NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
फिल्में
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
तालिबान के आने के बाद अफ़ग़ान सिनेमा का भविष्य क्या है?
तीन पुरस्कार विजेता महिला निर्देशकों ने अंतर्राष्ट्रीय फिल्म उद्योग से अफ़ग़ान सिनेमा को बचाने की अपील की है। आज के दौर में इन महिला फिल्मकारों का समर्थन पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गया है।  
क्रिस्टीन लेहनेन
19 Feb 2022
AFGHAN
एक अफ़ग़ान महिला रैपर के बारे में डॉक्यूमेंट्री ‘सोनिता’ का एक दृश्य, जिसका निर्देशन रोखसरेह घेम मघामी के द्वारा किया गया है

वर्तमान बर्लिनले फिल्म फेस्टिवल के संयोजन में आयोजित एक कार्यक्रम में, “अफगानिस्तान की कल्पना: महिला फिल्म निर्माताओं और उनकी दृष्टि” शीर्षक के साथ, निर्देशिकाओं में शरहबानू सादात, रोखसरह घेम मघामी और ज़मारिन वहदत ने अफगान सिनेमा को किस प्रकार से सबसे बेहतर तरीके से मदद की जा सकती है, विषय पर चर्चा की। 

उन्होंने उन महिला अफगान फिल्म निर्माताओं का आह्वान किया जो अब निर्वासन में रह रही हैं, उन्हें मौजूदा नेटवर्क में शामिल करने और उनके प्रोजेक्ट्स के लिए वित्तपोषण को हासिल करने पर विचार किया।

निर्देशिका शरहबानू सादात ने नेटवर्क में शामिल होने के महत्व पर और जोर दिया। सादात को उनकी फीचर फिल्म “वुल्फ एंड शीप (भेड़िया और भेड़)” के लिए कान फिल्म फेस्टिवल के डायरेक्टर फोर्टनाईट चयन में 2016 कला सिनेमा का पुरस्कार जीतने के बाद से अंतर्राष्ट्रीय पहचान प्राप्त करने में सफलता प्राप्त हुई है।

अभी एक साल पहले तक वे काबुल में रह रही थीं। 30 वर्षीय फिल्म निर्मात्री ने बर्लिनले के हिस्से के तौर पर - अंतर्राष्ट्रीय महिला फिल्म फेस्टिवल में एक पैनल चर्चा के दौरान कहा, “मैं वास्तव में अफगानिस्तान में विश्वास करना चाहती थी, यह भरोसा करती थी कि मेरा वहां पर भविष्य है।” 

अफगान शरणार्थी के तौर पर तेहरान में जन्मी, जब वे 11 साल की थीं, तो वे और उनका परिवार अफगानिस्तान वापस लौट आया, और 18 साल की उम्र में काबुल जाने से पहले तक वे एक पहाड़ी गाँव में रहा करते थे। उनका कहना था, “मैंने वहां पर एक अपार्टमेंट तक खरीदा था।”

imageनिर्देशिका सहरा करीमी अफगानिस्तान के सबसे अधिक जाने-माने फिल्म निर्माताओं में से एक हैं 

हालाँकि, अगस्त 2021 में तालिबान के काबुल के अधिग्रहण ने अफगानिस्तान में फिल्म निर्माण कैरियर के उनके सपने को एक झटके में ही खत्म कर दिया था। तालिबान ने देश में सिनेमाघरों को बंद करने का आदेश दिया; इस प्रकार, देश के फिल्म निर्माताओं के लिए भविष्य अब पूरी तरह से अनिश्चित हो गया है। सादात अफगानिस्तान से निकल भागीं और हैम्बर्ग में फिल्म उद्योग के उनके सहयोगियों के द्वारा उन्हें अपने पास शरण दी गई। इस वर्ष, वे बर्लिनले जूरी की सदस्या हैं। 

क्या निर्वासन से आ सकता है अफगान सिनेमा?

जहां सादात को उम्मीद है कि वे निर्वासन में रहते हुए अफगान फिल्में बना पाने में सक्षम रहेंगी, वहीं इस आयोजन में उपस्थित उनकी ईरानी सहयोगी रोकसारेह ग़म मघामी ने इस बारे में कम आत्मविश्वास व्यक्त किया। उनका कहना था कि पश्चिम में सिर्फ उन्हीं फिल्मों को वित्तपोषित किया जाता है जो अफगानिस्तान और मध्य-पूर्व के बारे में उन्हीं पूर्वाग्रहों को बार-बार प्रसारित करते हैं। उन्होंने कहा, “जब मैंने इरान के बारे में एक फिल्म बनाई तो मुझसे कहा गया कि मैं कई आधुनिक राजमार्गों का कोई दृश्य न दिखाऊं। काबुल में, मुझे स्वचालित लिफ्ट न दिखाने के लिए कहा गया।”

हालाँकि ईरान में निर्वासित एक युवा अफगान रैपर के बारे में उनकी डॉक्यूमेंट्री “सोनिता” ने अमेरिका में प्रतिष्ठित सनडांस फिल्म फेस्टिवल में एक ख़िताब भी जीता, किंतु फिल्ममेकर ने कहा कि इस फिल्म ने उनके दिल को करीब-करीब तोड़कर रख दिया है। “हमें काबुल और ईरान के उन संस्करणों को दिखाना होगा जो पश्चिम में लोग देखना चाहते हैं, और उन्हें इस बात में कोई दिलचस्पी नहीं है कि वास्तव में वहां पर कैसा है।”

Thank you so much! It was an interesting talk, full of information & about such an important topic! 😍🥰🥳@LadocF https://t.co/j7Q9G1BWNu

— IFFF Dortmund+Köln (@frauenfilmfest) February 14, 2022

पश्चिमी ठप्पे की आलोचना 

सकारात्मक कहानियों को, खास तौर पर नजरअंदाज कर दिया जाता है, हैम्बर्ग में पली-बढ़ी एक जर्मन-अफगान निर्देशिका ज़मारिन वहदत ने अपनी बात में कहा। एक ब्रिटिश डॉक्यूमेंट्री “लर्निंग टू स्केटबोर्ड इन ए वारजोन (इफ यू आर ए गर्ल),” के लिए वे एक सहायक निर्देशिका थीं, को कई फिल्म समारोहों द्वारा खारिज कर दिया गया था। उन्होंने बताया, इसका कारण पर्याप्त मात्रा में “नाटकीय” न होना बताया गया था। वहादत ने इसके बारे में समझाते हुए कहा, “जर्मनी में आप एक पिता-बेटी की कहानी को बता सकते हैं, जिसमें कोई नाटकीयता न हो, लेकिन जैसे ही यह स्टोरी अफगानिस्तान की पृष्ठभूमि में सेट की जाती है तो अचानक से इसे पर्याप्त नहीं मान लिया जाता है।”

पैनल चर्चा को वेब पर बड़ी संख्या में समर्थन मिला। तीनों निर्देशिकाओं ने अब निर्वासन में रहकर बनाई जा सकने वाली फिल्मों से उम्मीदें हैं।

शरहबानू सादात ने कहा, “हमारे लिए नई भाषा सीखने और संपर्क बनाने में चार या पांच साल लग जायेंगे। लेकिन 10 वर्षों में, हमारे पास निर्वासन में रहकर तैयार किया गया अफगान सिनेमा हो सकता है।”

महिलाओं के दृष्टिकोण को शामिल करना महत्वपूर्ण होगा, जिन्हें अब एक बार फिर से अफगानिस्तान में हर जगह से बाहर कर दिया गया है, फिल्म निर्माताओं ने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा, “फिल्में बनाते रहना सबसे अच्छा बदला है।” 

साभार: डीडब्ल्यू 

इस लेख का जर्मन से अनुवाद किया गया। इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें

What Does the Future Hold for Afghan Cinema?

women's rights
TALIBAN
filmmaker
movies
Sahraa Karimi
Berlinale
Afghanistan
Afghan cinema

Related Stories

ओटीटी से जगी थी आशा, लेकिन यह छोटे फिल्मकारों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा: गिरीश कसारावल्ली

मीरा नायर को ‘टीआईएफएफ ट्रिब्यूट’ पुरस्कार से नवाज़ा गया

100 से ज़्यादा फिल्मकारों की भाजपा को वोट न देने की अपील


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    बिहार : गेहूं की धीमी सरकारी ख़रीद से किसान परेशान, कम क़ीमत में बिचौलियों को बेचने पर मजबूर
    30 Apr 2022
    मुज़फ़्फ़रपुर में सरकारी केंद्रों पर गेहूं ख़रीद शुरू हुए दस दिन होने को हैं लेकिन अब तक सिर्फ़ चार किसानों से ही उपज की ख़रीद हुई है। ऐसे में बिचौलिये किसानों की मजबूरी का फ़ायदा उठा रहे है।
  • श्रुति एमडी
    तमिलनाडु: ग्राम सभाओं को अब साल में 6 बार करनी होंगी बैठकें, कार्यकर्ताओं ने की जागरूकता की मांग 
    30 Apr 2022
    प्रदेश के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने 22 अप्रैल 2022 को विधानसभा में घोषणा की कि ग्रामसभाओं की बैठक गणतंत्र दिवस, श्रम दिवस, स्वतंत्रता दिवस और गांधी जयंती के अलावा, विश्व जल दिवस और स्थानीय शासन…
  • समीना खान
    लखनऊ: महंगाई और बेरोज़गारी से ईद का रंग फीका, बाज़ार में भीड़ लेकिन ख़रीदारी कम
    30 Apr 2022
    बेरोज़गारी से लोगों की आर्थिक स्थिति काफी कमज़ोर हुई है। ऐसे में ज़्यादातर लोग चाहते हैं कि ईद के मौक़े से कम से कम वे अपने बच्चों को कम कीमत का ही सही नया कपड़ा दिला सकें और खाने पीने की चीज़ ख़रीद…
  • अजय कुमार
    पाम ऑयल पर प्रतिबंध की वजह से महंगाई का बवंडर आने वाला है
    30 Apr 2022
    पाम ऑयल की क़ीमतें आसमान छू रही हैं। मार्च 2021 में ब्रांडेड पाम ऑयल की क़ीमत 14 हजार इंडोनेशियन रुपये प्रति लीटर पाम ऑयल से क़ीमतें बढ़कर मार्च 2022 में 22 हजार रुपये प्रति लीटर पर पहुंच गईं।
  • रौनक छाबड़ा
    LIC के कर्मचारी 4 मई को एलआईसी-आईपीओ के ख़िलाफ़ करेंगे विरोध प्रदर्शन, बंद रखेंगे 2 घंटे काम
    30 Apr 2022
    कर्मचारियों के संगठन ने एलआईसी के मूल्य को कम करने पर भी चिंता ज़ाहिर की। उनके मुताबिक़ यह एलआईसी के पॉलिसी धारकों और देश के नागरिकों के भरोसे का गंभीर उल्लंघन है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License