NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
हिंदू दक्षिणपंथियों को यह पता होना चाहिए कि सावरकर ने कहा था "हिंदुत्व हिंदू धर्म नहीं है"
उन्हें यह भी पता होना चाहिए कि जैसे ही सावरकर ने हिंदुओं को 'अपने आप में एक राष्ट्र' कहा था, तो वे जातीय-धार्मिक आधार पर दो राष्ट्रों के सिद्धांत का प्रतिपादन करने वाले पहले व्यक्ति बन गये थे।
अशोक कुमार पाण्डेय
17 Dec 2021
Hindutva

कांग्रेस नेता राहुल गांधी के एक हालिया बयान ने हिंदू धर्म बनाम हिंदुत्व की बहस को फिर से गर्म कर दिया है। दक्षिणपंथी ने बिना देर किये हिंदुत्व की उनकी इस अस्वीकृति को हिंदू धर्म के अपमान के तौर पर चित्रित कर दिया। हरियाणा सरकार के भारतीय जनता पार्टी (BJP) के मंत्री अनिल विज ने हिंदुत्व का अनुसरण नहीं करने वालों को "नक़ली" हिंदू क़रार किया। उसी समय, कांग्रेस समर्थकों ने एक हैश-टैग-"हिंदू हैं, हिंदुत्ववादी नहीं- वी आर हिंदू, नॉट हिंदुत्ववादी" चला दिया।

हिंदू/हिंदुत्व की बहस पुरानी है और इसकी जड़ें स्वतंत्रता आंदोलन में हैं। विनायक दामोदर सावरकर ने ही 1923 में प्रकाशित अपनी एक किताब में 'हिंदुत्व' शब्द को गढ़ा था। उन्होंने 1930 और चालीस के दशक के दौरान कांग्रेस पार्टी का मुक़ाबला करने और हिंदू महासभा को हिंदुओं के एकलौते प्रतिनिधि के रूप में स्थापित करने के लिए इसे लोकप्रिय बनाने की बहुत कोशिश की थी। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान और उसके बाद सांप्रदायिक रूप से ध्रुवीकृत माहौल में हिंदुत्व की उनकी निरंतर वकालत करने की क़वायद उस राजनीतिक संगठन को स्थापित किये जाने के उनके प्रयास का हिस्सा थी, जो 'मुस्लिम पाकिस्तान' के मुक़बले 'हिंदू भारत' में सत्ता हथियाने में सक्षम था।

जहां सावरकर अपने जीवनकाल में हिंदुओं को पर्याप्त संख्या में कांग्रेस से हिंदू महासभा की ओर नहीं ले जा पाये, वहीं उनकी हिंदुत्व की विचारधारा को बाद में आरएसएस की ओर से प्रचारित किया गया और लोकप्रिय बनाया गया। आख़िरकार आरएसएस ने उदारीकरण के बाद के दौर में एक तरह से इस विचारधारा पर आधिपत्य स्थापित कर लिया।

यह बेमक़सद बात नहीं है कि मौजूदा शासन सावरकर को फिर से स्थापित करने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रहा है, जबकि इसकी वैचारिक शाखा उनके महिमामंडन में किताब-दर किताब तैयार करती जा रही है। ऐसे में सावरकर की ओर से प्रचारित और आरएसएस की तरफ़ से अपनायी गयी हिंदुत्व की अवधारणा पर फिर से विचार करने का समय आ गया है।

हिंदुत्व क्या है ?

सावरकर की आधिकारिक वेबसाइट का दावा है कि 'हिंदुत्व' शब्द वाली यह पुस्तिका 1923 में रत्नागिरी जेल में उनके बिताये गये समय के दौरान लिखी गयी थी। हालांकि, एक दूसरे सेक्शन  में उसी वेबसाइट का दावा है कि यह पुस्तिका 1921-22 में उस दौरान लिखी गयी थी, जब सावरकर को अंडमान में क़ैद किया गया था। जो भी हो,मगर यह पुस्तिका पहली बार मई 1923 में तब सामने आयी थी, जब सावरकर के दूर के रिश्तेदार वीवी केलकर ने छद्म नाम 'ए मराठा' से इसे प्रकाशित किया था। प्रकाशक की ओर से लिखी गयी टिप्पणी में लेखक के बारे में कोई जानकारी नहीं है।

उसी किताब का 1942 में प्रकाशित दूसरा संस्करण सावरकर को उस किताब के लेखक के रूप में श्रेय देता है और साफ़ करता है कि उनका नाम पहले इसलिए छोड़ दिया गया था, क्योंकि उन्हें क़ैद में रखा गया था। यह अजीब बात लगती है कि कैसे सावरकर ने इसकी पांडुलिपि को बाहर कामयाबी के साथ छुपाकर ले आये, लेकिन अपनी पहले की किताब, 'द फ़र्स्ट वॉर ऑफ़ इंडिपेंडेंस' के विपरीत उस किताब को ब्रिटिश प्रशासन ने स्वतंत्र रूप से प्रसारित करने की अनुमति दे दी थी। 1923 या 1942 में इस पुस्तिका पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया था। दूसरे संस्करण का समय भी उल्लेखनीय है। 1942 में कांग्रेस ने भारत छोड़ो प्रस्ताव को अपनाया था, और ब्रिटिश प्रशासन ने एम.ए. जिन्ना और सावरकर को बढ़ावा देकर सांप्रदायिकता को सुलगाना शुरू कर दिया था।

'वीर सावरकर प्रकाशन' की ओर से प्रकाशित दूसरे संस्करण के प्रकाशक के पन्ने पर एक श्लोक है:

आसिन्धु सिंधु-पर्यन्ता यस्य भारत-भूमिका

पितृभू: पुण्यभूश्चैव स वै हिंदुरिति स्मृतः

[हिंदू का अर्थ है-जो इस भूमि भारतवर्ष को सिंधु से समुद्र तक अपने पितृ-भूमि के साथ-साथ पवित्र भूमि के रूप में मानता हो, वही उनके धर्म की पालना भूमि है।]

प्रकाशक, एसएस सावरकर का दावा है कि "यह श्लोक पवित्र शास्त्रों के एक उद्धरण में सत्ता के इस्तेमाल के लिए आया है।" यह आत्मानुभूति पहले संस्करण के पृष्ठ 103 से दूसरे संस्करण में प्रकाशक के पन्न पर जाने के पीछे का कारण हो सकता है। उन्होंने इस श्लोक के साथ-साथ ऋग्वेद से लिये गये एक और श्लोक को उद्धृत किया है, जिसमें आर्य मूलवासी दासों के विनाश के लिए प्रार्थना करते हैं!

जो भी हो, यह श्लोक हिंदुत्व को परिभाषित करता है, जो यह कहता है कि इसमें दो अहम अपेक्षायें शामिल हैं। सबसे पहले, केवल वे ही हिंदुत्व के दायरे में आते हैं, जिनके पूर्वज इस देश के निवासी रहे हों,यानी कि "पितृ-भूमि" की धारणा। यह राष्ट्रीयता की पूर्व शर्त के अलावा और कुछ नहीं है, लेकिन मातृभूमि की लोकप्रिय धारणा के बजाय पितृभूमि शब्द का इस्तेमाल करके राष्ट्र को पितृसत्तात्मक आधार दिया गया है। 1857 के महान विद्रोह से ही भारत माता की जय साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ भारतीय संघर्ष का नारा था। सावरकर ने इस 'मां' की जगह 'पिता' कर कर दिया था।

सबसे ज़्यादा अहम तो बात यह थी कि इसमें 'पवित्र-भूमि' या पुण्यभूमि को शामिल किया गया था। इसे "किसी के ईश्वरदूत और द्रष्टाओं की भूमि, उसके अवतार और गुरुओं की भूमि, धर्मपरायणता और तीर्थ की भूमि" के रूप में परिभाषित किया गया था। इस परिभाषा का सीधा और साफ़ मतलब ईसाई और इस्लाम जैसे दूसरे धर्मों के लोगों को हिंदुत्व से बाहर करना है।

हिंदुत्व धार्मिक नहीं, वरन राजनीतिक पहचान:

सावरकर को अपने धर्म को परिभाषित करने का अधिकार भले ही हो, लेकिन इस पुस्तिका को आगे पढ़ने से साफ़ हो जाता है कि हिंदुत्व धर्म को नहीं, बल्कि नागरिकता को परिभाषित करता है। उनका दावा है कि भारत अनिवार्य रूप से एक हिंदू राष्ट्र है, और सिर्फ़ वही लोग जो उसकी परिभाषा के मुताबिक़ हिंदू हैं, देश की नागरिक होने के पात्र वही होंगे। इसलिए, यह राष्ट्रवाद की नस्लीय अवधारणा पर आधारित एक राजनीतिक पहचान है और इसका इस्तेमाल ग़ैर-हिंदुओं को इस नागरिकता से बाहर करने के लिए किया जाता है, यही वजह है कि वह भारत को "हिंदुस्थान" के रूप में संदर्भित करते हैं। दूसरे आरएसएस प्रमुख एमएस गोलवलकर ने अपनी किताब, 'वी ऑर अवर नेशनहुड डिफ़ाइंड' में धर्म की जातीय/नस्लीय अवधारणा को ज़्यादा ज़ोरदार ढंग से प्रतिपादित किया था। उनकी परिभाषा में तीन अहम घटकों वाले हिंदू राष्ट्र की संरचना को परिभाषित करने की मांग थी:

जहां हिंदू, जैन और बौद्ध हिंदुत्व के ढांचे के भीतर आते थे, वहीं इस्लाम, ईसाई और यहूदी इस ढांचे के भीतर नहीं आते थे।

हिंदुत्व से बाहर के लोगों को भी इस हिंदू राष्ट्र की नागरिकता से बाहर रखा गया था।

ग़ैर-हिंदुओं के लिए इस हिंदू राष्ट्र में नागरिकता हासिल करने की शर्त शादी या दूसरे तरीक़ों से हिंदू धर्म में धर्मांतरित होने की थी।

दरअस्ल,यह नस्लीय राष्ट्रवाद फ़ासीवादी जर्मनी और इटली से उधार ली गयी एक ऐसी अवधारणा थी, जिसने नस्लीय रूप से नागरिकों को विभाजित किया था और राष्ट्र के भीतर एक बाहरी व्यक्ति का निर्माण किया था। कोई आश्चर्य नहीं कि गोलवलकर ने खुले तौर पर हिटलर की सराहना की थी और आरएसएस के विचारक इस समय भी ज़ियोनवादी इजरायल की तारीफ़ करते हैं।

हिंदुत्व,सावरकर के दो राष्ट्रों का सिद्धांत है

सावरकर ने 1937 में अहमदाबाद में हिंदू महासभा को अपने पहले अध्यक्षीय भाषण से सम्बोधित करते हुए उस श्लोक का पाठ किया था,जिसका ज़िक़्र पहले किया जा चुका है और हिंदू महासभा के सामने उसे अंजाम दिये जाने का ऐलान किया था। उन्होंने कहा था कि इस मिशन का मक़सद 'हिंदू राष्ट्र' की उन्नति और गौरव के लिए हिंदू जाति, संस्कृति और सभ्यता की रक्षा, संरक्षण और संवर्धन करना है, जो कि "पूरी तरह से हिंदू राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करने वाला एक राष्ट्रीय निकाय" है।

उन्होंने कहा था कि हिंदू महासभा कोई धार्मिक नहीं, बल्कि एक ऐसी राजनीतिक संस्था है जिसका मक़सद हिंदू राष्ट्र की स्थापना करना है। उन्होंने कहा था, 'हिंदू अपने आप में एक राष्ट्र है। दरअस्ल यही दो राष्ट्रों के सिद्धांत का एक स्पष्ट प्रतिपादन था। सावरकर ने बिना किसी हिचक के कहा था कि "भारत में दो परस्पर विरोधी राष्ट्र—हिंदू और मुसलमान एक साथ रह रहे हैं।"

हिंदू राष्ट्र की यह अवधारणा मुस्लिम लीग के प्रस्तावित मुस्लिम राष्ट्र की अवधारणा के समानांतर थी। एक बार फिर इसका मक़सद धार्मिक नहीं, बल्कि राजनीतिक था। सावरकर अपने इस पहले सम्बोधन और बाद के हर एक सम्बोधन में देशवासियों से अपील करते रहे कि वे "सिर्फ़ उन्हें ही वोट दें, जो हिंदुत्व की रक्षा करने का संकल्प लेते हैं।" उन्होंने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश आकाओं को भी ख़ुश करने की भी कामना की, जब कांग्रेस ने युद्ध के प्रयासों में सहयोग करने से इनकार कर दिया था और भारत छोड़ो प्रस्ताव पारित कर दिया, जिसका नतीजा यह हुआ था कि तक़रीबन तमाम नेताओं को जेल में डाल दिया गया था।

सावरकर ने तब ख़ुद को हिंदुओं के नेता के रूप में पेश कर दिया था, उन्होंने ब्रिटिश सेना के लिए भर्ती अभियान चलाया था और कुछ समर्थकों को युद्ध परिषद में भी शामिल कराया था। कांग्रेस नेतृत्व की ग़ैर-मौजूदगी में ब्रिटिश शासकों ने उन जिन्ना और सावरकर को रिझाना शुरू किया कर दिया था, जिन्होंने भारत में वैकल्पिक प्रतिनिधित्व के विकास को आगे बढ़ाया।

हालांकि, कांग्रेस नेतृत्व के रिहा होने के बाद सावरकर अपनी दिलेरी को साबित कर पाने में नाकाम रहे। महासभा का चुनावों में प्रदर्शन ख़राब रहा। फिर भी, उन्होंने और जिन्ना ने जो विभाजन पैदा किया, उसने बांटों और राज करो की शाही नीति की सहायता की और आख़िरकार इसका नतीजा विभाजन के रूप में सामने आया।

हिंदुत्व हिंदु धर्म नहीं है:

सावरकर की पुस्तिका के तीसरे पेज पर एक उपशीर्षक है: "हिंदुत्व हिंदू धर्म से अलग है।" उनका कहना है कि हिंदुत्व महज़ "एक शब्द नहीं, बल्कि एक इतिहास है" और इसे ग़लत नहीं समझा जाना चाहिए या "दूसरे मिलते-जुलते शब्द का हिंदू धर्म के साथ घाल-मेल" नहीं करना चाहिए। न ही हिंदुत्व का सम्बन्ध सिर्फ़ हिंदुओं के धार्मिक इतिहास या हिंदू परंपराओं से है। दोनों के बीच के फ़र्क़ को साफ़ करते हुए वह लिखते हैं, "... जब हम हिंदुत्व के ज़रूरी अभिप्राय की पड़ताल करने की कोशिश करते हैं, तो हम प्राथमिक रूप से—और निश्चित रूप से मुख्य रूप से किसी विशेष धार्मिक या धार्मिक हठधर्मिता या पंथ से सम्बन्धित नहीं होते हैं।अगर भाषाई प्रयोग हमारे रास्ते में नहीं आये, तो 'हिंदुता' निश्चित रूप से हिंदु धर्म के समानांतर हिंदुत्व से बेहतर शब्द होता। हिंदुत्व हमारी हिंदू जाति के संपूर्ण अस्तित्व के विचार और गतिविधि के सभी क्षेत्रों को समाहित करता है।"

ज़ाहिर है, उन्होंने हिंदुत्व शब्द को हिंदू धर्म की किसी विशेषता का प्रतिनिधित्व करने के लिए तो नहीं ही गढ़ा था। इसे सुरक्षित रूप से उस राजनीतिक हिंदू धर्म के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जो इस्लाम, ईसाई धर्म और अन्य कथित ग़ैर-भारतीय धर्मों को छोड़कर जैन धर्म, सिख धर्म और बौद्ध धर्म को हिंदू धर्म में शामिल करता है। यह हिंदू धर्म को इसकी दार्शनिक और आध्यात्मिक सार से खारिज करते हुए एक अखंड राजनीतिक पहचान देने की एक कोशिश है। यह जर्मन और इतालवी फ़ासीवादियों से नस्लीय श्रेष्ठता के विचार को उधार लेता है, समग्रता की राजनीति को सांप्रदायिक बनाने को लेकर ग़ैर-हिंदू जैसी विकृतियां पैदा करता है। साथ ही साथ इस शब्द ने सांप्रदायिक सद्भाव के आह्वान करने वाले राष्ट्रवादी नेताओं का मुकाबला करने में अंग्रेज़ों को मदद पहुंचायी।

कथित भारतीय धर्मों को लेकर सावरकर के इस नज़रिये के सिलसिले में एक उल्लेखनीय तथ्य यह भी था कि उन्होंने बीआर अंबेडकर को अपने पाले में लाने की पुरज़ोर कोशिश की थी। फिर भी, जब अम्बेडकर ने हिंदू धर्म की जगह बौद्ध धर्म का चुनाव कर लिया, तो सावरकर ने अपने लेखों में उन्हें जमकर कोसा।

राजनीतिक हिंदुत्व हमेशा धार्मिक हिंदूत्व और धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवाद के ख़िलाफ़ खड़ा रहा है। सावरकर का लेखन न सिर्फ़ मुसलमानों, बल्कि उन गांधी, नेहरू, बोस, पटेल और दूसरे राष्ट्रवादी नेताओं के प्रति घृणा से भरा रहा है, जो कि ख़ुद ही हिंदू थे। यह नफ़रत दो राष्ट्रों के सिद्धांत के समर्थकों के लिए विशिष्ट है। जिन्ना ने मौलाना आज़ाद जैसे ग़ैर-लीगी मुसलमानों को नक़ली मुसलमान क़रार दिया था, वहीं सावरकर और उनके अनुयायी उन हिंदुओं को नक़ली कहते थे, जो हिंदुत्व का अनुसरण नहीं करते हैं। लीग के ग़ुंडों ने आज़ाद और शफ़ी अहमद किदवई जैसे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवादियों पर हमला किया था और सावरकर के एक शिष्य ने गांधी की हत्या कर दी थी। कपूर आयोग ने साफ़ तौर पर सावरकर को गांधी की हत्या के मुख्य साज़िशकर्ता के रूप में बताया था।

सावरकर का पुनरावतार और अंतहीन बहस

गांधी की हत्या का नतीजा यह हुआ कि हिंदू महासभा और सावरकर का लगातार पतन होता गया। जल्द ही आरएसएस ने महासभा को हिंदू सत्ता के प्रतिनिधि के रूप में बेदखल कर दिया और जनसंघ को अपने राजनीतिक मोर्चे के रूप में पेश कर दिया। श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अपना पाला बदल लिया, और उसके बाद सावरकर निर्जन जीवन जीते रहे, कभी-कभार व्याख्यान दे देते और 'सिक्स इपोक्स ऑफ़ इंडियन हिस्ट्री' जैसी बेहद प्रतिक्रियावादी किताबें लिखीं, जो एक हिंदू राष्ट्र की स्थापना के लिए एक राजनीतिक हथियार के रूप में बलात्कार तक की वकालत करती है।

जहां सावरकर को नये आरएसएस नेतृत्व और उसके राजनीतिक मोर्चों की ओर से ज़्यादा महत्व नहीं दिया गया, वहीं उन्होंने सावरकर की हिंदुत्व विचारधारा और एक हिंदू राष्ट्र की खोज का अनुसरण किया और उनका प्रचार-प्रसार किया। सार्वजनिक मंच पर उनकी क्षमादान याचिका के सामने आने के बाद सावरकर की छवि और ख़राब हुई। सावरकर 1990 के दशक तक राजनीतिक क्षेत्र के भीतर और बाहर काफ़ी हद भुला दिये गये एक व्यक्ति थे। हालांकि, सत्ता में आने के बाद भाजपा ने सावरकर के पुनरावतार की कोशिश शुरू की। मसलन, अंडमान में हवाई अड्डे का नाम उनके नाम पर रखा गया। पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान भाजपा नेताओं ने खुले तौर पर नाथूराम गोडसे की तारीफ़ करना शुरू कर दिया और भारत को एक हिंदू राष्ट्र घोषित करने के लिए संविधान में बदलाव की अपील की। दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं ने इस मौक़े का इस्तेमाल सावरकर की प्रशंसा करने, उनकी हिंदुत्व से नफ़रत की राजनीति और क्षमादान को लेकर की गयी उनकी कायरतापूर्ण कोशिश को सामान्य बनाने के समर्थन में मोटी-मोटी किताबें लिखने में किया है।

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान विकसित हुए इतिहास को सांप्रदायिक रंग देने और भारत के विचार को कलंकित करने की इस प्रक्रिया ने हिंदुत्व बनाम हिंदू धर्म की बहस को फिर से छेड़ दिया है। जहां संविधान की तरह हिंदू धर्म भारत में अविश्वास के साथ संघर्ष करता है, वहीं हिंदुत्ववादी ताक़तें अल्पसंख्यकों और धर्मनिरपेक्ष ताकतों को नीचा दिखाने पर तुली हुई हैं। यही वजह है कि दक्षिणपंथी अफ़वाह का यह कारखाना लगातार नेहरू और गांधी जैसी शख़्सियतों के चरित्र-हनन की साज़िशें रचता है।

किसी भी दूसरे धर्म की तरह हिंदू धर्म की भी अपनी ख़ामियां और सुंदरता हैं। हिंदू धर्म की एक धारा उस वसुधैव कुटुम्बकम, अहिंसा और सह-अस्तित्व की वकालत करती है, जिसे गांधी ने अपने व्यवहार में अपनाया था।उदाहरण के लिए गांधी ने अस्पृश्यता या अन्य जाति-आधारित प्रथाओं का विरोध करते हुए धर्मों के बीच और उसके भीतर सद्भाव को बढ़ावा देने की कोशिश की थी। अन्य सामाजिक आंदोलनों ने भी यही काम किया था, और हिंदू समाज के भीतर जाति और लिंगगत ग़ैर-बराबरी को ख़त्म करने के लिए अभी भी बहुत कुछ करने की और ज़रूरत है। हालांकि, हिंदुत्व एक ऐसी हिंसक वैचारिक धारा बन गयी है, जो हिंदू समाज के भीतर की खामियों को छिपाने, उच्च जाति के आधिपत्य को स्थापित करने, पितृसत्ता का समर्थन करने और मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने और राजनीतिक लाभ हासिल करने को लेकर सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा देने की कोशिश करती है। समय आ गया है कि दक्षिणपंथी राजनीति के दोहरेपन को मुखर रूप से बेनकाब किया जाये और संविधान को बचाने के लिए हिंदुत्व के विश्वासघाती विचार का कड़ा विरोध किया जाये।

लेखक ने कश्मीर और गांधी पर किताबें लिखी हैं। सावरकर पर उनकी अगली किताब जल्द ही प्रकाशित होने वाली है। इनके व्यक्त विचार निजी हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Hindu Right should Know: Savarkar said Hindutva isn’t Hinduism

Savarkar
Hindutva
Gandhi
Golwalkar
Jinnah
Communalism
Hindus
Violence
Quit India
World War II
hinduism
constitution
Ambedkar
Rahul Gandhi

Related Stories

डिजीपब पत्रकार और फ़ैक्ट चेकर ज़ुबैर के साथ आया, यूपी पुलिस की FIR की निंदा

ED के निशाने पर सोनिया-राहुल, राज्यसभा चुनावों से ऐन पहले क्यों!

ईडी ने कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी को धन शोधन के मामले में तलब किया

विचारों की लड़ाई: पीतल से बना अंबेडकर सिक्का बनाम लोहे से बना स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी

मोदी@8: भाजपा की 'कल्याण' और 'सेवा' की बात

ओटीटी से जगी थी आशा, लेकिन यह छोटे फिल्मकारों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा: गिरीश कसारावल्ली

तिरछी नज़र: ये कहां आ गए हम! यूं ही सिर फिराते फिराते

विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक

कांग्रेस के चिंतन शिविर का क्या असर रहा? 3 मुख्य नेताओं ने छोड़ा पार्टी का साथ

ज्ञानवापी कांड एडीएम जबलपुर की याद क्यों दिलाता है


बाकी खबरें

  • विजय विनीत
    ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां
    04 Jun 2022
    बनारस के फुलवरिया स्थित कब्रिस्तान में बिंदर के कुनबे का स्थायी ठिकाना है। यहीं से गुजरता है एक विशाल नाला, जो बारिश के दिनों में फुंफकार मारने लगता है। कब्र और नाले में जहरीले सांप भी पलते हैं और…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत
    04 Jun 2022
    केरल में कोरोना के मामलों में कमी आयी है, जबकि दूसरे राज्यों में कोरोना के मामले में बढ़ोतरी हुई है | केंद्र सरकार ने कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए पांच राज्यों को पत्र लिखकर सावधानी बरतने को कहा…
  • kanpur
    रवि शंकर दुबे
    कानपुर हिंसा: दोषियों पर गैंगस्टर के तहत मुकदमे का आदेश... नूपुर शर्मा पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं!
    04 Jun 2022
    उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था का सच तब सामने आ गया जब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के दौरे के बावजूद पड़ोस में कानपुर शहर में बवाल हो गया।
  • अशोक कुमार पाण्डेय
    धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है
    04 Jun 2022
    केंद्र ने कश्मीरी पंडितों की वापसी को अपनी कश्मीर नीति का केंद्र बिंदु बना लिया था और इसलिए धारा 370 को समाप्त कर दिया गया था। अब इसके नतीजे सब भुगत रहे हैं।
  • अनिल अंशुमन
    बिहार : जीएनएम छात्राएं हॉस्टल और पढ़ाई की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर
    04 Jun 2022
    जीएनएम प्रशिक्षण संस्थान को अनिश्चितकाल के लिए बंद करने की घोषणा करते हुए सभी नर्सिंग छात्राओं को 24 घंटे के अंदर हॉस्टल ख़ाली कर वैशाली ज़िला स्थित राजापकड़ जाने का फ़रमान जारी किया गया, जिसके ख़िलाफ़…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License