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महामारी से निपटने में विफल सरकार ‘लॉकडाउन’ से करेगी उपचार!
न पूरी जांच न उपचार, फिर डाल दिया लॉकडाउन का भार। बिहार के कई जिलों में फिर से लॉकडाउन।
अनिल अंशुमन
10 Jul 2020
अपनी मांगों को लेकर आंदोलनरत आशा कार्यकर्ताएं
अपनी मांगों को लेकर आंदोलनरत आशा कार्यकर्ताएं

चर्चा है कि केंद्र की भांति प्रदेश सरकार के भी कुशल निर्देशन में मीडिया द्वारा दिन रात चीख चीख कर बताये जाने के बावजूद कि कोरोना संक्रमण से अधिक उससे रिकवरी की रफ़्तार काफी तेज़ है - बिहार के मुख्यमंत्री व उपमुख्यमंत्री का आवास – कार्यालय भी संक्रमण के कारण सील किया जाना, ज़मीनी हकीक़त दिखला रहा है।

राज्य में बेलगाम होती महामारी संक्रमण की रफ़्तार को देखते हुए बिहार की राजधानी पटना सहित 10 प्रमुख जिलों में 10 जुलाई से अगले एक सप्ताह के लिए लॉकडाउन लागू कर दिया गया है। जबकि कई अन्य जिलों में भी तीन दिनों का लॉकडाउन घोषित किया गया है।

बिहार भाकपा माले ने तीखी प्रतिक्रया देते हुए कहा है कि फिर से लॉकडाउन किया जाना, बिहार सरकार की विफलता की खुली कहानी है। जिसने महामारी के बढ़ते संक्रमण की रोकथाम के लिए व्यापक स्तर पर टेस्ट और कारगर उपचार व अस्पताल व्यवथा मजबूत करने की बजाय आम लोगों को मरने–खपने के लिए अपने हाल पर छोड़ दिया है। राज्य के मुख्यमंत्री–उपमुख्यमंत्री को सिर्फ अपने स्वास्थ की ही चिंता है।

माले के बिहार सचिव कुणाल द्वारा पार्टी की ओर से जारी ट्वीट में यह भी आरोप लगाया गया है कि केंद्र व राज्य की वर्तमान सरकार, पिछले लॉकडाउन  और उसके बाद भी लगातार मिल रही असफलताओं के बावजूद यह समझने को तैयार नहीं है कि लॉकडाउन कोरोना का इलाज़ नहीं है। जब तक महामारी की व्यापक जांच व इलाज़ की व्यवस्था और ज़िंदा रहने की जद्दोजहद झेल रहे लोगों के लिए न्यूनतम व्यवथा नहीं होती लॉकडाउन पूरी तरह से बेमानी है। महानगरों से गाँव लौटे सभी प्रवासी मजदूरों के बिना उचित टेस्ट व इलाज़ अवधी पूरा होने के पहले ही अनलॉक की आड़ में सभी क्वारंटाइन सेंटरों को आनन फानन ख़त्म कर दिया गया।

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स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने कर्ज़माफ़ी के सवाल को लेकर राज्य के विभिन्न जिलों में प्रतिवाद मानव–श्रृंखला बनाई। 

लॉकडाउन बंदी होने की घोषणा को सुनकर 9 जुलाई की शाम अफरा तफरी में खरीददारी कर रहे लोगों से मिलकर उनकी प्रतिक्रिया पूछे जाने पर कईयों ने सरकार के रवैये से नाखुशी जाहिर की। कुछ ने तो आक्रोश भरे लहजे में यह भी कहा कि – कोरोना रोकने में फेल हो चुकी राज्य और केंद्र की दोनों ही सरकारें अब अपनी विफलता का ठीकरा हम जनता पर ही फोड़ रही है। मीडिया से दिनरात यही खबर परोसी जा रही है कि आम लोग ही सोशल डिस्टेंस का धड़ल्ले उल्लंघन कर रहें है। तो हम भी सरकार – प्रशासन से पूछना चाहते हैं कि जैसे जिस स्कूल में पठन पाठन का कोई माहौल ही नहीं हो तो वहाँ के छात्र कैसे अनुशासित रहेंगे? उसी तरह से जब महामारी संक्रमण के बढ़ते प्रकोप में भी आम लोगों को कोई सहज जांच–उपचार व्यवस्था ही नहीं मिल रही है तो वे भी भगवान भरोसे अपना काम क्यों नहीं करें?

एक युवक (नाम नहीं बताया) ने तो बेहद कुपित अंदाज़ में यह भी कह डाला कि जितना हल्ला करके हमलोगों को गमछा - मास्क लगाने और आत्मसुरक्षा की घुट्टी पिलाई जा रही है,  उसी तुलना में हमें माहामारी की उचित जांच जैसी ज़रूरी स्वस्थ्य सुविधाएं मिलतीं तो लोग भी स्वतः ही अनुशासित हो जाते। हर दिन 2 लाख महामारी की जांच के आंकड़े जो सरकार मीडिया से दिखा - सुना रही है वह पूरी तरह से झूठ है। आप खुद ही घूम कर देख लीजिये कि राजधानी का शायाद ही कोई ऐसा इलाका मिलेगा जहां कायदे से सैनीटाइजेशन कार्य हुआ हो। रोज कोई न कोई मुहल्ला महामारी संक्रमित हो रहा है जहां पुलिस चुपचाप आकर संक्रमित व्यक्ति को मेडिकल वैन में लेकर चली जाती है और खबर को वहीं दबा दिया जा रहा है।

ऊपर से आये दिन हो रही बारिश ने फिर से जल जमाव के खतरे का डर बढ़ा दिया है। फिर से लॉकडाउन बंदी किये जाने पर लोगों का गुस्सा इस बात को भी लेकर है कि बड़ी मुश्किल से इस राज्य के आम लोगों की आर्थिक ज़िन्दगी कुछ कुछ पटरी पर आ रही थी, अब फिर से सबकुछ अस्त व्यस्त हो जाएगा। आम लोग जो अभी तक कोरोना संक्रमण के खतरे का सामना करते हुए जी रहे थे, फिर से उन्हें तंगहाली – भुखमरी का सामना करना पड़ेगा। रोज मेहनत मजूरी करके जीने – खाने वाले पूछ रहें हैं कि घरों में बंद रहकर हम क्या करें !

सोशल मीडिया में भी इन्हीं सवालों को उठाकर कहा जा रहा है कि – क्या मजदूरों कि सहनशक्ति इस बार जवाब देगी? क्या वे उनके प्रति संवेदनहीन हो चली सरकार को पलट कर मुहतोड़ जवाब देंगे ?

एक चर्चा ज़ोरों पर यह भी है कि कोरोना पीड़ित मरीजों के इलाज़ के लिए पीएम केयर्स फंड से काफी महंगा दाम बताकर ख़रीदे गए सभी वेंटिलेटर महज साधारण सी मशीन हैं। जिसपर सरकार अथवा विभाग की ओर से कोई औपचारिक स्पष्टीकरण अभी तक नहीं आया है।

दूसरी ओर , प्रदेश की सभी आशा कार्यकर्तायें अपनी मांगों को लेकर पूरे राज्य में लगातार धरना – प्रदर्शन दे रहीं हैं । आसन्न लॉकडाउन के कारण 9 जुलाई को स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने कर्जमाफी के सवाल को लेकर राज्य के विभिन्न जिलों में प्रतिवाद मानव–श्रृंखला भी बनायी।      क्वारंटाइन सेंटरों में जिन महिला रसोइयों ने रिस्क लेकर वहाँ रखे गए प्रवासी मजदूरों के लिए खाना बनाया, सरकार द्वारा आज तक उसका मेहनताना नहीं भुगतान किये जाने के खिलाफ आंदोलनरत हैं। इसी अनलॉक अवधी में सोशल मीडिया से काफी वायरल होनेवाली खबर जिसमें सरकारी शिक्षक संजीव कुमार द्वारा अपने हाथों की नस काटकर खून से नीतीश राज में व्याप्त संस्थाबद्ध भ्रष्टचार के खिलाफ नारे लिखने की तस्वीर है, सुशासन का सच दिखलाता है। जिन्हें मुंहमांगा घूस नहीं देने के करण 2015 से ही वेतन नहीं मिल रहा है।

प्रधानमंत्री द्वारा आए दिन कोरोना आपदा को अवसर में बदलने – आत्मनिर्भर बनने की दी जा रही नसीहतों और केंद्र - राज्य के स्वास्थ्य मंत्रालयों द्वारा जारी महामारी प्रसार से तेज़ रिकवरी के आंकड़ों के बीच ज़मीनी सच तो आँखों के सामने है।

राज्य के विपक्ष तथा नागरिक समाज के बड़े हिस्से द्वारा लगाया जा रहा आरोप कि – केंद्र और बिहार सरकार प्रदेश की जनता को कोरोना महामारी से लड़ने के भंवर में अकेला छोड़कर खुद विधानसभा चुनाव लड़ने में लिप्त हो चुकी है, फिर से जारी लॉकडाउन भी कुछ इशारा करता है तो गलत नहीं होगा।

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