NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
SC ST OBC
अपराध
आंदोलन
उत्पीड़न
भारत
शर्मनाक: दिल्ली में दोहराया गया हाथरस, सन्नाटा क्यों?
इस मामले में दलित संगठनों के प्रतिरोध के बाद पंडित राधेश्याम और उसके तीन साथियों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है। उन पर पहले पुलिस ने गैर-इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया था। बाद में दिल्ली महिला आयोग और एससी/एसटी आयोग के दखल के बाद सामूहिक दुष्कर्म, हत्या, साक्ष्य छुपाने, पोक्सो, एससी/एसटी एक्ट, और धारा 506 के तहत मामला दर्ज किया।
राज वाल्मीकि
04 Aug 2021
Minor raped in Delhi

हाल ही में दिल्ली में भी हाथरस दोहराया गया। दिल्ली कैंट के पुराना नागल स्थित श्मशान घाट में वाटर कूलर से पानी लेने गई नौ साल की दलित बच्ची से कथित तौर पर सामूहिक दुष्कर्म कर उसकी हत्या के बाद जबरन अंतिम संस्कार कर दिया गया। इस भयावह और बर्बर घटना को जिस बेरहमी से अंजाम दिया गया उसने न केवल मानवता को तार-तार किया है बल्कि अमानवीयता की सारी हदें पार कर दी हैं। सवाल है कि बलात्कारियों और दुराचारियों में ऐसी क्रूर घटनाओं को अंजाम देने का दुस्साहस कैसे पैदा होता है? क्या दलित महिलाएं और बच्चियां उनके लिए ‘ईजी या सॉफ्ट टारगेट’ होती हैं?

दरअसल जातिवादी मानसिकता वाले दुराचारी सवर्ण उनकी जाति और गरीबी का फायदा उठाते हैं। उन्हें क़ानून का भय नहीं होता। क्योंकि क़ानून के रखवाले भी कथित उच्च जाति और जातिवादी मानसकिता वाले होते हैं। इसलिए दुराचारी यह मानकर चलते हैं कि दलित महिलाओं/बच्चियों के साथ दुष्कर्म जैसे जघन्य अपराध करने की उन्हें सजा नहीं मिलेगी। और वे ऐसी वारदात के बाद भी खुलेआम घूमते हैं।

इस मामले में करीब दो सौ लोगों के विरोध और हंगामे के बाद पंडित राधेश्याम और उसके तीन साथियों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है। उन पर पहले पुलिस ने गैर-इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया था। बाद में दिल्ली महिला आयोग और एससी/एसटी आयोग के दखल के बाद पुलिस ने प्राथमिक जांच के बाद सामूहिक दुष्कर्म, हत्या, साक्ष्य छुपाने, पोक्सो, एससी/एसटी एक्ट, और धारा 506 के तहत मामला दर्ज किया। जन दबाव से मजबूर होकर पुलिस को चारों को गिरफ्तार करना पड़ा।

जब देश की राजधानी दिल्ली में ऐसी हैवानियत हो सकती है तो पूरे देश के बारे में आप सोच सकते हैं कि दलित बच्चियां और महिलाएं कितनी सुरक्षित होंगी।

वाल्मीकि बच्ची गुड़िया (बदला हुआ नाम) की मां ने बताया कि रविवार शाम साढ़े पांच बजे बेटी शमशान घाट में लगे वाटर कूलर से ठंडा पानी लेने गई थी। साढ़े छह बजे वहां के पंडित राधेश्याम ने परिजनों को घाट पर बुलाया और उन्हें बताया कि बच्ची की करंट लगने से मौत हो गई है। जबकि बच्ची के होंठ नीले पड़े हुए थे और उसकी कलाईयों पर जलने के निशान थे। गुड़िया की मां के अनुसार जब उन्होंने पुलिस को फोन करने की कोशिश की तो पुजारी ने पोस्टमार्ट्म में अंगों की चोरी होने की बात कह कर उन्हें डराया और जबरन बच्ची का अंतिम संस्कार कर दिया।

गुड़िया के पिता मोहनलाल ने बताया कि उनकी बच्ची उनकी एकमात्र संतान थी। जिन चार दरिंदों ने मेरी बेटी के साथ दरिन्दगी की है उनके लिए मैं जल्द से जल्द फांसी की सजा चाहता हूँ ताकि मेरी बेटी को और मुझे न्याय मिल सके।

बचे रह गए गुड़िया के अधजले पांव!

दरिंदों ने 9 वर्षीया गुड़िया को जब जलाया (पता नहीं मारकर या जिन्दा!) तब जलाते समय उस मासूम के पांवों का निचला हिस्सा अधजला रह गया। उसके  इन अधजले पावों का किसी ने फोटो खींच कर वायरल कर दिया। उस मासूम के उन अधजले पांवों की तस्वीर देख कर ही मन विचलित हो गया। पता नहीं उस  मासूम  के माता-पिता पर उन अधजले पांवों को देखकर क्या गुजरी होगी!

मामले को रफा-दफा करना चाहती थी पुलिस

गुड़िया के परिजनों ने बताया कि पहले पुलिस आरोपियों से पीड़िता के पिता को 20 हजार रुपया दिलवा कर मामले को रफा-दफा करना चाहती थी। यहां तक कि पुलिस ने गुड़िया के पापा को डराया-धमकाया भी था। और जब अन्य परिजनों खासतौर से महिलाओं ने इसका विरोध किया तो पुलिस ने कहा कि तुम ज्यादा मत बोलो नहीं तो तुम्हें भी अन्दर कर देंगे। परिजनों का आरोप है कि पुलिस वालों ने शराब पी रखी थी। पुलिस मीडिया वालों से भी बात नहीं करने दे रही थी। दरअसल पुलिस पीड़ितों के साथ नहीं बल्कि आरोपियों के साथ खड़ी थी और  पीड़ितों पर दबाब बना रही थी।

दलित संगठनों और सामाजिक संगठनों ने इस हैवानियत के ख़िलाफ़ बुलंद की आवाज़

जब लेखक दिल्ली कैंट पुराना नागल में धरना स्थल पर पहुंचा तो देखा कि वहां दलित संगठनों के कार्यकर्ता तथा अन्य कई सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि आए हुए थे और मंच से अपनी बात रख रहे थे। दलित संगठनों में काफी आक्रोश दिख रहा था। वे प्रशासन और खासतौर से पुलिस प्रशासन से कह रहे थे कि वैसे तो हम संविधान और देश के क़ानून में विश्वास रखते हैं। और अपने हाथ में कानून नहीं लेना चाहते। हमें कानून व्यवस्था पर भरोसा है कि वह दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा देगी। पर यदि कानून दोषियों को सख्त से सख्त सजा नहीं देगा तो उन्हें हम सजा देंगे। आक्रोशित दलित तरह-तरह के नारे लगा रहे थे जैसे –‘गुड़िया हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल जिन्दा हैं’, ‘गुड़िया के हत्यारों को, गोली मारो....को’, ‘पुलिस प्रशासन हाय हाय’, ‘दोषियों को फांसी दो, फांसी दो’, ‘गुड़िया के दरिंदों को मौत की सजा दो’,  ‘गुड़िया को इन्साफ दो’,  ‘वी वांट जस्टिस’, ‘आवाज दो हम एक हैं’, ‘जय जय जय जय जय भीम’...आदि।

धरनास्थल को विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने विशेषकर महिलाओं ने संबोधित किया। सबने गुड़िया के लिए न्याय की मांग की और दोषियों के लिए सख्त से सख्त सजा। दलित नेताओं जैसे बिरजू पहलवान, मुहर सिंह पहलवान, भीम आर्मी चीफ चन्द्रशेखर आजाद आदि ने भी अपने विचार रखे और गुड़िया को न्याय दिलाने के लिए तन-मन-धन अर्पित करने की बात कही।

“सुरक्षित नहीं हैं हमारी बेटियां”

कुछ महिला वक्ताओं ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के “बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ”  नारे पर तंज कसते हुए कहा कि “हमारी बेटियां सुरक्षित नहीं हैं मोदी जी। दोष इसमें मानसिकता का है। हमारी लचर क़ानून व्यवस्था का है। न्याय व्यवस्था का है। पुलिस प्रशासन का है। जातिवाद का है”।

महिलाओं ने कहा कि “दलितों की बेटियां भी इस देश की बेटियां होती हैं। जापान में चल रहे ओलिंपिक गेम में जब हमारी बेटियां चानू और सिंधू मेडल जीतती हैं तो उन पर गर्व किया जाता है दूसरी ओर हमारी दलित बेटियों के साथ जघन्य अपराध किया जाता है। लोगों के दिमाग में पितृसत्ता और जातिवाद बैठा हुआ है। रामराज्य की बात करते हैं और गुंडाराज चलाते हैं। पहले इस मानसिकता को बदलना होगा”।   

पुलिस द्वारा प्रदर्शनकारियों को भड़काने की कोशिश!

धरनास्थल का दृश्य काबिले गौर था। तेज धूप थी और प्रदर्शनकारी भीषण गर्मी में सड़क पर बैठे हुए थे। सिर्फ एक छोटा सा मंच बना हुआ था। प्रदर्शनकारी छाया में बैठ सकें इसके लिए टेंट लगाने का प्रयास करने पर पुलिसवाले मना करने लगे कि यहाँ टेंट नहीं लगा सकते। इससे नाराज लोगों की पुलिस से झड़प हो गई।

लोगों के मुताबिक पुलिस वाले प्रदर्शनकारियों को भड़काने लगे जिससे वे पुलिस से हाथापाई करने लगें और पुलिस को लाठीचार्ज करने का मौका मिल जाए और वे प्रदर्शनकारियों को खदेड़ दें। लेकिन मंच संचालन अच्छा था। उन्होंने प्रदर्शनकारियों से निवेदन किया कि वे पुलिस से न भिड़ें। उन्हें कुछ न कहें। क्योंकि पुलिस वाले चाहते हैं कि आप हिंसा पर उतर आएं और वे लाठीचार्ज कर सकें। हमें धरना-प्रदर्शन शांतिपूर्ण ढंग से करना है जो कि हमारा संवैधानिक अधिकार है। इससे लोग शांत हुए और वापस आकर बैठ गए।

दलित संगठनों और अन्य सामाजिक संगठनों की मांगें

1.    पूरे मामले की निष्पक्ष जांच के लिए एक स्वतंत्र उच्चस्तरीय समिति का गठन किया जाए।

2.    मामले को फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में चलाया जाए।

3.    सभी दोषियों को सख्त से सख्त सजा दी जाए।

4.    किसी प्रलोभन या दबाब के कारण जांच प्रभावित न हो यह सुनिश्चित किया जाए।

5.    पीड़िता के घरवालों को उचित मुआवजा दिया जाए।

(लेखक सफाई कर्मचारी आंदोलन से जुड़े हैं।)

minor girl raped
Delhi
crime against women

Related Stories

आज़ादी के 75 साल और दलित-बहुजन का हाल

यूपी: बेहतर कानून व्यवस्था और महिला सुरक्षा पर उठते सवाल!, दलित-नाबालिग बहनों का शव तालाब में मिला

हाथरस, कठुआ, खैरलांजी, कुनन पोशपोरा और...


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    मुंडका अग्निकांड: सरकारी लापरवाही का आरोप लगाते हुए ट्रेड यूनियनों ने डिप्टी सीएम सिसोदिया के इस्तीफे की मांग उठाई
    17 May 2022
    मुण्डका की फैक्ट्री में आगजनी में असमय मौत का शिकार बने अनेकों श्रमिकों के जिम्मेदार दिल्ली के श्रम मंत्री मनीष सिसोदिया के आवास पर उनके इस्तीफ़े की माँग के साथ आज सुबह दिल्ली के ट्रैड यूनियन संगठनों…
  • रवि शंकर दुबे
    बढ़ती नफ़रत के बीच भाईचारे का स्तंभ 'लखनऊ का बड़ा मंगल'
    17 May 2022
    आज की तारीख़ में जब पूरा देश सांप्रादायिक हिंसा की आग में जल रहा है तो हर साल मनाया जाने वाला बड़ा मंगल लखनऊ की एक अलग ही छवि पेश करता है, जिसका अंदाज़ा आप इस पर्व के इतिहास को जानकर लगा सकते हैं।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    यूपी : 10 लाख मनरेगा श्रमिकों को तीन-चार महीने से नहीं मिली मज़दूरी!
    17 May 2022
    यूपी में मनरेगा में सौ दिन काम करने के बाद भी श्रमिकों को तीन-चार महीने से मज़दूरी नहीं मिली है जिससे उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
  • सोन्या एंजेलिका डेन
    माहवारी अवकाश : वरदान या अभिशाप?
    17 May 2022
    स्पेन पहला यूरोपीय देश बन सकता है जो गंभीर माहवारी से निपटने के लिए विशेष अवकाश की घोषणा कर सकता है। जिन जगहों पर पहले ही इस तरह की छुट्टियां दी जा रही हैं, वहां महिलाओं का कहना है कि इनसे मदद मिलती…
  • अनिल अंशुमन
    झारखंड: बोर्ड एग्जाम की 70 कॉपी प्रतिदिन चेक करने का आदेश, अध्यापकों ने किया विरोध
    17 May 2022
    कॉपी जांच कर रहे शिक्षकों व उनके संगठनों ने, जैक के इस नए फ़रमान को तुगलकी फ़ैसला करार देकर इसके खिलाफ़ पूरे राज्य में विरोध का मोर्चा खोल रखा है। 
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License