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गुजरात: धर्म-परिवर्तन क़ानून को लेकर हाईकोर्ट और सरकार के बीच क्या विवाद है?
धर्म-परिवर्तन के नए क़ानून पर हाईकोर्ट की सख़्ती से गुजरात सरकार सकते में है। कानून के कई प्रावधानों पर हाईकोर्ट की रोक के ख़िलाफ़ राज्य की विजय रुपाणी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट जाने की घोषणा की है।
सोनिया यादव
29 Aug 2021
गुजरात: धर्म-परिवर्तन क़ानून को लेकर हाईकोर्ट और सरकार के बीच क्या विवाद है?
Image courtesy : Live Law

‘...जो भी लोग संविधान, धर्म निरपेक्षता और कानून की बात करते हैं ऐसा तब तक ही है, जब तक देश में हिंदू बहुसंख्यक है। जिस दिन हिंदू अल्पसंख्यक होगा और दूसरों की जनसंख्या बढ़ने लगी, उसके बाद ना धर्मनिरपेक्षता बचेगी...ना लोकसभा और ना संविधान बचेगा...सब कुछ हवा में उड़ा दिया जाएगा। सब दफन कर दिया जाएगा, कुछ भी नहीं बचेगा।'

ये बयान गुजरात के उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल का है। पटेल गुजरात के पहले भारत माता मंदिर की स्थापना पर पहुंचे थे, जहां उन्होंने राज्य के विवादास्पद धर्मांतरण कानून को लेकर कई बातें कहीं। उन्होंने हाईकोर्ट द्वारा कानून के कई प्रावधानों पर रोक लगाने के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की बात को भी दोहराया साथ ही इस कानून को असामाजिक तत्वों से बेटियों को बचाने के लिए बनाया गया कानून बताया। अब उनके इस बयान के बाद विवाद खड़ा हो गया है।

आपको बता दें कि गुजरात धार्मिक स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम, 2021 की अधिसूचना गुजरात सरकार ने जून में जारी की थी। इसके तहत 2003 के मूल कानून में कई संशोधन किए गए थे। जमीयत उलामा-ए-हिंद की गुजरात इकाई और मुजाहिद नफीस नाम के एक गुजराती नागरिक ने नए कानून के खिलाफ हाईकोर्ट में अलग अलग याचिकाएं दर्ज की थीं। उनका कहना था कि नए कानून के कई प्रावधान असंवैधानिक हैं।

19 अगस्त को इस मामले में सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने नए कानून की धारा तीन, चार, चार ए, चार बी, चार सी, पांच, छह और छह ए पर रोक लगा दी थी। अदालत का कहना था कि बिना किसी जबरदस्ती, लालच या धोखे से अंतर-धार्मिक विवाह करने वालों को अनावश्यक उत्पीड़न से बचाने के लिए इन प्रावधानों पर रोक लगाना जरूरी है। इसके बाद सरकार ने रोक हटाने की अर्जी डाली, तो कोर्ट ने उसे यह कहते हुए खारिज कर दिया कि हमें 19 अगस्त के आदेश में बदलाव का कोई अच्छा कारण नहीं दिख रहा है।

क्या है पूरा मामला?

1 अप्रैल 2021 को गुजरात सरकार ने बजट सत्र के दौरान गुजरात धार्मिक स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम, 2021 को पारित किया था जिसे राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने बीती 22 मई को अपनी मंजूरी दे दी थी। इसके बाद 15 जून को इस कानून के लागू होने के बाद से गुजरात के कई थानों में इस विवादित क़ानून के तहत कई मामले दर्ज किए गए हैं।

इनमें से पहली एफ़आईआर वडोदरा में 26 वर्षीय समीर क़ुरैशी के ख़िलाफ़ दर्ज की गई थी। पुलिस के मुताबिक़, समीर कथित तौर पर सोशल मीडिया पर स्वयं को ईसाई धर्म का व्यक्ति बताकर दूसरे धर्म की महिला को रिझाने की कोशिश कर रहा था।

इस क़ानून के तहत जबरन शादी करके धर्म परिवर्तन कराने पर 3 से 5 सालों की जेल और दो लाख रुपये के जुर्माने का प्रावधान है। अगर पीड़ित व्यक्ति नाबालिग़, महिला, दलित या आदिवासी है तो दोषी व्यक्ति को 4 से 7 साल की सजा हो सकती है और 3 लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। अगर कोई संस्थान या संस्था कानून का उल्लंघन करते हुए पायी जाती है तो अपराध के समय रहे संस्था के इंचार्ज को 3 से 10 साल तक की सजा मिल सकती है।

धर्म परिवर्तन से पहले जिला मजिस्ट्रेट से अनुमति अनिवार्य

इस कानून में सबसे ज्यादा विवाद धारा पांच पर है। इसके अनुसार धर्म परिवर्तन करने से पहले जिला मजिस्ट्रेट से अनुमति लेना अनिवार्य होगा। जो व्यक्ति धर्म परिवर्तन करवा रहा है, उसे भी जिला मजिस्ट्रेट को इसकी सूचना देनी होगी। हाईकोर्ट ने इस धारा पर भी अगले आदेश तक रोक लगा रखी है। 19 अगस्त को हाईकोर्ट ने संशोधित कानून की जिन धाराओं पर रोक लगाई, उनमें वह प्रावधान भी शामिल है, जिसके तहत अंतरधार्मिक शादियों को जबरन धर्मांतरण का आधार बताया गया है।

गुजरात हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस विक्रम नाथ ने उस समय कहा था, "एक धर्म का व्यक्ति किसी दूसरे धर्म के व्यक्ति के साथ बिना बल के प्रयोग, बिना किसी प्रलोभन और बिना कपटपूर्ण साधनों के शादी करता है, तो इसे गैरकानूनी धर्मांतरण के उद्देश्य से की गई शादी नहीं कहा जा सकता। ऐसे में हमारी राय है कि आगे की सुनवाई होने तक संशोधित कानून की धारा 3, 4, 4 C, 5, 6 और 6A को लागू नहीं किया जाएगा।”

सरकार ने कोर्ट में क्या दलीलें दीं?

इस कानून की धाराओं पर से रोक हटाने को लेकर गुरुवार, 26 अगस्त को गुजरात सरकार की ओर से हाईकोर्ट में कई दलीलें दी गईं। राज्य के एडवोकेट जनरल कमल त्रिवेदी ने कहा कि 2003 के कानून में भी धारा 5 है और इसका अंतर-धार्मिक विवाह से कोई लेना-देना नहीं है। यह केवल धर्मांतरण की अनुमति लेने से संबंधित है, या तो शादी से पहले या बाद में, या फिर बिना शादी के मामलों में भी।

उन्होंने दलील दी कि सेक्शन 5 पर स्टे के बाद कोई भी अनुमति लेने के लिए नहीं आएगा, भले ही यह बिना शादी के स्वैच्छिक धर्मांतरण हो। कोर्ट के आदेश का मतलब है कि अब पूरा कानून रुक गया है। अन्य धाराएं जिन पर रोक लगाई गई है, वो विवाह से संबंधित हैं, जबकि धारा 5 कानूनी स्वैच्छिक धर्मांतरण से संबंधित है। वैध धर्मांतरण से जुड़ी धारा पर रोक क्यों लगाई जानी चाहिए। इस पर बेंच ने कहा कि यह आपकी (सरकार की) व्याख्या है कि अदालत ने धर्मांतरण के लिए पूर्व अनुमति प्राप्त करने से संबंधित सभी धाराओं पर रोक लगाई है।

हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस विक्रम नाथ ने कहा, "अगर किसी कुंवारे व्यक्ति को धर्म बदलना है तो उसे अनुमति लेनी पड़ेगी। हमने इस पर रोक नहीं लगाई है। हमने सिर्फ विवाह के जरिए धर्म-परिवर्तन वाली धारा पर रोक लगाई है। हमने आदेश में यही कहा है।"

हाईकोर्ट से अपील खारिज होने के बाद गुजरात सरकार में गृह और कानून मंत्री प्रदीप सिंह जडेजा ने एक बयान में कहा कि नए "लव जिहाद विरोधी कानून" के रूप में "एक ऐसा हथियार लाया गया था जो हमारी बेटियों के साथ दुर्व्यवहार करने वाली जिहादी ताकतों को नष्ट कर देगा।"

जडेजा ने कहा कि धारा पांच नए कानून का सार है और उसे बचाने के लिए राज्य सरकार हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी। इसके पहले अदालत में सरकार की तरफ से एडवोकेट जनरल कमल त्रिवेदी ने कहा था कि धारा पांच में अंतर-धार्मिक विवाहों का जिक्र ही नहीं है और वो सिर्फ धर्म-परिवर्तन के लिए अनुमति से संबंधित है, चाहे वो शादी के पहले जो, बाद में हो या बिना शादी के हो।

पुराने क़ानून से कई मायनों में अलग है नया संशोधित क़ानून

गौरतलब है कि 2003 में पारित हुए मूल कानून (गुजरात फ्रीडम ऑफ रिलीजन ऐक्ट) में जबर्दस्ती और प्रलोभन के जरिये धर्मांतरण करने पर रोक लगाने की बात कही गई थी। इसमें प्रलोभन या लालच को दो कैटिगरी में रखा गया था। एक, जिसका धर्मांतरण कराना है, उसे कोई तोहफा या पैसा देकर खुश करने की कोशिश करना और दूसरा, किसी प्रकार का सामान, आर्थिक मदद या अन्य प्रकार से लुभाने का प्रयास करना। नए संशोधन बिल में प्रलोभन की तीसरी कैटिगरी (सेक्शन 3) जोड़ दी गई है। इसके मुताबिक, धर्मांतरण के लिए ‘बेहतर लाइफस्टाइल’, ‘ईश्वरीय कृपा’ आदि तरीकों का हवाला देना भी प्रलोभन है।

पुराना कानून जबर्दस्ती या लालच देकर धर्मांतरण करने पर रोक लगाता था। लेकिन नया संशोधन कहता है कि ऐसे धर्मांतरण पर भी रोक लगनी चाहिए, जिनमें शादी के जरिये जबर्दस्ती धर्म परिवर्तन किया जाता है या ऐसा करने में किसी की सहायता की जाती है।

नए कानून की धारा 3ए के मुताबिक, जबरन धर्म परिवर्तन का कोई पीड़ित, उसके माता-पिता, भाई, बहन या अन्य करीबी रिश्तेदार धर्मांतरण के लिए कराई गई शादी या अडॉप्शन के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा सकता है। वहीं धारा 4 (बी) कहता है कि इस प्रकार के धर्मांतरण के लिए की गई शादी अमान्य करार दी जाएगी।

धारा 5 (2) के अनुसार, जबरन धर्मांतरण के लिए कराई गई शादी में मदद करने वालों के खिलाफ केस दर्ज किया जाएगा। इसमें दो कैटिगरी रखी गई हैं। एक, जो व्यक्ति ऐसा कोई भी काम करता है, जिसके प्रभाव में कोई दूसरा व्यक्ति अपराध (धर्मांतरण कराना) करता हो या ऐसा करने में उसे मदद मिलती हो। दो, जो व्यक्ति अपराध करने के लिए दूसरे व्यक्ति को राजी करता हो या उसकी काउंसलिंग करे। वहीं, सेक्शन 6 (ए) कहता है कि आरोपी को अपनी बेगुनाही के लिए ये साबित करना होगा कि उसके जरिये हुआ धर्म परिवर्तन किसी भी तरह के बहकावे, जबर्दस्ती, अनुचित दबाव या लालच से प्रभावित नहीं था।

लव जिहाद का इस्तेमाल नहीं करके गुजरात के लोगों को भटकाया गया है: विपक्ष

दरअसल इस बिल में दिलचस्प बात ये है कि इसमें लव जिहाद का जिक्र नहीं है। हालांकि विधानसभा में गुजरात सरकार की ओर से दिए गए बयान और बिल के प्रावधान साफ बताते हैं कि ये उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की तर्ज पर लाया गया लव जिहाद कानून है।

जब ये बिल विधानसभा में पेश हुआ था, तब बिल पर हुई बहस के दौरान विपक्ष के नेता परेश धनानी ने कहा था कि बिल में लव जिहाद का इस्तेमाल नहीं करके गुजरात के लोगों को भटकाया गया है। इस समस्या से निपटने के लिए आईपीसी में पहले से पर्याप्त प्रावधान हैं। इसके बावजूद सरकार ये बिल लेकर आई है।

बिल का विरोध करते हुए विपक्ष ने लव जिहाद के खिलाफ उदाहरण दिए थे। कांग्रेस नेता और विधायक ग्यासुद्दीन शेख ने दावा किया था कि उनके पास बीते एक साल में हिंदू लड़कों से शादी करने वाली 100 मुस्लिम लड़कियों की लिस्ट है। बहस के दौरान ही कांग्रेस के एक और विधायक इमरान खेड़ावाला ने बिल की कॉपी तक फाड़ दी थी। तब उन्होंने आरोप लगाया कि ये विधेयक विशेष अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाता है। खेड़ावाला ने ये भी कहा था कि सरकार लव जिहाद के नाम पर हिंदुओं को गुमराह कर रही है।

धर्मांतरण के ख़िलाफ़ क़ानून पारित करने वाला गुजरात है तीसरा बीजेपी शासित राज्य

ध्यान रहें कि इस कानून के साथ गुजरात देश का ऐसा तीसरा राज्य बन गया है, जहां शादी के नाम पर जबरन धर्मांतरण कराने या यूं कहें कि कथित 'लव जिहाद' के खिलाफ कानून लाया गया है। इससे पहले उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में अवैध धर्मांतरण के खिलाफ कानून पारित किए गए हैं। गुजरात की तरह ही इन दोनों राज्यों में भी बीजेपी का शासन है और हिंदू आबादी बहुसंख्यक है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के बाद अब गुजरात हाईकोर्ट ने भी इस मामले पर सख्त रुख अपनाया है, ऐसे में अब देखना होगा कि तथाकथित हिंदू राष्ट्र की राजनीति करने वाली बीजेपी आगे क्या रास्ता अपनाती है।

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