NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अर्थव्यवस्था
क्या सच में अबकी बार बंपर FDI आया है?
2021 में फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट के तौर पर मिलने वाले कुल इन्वेस्टमेंट के 86 फ़ीसदी हिस्से का आंकड़ा तीन तिमाही तक आ चुका है। इन आंकड़ों की छानबीन करने से पता चलता है कि इनमें से तकरीबन 57 फ़ीसदी हिस्सा यानी 27 बिलियन डॉलर रिलायंस ग्रुप की कंपनियों को मिला है। 
अजय कुमार
24 Jun 2021
FDI

अर्थव्यवस्था के बाजार में शोर मच रहा है कि अबकी बार भारत में विदेशी निवेश खूब हुआ है। वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय का ऐलान है कि भारत में तकरीबन 81.72 बिलियन डॉलर की FDI आई है। विदेशी निवेश के तौर पर आया यह अब तक का सबसे बड़ा निवेश है। वित्त वर्ष 2019-20 के मुकाबले FDI में हुआ यह 10 फ़ीसदी का इज़ाफ़ा है। सरकार का कहना है कि FDI से जुड़े नियमों में सुधार और भारत में ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस के बढ़ते माहौल के चलते लोगों का झुकाव भारत की अर्थव्यवस्था की तरफ बढ़ा है।

ऐसे समय में जब घरेलू अर्थव्यवस्था ठप पड़ी हो, लोग पुरानी माल को ही नहीं बेच पा रहे हो, थक हार कर अपने उद्यम को बेचना पड़ रहा हो। लोगों को नौकरियों से निकालना पड़ रहा हो तब अगर सरकार यह कहे कि अब तक सबसे बड़ा एफडीआई मिला है तो दिमाग का एंटीना तो खड़ा हो ही जाता है। तो चलिए मामले के तह तक जाकर इसकी सच्चाई की तहकीकात करते है।

पूरी दुनिया में 2019 के मुकाबले 2020 में एफडीआई का स्तर 42 फ़ीसदी कम हुआ है और विकासशील देशों के लिए आंकड़ा 17 फ़ीसदी गिरावट का है। ऐसे समय में पहली मर्तबा भारत में विदेशी निवेश के तौर पर दिख रही इतनी बड़ी राशि निसंदेह बहुत अधिक चौंकाती है। आखिरकार ऐसा क्या हुआ भारत में इतना बड़ा इन्वेस्ट कैसे हुआ?

फॉरेन डायरेक्ट इनवेस्टमेंट का नाम आते ही हम यह समझते हैं कि विदेश से भारत की कंपनियों में पैसा लगाया गया है। कंपनियों में पैसा लगा है तो कंपनियां अपना कारोबार बड़ा करेंगी। कारोबार बड़ा होगा तभी नौकरी की संभावना बनेगी। नौकरी मिलेगी। अर्थव्यवस्था की गाड़ी भी आगे बढ़ेगी।

लेकिन यह फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट की सच्चाई का सबसे मुखर तौर पर दिखने वाला चेहरा है। जो सबसे अधिक इसलिए दिखता है क्योंकि फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट की पैरवी बहुत की जाती है। जब किसी की पैरवी की जाती है तो उससे होने वाले फायदे को ही सबसे अधिक दिखाया जाता है। लेकिन इसके बावजूद और भी कई तरह की स्थितियां होती हैं जो फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट से जुड़ी होती हैं।

जैसे ऐसा हो सकता है कि बनी बनाई कंपनी की हिस्सेदारी मालिक विदेशी निवेशकों को दे दे और विदेशी निवेशक इसके बदले में कंपनी में अपना निवेश करें तो यह भी फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट की तरह होगा। जैसे रिलायंस जिओ की हिस्सेदारी फेसबुक खरीदें, तो मालिकाना हक फेसबुक के हिस्से भी होगा और फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट के तौर पर पैसा भी आएगा। बस दिक्कत यही होगी कि इससे कंपनी का कारोबार नहीं बढ़ेगा। कोई नौकरी नहीं मिलेगी। स्थिति जस की तस ही रहेगी। समझिए कि एक बोतल पानी में से आधा बोतल पानी मालिक पी गया और फिर से बोतल भर दिया गया।

इस बढ़े हुए फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट के साथ भी यही हुआ है।

2021 में फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट के तौर पर मिलने वाले कुल इन्वेस्टमेंट के 86 फ़ीसदी हिस्से का आंकड़ा तीन तिमाही तक आ चुका है। इन आंकड़ों की छानबीन करने से पता चलता है कि इनमें से तकरीबन 57 फ़ीसदी हिस्सा यानी 27 बिलियन डॉलर रिलायंस ग्रुप की कंपनियों को मिला है। इनमें से भी 20 बिलियन डॉलर रिलायंस ग्रुप की कंपनियों का अपने मालिकाना शेयर को 14 विदेशी कंपनियों को बेचने की वजह से मिला है। जिसमें फेसबुक और गूगल शामिल है। यानी फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट का बहुत बड़ा हिस्सा केवल कारोबार के मालिकाना हक के फेरबदल से जुड़ा हुआ है।

इसलिए आरबीआई ने अपने एनुअल रिपोर्ट में कहा है कि 2020-21 में एफडीआई का आंकड़ा दिखता तो बहुत मजबूत है लेकिन हकीकत में इसका वितरण बहुत अधिक असमान है। विदेशी निवेश के मामले में वास्तविक स्थिति पिछले महामारी वर्ष से भी खराब है। अगर ऊपर की पांच बड़ी कंपनियों को मिलने वाले फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट को हटा दिया जाए तो पिछले साल के मुकाबले इस साल एक तिहाई कम फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट मिला है।

आरबीआई के मुताबिक सर्विस सेक्टर में कुल एफडीआई का तकरीबन 80 फ़ीसदी हिस्सा इनफॉरमेशन एंड टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में आया है। इसमें से भी 47 फ़ीसदी रिलायंस जियो को मिला है, जो मालिकाना हक खरीदने से जुड़ा हुआ है। विनिर्माण क्षेत्र में कुल विदेशी निवेश का तकरीबन 17 फ़ीसदी हिस्सा आया है। यह सबसे महत्वपूर्ण होता है क्योंकि अगर यहां पर विदेशी निवेश आ रहा है तो इसका मतलब है कि कारोबार बढ़ेगा और नौकरी मिलेगी। लेकिन यहां भी वही हाल है। वास्तविक तौर पर देखा जाए तो पिछले 5 सालों में अब तक विनिर्माण क्षेत्र में सबसे कम निवेश हुआ है। विनिर्माण क्षेत्र में केवल तकरीबन 6 बिलियन डॉलर की राशि ऐसे जगह पर इन्वेस्ट की गई है जो पहले से मौजूद मालिकाना हक खरीदने से नहीं जुड़ी हुई है। नहीं तो बाकी निवेश पहले से मौजूद मालिकाना हक खरीदने से ही जुड़ा हुआ है।

जहां तक पिछले साल के मुकाबले इस साल फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट में 10 फीसदी इजाफे की बात है तो इसमें भी एक बड़ा पेंच है। पेंच यह है कि हर साल भारत की मल्टीनेशनल कंपनियां विदेश में मौजूद अपनी ही किसी सब्सिडियरी कंपनी का विनिवेश करती है और दूसरे देश की मल्टीनेशनल कंपनियां भारत में मौजूद अपनी सब्सिडियरी कंपनी का भी निवेश करती है। तो इससे भी फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट पर प्रभाव पड़ता है। इन्हें समायोजित करने के बाद नेट फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट का आंकड़ा मिलता है। इस आधार पर देखा जाए तो पिछले साल के मुकाबले इस साल तकरीबन 2.4 फ़ीसदी कम फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट हुआ है।

इन सबके अलावा फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट से जुड़ी एक और बात है, जो फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टमेंट से जुड़ती है। यह एक तरह की सौदेबाजी होती है। बाजार में होने वाले उतार-चढ़ाव से फायदा कमाने वाले लोगों का पैसा होता है। कम अवधि के लिए होता है। बाजार चढ़ता है तो इन्वेस्टमेंट बेच कर पैसा निकाल लिया जाता है और बाजार गिरता है तो इन्वेस्टमेंट लगाकर पैसा बाजार में लगा दिया जाता है। इस आधार पर इन पैसों से अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी इसकी संभावना बहुत कम होती है। कारोबार बढ़ेगा और नौकरियां पैदा करने के मकसद से इन पैसों का इस्तेमाल नहीं हो पाता है। इस साल की कुल एफडीआई में इस तरह के निवेश की हिस्सेदारी तकरीबन 38 फीसदी है। 2014-15 के बाद सबसे ज्यादा निवेश इस इस तरह से साल 2020-21 में किया गया है।

इन सभी आंकड़ों का इशारा इस तरफ है  कि भले ही बंपर FDI कह कर खूब प्रचार प्रसार किया जाए लेकिन हकीकत यह कि इस बंपर एफडीआई से अर्थव्यवस्था को गति मिलने की संभावना बहुत कम है।

FDI
Foreign direct investment
Economy & Policy
India FDI
indian economy
Modi government

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

डरावना आर्थिक संकट: न तो ख़रीदने की ताक़त, न कोई नौकरी, और उस पर बढ़ती कीमतें

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

आर्थिक रिकवरी के वहम का शिकार है मोदी सरकार

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

आख़िर फ़ायदे में चल रही कंपनियां भी क्यों बेचना चाहती है सरकार?

तिरछी नज़र: ये कहां आ गए हम! यूं ही सिर फिराते फिराते

'KG से लेकर PG तक फ़्री पढ़ाई' : विद्यार्थियों और शिक्षा से जुड़े कार्यकर्ताओं की सभा में उठी मांग

मोदी के आठ साल: सांप्रदायिक नफ़रत और हिंसा पर क्यों नहीं टूटती चुप्पी?


बाकी खबरें

  • protest
    न्यूज़क्लिक टीम
    दक्षिणी गुजरात में सिंचाई परियोजना के लिए आदिवासियों का विस्थापन
    22 May 2022
    गुजरात के दक्षिणी हिस्से वलसाड, नवसारी, डांग जिलों में बहुत से लोग विस्थापन के भय में जी रहे हैं। विवादास्पद पार-तापी-नर्मदा नदी लिंक परियोजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। लेकिन इसे पूरी तरह से…
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: 2047 की बात है
    22 May 2022
    अब सुनते हैं कि जीएसटी काउंसिल ने सरकार जी के बढ़ते हुए खर्चों को देखते हुए सांस लेने पर भी जीएसटी लगाने का सुझाव दिया है।
  • विजय विनीत
    बनारस में ये हैं इंसानियत की भाषा सिखाने वाले मज़हबी मरकज़
    22 May 2022
    बनारस का संकटमोचन मंदिर ऐसा धार्मिक स्थल है जो गंगा-जमुनी तहज़ीब को जिंदा रखने के लिए हमेशा नई गाथा लिखता रहा है। सांप्रदायिक सौहार्द की अद्भुत मिसाल पेश करने वाले इस मंदिर में हर साल गीत-संगीत की…
  • संजय रॉय
    महंगाई की मार मजदूरी कर पेट भरने वालों पर सबसे ज्यादा 
    22 May 2022
    पेट्रोलियम उत्पादों पर हर प्रकार के केंद्रीय उपकरों को हटा देने और सरकार के इस कथन को खारिज करने यही सबसे उचित समय है कि अमीरों की तुलना में गरीबों को उच्चतर कीमतों से कम नुकसान होता है।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: महंगाई, बेकारी भुलाओ, मस्जिद से मंदिर निकलवाओ! 
    21 May 2022
    अठारह घंटे से बढ़ाकर अब से दिन में बीस-बीस घंटा लगाएंगेे, तब कहीं जाकर 2025 में मोदी जी नये इंडिया का उद्ïघाटन कर पाएंगे। तब तक महंगाई, बेकारी वगैरह का शोर मचाकर, जो इस साधना में बाधा डालते पाए…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License