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आंदोलन
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भारत
राजनीति
टकराव, पथराव और लाठीचार्ज के बाद दिल्ली पहुंचे किसान, सरकार बातचीत को तैयार!
विरोध प्रदर्शन और भारी जन दबाव के बीच कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने तीन दिसंबर को किसानों से बातचीत की पेशकश की है। हालांकि किसान सरकार की निगरानी में दिल्ली के एक कोने बुराड़ी में प्रदर्शन को तैयार नहीं हैं। किसानों का कहना है कि वो माँगे पूरी ना होने तक सिंघू और टिकरी बॉर्डर पर ही डटे रहेंगे।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
28 Nov 2020
किसान
Image courtesy: CBC

केंद्र सरकार के नए कृषि क़ानूनों का विरोध कर रहे किसानों का बड़ा समूह आख़िरकार भारी जद्दोदहद के बाद देश की राजधानी दिल्ली पहुँच गया है। बीते दो दिनों से लगातार पुलिस-प्रशासन से टकराते, पानी की बौंछारे झेलते, लाठियों की मार और आँसू गैस के गोलों का सामना करते किसानों को बुराड़ी के एक मैदान में शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन करने की इजाज़त मिली है। 

हालांकि किसान सरकार की निगरानी में दिल्ली के एक कोने बुराड़ी में प्रदर्शन को तैयार नहीं हैं। किसानों का कहना है कि वो दिल्ली में घिरने नहीं, दिल्ली घेरने आए हैं। इसलिए किसान माँगे पूरी ना होने तक सिंघू और टिकरी बॉर्डर पर ही डटे रहेंगे।

आपको बता दें कि किसान गुरुवार 26, नवंबर से सड़कों पर हैं और सरकार से उनकी चिंता पर ग़ौर करने और कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं।

मालूम हो कि भारी जन दबाव और विरोध प्रदर्शन के बीच कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने तीन दिसंबर को किसानों से बातचीत की पेशकश की है।

कृषि मंत्री ने कहा है कि सरकार के लाए नए कृषि क़ानूनों से किसानों के जीवन में बड़े बदलाव आएंगे। क़ानूनों को लेकर अगर किसी में भ्रम है, तो उस पर चर्चा करने के लिए सभी किसान यूनियनों को बुलाया गया है।

हालांकि इससे पहले कृषि मंत्री तोमर ने किसानों से आंदोलन स्थगित करने की अपील की थी।

अब तक प्रदर्शन में क्या-क्या हुआ?

किसान मार्च के दूसरे दिन यानी शुक्रवार, 27 नवंबर को सिंघू और टिकरी बॉर्डर पर जवानों और प्रदर्शनकारी किसानों के बीच कड़ा संघर्ष देखने को मिला। सरकार ने बैरिकेडिंग लगाकर, भारी सुरक्षाबल तैनात करके किसानों के जत्थे को रोकने की तमाम कोशिशें की लेकिन आख़िरकार वो तमाम रुकावटों के बाद दिल्ली सीमा तक पहुँचने में कामयाब रहे।

जिसके बाद दिल्ली पुलिस ने किसानों को राष्ट्रीय राजधानी में दाखिल होने और उत्तरी दिल्ली के निरंकारी ग्राउंड में शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने की अनुमति दे दी। हालांकि इससे पहले दिल्ली की आम आदमी पार्टी (आप) सरकार ने दिल्ली पुलिस की उस मांग को ठुकरा दिया, जिसमें उन्होंने कृषि प्रदर्शनों के मद्देनजर नौ स्टेडियमों को अल्पकालिक जेल में परिवर्तित करने की मांग की थी।

दिल्ली सरकार में गृह मंत्री सत्येंद्र जैन ने कहा, “किसानों की मांगें जायज हैं। केंद्र सरकार को किसानों की मांगें तुरंत माननी चाहिए। किसानों को जेल में डालना इसका समाधान नहीं है। इनका आंदोलन बिल्कुल अहिंसक है।”

तभी वापस लौटेंगे, जब केंद्र सरकार नये कृषि क़ानूनों में सुधार करेगी!

हरियाणा-पंजाब के किसानों का समर्थन करते हुए वेस्ट यूपी में भी किसान सड़कों पर उतरे। मेरठ, मुजफ्फरनगर, बागपत, बिजनौर, शामली, बुलंदशहर, मथुरा, आगरा और मुरादाबाद से गुजरने वाली सड़कों को जाम कर दिया। एनएच-58, दिल्ली-देहरादून हाइवे और यमुना एक्सप्रेस-वे पर कुछ घंटों के लिए गाड़ियों की रफ्तार थम गई।

इससे पहले गुरुवार देर रात को इस ठंड में किसानों को तितर-बितर करने के लिए पानीपत में पानी की बौछारें की गईं। लेकिन किसानों का साफ तौर पर कहना था वो कई महीने का राशन साथ लाये हैं और वो तभी वापस लौटेंगे, जब केंद्र सरकार नये कृषि क़ानूनों को वापस लेगी।

सोशल मीडिया पर आरोप प्रत्यारोप का दौर जारी

किसान-मज़दूर सड़कों से लड़ाई लड़ रहे हैं तो वहीं राजनेताओं का सोशल मीडिया पर आरोप प्रत्यारोप का दौर जारी रहा। किसान आंदोलन को लेकर बाजेपी-कांगेस ट्वीटर पर आमने-सामने दिखाई दिए।

ट्विटर पर प्रियंका गांधी ने किसानों पर हुए एक्शन का विरोध किया तो भाजपा केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने राहुल गांधी को ट्वीट पर राजनीति की बजाए अपने संसदीय क्षेत्र पर ध्यान देने की सलाह दी। हरियाणा और पंजाब के मुख्यमत्रियों ने भी अपनी प्रतिक्रियाएं दी। 

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने तीन कृषि कानूनों के विरोध में किसानों के ‘दिल्ली चलो’ मार्च की पृष्ठभूमि में शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा और कहा कि सरकार को किसानों की मांगें माननी होंगी और ‘काले कानून’ वापस लेने होंगे।

उन्होंने ट्वीट किया, ‘प्रधानमंत्री को याद रखना चाहिए था कि जब-जब अहंकार सच्चाई से टकराता है, पराजित होता है। सच्चाई की लड़ाई लड़ रहे किसानों को दुनिया की कोई सरकार नहीं रोक सकती।’ कांग्रेस नेता ने कहा, ‘मोदी सरकार को किसानों की मांगें माननी ही होंगी और काले क़ानून वापस लेने होंगे। ये तो बस शुरुआत है!’

गौरतलब है कि तीन कृषि कानूनों के विरोध में बीते बृहस्पतिवार को विभिन्न किसान संगठनों ने 'दिल्ली चलो' मार्च का आह्वान किया था, तब इन्हें दिल्ली और हरियाणा की सीमाओं पर रोक दिया गया था। किसानों के समर्थन में लखनऊ समेत पश्चिमी उत्तर प्रदेश के विभिन्न ज़िलों में भी किसानों ने प्रदर्शन किया है। हालांकि केंद्र सरकार साफ कर चुकी है कि वो नए कृषि कानूनों को वापस नहीं लगी।

(समाचार एजेंसी भाषा इनपुट के साथ)

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