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दिवालिया कंपनी देवू द्वारा अधिग्रहित ज़मीन को किसानों को वापस करे सरकार : छत्तीसगढ़ किसान सभा
भूमि अधिग्रहण कानून में प्रावधान है कि यदि कोई कंपनी भूमि अधिग्रहण के पांच सालों के अंदर अपना उद्योग लगाने में असफल रहती है, तो अधिग्रहित जमीन मूल खातेदार को लौटा दी जाएगी।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
17 May 2021
दिवालिया कंपनी देवू द्वारा अधिग्रहित ज़मीन को किसानों को वापस करे सरकार : छत्तीसगढ़ किसान सभा

छत्तीसगढ़ की ऊर्जानगरी कोरबा में ढाई दशक पहले एक पावर प्लांट शुरू करने के लिए साउथ कोरिया की कंपनी देवू के लिए 300 एकड़ जमीन अधिग्रहित की गई थी।

लेकिन अब यहाँ के किसान भूमि अधिग्रहण कानून के तहत अपनी जगह वापस मांग रहे हैं। किसानों की आवाज बुलंद करने के लिए उनके साथ छत्तीसगढ़ किसान सभा और कई दूसरे राजनीतिक दल और संगठन भी सरकार पर दबाव बना रहे हैं।

वहीं विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता भी इस मामले को लेकर सक्रिय हो गए हैं, और किसानों को उनकी जमीन वापस दिलाने की मांग कर रहे हैं।

छत्तीसगढ़ किसान सभा ने भूमि अधिग्रहण कानून के प्रावधानों के तहत कोरबा जिले में पावर प्लांट के लिए दक्षिण कोरिया की कंपनी देवू द्वारा अधिग्रहित जमीन को मूल भूस्वामी किसानों को वापस करने की मांग की है। भूमि अधिग्रहण कानून में प्रावधान है कि यदि कोई कंपनी भूमि अधिग्रहण के पांच सालों के अंदर अपना उद्योग लगाने में असफल रहती है, तो अधिग्रहित जमीन मूल खातेदार को लौटा दी जाएगी।
 
छत्तीसगढ़किसान सभा ने अपने जारी एक बयान में कहा है कि अपने आपको दिवालिया घोषित करने के बाद देवू का इस जमीन पर कोई स्वामित्व नहीं रह गया है और जमीन का सीमांकन कराने का उसका आवेदन ही अवैध है।

किसान सभा के राज्य अध्यक्ष संजय पराते का कहना है, “कोरबा जिला प्रशासन को सीमांकन का आदेश हाई कोर्ट से नहीं मिला है, लेकिन देवू के आवेदन के पक्ष में जिला प्रशासन की सक्रियता से यह स्पष्ट है कि वह कॉर्पोरेट कंपनियों के दलाल की तरह काम कर रहा है, जबकि कोरबा जिले में सीमांकन के हजारों प्रकरण सालों से लंबित पड़े हुए हैं।”

माकपा के एक प्रतिनिधिमंडल ने इस क्षेत्र का दौरा किया और प्रभावित ग्रामीणों से बातचीत भी की। इस प्रतिनिधिमंडल में माकपा जिला सचिव प्रशांत झा, किसान सभा के अध्यक्ष जवाहर सिंह कंवर व सीटू नेता एस एन बनर्जी व भुवनेश्वर चंद्रा आदि शामिल थे।

ग्रामीणों ने प्रतिनिधिमंडल को बताया कि जिस जमीन का मुआवजा 27 साल पहले केवल 8.50 करोड़ रुपये दिया गया था, आज उसकी कीमत 850 करोड़ रुपयों से ज्यादा है। प्रशासन द्वारा एक्सीवेटर से जमीन की खुदाई करने से स्पष्ट है कि मामला केवल सीमांकन का नहीं है, इसका मूल मकसद भूमि पर काबिज किसानों को बेदखल करने का है, ताकि दिवालिया कंपनी इस जमीन का उपयोग रियल एस्टेट व्यापार के लिए कर सके। प्रतिनिधिमंडल ने अपनी पड़ताल में पाया कि एक्सीवेटर से खुदाई आज भी जारी है।

किसान सभा के राज्य महासचिव ऋषि गुप्ता ने राज्य सरकार से अपील करते हुए कहा, “आदिवासियों के जल-जंगल-जमीन पर नैसर्गिक अधिकारों की रक्षा के पक्ष में वह आगे आएं और जिस तरह बस्तर के आदिवासियों की टाटा के लिए अधिग्रहित जमीन को वापस किया गया है, कोरबा जिले के इस मामले में भी आदिवासियों को जमीन वापसी की प्रक्रिया को शुरू करनी चाहिए।”

Chhattisgarh
Chhattisgarh Kisan Sabha
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