NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
तमाम मुश्किलों के बीच किसानों की जीत की यात्रा और लोकतांत्रिक सबक़
जब एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में मांग और अधिकार की लड़ाई को देशद्रोह के खांचे में फिट किया जा रहा था, तब किसान आंदोलन संघर्ष की संजीवनी के रूप में उभरा। साल भर सड़क पर दमन और क्रूरता की हदें झेलकर अंतत: उसने प्रतिरोध के स्वर को फिर से जिंदा कर दिया।
ओँकार सिंह
29 Nov 2021
kisan andolan
Image courtesy : Deccan Herald

सत्ता या हुक्मरानों ने भले ही आम जन का भरोसा तोड़ा है, आम जन ने तमाम मुश्किलों के बीच संघर्ष का भरोसा कायम रखा है। किसान आंदोलन आम जन के उसी संघर्ष और साहस का नतीजा है। पिछले सात वर्ष में सरकार के दमनकारी चरित्र ने तमाम वाजिब सवालों को धर्म और कथित देशभक्ति की आड़ में खामोश किया है।

छात्र, बेरोजगार, दलित, अल्पसंख्यक सभी अपने हक हुकूक के माँगने पर दमित किए गए। जब एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में मांग और अधिकार की लड़ाई को देशद्रोह के खांचे में फिट किया जा रहा था किसान आंदोलन संघर्ष की संजीवनी के रूप में उभरा। साल भर सड़क पर दमन और क्रूरता की हदें झेलकर अंतत: उसने प्रतिरोध के स्वर को फिर से जिंदा कर दिया।

कृषि बिल की वापसी का फैसला सत्ता के तानाशाही रवैये की पहली विचलन था, जिसका असर दूर-दराज गांव तक दिखाई पड़ा। गांव में एक बुजुर्ग किसान की तत्कालिक प्रतिक्रिया थी- 'ई महंगाई देख के समझ में आइल कि किसान अइसे नाहीं सड़क पर अड़ल रहलं।' वहीं जातीय स्तर पर ऊंची जातियों में दैवीय सत्ता के झुक जाने की खीज दिखी तो अन्य में एक कौतूहल कि सरकार झुक भी सकती है।

लखनऊ में किसान महापंचायत की खबरों पर कुछ को कहते सुना गया- 'अब त मोदी जी मान गइलं, अब सभे घरे लौटि आवं।' तो कुछ ने कहा- 'चुनाव के नाते सरकार ई नरमी बरतले बा।' गौरतलब है कि ये आम जन की प्रतिक्रियाएं होते हुए भी आम नहीं थीं बल्कि ख़ास और सधी सतर्कता के साथ थी। जो तेल, सब्जी, ईधन की मारक महंगाई में सरकार की मुफ्त नोन-तेल और राशन की भूलभुलैया में उलझी थी। जिसे रामराज्य वाली सरकार विकास के नाम पर अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि गिना रही है।

22 नवम्बर को देवरिया, गोरखपुर से साथियों के आमंत्रण पर किसान महापंचायत में लखनऊ पहुंचना था। 21 की शाम को पता चला दूसरे दिन गोरखपुर से लखनऊ जाने वाली किसी भी ट्रेन में सीट खाली नहीं। 22 तारीख की गोरखपुर-लखनऊ इंटरसिटी भी निरस्त थी। खैर, लखनऊ पहुंचा गया, जहां देवरिया के साथियों ने बताया पड़रौना से मैलानी जाने वाली ट्रेन भी निरस्त थी। यहीं नहीं देवरिया में पहले से ऑनलाइन टिकट बुकिंग न होने पर बस में नहीं बैठाया जा रह था। इसी तरह बहराइच से पहुंचीं महिला किसान ने भी ट्रेन कैसिंल होने की जानकारी दी। पता नही यह महज संयोग था या सरकार बहादुर का भय।

बादशाह नगर से ईको गार्डन जाने के लिए बस पकड़ा गया। यहां पहले से बैठे बलरामपुर से आये दर्जनों किसान किराये को लेकर कंडक्टर से उलझ पड़े थे। उनमें से एक कह रहे थे- 'ई महंगाई मा काहें अत्ति किहे हौ? सरकार तो जान मारे ही है, तुहूं जान लिहे पर तुले हौ!' मामला रफा-दफा होने पर दूसरे कहने लगे- एतनौ अंधेर ना चली! आवे दो चुनाव, ई सरकार हमरे हियां चारो सीट पर साफ है।'

दोपहर तक ईको गार्डन पहुंचने पर महापंचायत शुरू थी। तराशे पत्थरों से निर्मित बौद्ध स्थापत्य की झलक देती चहारदीवारी के विशाल प्रांगण में बहुतायत पीपल के वृक्ष न सिर्फ सुकून-शांति दे रहे थे, असल भारतीय लोकतांत्रिक परिवेश भी रच रहे थे। गौरतलब है, यह गार्डन उसी अंबेडकर पार्क का हिस्सा है जिसको लेकर कभी पत्थर की मूर्तियों, हाथियों पर प्रदेश का खजाना लुटाने का हो-हल्ला मचा था।

साथ आये सभी साथी इस बात के लिये बहन जी के शुक्रगुज़ार थे कि शहर में इतने विशाल भूखंड को कार्पोरेट्स की ऊंची बिल्डिगों और मंदिर-मस्जिद जैसी दिव्यता-भव्यता से आम के हिस्से में बचा लिया गया। कार्यक्रम स्थल के विशाल ग्राउंड में विविध झंडे-बैनर तले तमाम किसान संगठन के अलावा आशा, ऐपवा आदि महिला संगठन भी जुलूस-प्रदर्शन में मशगूल थे। 69 हजार शिक्षक भर्ती में आरक्षण विवाद और पेंशन समस्या के आंदोलनकारी यहां से अपनी आवाज उठा रहे थे। सत्ता कार्पोरेट और गोदी मीडिया की गठजोड़ के खिलाफ लगातार संघर्ष चलाने वाले तमाम सोशल एक्टिविस्ट, पत्रकार यहां मौजूद दिखे।

मंच पर किसान नेता योगेंद्र यादव किसान आंदोलन की सफलता को पिछले 70 साल की बड़ी उपलब्धि बता रहे थे। बहुत सारे सामाजिक कार्यकर्ता लॉकडाउन के संकट और लंबे अंतराल के मुलाकात को सेल्फी और ग्रुप फोटोशूट में यादगार बना रहे थे। बड़ी संख्या में महिला-पुरुष किसान व विभिन्न संगठनों के कार्यकर्ता जगह-जगह अपनी बैठकों और बातचीत में व्यस्त थे। इनकी सहभागिता अमूमन प्रदेश के हर जिले से थी। पूरा माहौल मानो जीत के जश्न में शरीक था।

लंगर का सेवा भाव इस आंदोलन की स्पिरिट बन चुका है। दिल्ली बॉर्डर के सांस्कृतिक पक्षों की झलक किसान महापंचायत में भी दिखी। यहां पर लोगों को पुलिस के सहयोगी रूख की चर्चा करते सुना गया। लंगर में भोजन करने के बाद सभी साथी मंच की तरफ बढ़ गए। तमाम विविधता और करीब 40 संगठनों के एकजुट प्रयास ने आखिर एक तानाशाह होती सत्ता को झुकने पर मजबूर कर दिया। मंच पर इसी बात को भाकियू प्रवक्ता राकेश टिकैत शानदार ढंग से रख रहे थे कि संघर्ष विराम का ऐलान किसानों ने नहीं किया, सरकार ने किया।

ठंड की रात में वाटर कैनन की बौछारों, हाईवे पर गड्ढों और लोहे के कील-कांटो को पार करने के पीछे सत्य व पवित्र इच्छा के दृढ़ इरादे ही थे कि जिसमें करीब 700 किसानों ने जीवन का आत्मोत्सर्ग कर दिया। ऐसे में दिल्ली के बार्डर पर किसानों के साथ बिताए कुछ दिन की याद एकदम से ताजा हो आती है। सिंघु बार्डर की परिचर्चा में पेशे से वकील पंजाब के एक किसान ने कहा था- 'यह कानून हमारे गुरु के लंगर पर हमला है। हम मिट जाएंगे, लेकिन लौटेंगे नहीं...।'

टिकरी बार्डर पर रात्रि विश्राम की व्यवस्था देखने वाले हरियाणा के एक किसान ने कहा था- 'सरकार को पता चल जाएगा कि उसका पाला किससे पड़ा है। बगैर बिल वापस हुए किसान यहां से लौटेगा नहीं।' इन्हीं किसानों को खालिस्तानी, नक्सली और फर्जी किसान बताकर उपहास उड़ाने वाले साल भर में  ही खुद उपहास के पात्र होते नजर आ रहे हैं।

इन दिनों यूपी खासकर पूर्वांचल में धान की कटाई को लेकर किसान अच्छा खासा हलकान रहे। जमीन गीली होने के कारण हाथ से कटाई में भारी लागत लगाकर वह औने-पौने दामों में आढ़तियों के यहां अपना झोला झार आए। देवरिया के एक ऐसे ही किसान कहते है- 'मैंने धान की फसल 1150 रु प्रति कुन्तल की दर से बेचा, जो लागत मूल्य से कम है। एमएसपी पर खरीद की गारंटी के लिए सभी किसान एक जुट हों।'

ऐसे में महापंचायत में मंच से किसान नेताओं का यह जोर- 'किसानों को दान नहीं दाम चाहिए, दाम की गारंटी चाहिए।' या फिर किसान सभा के नेता हन्नान मौला का यह कहना- 'मांग का एक हिस्सा स्वीकार किया गया है, एमएसपी स्वीकार नहीं किया गया है और भी मांग हैं। जब तक सभी पूरा नहीं होगा, आंदलोन जारी रहेगा।' आंदोलन के जमीनी आधार और किसान नेताओं की दूरदर्शिता की बानगी है।

किसान महापंचायत में लखीमपुर खीरी के दिवंगत किसानों के परिजन भी पहुंचे। उन्हें मंच पर ससम्मान जगह दी गई। किसान नेता जोगिंदर सिंह उगराहा ने कहा, 'घटना का मुख्य आरोपी केंद्रीय मंत्री के परिवार का है। मोदी सरकार ने अभी तक उन्हें इस्तीफा देने के लिए नहीं कहा है, प्रधानमंत्री द्वारा की गई घोषणा पर उन्हें भरोसा नहीं है।'

किसान आंदोलन में हिंसा फैलाने की पूरी कोशिश की गई। लीखीमपुर खीरी की घटना उसी मंशा का अंजाम रहा। इस संदर्भ में किसान संघ के नेता शिवकुमार कक्का का मंच से यह बयान काबिले गौर है- 'सत्याग्रह में सत्य की जीत होती है। किसान आंदोलन ने यह तय कर दिया कि देश में आंदोलन की दशा-दिशा गांधीवादी होगा।'

किसान, बेरोजगार, दलित, अल्पसंख्यक सभी के संघर्ष और आवाज को निश्चित तौर पर किसान आंदोलन ने एक नई ऊर्जा दी है। गोरखपुर से साथ आये साथी जोकि अपने गांव में किसान सहायक हैं ने लखनऊ में किसान सहायकों के प्रदर्शन पर पुलिसिया बर्बरता का संस्मरण सुनाया। वह बताते हैं कि उस दिन दोपहर से शुरू हुआ दमन देर रात तक चलता रहा। लोगों को ट्रेनों, बसों और दुकानों से खींच-खींचकर मारा-पीटा गया। उन्होंने बताया कि एक प्रदर्शनकारी का आज तक पता नहीं चला।

लखनऊ महापंचायत में संघर्ष जारी रखने का फैसला और उससे जुड़े असल मसलों की पड़ताल दूरदराज क्षेत्रों से वहां पहुंचे किसानों की बातों से भी हो रही थी। मिर्जापुर से पहुंचे किसान समूह ने बताया- 'बगैर सुविधाएं उपलब्ध कराए उन्हें पारंपरिक खेती से इतर फसल उगाने का दबाव बनाया जा रहा है। उन्हें पुआल जलाने से रोका गया है जबकि रबी की बुआई को लेकर उसका तत्काल निस्तारण जरूरी है।' उनका कहना था- 'सभी ने तहसीलदार को तीन दिन का अल्टीमेटम दिया है कि वह इसका निस्तारण करें नहीं तो वे खुद पुआल जलाएंगे।'

पश्चिमी यूपी में राजनीतिक समीकरण के निहितार्थ सरकार के बिल वापसी की मंशा पर मुरादाबाद के किसानों ने बताया- 'ये कोई भी चाल चल लें, हमारे यहां नहीं सफल होने वाले। महीना भर हो गये धान बेचे, पैसा अभी तक नहीं आया। बाकी के लोग प्राइवेट में लुट रहे हैं। बगैर एमएसपी कानून बने यह आंदोलन नहीं समाप्त होगा।' जाहिर है, किसान आंदोलन की यह धार निहायत जमीनी है।

देवरिया से आये किसान नेता शिवाजी राय कहते हैं- 'देश के किसानों ने 137 करोड़ लोगों की लड़ाई लड़ी है और किसान नेताओं ने यह साबित किया है कि आंदोलन कैसे चलता है।'

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

kisan andolan
farmers protest
New Farm Laws
Farmers' victory
SKM
rakesh tikait
democracy

Related Stories

जन-संगठनों और नागरिक समाज का उभरता प्रतिरोध लोकतन्त्र के लिये शुभ है

राम सेना और बजरंग दल को आतंकी संगठन घोषित करने की किसान संगठनों की मांग

नौजवान आत्मघात नहीं, रोज़गार और लोकतंत्र के लिए संयुक्त संघर्ष के रास्ते पर आगे बढ़ें

क्यों मिला मजदूरों की हड़ताल को संयुक्त किसान मोर्चा का समर्थन

पूर्वांचल में ट्रेड यूनियनों की राष्ट्रव्यापी हड़ताल के बीच सड़कों पर उतरे मज़दूर

देशव्यापी हड़ताल के पहले दिन दिल्ली-एनसीआर में दिखा व्यापक असर

बिहार में आम हड़ताल का दिखा असर, किसान-मज़दूर-कर्मचारियों ने दिखाई एकजुटता

"जनता और देश को बचाने" के संकल्प के साथ मज़दूर-वर्ग का यह लड़ाकू तेवर हमारे लोकतंत्र के लिए शुभ है

झारखंड: नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज विरोधी जन सत्याग्रह जारी, संकल्प दिवस में शामिल हुए राकेश टिकैत

मोदी सरकार की वादाख़िलाफ़ी पर आंदोलन को नए सिरे से धार देने में जुटे पूर्वांचल के किसान


बाकी खबरें

  • wildlife
    सीमा शर्मा
    भारतीय वन्यजीव संस्थान ने मध्य प्रदेश में चीता आबादी बढ़ाने के लिए एक्शन प्लान तैयार किया
    11 Jan 2022
    इस एक्शन प्लान के तहत, क़रीब 12-14 चीतों(8-10 नर और 4-6 मादा) को भारत में चीतों की नई आबादी पैदा करने के लिए चुना जाएगा।
  • workers
    सतीश भारतीय
    गुरुग्राम में बेरोजगारी, कम कमाई और बढ़ती महंगाई के बीच पिसते मजदूरों का बयान
    11 Jan 2022
    मजदूर वर्ग सरकार की योजनाओं का नाम तक नहीं बता पा रहा है, योजनाओं का लाभ मिलना तो दूर की बात है।
  • Swami Prasad Maurya
    रवि शंकर दुबे
    चुनावों से ठीक पहले यूपी में बीजेपी को बड़ा झटका, श्रम मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य के बाद तीन और विधायकों के इस्तीफे
    11 Jan 2022
    यूपी में चुनावी तारीखों का एलान हो चुका है, ऐसे वक्त में बीजेपी को बहुत बड़ा झटका लगा है, दरअसल यूपी सरकार में श्रम मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने बीजेपी छोड़कर समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए हैं।
  • Schemes workers
    कुमुदिनी पति
    उत्तर प्रदेश में स्कीम वर्कर्स की बिगड़ती स्थिति और बेपरवाह सरकार
    11 Jan 2022
    “आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और सहायिकाएँ लंबे समय से अपनी मांगों को लेकर आंदोलन चला रही हैं। पर तमाम वार्ताओं के बाद भी उनकी एक भी मांग पूरी नहीं की गई। उनकी सबसे प्रमुख मांग है सरकारी कर्मचारी का दर्जा।”
  • AKHILESH AND YOGI
    अरुण कुमार त्रिपाठी
    80/20 : हिंदू बनाम हिंदू की लड़ाई है यूपी चुनाव
    11 Jan 2022
    मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ठीक ही कहते हैं कि यह 80 प्रतिशत बनाम 20 प्रतिशत की लड़ाई है। बस वे इसकी व्याख्या ग़लत तरीके से करते हैं। पढ़िए वरिष्ठ पत्रकार अरुण कुमार त्रिपाठी का विचार-विश्लेषण
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License