NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
कोविड-19
भारत
राजनीति
बैठे-ठाले: कोविड-19 के नए वेरिएंट के डेल्टा नाम से ग्रेटर नोएडा वालों को आपत्ति हो सकती है!
जैसे ही भारत में सबसे पहली बार पाए गए वेरिएंट बी.1.617.1 और बी.1.617.2 को भारतीय वेरिएंट कहा गया, हम तिलमिला गए, गुस्सा हो गए और इसको लेकर कड़ी आपत्ति दर्ज की।
मुकुल सरल
03 Jun 2021
बैठे-ठाले: कोविड-19 के नए वेरिएंट के डेल्टा नाम से ग्रेटर नोएडा वालों को आपत्ति हो सकती है!

अब तक हम कोविड-19 को चीनी वायरस कहकर बहुत खुश होते थे। बाद में हमने अन्य वेरिएंट (स्वरूप) को ब्राज़ील वायरस, सिंगापुर वायरस इत्यादि नामों से भी पुकारा। लेकिन जैसे ही भारत में सबसे पहली बार पाए गए वेरिएंट बी.1.617.1 और बी.1.617.2 को भारतीय वेरिएंट कहा गया, हम तिलमिला गए, गुस्सा हो गए और इसको लेकर कड़ी आपत्ति दर्ज की। अपनों से भी और बाहर वालों से भी। हालांकि ये हमारा देशप्रेम या स्वाभिमान नहीं बल्कि दोहरा मापदंड, दोहरा रवैया या कहें कि दोगलापन ही है। दूसरों को गाली देने में भी हमें कतई गुरेज नहीं, लेकिन जहां अपन को किसी ने आप से तुम भी बोला तो लग गए लड़ने-झगड़ने। मरने-मारने।

पूछा जाना चाहिए कि जिन तर्कों के आधार पर हम बी.1.617.1 और बी.1.617.2 को भारतीय वेरिएंट कहने पर आपत्ति जता रहे हैं, वही आपत्ति कोविड-19 को चीनी वायरस कहने पर क्यों नहीं होनी चाहिए!

इसे पढ़ें: फ़ैक्ट चेकः क्या स्वास्थ्य मंत्रालय का दावा कि B.1.617 भारतीय वैरियेंट नहीं है, सही है?

आप कहेंगे बड़ा आया चीन का तरफ़दार। लेकिन सवाल चीन या ब्राजील का नहीं बल्कि सोच और रवैये का है। ज़िम्मेदारी का भी। हमने तो अब ब्लैक फंगस को लेकर भी नस्लभेदी और रंगभेदी मज़ाक करने शुरू कर दिए हैं।

सवाल ये भी है कि अगर हम कोरोना के लिए अब तक चीन को दोष दे रहे हैं तो फिर हैजा, प्लेग, चिकनपॉक्स, इंफ्लूएंजा के लिए किसे दोष दें। बीमारियां कहीं से भी शुरू हो सकती हैं। सवाल है उनसे सही ढंग से निपटने का। देखिए इतिहास

आपको मालूम है कि हैजा (कॉलरा) की शुरुआत भारत से हुई। साल 1910-1911 में इसने 8 लाख से अधिक लोगों की जान ली। इसकी चपेट में मध्य पूर्व, उत्तरी अफ्रीका, पूर्वी यूरोप और रूस भी आए। हैजा अक्सर संक्रमित खाने या पीने के पानी से फैलता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़, हैजा की बीमारी कम से कम सात बार महामारी का रूप ले कर इंसानों पर क़हर बरपा चुकी है, जिसमें लाखों लोगों की जान गई। विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि विकासशील देशों में आज भी कॉलेरा यानी हैजा की वजह से हर साल एक लाख से लेकर, एक लाख चालीस हज़ार लोगों की जान जाती है।

प्लेग या ब्लैक डेथ : साल 1346 से 1353 के दौरान यूरोप में प्लेग महामारी फैली और इसने अफ्रीका और एशिया में भी कहर मचाया। इसके बाद इसके कई दौर आए। बताया जाता है कि इससे दुनिया भर में करीब 20 करोड़ लोग मारे गए।

इसी तरह एक समय चेचक या chicken pox ने कहर मचाया था। बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक प्लेग की ही तरह चेचक की महामारी भी करोड़ों लोगों को मार चुकी है। अकेले बीसवीं सदी में ही इस बीमारी से 20 करोड़ से ज़्यादा लोगों की मौत होने का अंदाज़ा लगाया जाता है।

इन्फ्लुएंज़ा: यह हर मौसम में आने वाली चुनौती है। बीबीसी की रिपोर्ट बताती है कि तमाम महामारियों का दौर, 1800 के साल से 2010 तक चला। 1918 में फैली फ्लू की महामारी को कई बार स्पेनिश फ्लू भी कहा जाता है। ये मानवता के हालिया इतिहास की सबसे भयंकर महामारी थी। जिसमें एक अनुमान के मुताबिक़ पांच से दस करोड़ लोगों की मौत हुई थी।

भारत में जब हमें कोविड का पता चला तो हमने इस पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से बात करने की बजाय इसे बाहरी दुश्मन के तौर पर चीन और अपने देश के भीतर मुसलमानों के ख़िलाफ़ एक मौके और हथियार की तरह प्रयोग किया। ये एक तरह से अपनी ग़लतियों और नाकामियों से बरी होने या मुंह छुपाने का तरीका था। जिसे हमारी सरकार ने बखूबी इस्तेमाल किया। आज भी तमाम देश दूसरी-तीसरी लहर को संभालने में नाकाम और वैक्सीनेशन में पिछड़ने पर फिर चीन-चीन का राग अलाप रहे हैं। एक बार फिर कोरोना वायरस को वुहान की लैब में बनाया गया जैसी कॉन्सपिरेसी थ्योरी दोहराई जाने लगी है। 

पहली लहर में हमने इसे बड़ी आसानी से तबलीग़ी जमात तक से जोड़ दिया और जमातियों को ‘कोरोना बम’ तक कहा। ‘वो छुप गए’, ‘वो भाग गए’, ‘वो पकड़े गए’ ऐसी ही हमारी शब्दावली थीं। अपने घरों को लौट रहे प्रवासी मज़दूरों के लिए भी ऐसे ही शब्दों का प्रयोग किया गया। उन्हें कोरोना कैरियर कहा गया। खाए-पिए अघाये हमारे हिंदू मिडिल क्लास ने ही नहीं बल्कि हमारे मीडिया और नेताओं-मंत्रियों तक ने। अब जब दूसरी लहर में हमारे घर-घर में कोरोना पहुंच गया तो हम चुपचाप बिना को कुछ बताए घरों में बैठ गए। लेकिन हम न छिपे कहे गए, न कुछ छिपाना कहा गया। न पकड़े गए, न पीटे गए। न केमिकल में नहलाए गए। हालांकि हालात गंभीर होने पर इस मिडिल क्लास ने भी देखा कि उसकी कैसी दुर्दशा हुई, कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई। ज़रूरत होने पर अस्पतालों में बेड तक न मिला, सांसें बचाने को ऑक्सीजन तक न मिली।

ख़ैर जान लीजिए कि अब कोविड-19 के भारत में पाए गए दो स्वरूपों को नए नाम दिए गए हैं ‘डेल्टा’ और ‘कप्पा’। वेरिएंट बी.1.617.1 को कप्पा और बी.1.617.2 को डेल्टा नाम से पुकारा जाएगा।

पीटीआई की ख़बर के अनुसार दरअसल विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कोरोना वायरस के विभिन्न स्वरूपों की नामावली की नई व्यवस्था की घोषणा की है जिसके तहत वायरस के विभिन्न स्वरूपों की पहचान और नामकरण के लिए ग्रीक (यूनानी) अक्षरों का सहारा लिया है।

डब्ल्यूएचओ की कोविड-19 तकनीकी मामलों की प्रमुख डॉ. मारिया वान केरखोव ने सोमवार को ट्वीट किया, 'विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना वायरस के स्वरूपों के आसानी से पहचाने जाने के लिए उनका नया नामकरण किया है। इनके वैज्ञानिक नामों में कोई बदलाव नहीं होगा। हालांकि, इसका उद्देश्य आम बहस के दौरान इनकी आसानी से पहचान करना है।'

संगठन ने एक बयान में कहा कि डब्ल्यूएचओ द्वारा निर्धारित एक विशेषज्ञ समूह ने वायरस के स्वरूपों को सामान्य बातचीत के दौरान आसानी से समझने के लिए अल्फा, गामा, बीटा जैसे यूनानी शब्दों का उपयोग करने की सिफ़ारिश की ताकि आम लोगों को भी इनके बारे में होने वाली चर्चा को समझने में दिक्कत न हो।

अब अगर मैं कुछ व्यंग्य में बात करुं और कुछ हास्य में भी और आप से पूछूं कि बताइए इन नामों पर ग्रेटर नोएडा के लोगों को क्यों न आपत्ति करनी चाहिए? तो आप क्या कहेंगे!

आपको मालूम है कि उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर ज़िले के नए शहर ग्रेटर नोएडा में सेक्टरों के नाम अल्फा, बीटा, गामा, डेल्टा, पाई, जीटा, थीटा इत्यादि हैं। ग्रेटर नोएडा को बसाने और नामकरण में पूरे गणित और विज्ञान का इस्तेमाल किया गया है। और सुना है कि हरियाणा के गुरुग्राम में भी डेल्टा टॉवर है। इसके अलावा भी देश में डेल्टा नाम से कई इमारतें हैं।

अब अगर इस नाम से यहां रहने वालों-काम करने वालों की भावनाएं आहत हो जाएं तो...!

COVID-19
Coronavirus
Delta
greater noida
WHO
Black fungus

Related Stories

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 84 दिन बाद 4 हज़ार से ज़्यादा नए मामले दर्ज 

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना के मामलों में 35 फ़ीसदी की बढ़ोतरी, 24 घंटों में दर्ज हुए 3,712 मामले 

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में 2,745 नए मामले, 6 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में नए मामलों में करीब 16 फ़ीसदी की गिरावट

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में कोरोना के 2,706 नए मामले, 25 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 2,685 नए मामले दर्ज

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 2,710 नए मामले, 14 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: केरल, महाराष्ट्र और दिल्ली में फिर से बढ़ रहा कोरोना का ख़तरा


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    बिहार : गेहूं की धीमी सरकारी ख़रीद से किसान परेशान, कम क़ीमत में बिचौलियों को बेचने पर मजबूर
    30 Apr 2022
    मुज़फ़्फ़रपुर में सरकारी केंद्रों पर गेहूं ख़रीद शुरू हुए दस दिन होने को हैं लेकिन अब तक सिर्फ़ चार किसानों से ही उपज की ख़रीद हुई है। ऐसे में बिचौलिये किसानों की मजबूरी का फ़ायदा उठा रहे है।
  • श्रुति एमडी
    तमिलनाडु: ग्राम सभाओं को अब साल में 6 बार करनी होंगी बैठकें, कार्यकर्ताओं ने की जागरूकता की मांग 
    30 Apr 2022
    प्रदेश के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने 22 अप्रैल 2022 को विधानसभा में घोषणा की कि ग्रामसभाओं की बैठक गणतंत्र दिवस, श्रम दिवस, स्वतंत्रता दिवस और गांधी जयंती के अलावा, विश्व जल दिवस और स्थानीय शासन…
  • समीना खान
    लखनऊ: महंगाई और बेरोज़गारी से ईद का रंग फीका, बाज़ार में भीड़ लेकिन ख़रीदारी कम
    30 Apr 2022
    बेरोज़गारी से लोगों की आर्थिक स्थिति काफी कमज़ोर हुई है। ऐसे में ज़्यादातर लोग चाहते हैं कि ईद के मौक़े से कम से कम वे अपने बच्चों को कम कीमत का ही सही नया कपड़ा दिला सकें और खाने पीने की चीज़ ख़रीद…
  • अजय कुमार
    पाम ऑयल पर प्रतिबंध की वजह से महंगाई का बवंडर आने वाला है
    30 Apr 2022
    पाम ऑयल की क़ीमतें आसमान छू रही हैं। मार्च 2021 में ब्रांडेड पाम ऑयल की क़ीमत 14 हजार इंडोनेशियन रुपये प्रति लीटर पाम ऑयल से क़ीमतें बढ़कर मार्च 2022 में 22 हजार रुपये प्रति लीटर पर पहुंच गईं।
  • रौनक छाबड़ा
    LIC के कर्मचारी 4 मई को एलआईसी-आईपीओ के ख़िलाफ़ करेंगे विरोध प्रदर्शन, बंद रखेंगे 2 घंटे काम
    30 Apr 2022
    कर्मचारियों के संगठन ने एलआईसी के मूल्य को कम करने पर भी चिंता ज़ाहिर की। उनके मुताबिक़ यह एलआईसी के पॉलिसी धारकों और देश के नागरिकों के भरोसे का गंभीर उल्लंघन है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License