NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
स्वास्थ्य
भारत
राजनीति
नवलखा और तेलतुंबड़े की गिरफ़्तारी पर SC से दख़ल की मांग, बड़ी हस्तियों ने सीजेआई को लिखा पत्र
इस पत्र पर रोमिला थापर सहित अन्य हस्तियों ने हस्ताक्षर किये हैं। इसमें इस तथ्य को भी उजागर किया गया है कि COVID-19 के प्रकोप और देश की भीड़भाड़ वाली जेलों में इसके असर को देखते हुए ऐसा आदेश विशेष रूप से अमानवीय है।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
13 Apr 2020
नवलखा और तेलतुंबड़े

इतिहासकार रोमिला थापर, प्रोफेसर प्रभात पटनायक और अन्य बड़ी हस्तियों सहित देश की महान हस्तियों ने भारत के मुख्य न्यायाधीश को 10 अप्रैल को एक खुला पत्र लिखा है। इस पत्र में सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा और प्रोफ़ेसर आनंद तेलतुंबड़े को भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में जमानत देने से इनकार करने के संबंध में अदालत से हस्तक्षेप करने की मांग की गई है। इस पत्र के हस्ताक्षरकर्ताओं ने इससे पहले साल 2018 में सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दाखिल करके शीर्ष अदालत से हस्तक्षेप करने और विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित करने की मांग की थी। साल 2018 में वारवरा राव, अरुण फेरिरा, वर्नोन गोंसाल्वेस, सुधा भारद्वाज और गौतम नवलखा जैसे प्रख्यात बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किए गए थे।

इस पत्र में मुख्य न्यायाधीश से अपील किया गया है कि "उनके नेतृत्व में सुप्रीम कोर्ट को यह साबित करने के लिए दृढ़तापूर्वक कार्य करना चाहिए कि वह वास्तव में लोगों के अधिकारों का और संविधान का रक्षक है।"

पत्र में कहा गया है कि भले ही शीर्ष अदालत ने 2-1 की बहुमत के फैसले के आधार पर उनकी याचिका को खारिज कर दिया हो, फिर भी अल्पमत (एक सदस्य) ने "स्वतंत्र जांच की आवश्यकता" को लेकर याचिकाकर्ताओं के साथ सहमति व्यक्त की थी और एसआईटी के गठन का सुझाव भी दिया था। उन्होंने कहा कि, हालांकि, 18 महीने के बाद भी अभियोजन पक्ष द्वारा "चल रहे मुकदमे में किसी भी नए तथ्यों या सबूतों को पेश करने में विफल होने के बावजूद, न केवल अभियुक्तों को जमानत देने से इनकार करने के साथ अनुचित रुप से लंबी अवधि तक के लिए उनकी स्वतंत्रता से वंचित किया गया है बल्कि दो नए नाम को भी उनके साथ जोड़ दिया गया है।"

यह पत्र उन लोगों के प्रति उनकी "पीड़ा को भी व्यक्त करता है जिन्होंने बेजुबान और हाशिए पर मौजूद लोगों के अधिकारों की रक्षा करने की हिम्मत की है और अब इस प्रतिशोधी अभियान को" नवलखा और तेलतुम्बडे तक बढ़ाने की अनुमति दे रहा है जिन्हें एक सप्ताह में आत्मसमर्पण करने को कहा जा रहा है। यह इस सच्चाई पर भी प्रकाश डालता है कि देश की भीड़भाड़ वाली जेलों में COVID-19 महामारी और इसके प्रभाव को देखते हुए, ऐसा आदेश खास तौर से अमानवीय है।

मुख्य न्यायाधीश को लिखा पत्र नीचे दिया गया है।

आदरणीय भारत के मुख्य न्यायाधीश,

हम याचिकाकर्ता हैं। हमने सितंबर 2018 में (Romila Thapar & Ors. Vs. Union of India & Ors., Writ Petition 32319 of 2018) तथाकथित 'भीमा-कोरेगांव मामले’ के संबंध में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। हालांकि इस मामले में पहले ही कई गिरफ्तारियां हो चुकी थीं, लेकिन 28 अगस्त 2018 को वारवारा राव, अरुण फेरिरा, वर्नोन गोंसाल्वेस, सुधा भारद्वाज और गौतम नवलखा की गिरफ्तारी के लिए वारंट जारी होने पर हस्तक्षेप करने को लेकर काफी चिंताशील हो गए थे। ये लोग विख्यात बुद्धिजीवी, लेखक, वकील, मानवाधिकार कार्यकर्ता, विद्वान और पत्रकार हैं।

हमने याचिका में उच्चतम न्यायालय से विशेष जांच दल(एसआईटी) गठन करने का अनुरोध किया है और पुणे पुलिस द्वारा लगाए गए आरोपों की इस जांच में निगरानी करने का आग्रह किया है ताकि शीघ्र, निष्पक्ष और प्रमाणिक जांच सुनिश्चित हो सके। सर्वोच्च न्यायालय ने2-1 बहुमत के फैसले से हमारी याचिका को अस्वीकार कर दिया क्योंकि यह "माना गया विचार है कि विचाराधीन अपराध की जांच प्रारंभिक स्तर पर है" और इसलिए अदालत केस के मेरिट को लेकर चर्चा करना नहीं चाहता था कि ऐसा न हो कि किसी प्रकार के पूर्वाग्रह से कोई भी अभियुक्त या अभियोजन पक्ष बन जाए।

हालांकि, अल्पमत (एक सदस्य) के निर्णय ने "एक स्वतंत्र जांच की आवश्यकता" को लेकर हमारे साथ सहमति व्यक्त की और एसआईटी गठित करने का सुझाव दिया। यहां तक कि बहुमत (दो सदस्य) के फैसले ने अभियुक्तों को कानूनी उपायों की तलाश के लिए दिए गए समय को और चार सप्ताह तक बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की।

लेकिन अठारह महीनों का लंबा अरसा गुजर जाने के बाद आज भी मीडिया रिपोर्टों से पता चलता है कि अभियोजन पक्ष चल रहे मुकदमे में किसी भी नए तथ्य या सबूत को पेश करने में विफल रहा है। इसके बावजूद,अभियुक्तों को न केवल जमानत और अनुचित तरीके से लंबी अवधि तक उनकी स्वतंत्रता से वंचित रखा गया है बल्कि उनके साथ दो नए नाम को भी जोड़ दिया गया है। उच्चतम न्यायालय ने आनंद तेलतुम्बडे (प्रबंधन के प्रोफेसर, लेखक और विद्वान) और गौतम नवलखा(लेखक और पत्रकार) को जमानत देने से इनकार कर दिया और उन्हें एक सप्ताह में महाराष्ट्र पुलिस* के सामने आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया।

निष्पक्ष विचार रखने वाले सभी नागरिकों की तरह, हम हैरान हैं कि अभियोजन को कानून की भावना के प्रति जवाबदेह नहीं बनाया गया है। हमें इस बात की तकलीफ है कि हमारी अदालतों ने उन लोगों को निरंतर कारावास की सज़ा दी है जिन्होंने बेजुबान और हाशिए पर मौजूद लोगों के अधिकारों की रक्षा करने की हिम्मत जुटाई है और अब दंड देने वाले इस कार्रवाई को बढ़ाने की अनुमति दे रहे हैं। यह खास तौर से अमानवीय और समझ से बाहर है कि ऐसे समय जब Covid-19 का प्रकोप हमारी भीड़भाड़ वाली जेलों को खतरे में डाल रहा है।

हम आपसे अपने संविधान और नागरिकों की स्वतंत्रता के प्रति जनता के विश्वास को बहाल करने की अपील करते हैं जो ये सभी नागरिकों को गारंटी देता है। अभियोजन पक्ष के पास अपने मामले पर विचार करने के लिए पर्याप्त समय रहा है। देश की सर्वोच्च अदालत सजा देने के लिए इस प्रक्रिया को अनुमति नहीं दे सकती है। आपके नेतृत्व में सर्वोच्च न्यायालय को यह दर्शाने करने के लिए दृढ़ता के साथ कार्य करना चाहिए कि यह वास्तव में लोगों के अधिकारों और संविधान का रक्षक है।

हम इस मामले में आपके सकारात्मक हस्तक्षेप की उम्मीद करते हैं।

सम्मान के साथ,

भवदीय,

याचिकाकर्ता:

रोमिला थापर

प्रभात पटनायक

देवकी जैन

माजा दरुवाला

सतीश देशपांडे

प्रभात पटनायक द्वारा याचिकाकर्ताओं की ओर से भेजा गया।

* न्यूज़क्लिक सुधार: राष्ट्रीय जांच एजेंसी(एनआईए) के सामने उन्हें समर्पण करने के लिए कहा गया है।

अंग्रेजी में लिखे गए मूल आलेख को आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं

Prominent Citizens Write to CJI, Demand SC Intervention in Navlakha, Teltumbde's Arrest

gautam navlakha
Anand Teltumbde
bhima koregaon arrests
Indian Supreme Court
COVID-19

Related Stories

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 84 दिन बाद 4 हज़ार से ज़्यादा नए मामले दर्ज 

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना के मामलों में 35 फ़ीसदी की बढ़ोतरी, 24 घंटों में दर्ज हुए 3,712 मामले 

कोरोना अपडेट: देश में नए मामलों में करीब 16 फ़ीसदी की गिरावट

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में कोरोना के 2,706 नए मामले, 25 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 2,685 नए मामले दर्ज

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 2,710 नए मामले, 14 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: केरल, महाराष्ट्र और दिल्ली में फिर से बढ़ रहा कोरोना का ख़तरा

कोरोना अपडेट: देश में आज फिर कोरोना के मामलों में क़रीब 27 फीसदी की बढ़ोतरी


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ः 60 दिनों से हड़ताल कर रहे 15 हज़ार मनरेगा कर्मी इस्तीफ़ा देने को तैयार
    03 Jun 2022
    मनरेगा महासंघ के बैनर तले क़रीब 15 हज़ार मनरेगा कर्मी पिछले 60 दिनों से हड़ताल कर रहे हैं फिर भी सरकार उनकी मांग को सुन नहीं रही है।
  • ऋचा चिंतन
    वृद्धावस्था पेंशन: राशि में ठहराव की स्थिति एवं लैंगिक आधार पर भेद
    03 Jun 2022
    2007 से केंद्र सरकार की ओर से बुजुर्गों को प्रतिदिन के हिसाब से मात्र 7 रूपये से लेकर 16 रूपये दिए जा रहे हैं।
  • भाषा
    मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने चंपावत उपचुनाव में दर्ज की रिकार्ड जीत
    03 Jun 2022
    चंपावत जिला निर्वाचन कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार, मुख्यमंत्री को 13 चक्रों में हुई मतगणना में कुल 57,268 मत मिले और उनके खिलाफ चुनाव लड़ने वाल़ कांग्रेस समेत सभी प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो…
  • अखिलेश अखिल
    मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 
    03 Jun 2022
    बिहार सरकार की ओर से जाति आधारित जनगणना के एलान के बाद अब भाजपा भले बैकफुट पर दिख रही हो, लेकिन नीतीश का ये एलान उसकी कमंडल राजनीति पर लगाम का डर भी दर्शा रही है।
  • लाल बहादुर सिंह
    गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया
    03 Jun 2022
    मोदी सरकार पिछले 8 साल से भारतीय राज और समाज में जिन बड़े और ख़तरनाक बदलावों के रास्ते पर चल रही है, उसके आईने में ही NEP-2020 की बड़ी बड़ी घोषणाओं के पीछे छुपे सच को decode किया जाना चाहिए।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License