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ग्राउंड रिपोर्टः आज़मगढ़ में दलित चिकित्सक को गिरफ़्तार करने के लिए ख़ाकी ने फिर गढ़ी फ़र्ज़ी कहानी!
आज़मगढ़ में ज़ुल्म-ज़्यादती का पहाड़ तोड़ने के लिए बदनाम रही पुलिस ने डॉ. शिवकुमार को फकत इस बात पर गिरफ्तार किया कि दलित होकर उन्होंने करणी सेना के कृत्यों पर प्रतिक्रिया स्वरूप टिप्पणी कैसे कर दी। आज़मगढ़ जिले में करणी सेना की कमान बसहिया गांव के बीरू सिंह के हाथ में है। उनका एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसमें वह लोगों को धमकाते नजर आ रहे हैं।
विजय विनीत
12 Oct 2021
AZAMGARH POLICE

उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ में जीयनपुर के उप-जिलाधिकारी कोर्ट परिसर में दलित चिकित्सक डॉ. शिवकुमार पुलिस की घेराबंदी में गुमसुम उदास बैठे थे। आसपास थे उनके कुछ साथी जो उन्हें संबल देने की कोशिश कर रहे थे। सभी के चहरों पर हवाइयां उड़ रही थीं। डॉ. शिवकुमार की डबडबाई आंखें पुलिसिया जुल्म-ज्यादती की कहानी सुना रही थीं। शाम के वक्त जीयनपुर के उप जिलाधिकारी कोर्ट में पेश करने के लिए थाने की पुलिस उन्हें लेकर पहुंची थी। 10 अक्टूबर को उन्हें उस समय गिरफ्तार किया गया था जब वह अपने दंत क्लीनिक में मरीजों का उपचार कर रहे थे। इनका गुनाह सिर्फ इतना था कि वह जनवादी विचारधारा में भरोसा रखने वाले पढ़े-लिखे दलित हैं।

पुलिसिया उत्पीड़न की यह कहानी उत्तर प्रदेश के उसी आज़मगढ़ जिले की है जहां जुलाई 2021 के पहले हफ्ते में पुलिस अधीक्षक सुधीर कुमार सिंह ने भारी पुलिस फोर्स लगाकर पलिया और गोधौरा गांव में तमाम दलितों के घर ढहवा दिए थे। इस दौरान दलित महिलाओं के साथ बदसलूकी और उनके घरों में जमकर लूटपाट कराई थी। फिर भी यूपी की सरकार खामोश बैठी रही। दलित उत्पीड़न का ताजा मामला जीयनपुर थाना क्षेत्र के भटौली इब्राहिमपुर का है। इसी इलाके के लाटघाट कस्बे में डॉ. शिवकुमार की एक छोटी सी क्लीनिक है। रोज की तरह इनकी क्लीनिक में मरीजों की भीड़ जमा थी। तभी जीयनपुर थाने की पुलिस जीप वहां पहुंची और पूछताछ के बहाने जबरिया अपने साथ ले गई। थाने में कोई पूछताछ तो हुई नहीं, लेकिन जीयनपुर थाना पुलिस ने शांतिभंग के आरोप में डॉ. शिवकुमार की गिरफ्तारी दिखा दी। यह वाक्या 10 अक्टूबर का है। 11 अक्टूबर की शाम इन्हें एसडीएम कोर्ट में पेश किया गया।  

आज़मगढ़ में जुल्म-ज्यादती का पहाड़ तोड़ने के लिए बदनाम रही पुलिस ने डॉ. शिवकुमार को फकत इस बात पर गिरफ्तार किया कि दलित होकर इन्होंने करणी सेना के कृत्यों पर प्रतिक्रिया स्वरूप टिप्पणी कैसे कर दी। आज़मगढ़ जिले में करणी सेना की कमान बसहिया गांव के बीरू सिंह के हाथ में है। उनका एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसमें वह लोगों को धमकाते नजर आ रहे हैं। बीरू सिंह अपने भाषण में कह रहे हैं, “जो हमारी तरफ आंख उठाएगा, उसकी आंख निकाल देंगे और जो हाथ दिखाएगा उसका हाथ काट लेंगे। क्रांति पसंद वाले लोग हमारे साथ आए और शांति पसंद वाले हरिद्वार चले जाएं।”

करणी सेना का नेता बीरू सिंह

आज़मगढ़ के भटौली इब्राहिमपुर निवासी विपिन सिंह एक व्हाट्सएप ग्रुप चलाते हैं, जिसका नाम रखा है ‘खबरनामा’। इसी ग्रुप के एक मेंबर ने करणी सेना के जिला प्रमुख बीरू सिंह का भड़काऊ भाषण पोस्ट किया था। ‘खबरनामा’ ग्रुप के एडमिन ने दलित चिकित्सक डॉ. शिवकुमार को भी मेंबर बना रखा था। इस दलित चिकित्सक की मुश्किलें तब बढ़ गईं जब उन्होंने यह कमेंट लिख दिया, “जो लोग मुगलों और अंग्रेजों की चाटुकारिता करते थे, वो लोग अपने वीरता का इतिहास बता रहे हैं।”

फ़र्ज़ी कहानी और इल्ज़ाम

दलित चिकित्सक डॉ. शिवकुमार की जमानत कराने एसडीएम कोर्ट परिसर में पहुंचे सीपीआई-एमएल (भाकपा-माले) की उत्तर प्रदेश कमेटी के सदस्य ओमप्रकाश सिंह कहते हैं,  “करणी सेना से जुड़े हिमांशु सिंह, संटू सिंह, अंकित सिंह ने पुलिस अधीक्षक सुधीर कुमार सिंह से मिलकर दलित चिकित्सक के खिलाफ लिखित शिकायत की, जिसके आधार पर पुलिस उन्हें उठाकर थाने ले आई। बाद में उनके सिर पर शांतिभंग करने का फर्जी इल्जाम मढ़ दिया और उनकी गिरफ्तारी दिखा दी। डॉ. शिवकुमार जीयनपुर इलाके के मानिंद व्यक्ति हैं। एसपी के निर्देश पर जीयनपुर थाना पुलिस ने इनकी सामाजिक साख सिर्फ इसलिए चिंदी-चिंदी कर दी, क्योंकि वह दलित हैं।”

ओमप्रकाश कहते हैं, “देश और संविधान के खिलाफ भड़काऊ भाषण देने और जातियों को भड़काने वाले करणी सेना के लोगों के खिलाफ एक्शन लेने के बजाए पुलिस ने दलित को निशाना बनाया। पुलिस अधीक्षक सुधीर सिंह के दबाव में थाना पुलिस ने फर्जी रिपोर्ट लिखी और गलत ढंग से एक्शन लिया। सोशल मीडिया पर भड़काऊ टिप्पणी करने पर अगर डॉ. शिवकुमार जिम्मेदार थे तो राष्ट्र की नीतियों के खिलाफ भड़काऊ भाषण देने वाले गुनहगारों के खिलाफ पुलिस ने एक्शन क्यों नहीं लिया? पुलिस की इस शर्मनाक करतूत को देखते हुए लगता है कि यूपी में गुंडाराज अब बेलगाम पुलिस राज में बदल गया है। करणी सेना घोर दक्षिणपंथी अवैध संगठन है। इसे आरएसएस और बीजेपी का समर्थन है। यूपी में दक्षिणपंथी संगठनों को गुंडागर्दी करने का लाइसेंस मिला हुआ है। बुलंदशहर में इंस्पेक्टर सुबोध सिंह की हत्या करने वालों को इन्हीं हिंदूवादी संगठनों और बीजेपी नेताओं ने सम्मानित किया था। पुलिस के संरक्षण में करणी सेना को आज़मगढ़ जिले में कुछ भी करने और कुछ भी कहने की छूट मिली हुई है। सरेआम लोगों को धमकाने का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, लेकिन पुलिस कार्रवाई करने के बाजाए निर्दोष लोगों के खिलाफ एक्शन ले रही है।”

पत्रकारों को धमका रहे एसपी

लाटघाट के जाने-माने चिकित्सक डॉ. शिवकुमार के खिलाफ धारा 151, 107/116 के तहत कार्रवाई की गई है, जबकि दूसरा पक्ष पुलिस के रोजनामचे से गायब है। जीयनपुर थाने की पुलिस ने 11 अक्टूबर की शाम करीब 5.15 बजे डॉ. शिवकुमार को उप जिलाधिकारी गौरव कुमार के न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जमानत मिल गई।

ज़मानत पर रिहा हुए डॉ. शिवकुमार आपबीती बताते हुए

बाद में डॉ. शिवकुमार ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहा, “फर्जी गिरफ्तारी से हमारी सामाजिक प्रतिष्ठा धूमिल हुई है। पुलिस ने हमारी इमेज पर ऐसा बट्टा लगा दिया, जिसे कभी नहीं मिटाया जा सकता है।” 

इस सिलसिले में पुलिस अधीक्षक सुधीर कुमार सिंह का पक्ष जानने के लिए एक पत्रकार ने उन्हें फोन किया तो उन्होंने धमकाते हुए कहा, “हम पूछताछ के लिए किसी को पकड़ सकते हैं। हम कहते हैं तुम फोन रखो।” आज़मगढ़ एसपी की यह धमकी भी अब सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है।

प्रियंका पर अश्लील टिप्पणी, पर कार्रवाई नहीं

आज़मगढ़ में कांग्रेस के जिलाध्यक्ष प्रवीण कुमार सिंह भी पुलिस अधीक्षक सुधीर कुमार सिंह की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगाते हैं। वह बताते हैं, “फेसबुक पर कृष्ण कन्हैया हिन्दू नाम से बनाई गई एक आईडी पर कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी के खिलाफ निहायत अभद्र और अश्लील टिप्पणी करने की शिकायत आज़मगढ़ के डीआईजी से की गई। डीआईजी ने इस मामले में त्वरित कार्रवाई करने का निर्देश भी जारी किया, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।

इस मामले में जिला कांग्रेस के आईटी सेल के प्रभारी अभिषेक तिवारी ने आज़मगढ़ के प्रभारी निरीक्षण (साइबर सेल) को दिया, लेकिन पुलिस ने इनकी तहरीर को संज्ञान में लिया ही ही नहीं। अश्लील टिप्पणी करने वाले कथित कृष्ण कन्हैया हिन्दू के खिलाफ एक्शन लेने में पुलिस के हाथ क्यों कांप रहे हैं, यह बताने वाला कोई नहीं है।”

प्रवीन सिंह कहते हैं, “कांग्रेस नेत्री प्रियंका गांधी के खिलाफ अश्लील टिप्पणी करने वालों के खिलाफ आज़मगढ़ पुलिस एक्शन नहीं लेगी तो दमन के खिलाफ पार्टी आंदोलन छेड़ेगी।”

“भाजपा की इमेज धो रहे एसपी-डीएम”

आज़मगढ़ पुलिस की अराजकता पलिया और गोधौरा कांड में दलितों के घर लूटपाट के साथ उनके घर ढहाए जाने के बाद ही जगजाहिर हो गया था। दोनों मामलों के तूल पकड़ने के बावजूद पुलिस का रवैया जस का तस है। आज़मगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष द्विवेदी कहते हैं, “यहां पुलिस इसलिए अराजक है, क्योंकि भाजपा के पास जिले में कोई कद्दावर नेता नहीं है। गुंडाराज की तरह वह किसी को, कभी भी उठा सकती है। एसपी और डीएम दोनों की कार्यशैली एक जैसी है। दोनों भाजपा की इमेज धूमिल कर हैं। विपक्ष को मुद्दे दे रहे हैं और भाजपा के विरोधी दलों को खड़ा होने के लिए आसान गलियारा दे रहे हैं।

अराजकता का आलम यह है कि वह बिना वारंट के किसी को कभी भी उठा सकती है और किसी का घर ढहा सकती है। पुलिस के निशान पर अगर कोई दलित आता है तो बच नहीं पाता। कार्रवाई जरूर होती है। देश और संविधान के विरुद्ध दूसरी जातियों को धमकाने वालों के सिर पर पुलिस का हाथ है, क्योंकि अफसरों की रहनुमाई में तमाम अवांछनीय तत्व पनाह पा रहे हैं। प्रियंका गांधी पर अश्लील टिप्पणी करने वालों के खिलाफ कार्रवाई न होना और निर्दोष दलित चिकित्सक डॉ. शिवकुमार को फर्जी मामले में गिरफ्तार किया जाना पुलिस के गुंडाराज को तस्दीक करता है।”

पत्रकार आशुतोष द्विवेदी पुलिसिया उत्पीड़न की तमाम किस्से सुनाते हैं। बताते हैं, “गंगापुर थाना क्षेत्र में बीते दिनों नाली को लेकर विवाद खड़ा हुआ तो वहां पहुंचे एसपी ने एक पक्ष के लोगों का घर ढहवा दिया। मीडिया कर्मियों ने पुलिसिया उत्पीड़न की वीडियोग्राफी की तो एसपी ने पत्रकारों के साथ बदसलूकी की। बंधक बनाते हुए सभी के मोबाइल तब्त कर लिए। काफी जद्दोजहद के बाद बंधक बनाए गए पत्रकारों की रिहाई हो सकी। इसी तरह पवई में जहरीली शराब कांड हुआ तो वहां भी तमाम आरोपितों के घरों पर बुल्डोजर चलवा दिया। कानून की किताब में कोई ऐसी धारा नहीं है कि पुलिस किसी का घर ढहा दे। कानून में तो सिर्फ किसी के घर की कुर्की और नीलामी का प्रावधान है, घर ढहाने का नहीं। अपराध साबित हुए बगैर किसी सूचना के किसी का घर ढहाया जाना पुलिस की गुंडागर्दी नहीं तो और क्या है?”

आज़मगढ़ में सिर्फ सवर्ण थानेदार!

आम लोगों का कहना है कि आज़मगढ़ में पुलिस राज, इसलिए गुंडाराज में बदलता जा रहा है क्योंकि यहां ज्यादातर थानों पर एक ही जाति के थानेदार तैनात हैं। जिस सवर्ण जाति (ठाकुर) से एसपी सुधीर कुमार सिंह आते हैं उसी जाति के 13 दरोगाओं को सिधारी, रानी की सराय, मुबारकपुर, गंभीरपुर, तरवां, मेहनाजपुरस, देवगांव, अतरौलिया, बिलरियागंज, पवई, अहिरौला, सरायमीरपुर और दीदारगंज का थानाध्यक्ष बनाया गया है। जिले में 24 सामान्य और एक महिला थाना है। तेरह ठाकुर थानेदारों के अलावा छह थानों पर ब्राह्मणों की तैनाती की गई है। ये थाने हैं जहानागंज, मेहनगर, बरदह, रौनापार, फूलपुर और निजामाबाद। सिर्फ चार थानों पर एक-एक भूमिहार, यादव, मुस्लिम और वैश्य जाति के थानेदार तैनात हैं। जीयनपुर थाने को छोड़कर कहीं भी पिछड़ी जाति के थानेदार नहीं है। दलितों पर जुल्म और ज्यादतियां भी इसीलिए बढ़ रही हैं क्योंकि किसी थाने की कमान दलित थानेदार के पास है ही नहीं।

चर्चित रहे हैं एसपी सुधीर कुमार

आज़मगढ़ के मौजूदा एसपी सुधीर कुमार सिंह तभी से चर्चा में हैं जब वह गाजियाबाद में एसएसपी पद पर तैनात थे। उस समय गौतमबुद्ध नगर के एसएसपी वैभव कृष्ण की ओर से सुधीर कुमार सिंह समेत पांच आईपीएस अफसरों पर लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोप की गोपनीय रिपोर्ट वायरल हो गई थी। बाद में योगी सरकार ने सुधीर कुमार सिंह का तबादला आगरा में पीएसी की 15वीं वाहिनी में कर दिया था। इनकी जगह 2010 बैच के आईपीएस कलानिधि नैथानी को गाजियाबाद का एसएसपी बनाया गया था। करीब महीने तक गाजियाबाद में एसएसपी रहे सुधीर कुमार सिंह का कार्यकाल काफी विवादों में रहा। इस दौरान उन पर कई तरह के आरोप लगे।

साल 2020 में 10 जनवरी को नवभारत टाइम्स ने पुलिस कप्तान सुधीर कुमार सिंह की कार्यप्रणाली पर विस्तार से रिपोर्ट छापी है। अखबार के पोर्टल पर मौजूद रिपोर्ट कहती है, “रेस्तरां और मिठाई कारोबारियों ने गाजियाबाद पुलिस पर शॉप्स और रेस्तरां से फ्री में मिठाई और अन्य सामान लेने का आरोप लगाया था। इस मामले में व्यापारी नेता अनिल गुप्ता की तरफ से एक वीडियो वायरल किया गया था। एसएसपी सुधीर कुमार सिंह ने इस प्रकरण की जांच की बात तो की थी, लेकिन न कोई जांच हुई और न ही किसी पुलिसकर्मी पर कार्रवाई की गई। सुधीर कुमार सिंह के एसएसपी के कार्यकाल में उनके पीआरओ पंकज कुमार ने तीन थानों के प्रभारियों की तैनाती गलत तरीके से करने के आरोप लगाए थे।”

नवभारत टाइम्स के पोर्टल पर इस बात का भी ब्योरा है कि गाजियाबाद के तत्कालीन एसएसपी सुधीर कुमार सिंह के पीआरओ ने खुलेआम आरोप लगाया था कि सिहानी गेट, कोतवाली और ट्रॉनिका सिटी थाने के प्रभारियों की तैनाती मापदंडों को नजरंदाज कर सेटिंग से की गई। पीआरओ का यह मेसेज एक व्हाट्सएप ग्रुप पर वायरल हो गया था, जो पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय रहा। हालांकि बाद में पीआरओ को पद से हटाकर दूसरे जिले में भेज दिया गया। सुधीर कुमार सिंह के गाजियाबाद के कार्यकाल में ही लिंक रोड थाना प्रभारी लक्ष्मी चौहान पर 70 लाख रुपये के  गबन के आरोप लगे। बाद में सात पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर उनके खिलाफ रपट दर्ज कराई गई। इसके कुछ दिन के बाद ही इंदिरापुरम थाना प्रभारी दीपक शर्मा पर सटोरियों से रुपये लेने के आरोप लगे। एक समय ऐसा आ गया था जब जिले में 10 पुलिसकर्मी ही 25-25 हजार के इनामी हो गए थे।”

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक गाजियाबाद में सुधीर कुमार सिंह के सात महीने के कार्यकाल में पुलिस ने करीब 130 एनकाउंटर किए। इसमें एक लाख रुपये के इनामी बदमाशों को ढेर भी किया गया, लेकिन सबसे ज्यादा सुर्खियां इंदिरापुरम थाने के एक एनकाउंटर ने बटोरी। इसमें इंदिरापुरम थाना क्षेत्र में पब्लिक की ओर से पकड़े गए दो बदमाशों को पुलिस ने दो दिन बाद एनकाउंटर में अरेस्टिंग दिखाकर वाहवाही लूटी। इसके बाद विजयगर और साहिबाबाद में फर्जी एनकाउंटर के मामले में 12 पुलिसकर्मियों पर उन्हीं के थाने में रिपोर्ट दर्ज की गई। 10 अक्टूबर 2019 को गाजियाबाद थाने का निरीक्षण करने एडीजी ने यह कहते हुए सुधीर कुमार सिंह को निशाने पर ले लिया था कि आपके जिले के थाना प्रभारी तो मर्सडीज जैसी महंगी कार में घूमते हैं।”

कम संगीन नहीं जीयनपुर का मामला

उत्तर प्रदेश के घोसी के सांसद अतुल राय के मामले में सिर्फ बयान देने पर पीड़िता के सुसाइड करने पर चर्चित आईपीएस रहे अमिताभ ठाकुर को गिरफ्तार कर लिए गया था, लेकिन आज़मगढ़ में चंद रोज पहले इसी तरह की दूसरी घटना में लीपापोती कर दी गई। मेहनाजपुर थाना क्षेत्र के गनीपुर डगरहा गांव की 50 साल की एक महिला ने गांव के कुछ दबंगों पर रेप का आरोप लगाते हुए पुलिस से गुहार लगाई थी, जिसे मीडिया ने प्रमुखता से छापा भी। थानेदार पर कार्रवाई तब  हुई जब आज़मगढ़ के मेहनाजपुर थाने में उसने जहर खाकर जान दे दी।

थाने का प्रभार देख रहे उप निरीक्षक चुन्ना सिंह को एसपी सुधीर कुमार सिंह ने तब निलंबित किया जब समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने तगड़ा बयान दिया और अपने प्रतिनिधियों को महिला के घर भेजा। जहर खाकर जान देने वाली महिला ने थाने से इंसाफ न मिलने पर 6 अक्टूबर को लालगंज के डिप्टी एसपी मनोज कुमार रघुवंशी और बाद में 8 अक्टूबर को पुलिस अधीक्षक सुधीर कुमार सिंह से मिलकर गुहार लगाई थी। दोनों अफसरों ने जब महिला की नहीं सुनी तो लाचार होकर दुष्कर्म पीड़िता ने 10 अक्टूबर को थाने में जहर खाकर जान दे दी।

इस मामले में कांग्रेस वरिष्ठ नेता अनिल यादव कहते हैं, “अगर घोसी की दुष्कर्म पीड़िता के मामले में मुख्यमंत्री योगी आदित्यानाथ अपने पूर्व एडीजी अमिताभ ठाकुर पर एक्शन ले सकते हैं तो आज़मगढ़ में दुष्कर्म पीड़िता की शिकायत पर त्वरित कार्रवाई न करने वाले एसपी सुधीर कुमार पर कार्रवाई क्यों नहीं कर रहे हैं? मेहनाजपुर थाने में महिला के जहर खाने की घटना दिल्ली के सुप्रीम कोर्ट परिसर की घटना के कम संगीन नहीं है। कोई भी महिला तभी जान देने पर विवश होती जब उसके लिए न्याय के सारे दरवाजे बंद हो जाते हैं। आज़मगढ़ एसपी सुधीर कुमार सिंह लगातार दलितों और पिछड़ों के दमन की कार्रवाई कर रहे हैं। चाहे वो पलिया का सवाल हो या फिर गोधौरा कांड रहा हो। उनका जातिवादी चेहरा बेनकाब हो चुका है, फिर भी सीएम योगी आदित्यनाथ खामोश हैं। जीयनपुर में दलित चिकित्सक डॉ. शिवकुमार मामले में भी एसपी का चेहरा उजागर हुआ है। आज़मगढ़ जिले में करणी सेना के कुछ गुंडे अनाप-शनाप बोल रहे हैं। कार्रवाई उन लोगों पर की जा रही है जो निर्दोष हैं और जिनका अपराध सिर्फ दलित होना है। आज़मगढ़ में अगर दलितों और पिछड़ों के खिलाफ जुल्म और ज्यादतियां बढ़ेंगी तो पिछले दिनों की तरह कांग्रेस कार्यकर्ता फिर सड़कों पर उतरेंगे।”

आजगमढ़ में लगातार हो रही पुलिसिया उत्पीड़न की घटनाओं को रेखांकित करते हुए शार्प रिपोर्टर अखबार के संपादक अरविंद सिंह पुलिस अधीक्षक सुधीर कुमार सिंह को कठघरे में खड़ा करते हैं। वह कहते हैं, “जीयनपुर में दलित चिकित्सक डॉ. शिवकुमार की फर्जी गिरफ्तारी और मेहनाजपुर थाने में दुष्कर्म पीड़िता के जहर खाने की घटनाओं ने विपक्ष को एक बड़ा मुद्दा दे दिया है। योगी सरकार पर दाग लगाने वाले दोनों ही मुद्दे राष्ट्रीय फलक पर उभर रहे हैं। आज़मगढ़ जिले में भाजपा की लीडरशिप नहीं है, इसलिए पुलिस अराजक और अफसर निरंकुश हो गए हैं। पुलिस के गुंडाराज का असर मऊ, बलिया और आसपास के जिलों में भी है।”

आज़मगढ़ के पुलिस और प्रशासनिक अफसरों के कामकाज पर वरिष्ठ पत्रकार अरविंद सिंह गंभीर टिप्पणी करते हैं। वह कहते हैं, “ विधानसभा चुनाव नजदीक है और सत्तारूढ़ दल को एक-एक कदम सतर्कता से बढ़ाना चाहिए, मगर यहां एसपी और डीएम को जनता से कोई सरोकार ही नहीं है। ये दोनों अफसर न तो सर्वसुलभ हैं और न ही सरकार की योजनाओं का प्रचार करने वाली मीडिया से इनका कोई सरोकार व तालमेल है। पुलिस और प्रशासनिक अफसरों से जिस संवेदनशीलता की उम्मीद की जानी चाहिए, उनमें इसकी कोई झलक नहीं दिख रही है। आज़मगढ़ का आधा इलाका अभी तक बारिश के पानी से डूबा हुआ है। मुबारकपुर में डायरिया से कइयों की जान जा चुकी है। डेंगू और मलेरिया से भी लोगों की मौतें हो रही हैं। आज़मगढ़ के एसपी और डीएम ने जनता को उनके हाल पर छोड़ दिया है। अगर यही रामराज्य है, तो भगवान बचाए ऐसी हुकूमत से।”

(विजय विनीत वरिष्ठ पत्रकार हैं।)  

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