NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आधी आबादी
कोविड-19
शिक्षा
भारत
अंतरराष्ट्रीय
लॉकडाउन में लड़कियां हुई शिक्षा से दूर, 67% नहीं ले पाईं ऑनलाइन क्लास : रिपोर्ट
शहरी झुग्गियों में रहने वाली 67 प्रतिशत लड़कियां कोविड-19 महामारी के कारण शिक्षा से वंचित रहीं। इसके अलावा 10 से 18 साल के बीच की 68 प्रतिशत लड़कियों ने इन राज्यों में स्वास्थ्य और पोषण सुविधाएं पाने में चुनौतियों का सामना किया।
सोनिया यादव
04 Mar 2022
online class
'प्रतीकात्मक फ़ोटो'

बीते लंबे समय से महामारी के चलते स्कूल बंद रहे। बच्चों ने एक लंबा समय घर की चार दिवारी में ऑनलाइन क्लासेज के बीच गुजारा है। अब लंबे इंतज़ार के बाद देश के कई राज्यों में स्कूल खोलने लगे हैं। एक ओर स्कूल जाते बच्चों में फिर से उत्साह नज़र आ रहा है तो वहीं कुछ ऐसे बच्चे भी हैं, जो कोरोना काल के दौरान शिक्षा से दूर हो गए। इसमें एक बड़ा हिस्सा लड़कियों का है। उन्होंने लॉकडाउन के बीच स्कूल बंद होने पर बहुत कुछ खोया है उनकी शिक्षा पर इसका नकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिला है।

कोरोना संकट का असर सिर्फ स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था पर ही नहीं, बल्कि जीवन के सभी क्षेत्रों पर पड़ा है। हाल ही में जारी एक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार कोरोना महामारी का शिक्षा के क्षेत्र में बहुत ज्यादा असर पड़ा है। खासकर स्कूली लड़कियां इससे प्रभावित हो रही हैं। कोरोना महामारी के कारण लगाए गए लॉकडाउन के दौरान 67 प्रतिशत लड़कियां ऑनलाइन कक्षाओं में शामिल ही नहीं हुईं।

बता दें गैर सरकारी संगठन 'सेव द चिल्ड्रन' द्वारा किये गये एक अध्ययन में यह पाया गया है कि दिल्ली, महाराष्ट्र, बिहार और तेलंगाना की शहरी झुग्गियों में रहने वाली 67 प्रतिशत लड़कियां कोविड-19 महामारी के कारण 2020 में लगाये गये लॉकडाउन के दौरान ऑनलाइन कक्षाओं में शामिल नहीं हो सकींं। इसके अलावा 10 से 18 साल के बीच की 68 प्रतिशत लड़कियों ने इन राज्यों में स्वास्थ्य और पोषण सुविधाएं पाने में चुनौतियों का सामना किया।

रिपोर्ट में क्या है खास?

'विंग्स 2022 वर्ल्ड ऑफ इंडियाज गर्ल्स, स्पोटलाइट ऑन एडोलेसेंट गर्ल्स एमिड कोविड-19' शीर्षक से जारी इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 2020 के लॉकडाउन के दौरान संक्रमण की आशंका, स्कूलों एवं स्वास्थ्य केंद्रों का बंद हो जाना, स्वास्थ्य कर्मियों की अनुपलब्धता ने किशोरियों के लिए शिक्षा के साथ- साथ स्वास्थ्य तथा पोषण सुविधाओं तक पहुंच को मुश्किल कर दिया था।

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि लॉकडाउन के बाद 51 प्रतिशत लड़कियों के समक्ष स्वास्थ्य सेवाएं प्राप्त करने में चुनौतियां बनी रही। चार राज्यों में, प्रत्येक तीन में से एक लड़की ही लॉकडाउन के दौरान ऑनलाइन कक्षाओं में शामिल हुई। चार में तीन माताओं (73 प्रतिशत) ने संकेत दिया कि महामारी ने उनकी बेटी की पढ़ाई को अत्यधिक प्रभावित किया।

रिपोर्ट के मुताबिक स्कूलों के बंद हो जाने के चलते, हर पांच में से दो लड़कियों (42 प्रतिशत) से स्कूल ने संपर्क नहीं किया, जैसा कि माताओं ने दावा किया है। लॉकडाउन ने खेल-कूद और रचनात्मक गतिविधियों को घटा दिया क्योंकि स्कूल वे जगह हैं जहां लड़कियां अध्ययन से इतर गतिविधियों में शामिल होती हैं।

बाल विवाह की आशंका भी बढ़ी

रिपोर्ट में हर दो में से एक लड़की ने कहा है कि उन्हें अपने भाई-बहन और दोस्तों के साथ स्कूल आने-जाने की कमी खली। इसमें यह भी कहा गया है कि महामारी के दौरान नौकरियां चली जाने और परिवार की आय घटने के चलते बाल विवाह की आशंका भी बढ़ी। इसके मुताबिक हर सात में से एक मां को लगता है कि महामारी ने लड़कियों की निर्धारित उम्र सीमा से पहले विवाह का जोखिम बढ़ा दिया।

बता दें कि यूनिसेफ़ की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ दुनिया भर में स्कूलों के बंद होने से, आर्थिक सुस्ती और परिवार एवं बच्चों की सहायता सेवाओं में कमी के चलते 2030 तक क़ानूनी रूप से बालिग़ होने से पहले एक करोड़ लड़कियों की शादी हो जाएगी। कोविड के चलते अगले एक दशक में एक करोड़ लड़कियों को कम उम्र में या कहें बाल विवाह करना पड़ सकता है।

यूनिसेफ़ के अनुसार कोरोना संक्रमण के आने से पहले यह अनुमान लगाया गया था कि अगले दस साल में करीब 10 करोड़ शादियां कम उम्र वाले लड़के-लड़कियों की हो सकती हैं। कोरोना संक्रमण आने के बाद ऐसी शादियों की संख्या में 10 प्रतिशत यानी एक करोड़ की बढ़ोत्तरी होने की आशंका है।

ऑनलाइन पढ़ाई में लड़कों को लड़कियों पर प्राथमिकता

गौरतलब है कि बीते 26 नवंबर को जारी एक रिपोर्ट में शिक्षा पर काम करने वाली संस्था राइट टू एजुकेशन फोरम ने सेंटर फॉर बजट एंड पॉलिसी स्टडीज और चैंपियंस फॉर गर्ल्स एजुकेशन के साथ मिलकर देश के 5 राज्यों में एक अध्ययन किया था, जिसके मुताबिक कोरोना के कारण स्कूली लड़कियों की पढ़ाई पर बहुत ही प्रतिकूल असर पड़ा है। घर पर कंप्यूटर या पर्याप्त संख्या में मोबाइल ना होने के कारण जहां ऑनलाइन पढ़ाई में लड़कों को लड़कियों पर प्राथमिकता दी जा रही है, वहीं कोरोना के कारण हुए आर्थिक तंगी के कारण लड़कियों की पढ़ाई छूटने का भी डर शामिल हो गया है।

यूनिसेफ इंडिया के एजुकेशन प्रमुख टेरी डर्नियन ने मीडिया को बताया था कि महामारी के दौरान लड़कियों की मुसीबतें बढ़ी हैं, उन्हें पढ़ाई में प्रोत्साहन देने की बजाए देखभाल के काम सौंपे जा रहे हैं। उन्होंने कहा था कि कम ही लड़कियों के पास ऑनलाइन एजुकेशन के लिए तकनीकी पहुंच है और स्कूल खुलने के बाद और भी कम लड़कियां स्कूल जा सकेंगी, ऐसा इस रिपोर्ट में कहा गया है। इस वजह से शिक्षकों और स्कूल की क्षमता बढ़ाने के लिए कदम उठाने होंगे, ताकि कोई भी शिक्षा के अपने मौलिक अधिकार से वंचित न रह जाए।

वैसे ई-लर्निंग के दौरान लड़कियों के पीछे जाने का एक कारण यह भी है कि घर पर कंप्यूटर या पर्याप्त संख्या में मोबाइल ना होने के कारण जहां ऑनलाइन पढ़ाई में लड़कों को लड़कियों पर प्राथमिकता दी जा रही थी। वहीं लड़कियां स्कूल न जाने के कारण घर के कामों में लगा दी जाती हैं।

इस रिपोर्ट में तकरीबन 71 प्रतिशत लड़कियों ने माना था कि कोरोना के बाद से वे केवल घर पर हैं और पढ़ाई के समय में भी घरेलू काम करती हैं। वहीं केवल 38 प्रतिशत लड़कों ने बताया कि उन्हें घरेलू काम करने को कहा जाता है। यही कारण है कि 56 प्रतिशत लड़कों की तुलना में सिर्फ 46 प्रतिशत लड़कियों ने माना कि उन्हें पढ़ाई करने के लिए समय मिल पाता है।

बहरहाल, कुल मिलाकर देखें तो कोरोना के दौरान और इसके खत्म होने के बाद भी यह तय करने की जरूरत है कि लड़कियां स्कूल लौट सकें। सरकार को इसके लिए समय रहते पर्याप्त कदम उठाने की जरूरत है, जिससे इन लड़कियों को दोबारा शिक्षा की ओर मोड़ा जा सके और इनके भविष्य को सुरक्षित किया जा सके।

COVID-19
Lockdown
Education in Corona time
education crisis
Girls' education
Girls' education crisis
child marriage
UNICEF
gender discrimination
Online Education
Online Classes

Related Stories

सवाल: आख़िर लड़कियां ख़ुद को क्यों मानती हैं कमतर

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस: महिलाओं के संघर्ष और बेहतर कल की उम्मीद

बढ़ती लैंगिक असमानता के बीच एक और अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस

यूपी चुनाव: बग़ैर किसी सरकारी मदद के अपने वजूद के लिए लड़तीं कोविड विधवाएं


बाकी खबरें

  • भाषा
    हार्दिक पटेल भाजपा में शामिल, कहा प्रधानमंत्री का छोटा सिपाही बनकर काम करूंगा
    02 Jun 2022
    भाजपा में शामिल होने से पहले ट्वीट किया कि वह प्रधानमंत्री के एक ‘‘सिपाही’’ के तौर पर काम करेंगे और एक ‘‘नए अध्याय’’ का आरंभ करेंगे।
  • अजय कुमार
    क्या जानबूझकर महंगाई पर चर्चा से आम आदमी से जुड़े मुद्दे बाहर रखे जाते हैं?
    02 Jun 2022
    सवाल यही उठता है कि जब देश में 90 प्रतिशत लोगों की मासिक आमदनी 25 हजार से कम है, लेबर फोर्स से देश की 54 करोड़ आबादी बाहर है, तो महंगाई के केवल इस कारण को ज्यादा तवज्जो क्यों दी जाए कि जब 'कम सामान और…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में कोरोना के मामलों में 35 फ़ीसदी की बढ़ोतरी, 24 घंटों में दर्ज हुए 3,712 मामले 
    02 Jun 2022
    दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के बाद केरल और महाराष्ट्र में कोरोना ने कहर मचाना शुरू कर दिया है। केरल में ढ़ाई महीने और महाराष्ट्र में क़रीब साढ़े तीन महीने बाद कोरोना के एक हज़ार से ज्यादा मामले सामने…
  • एम. के. भद्रकुमार
    बाइडेन ने यूक्रेन पर अपने नैरेटिव में किया बदलाव
    02 Jun 2022
    एनआईटी ऑप-एड में अमेरिकी राष्ट्रपति के शब्दों का उदास स्वर, उनकी अड़ियल और प्रवृत्तिपूर्ण पिछली टिप्पणियों के ठीक विपरीत है।
  • न्यूजक्लिक रिपोर्ट
    नर्मदा के पानी से कैंसर का ख़तरा, लिवर और किडनी पर गंभीर दुष्प्रभाव: रिपोर्ट
    02 Jun 2022
    नर्मदा का पानी पीने से कैंसर का खतरा, घरेलू कार्यों के लिए भी अयोग्य, जांच रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा, मेधा पाटकर बोलीं- नर्मदा का शुद्धिकरण करोड़ो के फंड से नहीं, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट रोकने से…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License