NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
हरियाणा चुनाव : भट्टा मालिक आर्थिक मंदी से परेशान, मज़दूर बदतर हालत में जीने को मजबूर
ग्राउंड रिपोर्ट: हरियाणा का झज्जर ज़िला राज्य में सबसे बड़ा ईंट उत्पादक ज़िला है। झज्जर में 350 से अधिक भट्टे हैं ,जिसमें लगभग 70,000 से अधिक कुशल और अकुशल मज़दूर काम करते हैं। लेकिन इनके मुद्दे चुनाव से पूरी तरह गायब हैं!
मुकुंद झा, रौनक छाबड़ा
18 Oct 2019
haryana bhatta labour

झज्जर: हरियाणा राज्य के 22 जिलों में से एक है झज्जर ज़िला। यह जुलाई 1997 को रोहतक ज़िले से अलग हुआ। झज्जर ज़िला मुख्यालय दिल्ली से 29 किलोमीटर की दूरी पर है और अब यह भी हरियाणा के एक महत्वपूर्ण औद्योगिक केंद्र के रूप में विकसित हुआ है। ज़िले में मुख्यत चार शहर हैं -झज्जर, बहादुरगढ़, बादली और बेरी। 21 तारीख को राज्य में चुनाव होने हैं और यह ज़िला भी राज्य के अन्य हिस्सों की तरह उसके लिए तैयार है। चुनाव में ज़िले के सबसे बड़े उद्य़ोग ईंट भट्टे के मुद्दे पूरी तरह से गायब हैं।

झज्जर ज़िला राज्य में सबसे बड़ा ईंट उत्पादक ज़िला है। झज्जर में 350 से अधिक भट्टे हैं ,जिसमें लगभग 70,000 से अधिक कुशल और अकुशल मज़दूर काम करते हैं। बताया जाता यहाँ भट्टों की संख्या कहीं अधिक थी लेकिन नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के आदेश पर प्रदूषण के नियंत्रण के लिए यहां कई भट्टों को बंद करा दिया गया। यहां निर्मित ईंटों की सप्लाई दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में की जाती है।

photo 4_0.PNG

आर्थिक मंदी से परेशान ईंट भट्टा उद्योग

ईंट भट्टा उद्योग आज भारी आर्थिक मंदी की मार झेल रहा है। आम तौर पर नवरात्र या उसके बाद से यह भट्टे शुरू हो जाते हैं लेकिन इसबार अभी तक यह भट्टे बंद हैं। इसमें काम करने वाले मज़दूर प्रवासी होते हैं तो वो भी इस समय तक यहां पहुंच चुके होते है लेकिन अभी तक वह भी नहीं आये हैं और जो कुछ लोग आ भी आ गए हैं वो भी खाली बैठे हैं।

लेकिन यह मुद्दा पूरी तरह से हरियाणा चुनाव से गायब है। किसी भी राजनीतिक दल ने इसे गंभीरता से नहीं लिया है। शायद इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि यहां काम करने वाले मज़दूर उनके चुनाव को प्रभावित नहीं करते हैं, क्योंकि इनमें ज़्यादातर हरियाणा के मतदाता नहीं है। इस संकट को समझने के लिए न्यूज़क्लिक की टीम ने ज़िले के ईंट भट्टों का दौर किया और भट्टा मालिकों और वहां काम करने वाले मज़दूरों से बात की।

भट्टा मालिकों ने बताया कि हमारा काम पूरी तरह से खत्म हो गया है, बाज़ार में मांग है ही नहीं तो हम ईंटों का उत्पादन किसके लिए करें!
उनके मुताबिक नोटबंदी और जीएसटी के बाद से ही काम कम होना शरू हो गया था और यह गिरावट आज तक रुकने का नाम नहीं ले रही है

collage_1.jpg

एक भट्टा मालिक सतपाल बताते हैं कि इस समय उनके पास लगभग 50 हज़ार ईंटों की रोज मांग होती थी लेकिन इस बार 10 हज़ार ईंटे भी नहीं बिक रही हैं। जहाँ तक नए ईंटो के उत्पादन की बात है जब हमारा पुराना ही स्टॉक खत्म नहीं हो रहा है तो हम नया उत्पादन करके क्यों करेंगे?

उन्होंने बताया कि एक भट्टे पर 250 -300 मज़दूर काम करते हैं। लेकिन अभी सारे भट्टे खाली हैं। कहीं किसी भट्टे कुछ लोग काम कर रहे हैं, वो भी पुरानी ईंटो के लोडिंग का काम कर रहे हैं।

मज़दूरों के बदतर हालत

ऊपर बात हुई भट्टा मालिकों की, लेकिन इसमें काम करने वाले मज़दूरों कि हालत और भी बदतर है। जब हम भट्टे के अंदर गए तो देखा की ईंटों के दीवार बनी हुई थी जिसके ऊपर लोहे की टिन शेड थी, जिसे मालिकों ने मज़दूरों के रहने के लिए तैयार कराया था। यह अभी अधिकतर खाली पड़े थे, क्योंकि अभी मंदी के कारण भट्टे शुरू नहीं हुए हैं। कुछ में मज़दूर उसी हालत में रह रहे थे, जहाँ न तो उचित पीने का पानी था, न ही शौचालय की व्यवस्था। मज़दूरों के सभी परिवार लकड़ी जलाकर ही खाना पकाते हैं।

एक मज़दूर जिनका नाम रणविजय था, उन्होंने हमें बताया कि हम 12 -14 घंटे काम करते हैं और हमें 500 रुपये मिलते हैं। न कोई छुट्टी और न ही स्वाथ्य सेवा का लाभ मिलता है। वहां कई और मज़दूर थे लेकिन मालिक के डर से कुछ बोल नहीं रहे थे।

इसके आलावा हमने बिहार से आई एक महिला से पूछा कि ऐसे हालत को लेकर मालिक को शिकायत नहीं करतीं तो उन्होंने दबे स्वर में कहा, "सुनता कौन है? वैसे भी हम यहां कमाने आये है।" उनकी बातों से लगा कि उन्होंने इस हालत से समझौता कर लिया है। ये अधिकतर मज़दूर बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों से आते हैं। दलित और पिछड़े वर्ग के मज़दूर होते हैं।

लाल झंडा भट्ठा मजदूर यूनियन के नेता विनोद ने बताया कि पूरे हरियाणा में तीन लाख भट्ठा मजदूरों के लिए कोई श्रम कानून लागू नहीं है।

photo 3.PNG

मजदूरों को सरकारी डिपो के माध्यम से राशन नहीं मिलता और मजदूरों के बच्चों के लिए स्कूल व आंगनवाड़ी की व्यवस्था भी नहीं है। प्रदेश के सबसे कुपोषित बच्चों को किसी प्रकार का पौष्टिक आहार नहीं मिलता हैं। भट्ठा मजदूरों के लिए स्वास्थ्य का कोई भी प्रबंध नहीं है। भट्ठा मालिक, पक्की ईंट महंगे दामों पर बेचकर आम जनता व भट्ठा मजदूरों का शोषण करते हैं। लेकिन यह मज़दूर उसका विरोध नहीं कर पाते हैं क्योंकि यह प्रवासी हैं मालिक स्थानीय दबंग होता है।

मज़दूर यूनियनों की काफी समय से मांग रही है कि इन भट्ठा मजदूरों को महंगाई मुताबिक रेट बढ़ोतरी दी जाए। अस्थायी राशन कार्ड बनाकर राशन उपलब्ध करवाने, भट्ठों पर भट्ठा पाठशाला व आंगनवाड़ी केन्द्र खोले जाने, भट्ठों पर पक्के मकान, बिजली, पानी, शौचालय जैसी नागरिक सुविधाएं लागू की जाएं।

इसको लेकर यूनियनों ने कई बार प्रदर्शन भी किया लेकिन कभी किसी भी दल की सरकार ने इनकी मांगो पर ध्यान नहीं दिया। क्योंकि यह मज़दूरों उनके मतदाता नहीं है जबकि मालिक स्थानीय मतदाता होता है। इसके अलावा वो इन दलों को आर्थिक रूप से भी सहयोग करता है। इसलिए कोई भी दल मज़दूरों के हक में और मालिक के खिलाफ नहीं होना चाहता है।

Haryana Assembly Elections
Haryana Assembly polls
haryana bhatta workers
Economic Recession
economic crises
Haryana Government
BJP
Manohar Lal khattar

Related Stories

तमिलनाडु: छोटे बागानों के श्रमिकों को न्यूनतम मज़दूरी और कल्याणकारी योजनाओं से वंचित रखा जा रहा है

आख़िर किसानों की जायज़ मांगों के आगे झुकी शिवराज सरकार

किसान-आंदोलन के पुनर्जीवन की तैयारियां तेज़

सार्वजनिक संपदा को बचाने के लिए पूर्वांचल में दूसरे दिन भी सड़क पर उतरे श्रमिक और बैंक-बीमा कर्मचारी

झारखंड: केंद्र सरकार की मज़दूर-विरोधी नीतियों और निजीकरण के ख़िलाफ़ मज़दूर-कर्मचारी सड़कों पर उतरे!

दो दिवसीय देशव्यापी हड़ताल को मिला व्यापक जनसमर्थन, मज़दूरों के साथ किसान-छात्र-महिलाओं ने भी किया प्रदर्शन

देशव्यापी हड़ताल का दूसरा दिन, जगह-जगह धरना-प्रदर्शन

यूपी चुनाव: पूर्वी क्षेत्र में विकल्पों की तलाश में दलित

बनारस की जंग—चिरईगांव का रंज : चुनाव में कहां गुम हो गया किसानों-बाग़बानों की आय दोगुना करने का भाजपाई एजेंडा!

छत्तीसगढ़: भूपेश सरकार से नाराज़ विस्थापित किसानों का सत्याग्रह, कांग्रेस-भाजपा दोनों से नहीं मिला न्याय


बाकी खबरें

  • putin
    एपी
    रूस-यूक्रेन युद्ध; अहम घटनाक्रम: रूसी परमाणु बलों को ‘हाई अलर्ट’ पर रहने का आदेश 
    28 Feb 2022
    एक तरफ पुतिन ने रूसी परमाणु बलों को ‘हाई अलर्ट’ पर रहने का आदेश दिया है, तो वहीं यूक्रेन में युद्ध से अभी तक 352 लोगों की मौत हो चुकी है।
  • mayawati
    सुबोध वर्मा
    यूपी चुनाव: दलितों पर बढ़ते अत्याचार और आर्थिक संकट ने सामान्य दलित समीकरणों को फिर से बदल दिया है
    28 Feb 2022
    एसपी-आरएलडी-एसबीएसपी गठबंधन के प्रति बढ़ते दलितों के समर्थन के कारण भाजपा और बसपा दोनों के लिए समुदाय का समर्थन कम हो सकता है।
  • covid
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 8,013 नए मामले, 119 मरीज़ों की मौत
    28 Feb 2022
    देश में एक्टिव मामलों की संख्या घटकर 1 लाख 2 हज़ार 601 हो गयी है।
  • Itihas Ke Panne
    न्यूज़क्लिक टीम
    रॉयल इंडियन नेवल म्युटिनी: आज़ादी की आखिरी जंग
    28 Feb 2022
    19 फरवरी 1946 में हुई रॉयल इंडियन नेवल म्युटिनी को ज़्यादातर लोग भूल ही चुके हैं. 'इतिहास के पन्ने मेरी नज़र से' के इस अंग में इसी खास म्युटिनी को ले कर नीलांजन चर्चा करते हैं प्रमोद कपूर से.
  • bhasha singh
    न्यूज़क्लिक टीम
    मणिपुर में भाजपा AFSPA हटाने से मुकरी, धनबल-प्रचार पर भरोसा
    27 Feb 2022
    मणिपुर की राजधानी इंफाल में ग्राउंड रिपोर्ट करने पहुंचीं वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह। ज़मीनी मुद्दों पर संघर्षशील एक्टीविस्ट और मतदाताओं से बात करके जाना चुनावी समर में परदे के पीछे चल रहे सियासी खेल…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License