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भारत
राजनीति
मुज़फ़्फरपुर: एक स्मार्ट सिटी की ज़मीनी हक़ीक़त
मुज़फ़्फ़रपुर में मूलभूत आवश्यक सुविधाओं का अभाव है। शहर भर में कचरे का ढेर आम तौर पर देखा जा सकता है।
सौरव कुमार
15 Jan 2020
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2014 के आम चुनावों से पहले भारतीय जनता पार्टी की घोषणा में 'स्मार्ट सिटी' परियोजना काफी महत्वपूर्ण थी। इस वादे के अनुसार बिहार में पटना, बिहारशरीफ, भागलपुर और मुज़फ़्फ़रपुर को स्मार्ट सिटी बनना था। उत्तर बिहार की आर्थिक राजधानी कहे जाने वाले मुज़फ़्फ़रपुर में कुछ ही तत्व हैं जो 'स्मार्ट सिटी' में शामिल हैं। जल आपूर्ति, स्वच्छता, जल निकासी, सड़क और परिवहन की स्थितियां बदतर बनी हुई हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'सिटी चैलेंज प्रतियोगिता’ के बाद 100 स्मार्ट शहरों की सूची जारी की थी। उन्नत प्रौद्योगिकी के साथ शहरीकरण को बढ़ावा देने के उद्देश्य साथ यह विचार संभवतः 'स्मार्ट सिटीज इन चाइना' और 2008 में आईबीएम द्वारा से शुरू किए गए 'स्मार्टर प्लैनेट' से प्रारंभ हुई हैं। बिहार का मुज़फ़्फ़रपुर इस सूची का हिस्सा बनने के योग्य था लेकिन शहरी विकास मंत्रालय और मुज़फ़्फ़रपुर नगर निगम के अधिकारियों के बीच विवादों और आरोप प्रत्यारोप से घिरा रहा है।

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 'स्मार्ट सिटी' एक शहरी क्षेत्र है जो समग्र बुनियादी ढांचे अर्थात स्थायी अचल संपत्ति, संचार और बाजार की व्यवहार्यता के मामले में अत्यधिक उन्नत है। यह एक ऐसा शहर है जहां सूचना प्रौद्योगिकी प्रमुख बुनियादी ढांचा है और यहां के लोगों को आवश्यक सेवाएं प्रदान करने का आधार है।

लेकिन मुज़फ़्फ़रपुर में बुनियादी सुविधाओं का भी अभाव है। शहर भर में कचरे के ढेर को आमतौर पर देखा जा सकता है। सरकारी बस स्टैंड में न तो पीने का पानी है और न ही शौचालय की सुविधा है। जलभराव आम घटना है जो बारिश के मौसम में हमेशा होती है।

इस बस स्टैंड पेयजल की सुविधा नहीं है। प्लास्टिक का कचरा जगह-जगह पड़ा रहता है। यात्रियों को सार्वजनिक पेशाब घर से निकलने वाली बदबू भी झेलनी पड़ती है। शहरी विकास मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार दिसंबर महीने में इस बस स्टैंड का निर्माण शुरू होना था लेकिन धरातल पर कुछ भी नहीं बदला है।

शहर के छह वार्डों में कोई सफाईकर्मी नहीं हैं। इन्हें नगर निगम द्वारा भर्ती किया जाना था। यहां तक कि नगर निगम कार्यालय से 100 मीटर की दूरी पर कचरा के साथ नाले के पानी को सड़क पर बहता हुआ देखा जा सकता है। ये सड़क शहर के रेलवे स्टेशन से जोड़ता है।

4 जनवरी से शुरू होने वाले वार्षिक शहरी स्वच्छता सर्वेक्षण का पांचवां संस्करण 'स्वच्छ सर्वेक्षण' 4 जनवरी से शुरू होना था जिसे 31 दिसंबर 2019 को आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा लॉन्च किया गया था और यह 31 जनवरी 2020 को समाप्त होगा।

स्वच्छ सर्वेक्षण 2020 के तहत शहरों को कुल 6000 अंकों में स्थान दिया जाएगा जबकि स्वच्छ सर्वेक्षण 2019 में 5000 अंकों में शहरों को स्थान दिया गया था। यह डेटा पांच अलग-अलग स्रोतों से एकत्र किया जाएगा जैसे कि लोगों की प्रतिक्रिया, प्रत्यक्ष अवलोकन, सेवा स्तर की प्रगति, कचरे और खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) के लिए प्रमाणन, ओडीएफ प्लस और ओडीएफ प्लस प्लस शहर और स्वच्छ सर्वेक्षण (एसएस) लीग 2020 का औसत स्कोर। पहली और दूसरी तिमाही के मूल्यांकन अर्थात Q1 और Q2 में 353 शहरों में मुज़फ़्फ़रपुर 179 वें स्थान पर था।

नगर निगम के अधीन चालीस सड़कों को चौड़ा किया जाना था। इस विभाग ने निर्माण कार्य को करने के लिए एक विस्तृत सर्वेक्षण किया था। निगम और इस विभाग के अधीन आने वाली सभी सड़कों को राष्ट्रीय राजमार्गों से जोड़ा जाएगा।

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नाम न छापने की शर्त पर न्यूज़क्लिक से बात करते हुए मुज़फ़्फ़रपुर नगर निगम के एक अधिकारी ने कहा कि सभी 49 नगरपालिका वार्डों में 31 सड़कों को जोड़ने और उन्हें चौड़ा करने की जिम्मेदारी दी गई थी। ज़िला प्रशासन को सभी सड़कों को अतिक्रमण मुक्त करने के लिए कहा गया था। राज्य सरकार ने सभी बिजली के खंभे, ट्रांसफार्मर को हटाने और बिजली की आपूर्ति की भूमिगत केबल बिछाने का काम करने के लिए एस्सेल विद्युत विटारण प्राइवेट लिमिटेड के साथ करार किया है। नगर निगम ने हजारों की संख्या में एलईडी लाइट की मदद से शहर को रोशन करने के लिए इसी तरह का समझौता किया है। एस्सेल 2013 से मुज़फ़्फ़रपुर शहर में बिजली वितरक तौर पर काम कर रही है। इसके साथ उस पर नेटवर्क संचालन, रखरखाव और नेटवर्क क्षमता को बेहतर बनाने की ज़िम्मेदारी शामिल है।

शहरी विकास मंत्रालय के दावों के अनुसार, शहर में जलभराव की समस्या से निपटने के लिए राज्य सरकार ने भूमि अधिग्रहण करके बेला, खबड़ा और मनिका क्षेत्रों में तीन बड़े कुंड (संप हाउस) बनाने का भी निर्णय लिया है।

पिछली रिपोर्टों के अनुसार, आम्रपाली सभागार, जुब्बा सहनी पार्क का सौंदर्यीकरण और पांच बस स्टॉपओवर का निर्माण भी इस योजना का हिस्सा था। हालांकि मुज़फ़्फ़रपुर नगर निगम के अधिकारियों की शहरी विकास मंत्रालय के साथ ठनी हुई है। कुछ महीने पहले शहरी विकास मंत्री का शहरी प्रशासन के ख़िलाफ़ खुले तौर पर किए गए हमले से यह बहुत स्पष्ट था। उन्होंने खुले तौर पर कहा था कि सख्ती नहीं होने के चलते 'स्मार्ट सिटी' की प्रगति धीमी रफ्तार से हो रही थी। स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत योजनाओं का निष्पादन तेज हो सकता था। इसे जांचने के लिए न्यूज़क्लिक ने राज्य के शहरी विकास मंत्री से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।

उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, राज्य सरकार ने पटना के पुनर्विकास के लिए 2,500 करोड़ रुपये से अधिक और मुज़फ़्फ़रपुर के लिए 1,500 करोड़ रुपये से अधिक के निवेश का विचार किया था। जबकि शहरों को स्मार्ट सिटी के रूप में विकास के लिए सरकार से 1,000 करोड़ रुपये का अनुदान मिलेगा बाकी ख़र्च संबंधित नगर निगमों या निजी निवेशकों के आंतरिक संसाधनों से सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) मॉडल में किया जाएगा।

'स्मार्ट सिटीज़' की वेबसाइट पर जारी किए गए दस्तावेज़ों के अनुसार स्मार्ट सिटी के मुख्य बुनियादी ढांचे में पर्याप्त जल की आपूर्ति, समुचित बिजली की आपूर्ति, स्वच्छता, जिसमें ठोस कचरा प्रबंधन, कुशल शहरी गतिशीलता और सार्वजनिक परिवहन, सशक्त आईटी कनेक्टिविटी और डिजिटलीकरण और ग़रीबों के लिए किफायती आवास शामिल हैं। लेकिन उत्तर बिहार की आर्थिक राजधानी के विकास को देखते हुए 'स्मार्ट सिटी' का विचार दूर की कौड़ी जैसा लगता है।

स्वच्छ सर्वेक्षण 2020 के सर्वेक्षण को देखते हुए मुज़फ़्फ़रपुर निगम के अधिकारी शहर की वृद्धि और सरकार को प्रभावित करने के लिए सक्रिय दिखते हैं लेकिन बुनियादी सुविधाओं का अभाव अब छिपी हुई बात नहीं है। विडंबना यह है कि बिहार के शहरी विकास मंत्री और बीजेपी नेता के गृह क्षेत्र में स्मार्ट सिटी परियोजना विफल हो रही है क्योंकि कचरा बिखरा हुआ है और जलजमाव की स्थिति है, पानी का रिसाव बिहार के गवर्नांस की वास्तविकता है।


मूल रूप से अंग्रेजी में लिखी गई ख़बर आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं।

Ground Reality of a Smart City: Muzaffarpur

Bihar Muzaffarpur BJP Smart Cities Waterlogging Swachh Survekshan 2020 Narendra Modi

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