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भारत
राजनीति
कैंपस से: यूपी के छात्रों के क्या हैं मुद्दे, किसे देंगे अपना वोट?
स्वतंत्र युवा पत्रकार असद शेख़ ने न्यूज़क्लिक के लिए उत्तर प्रदेश के अलग-अलग विश्वविद्यालयों के छात्र-छात्राओं से उनके मुद्दों और विधानसभा चुनाव के बारे में बात की।
असद शेख़
17 Jan 2022
Lucknow university
लखनऊ विश्वविद्यालय। फाइल फोटो साभार

उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनावी समर का आरंभ हो चुका है। चुनावों की तारीखों का ऐलान होने के साथ ही, राजनीतिक दलों ने अपनी तैयारियां तेज़ कर दी हैं। सत्ताधारी भाजपा से लेकर विपक्ष का चेहरा बनीं समाजवादी पार्टी दोनों ही महत्वपूर्ण दलों ने अपनी पूरी ताक़त इन चुनावों में झोंक दी है। 

2007 में अपने दम पर सत्ता में आई बसपा जो बीते 10 सालों से सत्ता से बाहर है अपनी "सोशल इंजीनियरिंग" के तरीकों को फिर से मज़बूत कर रही है। वहीं कांग्रेस पार्टी में प्रियंका गांधी नया जोश भरने की लगातार कोशिश कर रही हैं और महिलाओं के लिए सरकार आने पर अलग से कार्य करने का आश्वासन भी दे रही हैं।

अब अगर इस चुनावी जंग से थोड़ा सा ध्यान हटा कर मौजूदा स्थिति की बात करें तो वो कुछ इस तरह है कि योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बने हुए 5 साल लगभग हो चुके हैं, उनका कार्यकाल पूरा होने वाला है। अब बड़ा सवाल ये उठता है कि योगी जी की सरकार ने राज्य में क्या काम किया है या नहीं किया है इसे जानना आवश्यक है।

अब अगर योगी आदित्यनाथ की मानें तो उन्होंने राज्य के हित के लिए प्रत्येक क्षेत्र में भरपूर विकास कार्य किया है। लेकिन एक बहुत महत्वपूर्ण सवाल ये है कि योगी आदित्यनाथ की उत्तर प्रदेश में पिछले 5 सालों की सरकार ने राज्य के छात्रों के जीवन पर क्या असर डाला है? आने वाला देश का भविष्य भाजपा की सरकार के बारे में क्या सोचता है? उसे सरकार से जो उम्मीदें थी क्या वो पूरी हो गयी हैं? या नहीं हुई है?

इसी को ध्यान में रखते हुए उत्तर प्रदेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में पढ़ाई करने वाले छात्रों से हमनें बात की है। और उनसे ये जानने की कोशिश की है कि वो सरकार के दावों को लेकर क्या सोचते हैं। छात्रों के मुताबिक योगी जी के पिछले पांच साल के कार्यकाल से उन्हें कितना लाभ हुआ है या हानि हुई है उनके मुद्दे और उनकी क्या समस्या है, या वो खुश हैं। इस बात की सही सही पड़ताल करने की कोशिश की है। आइये देखते हैं।

कैम्पस बंद होना बड़ा मुद्दा है : इलाहाबाद विवि के छात्र

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से एलएलएम की पढ़ाई करने वाले अवनीश यादव इलाहाबाद यूनिवर्सिटी छात्र संघ के 2017 में अध्यक्ष रह चुके हैं वो बताते हैं कि "जब मैं 12वीं क्लास में था तब अखिलेश यादव की सरकार ने हमें लैपटॉप दिए थे इस बात को 10 साल हो गए, आज भी वो लैपटॉप मेरी पढ़ाई में मदद कर रहा है, क्या योगी आदित्यनाथ की सरकार कोई भी सिर्फ एक ऐसा काम गिना सकती है जो उन्होंने छात्रों के लिए किया हो? बिल्कुल भी नहीं, मुख्यमंत्री योगी जी के कार्यकाल में छात्रों का हाल ये हो गया है कि कोई भी सरकारी नौकरी में भर्ती समय पर पूरी नहीं होती है। 

हमारी यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्ती नहीं हो पा रही है। छात्र कैसे पढ़ाई करेंगें? कोई भी नौकरी नहीं है बेरोज़गारी हद से ज़्यादा है। शिक्षा के नाम पर भी सिर्फ़ मज़ाक हो रहा है। पिछले 2 सालों से छात्रों की पढ़ाई नहीं हो पा रही है क्योंकि कोरोना है,लेकिन जब नेताओं की रैली होती है तब कोरोना नहीं होता है? ये बड़ा प्रश्नचिह्न है कि क्या आप पढ़ाना नहीं चाहते हैं बच्चों को? छात्रों को क्या चाहिए होता है? शिक्षा और रोज़गार, लेकिन क्या ये सब मिल पा रहा है? कितना मिल पा रहा है? शिक्षा से लेकर रोज़गार तक ये सरकार हर जगह फेल है।

फिलहाल इस सरकार की नीति ये है कि जो गरीब घर के छात्र हैं वो पढ़ाई न करें, वरना क्यों सरकारी विश्वविद्यालयों में आवश्यकता के अनुसार कार्य नहीं हो रहा है? क्योंकि सरकारी यूनिवर्सिटी नहीं होंगी तो सभी प्राइवेट यूनिवर्सिटी की तरफ जाएंगें और लाखों रुपये की फीस भरेंगें। 

मुझे एमएमयू का छात्र होते हुए डर लगता है : ज़कीउर्रहमान

यही सवाल जब अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्र और संभल विधानसभा के वोटर ज़कीउर्रहमान से पूछे गए तो उनका कहना था कि "बीते 5 सालों में मैंने "एफआईआर" कल्चर को बढ़ते हुए देखा है यानी 5 साल पहले आप खुल कर लिख सकते थे और बोल सकते थे लेकिन अब ऐसा नहीं है। आप कुछ लिखना या बोलना तो छोड़ दीजिए कुछ भी शेयर करने से ही आपके खिलाफ कार्यवाही हो सकती है ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए खतरा है।

दूसरी बात मेरा नाम ज़कीउर्रहमान है और मैं अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करता हूँ अगर ये बात मैं किसी और जगह बताऊँ तो एक अजीब ढंग से मुझे देखा जाता है क्यूंकि बीते 5 सालों में एक ऐसा नैरेटिव मीडिया ने एएमयू को लेकर बनाया है जो बहुत ज़्यादा ख़तरनाक नज़र आता है।  

राजनीतिक तौर पर अब "सेक्युलर" शब्द मज़ाक बनकर रह गया है एमवाई यानी (मुस्लिम प्लस यादव) की राजनीति करने वाली सपा भी "सॉफ्ट हिंदुत्व" की राजनीति कर रही है जबकि 70 फीसदी मुस्लिम उसे वोट देते हैं। इसलिए मैं अब खुद एमआईएम या पीस पार्टी को वोट करूंगा क्योंकि वो "अपनी क़यादत" की बात करती है। जहां मुसलमानों की समस्या का हल निकलता हुआ मुझे नजर आता है।

बेसिक ज़रूरतों पर ध्यान दिया जाना चाहिए : पूजा

दयालबाग एजुकेशनल सोसायटी की शोधार्थी पूजा भी सरकार के कामकाज से खुश नहीं है उनका कहना है कि "सरकार ने पांच साल अयोध्या के राम मंदिर के मुद्दे में निकाल दिये लेकिन बेसिक शिक्षा को लेकर क्या काम हुआ है? महंगाई आज सर पर चढ़ गयी है सरसो का तेल 200-250 रुपए किलो हो गया है कोई इस तरफ ध्यान दे रहा है? मैं खुद एक गृहणी हूँ इतनी महंगाई में घर चलाना आसान काम नहीं है। क्या इस बात का सरकार को अंदाज़ा है क्या कोई इस तरफ ध्यान देने को तैयार है। सरकार बस बिना ज़रूरत के मुद्दों पर ध्यान दे रही है।

सरकार बढ़ती हुई महंगाई को लेकर कुछ भी करती हुई नज़र नहीं आ रही है। सरकार का कामकाज बिल्कुल नाखुश करने वाला है,न नौकरी है और रोज़गार है एक छोटा सा यूपीटेट का एग्जाम सरकार करा नहीं पा रही है। आखिर कैसे पेपर लीक हो सकता है इसकी जांच होनी चाहिए। मौजूदा समय अगर वोट देने की बात आएगी तो  मैं इस बार "नोटा" को वोट दूंगी क्यूंकि सभी लोग मुझे एक जैसे नज़र आते हैं।

सरकार ने छात्रों के लिए कुछ नहीं किया : अब्दुल क़ादिर खान

वहीं पूर्वांचल की राजनीति में दखल रखने वाली फूलपुर विधानसभा के निवासी और एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे अब्दुल क़ादिर खान ने भी अपना पक्ष रखा है। उन्होंने कहा है कि "योगी सरकार ने छात्रों के लिए कुछ काम नहीं किया है। इसी वजह से आनन फ़ानन में वो अब टैबलेट देकर छात्रों का समर्थन अपनी तरफ़ खींचने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन टैबलेट में प्राइवेसी का हनन हो रहा है, जिस वजह कोई भी छात्र टैबलेट को यूज़ करने में कतरा रहा है। 

ये लैपटॉप छात्रों के लिए एक डब्बा ही बन गया है, यदि उपकरण शैक्षिक उद्देश्यों के लिए प्रदान किए गए थे, तो इसमें युवाओं की गतिविधियों की जासूसी करने के लिए ट्रैकर क्यों शामिल हैं?

आपको आज के युवाओं को तकनीकी गैजेट्स के माध्यम से नियंत्रित करने की आवश्यकता क्यों है? उपयोगकर्ता का स्थान और उपयोगकर्ता की ऑनलाइन गतिविधियों के बारे में जानकारी भी सरकार के द्वारा नियंत्रित होगी और अधिकारी उपयोगकर्ता की सभी गतिविधियों की निगरानी कर सकते हैं जो उनकी निजता के अधिकार के खिलाफ है।

वहीं कोरोना की तीसरी लहर बढ़ रही है उसके बावजूद डॉक्टरों की भारी कमी होते हुए भी नीट पी.जी. की काउन्सलिंग समय पर क्यों नहीं हुई। काउन्सलिंग के लिए धरना करने पर भी डबल इंजन की सरकार लाठियाँ बरसा रही है, ये भी बड़े मुद्दे हैं जिन पर चर्चा होना आवश्यक है।

सरकारी शिक्षा महंगी क्यों है : मुकेश आंनद

उत्तर प्रदेश की राजधानी और राज्य की राजधानी का महत्वपूर्ण क्षेत्र कहे जाने वाले लखनऊ में स्थित लखनऊ यूनिवर्सिटी में हिंदी साहित्य के छात्र मुकेश आनंद ने महंगी फीस को बड़ा मुद्दा बनाया है वो कहते हैं कि "लखनऊ यूनिवर्सिटी राज्य की सबसे महंगी सरकारी यूनिवर्सिटी है बहुत बड़ा सवाल है कि ऐसा क्यों है? एक छात्र को सरकार से क्या चाहिए होता है बेहतर शिक्षा, दूसरा ये की वो सस्ती हो और तीसरा ये की उसे रोज़गार भी मिले। फिलहाल तो ऐसा कुछ भी नहीं मिल रहा है।

राज्य की भाजपा सरकार इन तीनों ही मुद्दे पर कुछ भी नया या बड़ा नहीं कर पाई है। कोई भी टेक्निकल यूनिवर्सिटी राज्य की तरफ से नही खोली गई है। अब रोज़गार की स्थिति क्या है सभी जानते ही हैं। 2017 से लेकर अब तक किस जगह इन्होंने भर्ती निकाली हैं।

क्यों ये सवाल मुद्दा नहीं बन रहे हैं? यूपी पुलिस से लेकर यूपीटेट तक और लेखपाल तक सब कुछ नदारद सा है ऐसे में सवाल यह है कि रोज़गार के नाम पर फिर क्या हुआ है? ये बड़ा सवाल सरकार से होना चाहिए,फिलहाल इस तरफ सरकार ध्यान देने को भी तैयार नही है वो इन मुद्दों से अलग अपनी उपलब्धियां गिना रही है जिनका सच्चाई से कोई वास्ता नही है।"

सवाल ये है कि...

इन सवालों के जवाब मिलने के बाद जो महत्वपूर्ण बिंदू उभर कर आये हैं कि बीतें 5 सालों में उत्तर प्रदेश की सरकार ने शिक्षा को लेकर उस तरह का काम नहीं किया है जिसकी असल मायनों में राज्य की आवश्यकता थी। न ही उन छात्रों के भविष्य के लिए कोई भी ऐसा प्लान तैयार किया गया है जो भर्तियों के लिए तैयार थे। 

लेकिन इसके बाद फिर एक बार ये सवाल उठता है कि क्या वाकई में शिक्षा अब भी हमारे देश मे चुनावी मुद्दा बन सकती है? वो भी उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में? जहां उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य खुद ही चुनावों के करीब आते देख "मथुरा" की बारी है जैसा ट्वीट करते हुए नज़र आते हो। लेकिन फिलहाल सरकार से छात्र जवाब मांग रहे हैं क्या उनके पास जवाब होंगें, ये सबसे बड़ा सवाल है।

इसे भी देखें: 

Uttar pradesh
UP Assembly Elections 2022
UP election 2022
Lucknow University
university students
unemployment
poverty
BJP
Yogi Adityanath
yogi government
AKHILESH YADAV

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