दस्तावेजों को सार्वजनिक किया गया है। यह 9/11 के विध्वंस में सऊदी अरब की कथित सांठगांठ के बारे में एफबीआई की रिपोर्ट थी, जिसे लंबे समय से गुप्त रखा गया था। एफबीआई की जांच की 16-पृष्ठ की संशोधित रिपोर्ट, जिसका कूट नाम एनकोर है, उसमें अपहर्ताओं के ऑपरेशंस के हिस्से का सारांश प्रस्तुत किया गया है।

हमले का पूर्वालोकन

कुल 19 विमान अपहर्ताओं में से 15 से अधिक अपहर्ता, जिन्होंने 11 सितम्बर, 2001 को चार अमेरिकी नागरिक विमानों का अपहरण किया था, वे सभी के सभी सऊदी अरब के नागरिक थे। इन्होंने साझा हमले किए थे। इन में से दो अपह्रत विमानों को न्यूयार्क के मैनहट्टन इलाके में स्थित दो जुडवां टॉवर्स पर हमले कर उसे नेस्तनाबूद करने में मिसाइल की तरह इस्तेमाल किए गए थे। तीसरे विमान को यूएस के रक्षा विभाग के कार्यालय पेंटागन को ध्वस्त करने के मंसूबे से टकराया गया था। अंतिम या चौथा विमान पेंसिलावानिया के मैदान में गिरा था, जब उसमें सवार यात्रियों ने इसे वाशिंगटन में कैपिटल की इमारत पर गिराने के अपहर्त्ताओं के इरादे को भांपते हुए विमान को अपने कब्जे में लेने की कोशिश की थी और उसे दूसरी ओर मोड़ दिया था। इसी वजह से वह मैदान में गिरा था। इन हमलों में बड़े पैमाने पर मानवीय क्षति हुई थी, जिनमें 3,000 से अधिक लोग मारे गए थे। 

पीड़ितों के सगे-संबंधियों की मांग

इन आतंकी हमलों में मारे गए लोगों के परिजन लंबे समय से हमलों की जांच से संबंधित इन फाइलों को सार्वजनिक किए जाने और इन्हें जारी किए जाने की मांग करते आ रहे थे, जिनमें सऊदी अरब सरकार की कथित सांठगांठ होने का आरोप लगाया गया है। मृतकों के ये परिजन यह भी आरोप लगा रहे थे कि पहले से जानकारी होने के बावजूद इस सरकार ने बहुआयामी हमलों को रोकने के लिए अपनी तरफ से कोई प्रयास नहीं किया था। लेकिन, विध्वंसक आतंकवादी हमले की 20वीं बरसी पर जारी दस्तावेज इन हमलों की साजिश रचने में सऊदी सरकार की सांठगांठ होने का सबूत पेश नहीं करते। सऊदी सरकार इन आरोपों और अंदेशों से लगातार इनकार करती आई है कि उसका इन हमलावरों के साथ किसी तरह की कोई मिलीभगत है। उसने इन आरोपों को “फर्जी एवं दुर्भावना” से प्रेरित बताया है। दरअसल, सऊदी सरकार पर ये आरोप इसलिए चस्पां किए गए थे कि कुल 19 आतंकवादी विमान अपहर्ताओं में से 15 सऊदी अरब के ही थे और अल कायदा सरगना ओसामा बिन लादेन भी सऊदी अरब के काफी रसूखदार कुनबे से ताल्लुक रखता था। इसलिए उसके संगठन को 1980 एवं 1990 के दशकों में सऊदी अमीरों से कथित रूप से भारी-भरकम रकम सहायता के रूप में मिली थी।

एफबीआई की रिपोर्ट

हालांकि एफबीआई की 2016 की रिपोर्ट में कई अहम सवालों को अनसुलझा ही छोड़ दिया गया है, जिनमें घनिष्ठ संपर्क वाले सऊदी की भूमिका भी शामिल है, जिसने दो आतंकवादी विमान अपहर्ताओं को सहाय-सहकार सहायता (लॉजिस्टिकल सपोर्ट) मुहैया कराया था। इन दोनों की पहचान खालिद अल-मिहधर और नवाफ अल-हज़मी के रूप में की गई है। ये दोनों ही अल कायदा से जुड़े थे, जिनके नाम सीआईए और नेशनल सिक्युरिटि एजेंसी (एनएसए) दोनों के ही विवरणों में दर्ज हैं। सीआईए अधिकारियों ने इन दोनों को मलयेशिया के कुआला लाम्पुर में निगरानी पर रखा था, पर एजेंसी ने अगस्त 2001 तक अमेरिका में उनकी उपस्थिति के बारे में एफबीआई को सूचित नहीं किया था। ये लोग हमले के कुछ ही हफ्ते पहले तक वहां रहे थे। पहले मिहधर एवं हज़मी 15 जनवरी 2000 को लॉस एजेंल्स आया था और बाद में वह कैलिफोर्निया के सैन डिएगो काउंटी में रहने लगा था। दिलचस्प है कि वे दोनों ही यूएस में अपने वास्तविक नाम से आए थे और आव्रजन की सभी प्रक्रियाएं पूरी की थीं। उनके नाम सीआईए एवं एनएसए के डेटाबेस में दर्ज थे, फिर भी इन्हें लेकर खतरे की कोई घंटी नहीं बजी। इस पूरे मामले में 2016 की रिपोर्ट्स प्रो-पब्लिक, इंडिपेंडेंट, एबीसी न्यूज एवं न्यूयार्क टाइम्स समेत संयुक्त राज्य अमेरिका के कई बड़े एवं प्रमुख अखबारों, एजेंसियों एवं जर्नलों में उनका जिक्र किया गया था। 

हालांकि मिहधर एवं हज़मी काफी होशियार अल कायदा के सदस्य माने जाते थे, पर वे इंग्लिश लिखना या पढ़ना नहीं जानते थे। यहां तक कि वे “बिना अच्छी मदद” के यूएस में कहीं घूम-फिर भी नहीं सकते थे, जैसा कि एनकोर जांचकर्ताओं (एफबीआई) का मानना है। वे विश्वास करते हैं कि इन दोनों आतंकवादियों के लॉस एंजेल्स में पहुंचने के पहले दक्षिणी कैलिफोर्निया में सऊदी अधिकारियों एवं अन्य उग्रवादियों द्वारा सहायता दी गई थी। 

2016 की रिपोर्ट के कुछ अन्य नए साक्ष्यों में, टेलीफोन पर हुई बातचीत का भी रिकॉर्डस रखा गया है जो बताता है कि एक प्रौढ़ अवस्था के सऊदी छात्र उमर अल-बयूमी ने उन्हें सैन डिएगो अपार्टमेंट में टिकाने में मदद की थी। बयूमी कभी-कभार ही क्लास करने जाता था। वह इसके पहले, सऊदी रक्षा मंत्रालय में काम कर चुका था, खासकर उसके नागरिक उड्डयन विभाग में। बयूमी अमेरिका में रह रहे एक सऊदी इमाम के संपर्क में था और कथित रूप से इसने ही बयूमी को अल कायदा के कारिंदों से वाकिफ कराया था। इस इमाम की शिनाख्त फहद अल-थुमैरी के रूप में की गई है, जो कभी लॉस एजेंल्स के सऊदी कॉन्सुलेट में अधिकृत राजनयिक था। बयूमी एवं थुमैरी दोनों ने ही हमले को अंजाम दिए जाने के कुछ हफ्ते पहले अमेरिका छोड़ दिया था और उन्होंने ऐसे किसी भी गलत काम में संलिप्त रहने से लगातार इनकार किया है। 

मीडिया की रिपोर्ट में कहा गया है कि बयूमी मिहधर एवं हज़मी से उसके सैन डिएगो के अपार्टमेंट में मिला था और उन्हें किराए पर रहने के लिए उधार पैसे दिए थे। उसने इन दोनों को अंग्रेजी की कक्षाओं में दाखिला लेने एवं हवाई जहाज उड़ान का प्रशिक्षण लेने में भी मदद की थी। बयूमी ने ही इनका परिचय अल कायदा के मौलवी अनवर अल-अवलाकी समेत अन्य मुस्लिम नेताओं से कराया था। अवलाकी, आतंकवादी ईकाई का एक मुख्य संगठनकर्ता था, वह 2011 में यमन में अमेरिकी ड्रोन हमले में मारा गया था। 

2016 की रिपोर्ट में टेलीफोन रिकॉर्ड का भी जिक्र किया गया है, जिससे जाहिर होता है कि बयूमी सऊदी के अन्य मजहबी पदाधिकारी-मुताएब अल सुदैरी-के संपर्क में था। सुदैरी को वाशिंगटन के सऊदी अरब दूतावास ने काम पर रखा था। यह सऊदी के मशहूर परिवार से ताल्लुकदार था और उसने मुस्लिम मिशनरी के रूप में अमेरिका में काफी घूमा-फिरा था। इसके सबूत हैं कि उस खास वक्त में जब विमान अपर्हता आतंकवादियों ने बयूमी से लॉस एजेंल्स में मुलाकात की थी तो उस दौरान “बयूमी ने सुदैरी से पांच बार बातचीत की थी।” और उसने उन्हें सैन डिएगो पहुंचाने में मदद की थी, जैसा कि 2016 के दस्तावेजों के हवाले से रपट में कहा गया है। 

9/11 के हमले के ठीक बाद, बयूमी इंग्लैंड के बर्मिंघम में अपनी वीबी-बच्चों के साथ रहने लगा था। उसे एफबीआई के अनुरोध पर स्कॉटलैंड यार्ड ने 21 सितम्बर 2001 को हिरासत में ले लिया था। हालांकि बयूमी जाहिर तौर पर तो वहां बिजनेस एथिक्स पर अपना डॉक्टरेट करने गया था, पर ऐसा लगता है कि उसका मुख्य काम वहां सऊदी छात्रों का एक यूनियन बनाना था। उससे पूछताछ के लिए एफबीआई के एजेंट ब्रिटेन गए थे। लेकिन वह आगे नहीं आ रहा था। इसके कुछ दिनों बाद, जब एफबीआई के एजेंट बयूमी से मुकम्मल पूछताछ कर पाते कि इसी बीच ब्रिटिश सरकार ने उसे रिहा कर दिया। 

बयूमी और सुदैरी के बीच संपर्क पर एफबीआई का ध्यान दोबारा 2010 में गया था। बयूमी के पुराने फोन कॉल्स को खंगालने के दौरान, एफबीआई की टीम एनकोर के एक विश्लेषक ने सुदैरी से उसके लिंक पाए था। उन्हें पता लगा कि सुदैरी और मजहबी मंत्रालय के अन्य अधिकारियों ने एक अमेरिकी विश्वविद्यालय में अंग्रेजी पढ़ने के लिए नया यूएस वीजा पाने के लिए आवेदन दिया था। इसमें ताज्जुब करने की बात यह थी कि दोनों सऊदी शिक्षित एवं संपन्न अधिकारी थे, जो इसके पहले अमेरिका में सालों रहते रहे थे और यहां काम कर चुके थे। उग्रवादियों के साथ उनके संदिग्ध संपर्कों को देखते हुए, एफबीआई के एजेंट ने महसूस किया कि कुछ यूएस में पढ़ने का प्लान दरअसल नापाक कारगुजारियों को छिपाने का एक मुखौटा भर था, जैसा कि प्रोपब्लिक की रिपोर्ट में कहा गया है। एफबीआई ने तब दोनों की पूरे वक्त निगरानी करने का फैसला किया। 

लेकिन यह एपिसोड यहीं खत्म हो गया, जब सीआईए के अफसरों ने सऊदी अरब की राजधानी रियाद में “एफबीआई के प्लान पर कड़ा एतराज जताया।” अब इसकी क्या वजह रही, वह तो नामालूम ही रह गई। दोनों सऊदी लोगों ने आखिरी वक्त में यूएस का अपना दौरा रद्द कर दिया। एफबीआई के पूर्व जांचकर्ता ने महसूस किया कि इस वजह से उन्होंने 9/11 के हमले में सऊदी अधिकारियों की अपहर्ताओं को सहयोग-सहायता देने के नेटवर्क एवं उनकी भूमिका के बारे में और सूचनाएं इकट्ठा करने के अहम मौके को गंवा दिया था, यह बात उनके हवाले से प्रोपब्लिका की रिपोर्ट में कही गई है। 

एबीसी न्यूज ने भी 2016 की एक रिपोर्ट में सीआईए पर आरोप लगाया था कि उसे इस साजिश का पता था कि संयुक्त राज्य अमेरिका की सरजमीं पर आतंकवादी हमला होने वाला है क्योंकि उसने मिहधर एवं हज़मी दोनों विमान अपहर्ताओं को मलयेशिया में कुछ समय के लिए ट्रैक किया था। जांचकर्ता ने एबीसी न्यूज से कहा था, “जहां वह (सीआइए) इस नतीजे पर पहुंचा था कि आतंकवादी यूएसएस कोल (वायुयान वाहक जहाज) पर हमले की साजिश रच रहे हैं।”  एक न्यूज चैनल की 7 जनवरी 2000 की रिपोर्ट में कहा गया था कि “अगर सैन डिएगो के एफबीआई एजेंट स्टीवन बटलर को यह बात मालूम थी कि सीआईए संभावित आतंकवादी हमलों के बारे में पहले से जानता था, तो उसके पास इसके हमलावर आतंकवादियों को 11 सितम्बर 2001 में ही रोक देने का एक बढ़िया मौका था।” इस रिपोर्ट में बटलर के हवाले से कहा गया था कि मिहधर एवं हाज़मी “उनकी नाक के नीचे 18 महीने तक रहे थे, पर न तो वे और न ही एफबीआई में कोई अन्य अधिकारी ही, इस बारे में सीआइए द्वारा सतर्क-सूचित किया गया था।”

मिहधर और हज़मी को सीआईए ने ट्रैक किया था, वे अपने असल नाम से यूएस में दाखिल हो रहे थे और सीआईए ने न तो इन दोनों संभावित विमान अपहर्ताओं के बारे में एफबीआई को कोई सूचनाएं दी, न ही बयूमी से मुकम्मल पूछताछ किए जाने के पहले उसके बारे में ब्रिटिश सरकार को आगाह किया था। इन खुलासों ने अनेक सवाल उठाए हैं कि क्यों संयुक्त राज्य अमेरिका के अधिकारी इन्हें ब्योरों पर आक्रामक तरीके से आगे नहीं बढ़ सके या उन्होंने आगे बढ़ना पसंद नहीं किया। ठीक ये ही सवाल पीड़ितों के सगे-संबंधी भी पूछ रहे हैं। 

(अमिताभ रॉयचौधरी प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया में डिप्टी एक्जिक्यूटिव एडिटर थे, जिन्होंने आंतरिक सुरक्षा, रक्षा एवं नागरिक उड्डयन जैसे मामलों पर गहन रिपोर्टें की हैं। लेख में व्यक्त विचार उनके निजी हैं।)

अंग्रेजी में मूल रूप से प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

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