NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
कानून
नज़रिया
भारत
राजनीति
बात बोलेगी: संस्थागत हत्या है फादर स्टेन स्वामी की मौत
फादर स्टेन स्वामी को क्यों गिरफ़्तार किया गया, उन्हें ज़मानत देने से मोदी सरकार इस कदर क्यों डरी हुई थी, ये सारे ऐसे यक्ष प्रश्न हैं, जिनके जवाब सभी को पता हैं, लेकिन वे राजनीतिक सवाल में तब्दील नहीं हुए।
भाषा सिंह
05 Jul 2021
Father Stan Swamy
फ़ोटो साभार

हम क्या बतौर राष्ट्र, 84 साल के वयोवृद्ध आदिवासी मानवाधिकार एक्टिविस्ट फादर स्टेन स्वामी से माफी मांगने लायक हैं---नहीं।

बतौर राष्ट्र, हमने देश के सबसे बुजुर्ग कैदी (आतंक के मामलों में) को आठ महीने तक नवी मुंबई के तालोजा जेल में कभी सिपर (पानी पीने के लिए sipper) के लिए गुहार लगाते, कभी जमानत के लिए अदालतों का दरवाजा खड़खड़ाते देखा और अंत में उनकी मौत हो गई, जिसे जो लोग संस्थागत हत्या नहीं समझते, वह लोकतंत्र में आस्था नहीं रखते।

इससे बड़ी हृदयविदारक विडंबना और क्या हो सकती है कि जिस समय अदालत अर्जेंट अपील के तहत फादर स्टेन स्वामी की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी, उसी के बीच में उनकी मौत की खबर आई। अदालत ने इससे पहले उनकी जमानत पर सुनवाई को टाल दिया था (3, जुलाई 2021) और एक तरह से स्टेन स्वामी के लिए दुनिया से रुखसत होने का रास्ता साफ कर दिया था।

भारतीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी विडंबना है आजीवन वंचितों और जेल में बंद आदिवासियों के अधिकारों के लिए जीवन समर्पित करने वाले फादर स्टेन स्वामी का अस्पताल में इस तरह मर जाना।

अंतिम समय में मुंबई के होली फैमिली अस्पताल में भर्ती फादर स्टेन स्वामी। फोटो सोशल मीडिया से साभार

फादर स्टेन स्वामी को क्यों गिरफ्तार किया गया, उन्हें जमानत देने से मोदी सरकार इस कदर क्यों डरी हुई थी, ये सारे ऐसे यक्ष प्रश्न हैं, जिनके जवाब सभी को पता हैं, लेकिन वे राजनीतिक सवाल में तब्दील नहीं हुए। जिस देश में आतंक के मामले में आरोपी (मालेगांव बम विस्फोट) प्रज्ञा ठाकुर जमानत पर बाहर आ जाती है, चुनाव लड़ती हैं और सांसद बन जाती हैं, जिस देश में गुजरात नरसंहार (2002) में दोषी पाये गये माया कोडनानी और बाबू बजरंगी को स्वास्थ्य कारणों से जेल से बाहर कर दिया जाता है, उत्तर प्रदेश में इंस्पेक्टर सुबोध सिंह की हत्या के आरोपी को जमानत मिल जाती है, जामिया मिलिया इस्लामिया में सरेआम गोली चलाने वाला ‘भक्त’ गोपाल खुला घूमता है और हिंसा और अपराध करने के लिए लोगों को भड़काता है, वहां आखिर जीवन भर शांति और अधिकारों के लिए वंचितों को लड़ने की राह दिखाने वाले शख्स को अदालत कैसे स्वास्थ्य आधार पर भी जमानत दे सकती है, हैं...न!

पिछले दो दशकों से झारखंड को अपनी कर्मभूमि बनाई, तमिलनाडु में जन्मे स्टेन स्वामी ने और वहां भाजपा शासनकाल में किस तरह से हजारों आदिवासियों को जेल में डाला गया, बच्चों को पकड़ा गया, इस पर लंबे संघर्ष का केंद्रक बने। उन्होंने 2016 में कई लोगों के साथ मिलकर एक महत्वपूर्ण दस्तावेज तैयार किया, Deprived of rights over natural resources, impoverished Adivasis get prison. (अपने प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार से वंचित किये गये आदिवासियों को जेल मिली)। जंगलों में चल रही बेरोकटोक कॉरपोरेट लूट पर सवाल उठाने वाले फादर स्टेन स्वामी को राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता और सम्मान हासिल था। उनके प्रयासों से ही पत्थलगढ़ी आंदोलन के दौरान गिरफ्तार निर्दोष आदिवासियों को रिहा करने के लिए झारखंड उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दाखिल हुई। वर्ष 2019 में भाजपा के राज्य में सत्ता से बाहर जाने के बाद, हेमंत सोरेन के मुख्यमंत्री बनने के बाद बड़ी संख्या में बंद आदिवासियों की रिहाई के पीछे भी फादर स्टेन स्वामी की अहम भूमिका रही। ऐसे में केंद्र की भाजपा सरकार की आंखों की फांस बन गये स्टेन स्वामी।

अक्तूबर 2020 में उन्हें भीमा कोरेगांव मामले में एनआईए ने गिरफ्तार किया। उस समय भी उनका स्वास्थ्य खराब था। उन्हें पार्किसन की बीमारी के साथ-साथ अन्य कई तकलीफें थी। अपनी गिरफ्तारी से दो दिन पहले उन्होंने एक वीडियो के जरिये जो संदेश दिया, वह उनकी लोकतंत्र में प्रतिबद्धता को स्थापित करता है।

उन्होंने कहा था- “मेरे साथ जो घटित हो रहा है वह सिर्फ मेरे अकेले के साथ नहीं हो रहा और न ही यह कोई अनोखी बात है। यह व्यापक तौर पर पूरे देश में चल रहा है”।

"हम सबको पता है कि कैसे देश के जाने-माने बुद्धिजीवियों, वकीलों, लेखकों, कवियों, कार्यकर्ताओं, छात्रों और नेतृत्व कर्ताओं को सलाखों के पीछे डाल दिया जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि वे अपनी असहमति जता रहे हैं या भारत की सत्तारूढ़ व्यवस्था पर सवाल उठा रहे हैं।"

"हम इस प्रक्रिया का हिस्सा हैं। मुझे खुशी है कि मैं भी इस प्रक्रिया का हिस्सा हूं। मैं यहां एक मूक दर्शक नहीं हूं, बल्कि इस खेल का हिस्सा हूं। और इसके लिए मुझे जो भी कीमत चुकानी पड़े चुकाने को तैयार हूं”।

स्टेन स्वामी ने जान देकर इसकी कीमत चुकाई। स्टेन स्वामी यह कीमत चुकाने वाले न पहले हैं और न आखिरी होंगे। उन्होंने जेल से दिल को छूने वाले कई पत्र लिखे, एक पत्र में उन्होंने लिखा कि पिंजरे में बंद पंछी मिलकर कोरस गाते हैं...

यह गीत जब तक जिंदा रहेगा, फादर स्टेन स्वामी जिंदा रहेंगे!

(भाषा सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

इसे पढ़ें : अंत तक नहीं मिली ज़मानत: आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता स्टेन स्वामी का निधन

Father Stan Swamy's death
Father Stan Swamy
Bhima Koregaon
Bhima Koregaon Case
democracy
justice

Related Stories

जन-संगठनों और नागरिक समाज का उभरता प्रतिरोध लोकतन्त्र के लिये शुभ है

‘मैं कोई मूक दर्शक नहीं हूँ’, फ़ादर स्टैन स्वामी लिखित पुस्तक का हुआ लोकार्पण

अदालत ने वरवर राव की स्थायी जमानत दिए जाने संबंधी याचिका ख़ारिज की

नौजवान आत्मघात नहीं, रोज़गार और लोकतंत्र के लिए संयुक्त संघर्ष के रास्ते पर आगे बढ़ें

पत्रकारिता एवं जन-आंदोलनों के पक्ष में विकीलीक्स का अतुलनीय योगदान 

मेरा हौसला टूटा नहीं है : कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज

किसानों ने 2021 में जो उम्मीद जगाई है, आशा है 2022 में वे इसे नयी ऊंचाई पर ले जाएंगे

एल्गार परिषद : बंबई उच्च न्यायालय ने वकील सुधा भारद्वाज को ज़मानत दी

यह जीत भविष्य के संघर्षों के लिए विश्वास जगाती है

तमाम मुश्किलों के बीच किसानों की जीत की यात्रा और लोकतांत्रिक सबक़


बाकी खबरें

  • अनिल अंशुमन
    झारखंड : नफ़रत और कॉर्पोरेट संस्कृति के विरुद्ध लेखक-कलाकारों का सम्मलेन! 
    12 May 2022
    दो दिवसीय सम्मलेन के विभिन्न सत्रों में आयोजित हुए विमर्शों के माध्यम से कॉर्पोरेट संस्कृति के विरुद्ध जन संस्कृति के हस्तक्षेप को कारगर व धारदार बनाने के साथ-साथ झारखंड की भाषा-संस्कृति व “अखड़ा-…
  • विजय विनीत
    अयोध्या के बाबरी मस्जिद विवाद की शक्ल अख़्तियार करेगा बनारस का ज्ञानवापी मस्जिद का मुद्दा?
    12 May 2022
    वाराणसी के ज्ञानवापी प्रकरण में सिविल जज (सीनियर डिविजन) ने लगातार दो दिनों की बहस के बाद कड़ी सुरक्षा के बीच गुरुवार को फैसला सुनाते हुए कहा कि अधिवक्ता कमिश्नर नहीं बदले जाएंगे। उत्तर प्रदेश के…
  • राज वाल्मीकि
    #Stop Killing Us : सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन का मैला प्रथा के ख़िलाफ़ अभियान
    12 May 2022
    सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन पिछले 35 सालों से मैला प्रथा उन्मूलन और सफ़ाई कर्मचारियों की सीवर-सेप्टिक टैंको में हो रही मौतों को रोकने और सफ़ाई कर्मचारियों की मुक्ति तथा पुनर्वास के मुहिम में लगा है। एक्शन-…
  • पीपल्स डिस्पैच
    अल-जज़ीरा की वरिष्ठ पत्रकार शिरीन अबु अकलेह की क़ब्ज़े वाले फ़िलिस्तीन में इज़रायली सुरक्षाबलों ने हत्या की
    12 May 2022
    अल जज़ीरा की वरिष्ठ पत्रकार शिरीन अबु अकलेह (51) की इज़रायली सुरक्षाबलों ने उस वक़्त हत्या कर दी, जब वे क़ब्ज़े वाले वेस्ट बैंक स्थित जेनिन शरणार्थी कैंप में इज़रायली सेना द्वारा की जा रही छापेमारी की…
  • बी. सिवरामन
    श्रीलंकाई संकट के समय, क्या कूटनीतिक भूल कर रहा है भारत?
    12 May 2022
    श्रीलंका में सेना की तैनाती के बावजूद 10 मई को कोलंबो में विरोध प्रदर्शन जारी रहा। 11 मई की सुबह भी संसद के सामने विरोध प्रदर्शन हुआ है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License