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भारत
राजनीति
गणेश दा ने फ़ासीवाद से लड़ने संबंधी दिमित्रोव की किताब पढ़ने को भेजी: सीताराम येचुरी
वयोवृद्ध वामपंथी नेता गणेश शंकर विद्यार्थी की श्रद्धाजंलि सभा में उमड़े बिहार में प्रगतिशील आंदोलन के सैकड़ों अग्रणी कार्यकर्ता
अनीश अंकुर
08 Feb 2021
गणेश दा ने फ़ासीवाद से लड़ने संबंधी दिमित्रोव की किताब पढ़ने को भेजी: सीताराम येचुरी

बिहार में वामपंथी आंदोलन के शलाका पुरुष माने जाने वाले गणेश शंकर विद्यार्थी की श्रद्धांजलि एवं संकल्प सभा पटना में अवर अभियंता भवन में आयोजित की गई। राज्य के वाम-लोकतांत्रिक दलों के नेताओं के अलावा बिहार के कोने-कोने से किसान, मज़दूर, छात्र, नौजवान भी इस श्रद्धांजलि सभा में आए। पटना शहर के बुद्धिजीवी, साहित्यकार, रंगकर्मी, कलाकार भी इन वयोवृद्ध वामपंथी नेता की संकल्प सभा में शामिल हुए। भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की बिहार राज्य कमेटी द्वारा आयोजित इस सभा में सी.पी.आई.एम के राष्ट्रीय महासचिव सीताराम येचुरी भी उपस्थित हुए। 

गणेश दा ने समाजवाद का स्वप्न कभी ओझल होने नहीं दिया: अवधेश कुमार (माकपा राज्य सचिव)

सभा की अध्यक्षता व संचालन सी.पी.आई.(एम.) के राज्य सचिव अवधेश कुमार ने किया। अपने प्रारंभिक संबोधन में अवधेश कुमार ने गणेश शंकर विद्यार्थी के जीवन संघर्ष एवं क्रांतिकारी बदलाव के प्रति उनकी प्रतिबद्धता से परिचित करते हुए कहा " मुझे चार दशकों तक उनके निर्देशन में काम करने का मौका मिला। आठ दशकों के अपने लंबे राजनीतिक जीवन में उन्होंने काफी उतार-चढ़ाव देखा। शोषणविहीन समाज की स्थापना का लक्ष्य, उनकी आंखों से कभी ओझल नहीं हुआ। इस दौरान वे लगभग छह वर्षों तक जेल में रहे। स्वाधीनता सेनानी रहने के बावजूद कभी पेंशन नहीं ली। गणेश शंकर विद्यार्थी अक्सर कहा करते थे, परिवर्तन तथा समाजवाद की स्थापना का रास्ता लम्बा और दुर्गम होता है।"

सिर्फ सीपीएम नहीं, पूरे वाम आंदोलन के नेता: रामनरेश पांडे (सीपीआई, राज्य सचिव)

सी.पी.आई के बिहार राज्य सचिव रामनरेश पांडे ने गणेश शंकर विद्यार्थी के सीपीआई के दौर के संबन्ध में बताया "गणेश शंकर विद्यार्थी सिर्फ सीपीएम के नेता नहीं बल्कि पूरे वाम आंदोलन के नेता थे। 1964 में जब पार्टी का विभाजन हुआ, उसके पूर्व सीपीआई में वे राज्य नेतृत्व के मजबूत स्तम्भ थे। वे 1942 से ही सीपीआई के सदस्य थे। अपने छात्र जीवन में, स्वाधीनता आंदोलन के दौरान ही उन्होंने मार्क्सवाद को अपना लिया था।" 

रामनरेश पांडे ने गणेश शंकर विद्यार्थी की अंतिम सार्वजनिक सभा का जिक्र करते हुए कहा "कोरोना काल में हमारी पार्टी का अखबार बन्द हो गया था। जब दोबारा अखबार 12 दिसम्बर, 2020 को शुरू किया तो गणेश शंकर विद्यार्थी से आग्रह करने गया कि वे इसका लोकार्पण करने आएं। वे सहर्ष तैयार हो गए और आए। ठीक इसी तरह 1 अगस्त 2020 को हमारे तत्कालीन राज्य सचिव सत्यनारायण सिंह की मौत हो गई। हम सब बेहद दुःखी थे। 23 अगस्त को उनकी श्रद्धांजलि सभा आयोजित की गई। कोरोना का खतरा उठाकर भी गणेश दा उस सभा में शामिल हुए। इसी प्रकार 1995 में जब मैं विधायक था, मधुबनी में काफी दिनों तक अनशन में रहने के बाद जब मुझे अस्पताल ले जाया गया और मेरी स्थिति खराब होती जा रही थी, तब तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद से बात कर उन्होनें मध्यस्थता कराई और मेरा अनशन तुड़वाने में प्रमुख भूमिका अदा की।"

रामनरेश पांडे ने सीपीएम के नेताओं ने आग्रह किया कि गणेश शंकर विद्यार्थी के जीवनचरित को प्रकाशित कराया जाए ताकि आगे आने वाली पीढियां उनसे प्रेरित हो सके। सी.पी.आई राज्य सचिव ने बिहार सरकार से गणेश शंकर विद्यार्थी की आदमकद प्रतिमा स्थापित करने की भी मांग की।

वामपंथी एकता के सबसे बड़े पैरोकार को हमने खो दिया: कुणाल (भाकपा-माले-लिबरेशन, राज्य सचिव) 

भाकपा ( माले-लिबरेशन) के प्रांतीय सचिव कुणाल ने गणेश शंकर विद्यार्थी को वामपंथी एकता का पैरोकार बताते हुए कहा "हमने वामपंथी एकता के एक सबसे बड़े पैरोकार, बिहार के किसानों की आवाज, गरीबों का पक्षधर नेता खो दिया है। एक ऐसे समय में जब देश के किसान सड़कों पर हैं, गणेश दा का अनुभव बहुत काम आता। आज खेती-किसानी को कॉरपोरेट के हवाले करने की कोशिश की जा रही है। ये सिर्फ किसानों का ही नहीं, आम जनता का भी सवाल है। जब कॉपोरेट खेती करेंगे तो छोटे किसान खेती नहीं कर पाएंगे। देश को कम्पनी राज स्थापित करने की साजिश को सफल होने नहीं दे सकते। इस लड़ाई में हमें गणेश शंकर विद्यार्थी की क्रांतिकारी विरासत, संघर्षशील परंपरा को याद करते हुए उनके अधूरे सपने को आगे बढ़ाना है।"

गणेश दा छात्र आंदोलन स्वाधीनता आंदोलन से कम्युनिस्ट आंदोलन में आए-अरुण सिंह( एस.यू.सी.आई-कम्युनिस्ट, राज्य सचिव) 

एस.यू.सी.आई (कम्युनिस्ट) के राज्य सचिव अरुण कुमार सिंह ने श्रद्धांजलि सभा में कहा "गणेश दा छात्र आंदोलन, स्वाधीनता आंदोलन से होते हुए कम्युनिस्ट आंदोलन में आए। वे उस वक़्त आए जब पूरी दुनिया में कम्युनिस्ट आंदोलन एक ऊंचाई पर था। मार्क्सवाद की श्रेष्ठता पूरी दुनिया को प्रभावित कर रहा था। आज बहुत कोशिश करने के बाद भी पूंजीवाद उसकी श्रेष्ठता को कम नहीं कर पा रहा है। आज पूंजीवाद खुद संकट में फंस चुका है और उसे रास्ता सूझ नहीं रहा है।"

स्पेनिश सिविल वार जैसी एकजुटता की आज जरूरत है: आलोकधन्वा (जनकवि) 

प्रख्यात जनकवि आलोकधन्वा ने श्रद्धांजलि सभा में कहा "उनको साहित्य की भी वृहत जानकारी व समझ थी। टॉलस्टाय, गोर्की से लेकर रोम्यां रोलां और राहुल सांकृत्यायन तक वो सभी से परिचित थे। आज गणेश शंकर विद्यार्थी को याद करते हुए स्पेनिश सिविल वार का वक्त याद आता है। उस वक्त जिस ढंग की एकजुटता हुई थी, जैसे अर्नेस्ट हेमिंग्वे से लेकर लोर्का तक सभी एक साथ मिलकर फासिज्म के खिलाफ लड़ रहे थे। यहां तक कि जवाहर लाल नेहरू ने भी उस सिविल वार में लड़ने के लिए अपना नाम लिखवाया था। गणेश दा जिस राजनीति की बात करते थे, उसे साहित्य में प्रेमचंद, नागार्जुन, निराला जैसे बड़े रचनाकार आगे बढ़ा रहे थे।" 

आलोकधन्वा ने गणेश शंकर विद्यार्थी को श्रद्धांजलि स्वरूप मखदूम मोइनुद्दीन की दो पंक्तियां सुनाई।

हयात ले के चलो, कि कायनात ले के चलो

चलो तो सारे जमाने को साथ ले के चलो। 

गणेश दा के न रहने से भारी कमी महसूस हो रही है: सीताराम येचुरी 

अंत में सी.पी.आई.(एम.) के महासचिव सीताराम येचुरी ने गणेश शंकर विद्यार्थी के साथ की स्मृतियों को साझा करते हुए कहा "गणेश दा के न रहने से एक भारी कमी महसूस हो रही है। जब उनकी कूल्हे में चोट लगी, तब उनसे हॉस्पिटल ले जाते समय और फिर वहां से वापस लौटते समय उनसे फोन पर बातें हुईं थी। मैं पहली बार उनसे 1979 में मिला, जब एस. एफ.आई का राष्ट्रीय सम्मेलन यहां हुआ था। तब से वे मुझे अपने परिवार के सदस्य की तरह मानते थे। उनसे हमेशा खूब बहस-मुबाहिसा हुआ करता था जो कम्युनिस्टों का स्वाभाविक गुण होता है। लगभग 30 सालों तक सी.पी.एम सेंटल कमेटी के सदस्य रहे। शुरू के तीन-चार सालों को छोड़कर मैं भी सेंट्रल कमेटी का सदस्य रहा। "सीताराम येचुरी ने आगे बताया" सोवियत संघ के विघटन के बाद 1992 के जनवरी में पार्टी ने मुझे इसके कारणों पर एक प्रस्ताव तैयार करने की जिम्मेदारी दी। मैंने उसमें यह कहा कि सोवियत संघ के विघटन के पीछे उसके अंदरूनी कारण थे। इससे समाजवाद का सिद्धांत कहीं से जिम्मेदार नहीं, बल्कि उसे लागू करने में हुई गलतियां जिम्मेदार हैं। जब मैंने यह प्रस्ताव रखा तब गणेश दा ने मुझसे कहा कि तुमने जो दस्तावेज पेश किया, उससे पार्टी की क्रांतिकारी विरासत को आगे बढ़ाते हुए, पार्टी एकता को मजबूती प्रदान करने में सहायता मिली है। उस वक्त सीपीएम दुनिया की इकलौती पार्टी थी जिसमे सोवियत संघ के पतन के कारणों का एक ठोस विश्लेषण प्रस्तुत किया था।"

सीताराम येचुरी ने और फासीवाद के खिलाफ लड़ाई में दिमित्रोव और ग्राम्सी की चर्चा करते हुए बताया "गणेश दा ने इटली में फासीवाद के दौर के प्रमुख कम्युनिस्ट नेताओं ग्राम्सी और इटली की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव तोगलियाती के बीच की बहसों से संबंधित एक पुरानी किताब मुझे पढ़ने को भेजी। इटली की तब की कम्युनिस्ट पार्टी, हिंदुस्तान में आज जो कम्युनिस्ट पार्टी की है उससे बहुत ज्यादा बड़ी थी। मुझे आश्चर्य हुआ कि उन्होंने ये किताब कहां से खोजी। लेकिन गणेश दा अक्सर ऐसी किताबें पढ़ा करते थे। उस किताब में ये बात थी कि कैसे फासीवादी लोग संवैधानिक संस्थाओं पर कब्जा करते हुए तानाशाही स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं। आज भारत में यही हो रहा है और धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक देश के बदले एक फासीवादी हिन्दू राष्ट्र बनाने का प्रयास किया जा रहा है। इसलिए आज सबसे जरूरी है कि भले हम अलग-अलग विचार के हों सबसे पहले इस व्यवस्था को बचाना है ताकि हम अपने विचार प्रकट कर सकें।" 

सीताराम येचुरी ने यहीं पर गणेश दा द्वारा भेजी किताब का जिक्र करते हुए यह भी बताया "गणेश दा ने ज्यार्जी दिमित्रोव की किताब जो मुझे भेजी थी, उसमें फासीवाद से लड़ने सबंधी बातों को उन्होंने अंडरलाइन किया हुआ था। दिमित्रोव ने यह बताया था कि फासीवाद कोई एक दिन में किसी गुप्त बैठक में कोई प्रस्ताव पारित कर नहीं लाया जाता है, बल्कि यह संविधान को धीरे-धीरे कमजोर करने, स्वायत्त संस्थाओं को नष्ट करने, जनतांत्रिक अधिकारों पर तरह-तरह के प्रतिबंधों के जरिये आकार ग्रहण करता है। इसलिए फासीवाद से कदम-कदम पर लड़ने के लिए बाकी सभी लोगों का सहयोग लेना होगा। अतः आज संविधान की हिफाजत के लिए जो लोग भी शामिल होते हैं, उन्हें शामिल कर इस संघर्ष को तेज करना होगा।"

गणेश दा स्वामी सहजानन्द से प्रेरणा लेकर किसान आंदोलन में आए: येचुरी

किसानों व गरीबों के प्रति गणेश शंकर विद्यार्थी की प्रतिबद्धता का जिक्र करते हुए सीताराम येचुरी ने कहा "1930 और 40 के दशक में स्वामी सहजानन्द सरस्वती के किसान आंदोलन से प्रेरित होकर गणेश दा कम्युनिस्ट आंदोलन में आए और किसानों के मुद्दों पर संघर्ष किया। गरीबों के हितों की हिफाजत में उनका समूचा जीवन बीता। गणेश दा को मार्क्सवाद ने दो गुणों के कारण आकर्षित किया ये दो गुण हैं वैज्ञानिक और क्रांतिकारी होना। इन्हीं दोनों गुणों के कारण दुनिया भर में लोग आज भी मार्क्सवाद से आकर्षित होते हैं। अपने संबोधन में येचुरी ने दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन का जिक्र किया "आज पिछले 70-75 दिनों से दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन को बदनाम करने की साजिश कर, उसे खालिस्तानी बताया जा रहा है। खालिस्तानियों से लड़ने का हमसे किसे ज्यादा अनुभव है? हमारे दो सौ से अधिक कार्यकर्ता खालिस्तानियों से लड़ते हुए मारे गए थे। अब यह आंदोलन जन-आंदोलन बन चुका है और तीनों काले कृषि कानून के वापस होने तक जारी रहेगा। जब आम लोगों की नौकरियां खत्म हो रही थी एवं उनके सामने भुखमरी पैदा हो रही थी, उस दौर में भारत के मु्ट्ठी भर पूंजीपतियों ने 13 लाख करोड़ रूपयों का लाभ कमाया, जो अत्यन्त ही अमानवीय है तथा पूंजीवाद का क्रूर चेहरा है।"

सीताराम ने गणेश दा को श्रद्धाजंलिस्वरूप वर्ग संघर्ष को तेज करने की बात करने का आह्वान किया और कहा "वाम प्रगतिशील जनतांत्रिक शक्तियों की एकता कायम कर संविधान प्रदत्त अधिकारों की रक्षा के जरिए जन संघर्ष एवं वर्ग संघर्ष के जरिए समाजवादी स्वप्न को साकार करने के रास्ते पर आगे बढ़ने का संकल्प ही गणेश शंकर विद्यार्थी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।" 

सीताराम येचुरी ने अंत में नारा लगाया ‘गणेश दा को लाल सलाम’, ‘गणेश दा अमर रहें'-जिसे वहां उपस्थित सभी लोगों ने दोहराया। सभा के अंत में एक मिनट मौन रहकर गणेश शंकर विद्यार्थी को श्रद्धांजलि दी गई। 

श्रद्धांजलि सह संकल्प सभा को राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय महासचिव श्याम रजक, पूर्व विधान सभा अध्यक्ष उदय नारायण चैधरी, विधायक आलोक मेहता, फारवर्ड ब्लाॅक के अमरीका महतो ने भी संबोधित किया।

श्रद्धांजलि सभा का प्रबंधकीय देख-रेख सीपीआई(एम) के केन्द्रीय कमेटी सदस्य अरूण कुमार मिश्रा और सीपीआई( एम) के पटना जिला सचिव मनोज चन्द्रवंशी ने किया।

सभा में बड़ी संख्या में बिहार के वाम आंदोलन के नेतागण मौजूद थे। माकपा राज्य सचिवमंडल सदस्य सर्वोदय शर्मा, सुगौली के पूर्व माकपा विधायक रामाश्रय सिंह, बेगुसराय के पूर्व माकपा विधायक राजेन्द्र सिंह, सीपीएम के वर्तमान मांझी विधायक डाॅ॰ सत्येन्द्र यादव, विभूतिपुर विधायक अजय कुमार, किसान सभा के नेता ललन चौधरी, प्रभुराज नारायण राव, किसान सभा के पुराने नेता नन्दकिशोर शुक्ला, सी.आई.टी.यू नेता गणेश शंकर सिंह, अहमद अली, श्याम भारती, अशोक मिश्रा, गीता सागर, भोला दिवाकर, देवेन्द्र चैरसिया, के.डी. यादव, रामबाबू कुमार, जीतेन्द्र कुमार, निकोलाई शर्मा, प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़े चर्चित कवि सत्येन्द्र कुमार, रंगकर्मी जयप्रकाश, इंजीनियर सुनील, रवींद्र कुमार सिन्हा, पुष्पा, अरुण कुमार, निशांत, विश्वजीत कुमार, सुशील कुमार, राकेश कुमुद, गोपाल शर्मा, पुष्पेंद्र शुक्ला, सरोज, अक्षत, कुमार परवेज समेत पूरे राज्य के विभिन्न जिलों के नेता एवं कार्यकर्ता शामिल थे।

इस मौके पर गणेश शंकर विद्यार्थी के परिवार के सदस्यगण भी उपस्थित थे और उनके जीवन चरित पर आधारित एक संक्षिप्त फोल्डर का भी प्रकाशन किया गया।

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