NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
ऐतिहासिक नियति ने किसान-आंदोलन के साथ भारत के लोकतन्त्र की तकदीर नत्थी कर दी है
अधिनायकवादी सत्ता के खिलाफ किसानों की यह लड़ाई भारतीय लोकतन्त्र के भविष्य की दिशा तय करेगी।
लाल बहादुर सिंह
21 Aug 2021
ऐतिहासिक नियति ने किसान-आंदोलन के साथ भारत के लोकतन्त्र की तकदीर नत्थी कर दी है
फ़ोटो साभार: सोशल मीडिया

मोदी जी की लोकप्रियता में अकल्पनीय गिरावट हो रही है तो उसमें पिछले 9 महीने से राजधानी की सीमाओं पर जारी ऐतिहासिक किसान आंदोलन का अहम योगदान है, भले ही मीडिया में इसे नोट न किया जा रहा हो।

जिस कृषि से आधी आबादी सीधे तौर पर और दो तिहाई आबादी अप्रत्यक्ष तौर पर जुड़ी है, उसके प्रति मोदी सरकार के क्रूर बर्ताव ने उस विराट आबादी के बीच तो उसे अलोकप्रिय बनाया ही है, समाज के अन्य तबकों के संवेदनशील लोगों में भी किसानों के प्रति सहानुभूति है तथा सरकार के इस रुख को लेकर दुःख और नाराजगी है।

सर्वोपरि, किसान-आंदोलन ने 9 महीने में पूरे देश का माहौल बदल कर रख दिया है, जिस तरह सेकुलर लोकतान्त्रिक एजेंडा स्थापित हुआ है और आंदोलन ने जाति-धर्म-क्षेत्र-लिंग के पार जनता की चट्टानी एकता कायम की है, उसके चलते लाख कोशिशों के बावजूद समाज में ध्रुवीकरण कर पाने और नैरेटिव बदलने में संघ-भाजपा कामयाब नहीं हो पा रही हैं। 

इंडिया टुडे के जिस " मूड ऑफ द नेशन " सर्वे के अनुसार पिछले 1 साल में मोदी जी की लोकप्रियता में कल्पनातीत गिरावट हुई है, ( एक वर्ष में 66% से गिरकर 24% !)  उसी सर्वे की एक बेहद दिलचस्प finding यह है कि आधे से अधिक, 51% लोग उपलब्धि के नाम पर उनके खाते में सबसे ऊपर मानते हैं धारा 370 हटाना और राममंदिर, अर्थात अपने जीवन-रोजी-रोटी से जुड़े किसी मुद्दे पर  लोग उनके किसी काम को इस लायक नहीं समझते कि उसे उनकी बड़ी उपलब्धि कहा जाय, उल्टे 83% लोग देश में बेरोजगारी की स्थिति को गम्भीर मानते हैं और बेकारी-महंगाई को मोदी सरकार की सबसे बड़ी विफलता मानते है। 

मोदी की लोकप्रियता में गिरावट का कारण लोगों की यही अनुभूति है कि मोदी सरकार उनके जीवन के असली सवालों पर fail हो गयी है, कोरोना के दौरान सरकार की आपराधिक नाकामी और non-performance ने इस जख्म को और गहरा कर दिया है।

जीवन के जलते सवाल धारा 370, मंदिर जैसे ध्रुवीकरण के संकीर्ण भावनात्मक सवालों पर भारी  पड़ गए और देखते देखते मोदी की पॉपुलैरिटी धड़ाम ही गयी। मोदी जी का प्रिय जुमला इस्तेमाल किया जाय तो पिछले 70 ( नहीं 74 ! ) साल में यह पहली बार हुआ है कि किसी PM की लोकप्रियता में इतने कम समय में इतनी बड़ी गिरावट हुई है। महज साल भर पहले जहां 66% लोग उन्हें अगले PM के रूप में देखना चाहते थे, वहीं अब महज 24% लोग ऐसा चाहते हैं अर्थात 76% लोग उन्हें अब अगला PM नहीं देखना चाहते !

यह अनायास नहीं है कि किसान-आंदोलन से हो रहे नुकसान के डैमेज कंट्रोल के लिए RSS के किसान संगठन- भारतीय किसान संघ-ने मांग किया है कि सरकार इस बात की कानूनी गारण्टी करे कि किसानों को MSP सचमुच मिल सके, कोई भी उससे कम पर खरीद न कर सके। सरकार को " चेतावनी " देते हुए उसने कहा है कि इस महीने के अंत तक सरकार किसानों की इस मांग को नहीं मानती तो 8 सितंबर को राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिवाद होगा।

क्या यह किसी नए खेल की जमीन तैयार की जा रही है ? क्या यह 26-27 अगस्त के किसानों के राष्ट्रीय सम्मेलन और 5 सितंबर की मुजफ्फरनगर की विराट महापंचायत से  मिशन UP व उत्तराखंड का जो आगाज़ होने जा रहा है, उसकी पेशबंदी है ? क्या मोदी सरकार UP चुनाव आते आते किसान-आंदोलन पर u turn लेगी ? जाहिर है इन सवालों का जवाब अभी भविष्य के गर्भ में है। 

पर इस बीच दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का ऐतिहासिक आंदोलन न सिर्फ पूरी शान और ओज के साथ जारी है बल्कि हर बीतते दिन के साथ और व्यापक, गहरा, संकल्पबद्ध और व्यवस्थित होता जा रहा है। किसान-संसद के exemplary आयोजन ने आन्दोलन की वैधता और गरिमा को उच्चतर धरातल पर स्थापित किया है। आंदोलन के 9 महीने पूरे होने के अवसर पर मोर्चा 26-27 अगस्त को दिल्ली में एक अखिल भारतीय सम्मेलन का आयोजन कर रहा है, यह सम्मेलन सिंघू बॉर्डर पर होगा, जो पिछले 9 महीने से आंदोलन का मुख्यालय बना हुआ है।

संयुक्त किसान मोर्चा के बयान में कहा गया है, "  राष्ट्रीय सम्मेलन में भारत के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति देखी जाएगी। किसानों और उनकी मांगों के प्रति केंद्र सरकार के अहंकारी, संवेदनहीन और अलोकतांत्रिक रवैये पर चर्चा और विचार-विमर्श किया जाएगा और आंदोलन की आगे की दिशा और कार्यक्रम संयुक्त रूप से तय किया  जाएगा। केंद्र सरकार ने हमेशा यह दिखाने की कोशिश की है कि यह ऐतिहासिक किसान आंदोलन महज कुछ राज्यों तक सीमित है, उसने इस तथ्य की अनदेखी की है कि देश भर के किसान जीवित रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यह सम्मेलन केंद्र सरकार के झूठ के कफ़न में एक और कील साबित होगा। '

यह किसान आंदोलन की बढ़ती ताकत का ही सबूत है कि मोदी जी के चहेते, देश के बड़े कारपोरेट हाउस, अडानी ग्रुप को पंजाब, लुधियाना के किला रायपुर में अपना Adani Logistics Park ( जिसे स्थानीय तौर पर खुश्क ( dry ) बंदरगाह ) बंद करने की घोषणा करनी पड़ी है। पंजाब हाई कोर्ट में दाखिल application में उन्होने कहा है कि किसानों के जनवरी से ( जब से किसान-आंदोलन ने अम्बानी-अडानी को निशाने पर लिया ) लगातार जारी विरोध के कारण उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है, इसलिए उन्होंने इसे बंद करने का फैसला किया है। बेशक, शुरू में स्थानीय किसानों में अडानी की ताकत को देखते हुए थोड़ी हिचक थी, आखिर मोदी जी के सबसे नजदीकी कारपोरेट से टकराने का मामला था। पुलिस ने भी काफी दबाव बनाया लेकिन किसान डटे रहे। अंततः अडानी को भागना पड़ा । जाहिर है आंदोलनरत किसान इसे अपनी जीत मानते हैं। 

किसानों ने 75वें स्वतंत्रता दिवस को ‘किसान मजदूर आजादी संग्राम दिवस’ के रूप में मनाया, वहीं किसानों को अपना समर्थन देने के लिए, प्रवासी भारतीयों द्वारा दुनिया के विभिन्न हिस्सों में ‘स्लीप-आउट कार्यक्रम’ आयोजित किए गए। इसमें वैंकूवर, लंदन, सैन होज़े (संयुक्त राज्य), सिएटल, टोरंटो, वियना आदि शामिल हैं। लंदन में, टेम्स नदी पर, प्रसिद्ध वेस्टमिंस्टर ब्रिज पर एक विशाल बैनर फहराया गया था जिसमें प्रधान मंत्री मोदी के इस्तीफे की मांग की गई। जिसकी तस्वीर सोशल मीडिया पर  वायरल हुई। 

स्वतंत्रता दिवस के दिन मोदी जी किसान आंदोलन पर तो कुछ नहीं बोले, उन्होंने एक नया जुमला जरूर उछाल दिया," छोटा किसान, देश की शान "।  उनके हित में किसी ठोस कल्याणकारी योजना की बजाय उनके सशक्तीकरण के लिए सबसे बड़ा नुस्खा उन्होने जो पेश किया वह था फसल बीमा योजना।

पर इस योजना की हकीकत तो कुछ और है जो इसके बारे में शुरू से ही किए जा रहे प्रचार और झूठे दावों की पोल-पट्टी खोल देती है। संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा, "  इसकी कहानी उतनी ही झूठी और क्रूर है, जितनी MSP की कहानी, और फिर से पीएम ने हमारे राष्ट्रीय ध्वज के नीचे खड़े होकर झूठे दावे किए। "

" नवीनतम आंकड़े बताते हैं कि निजी बीमा कंपनियों ने 2018-19 और 2019-20 में किसानों, राज्य सरकारों और केंद्र सरकार से सकल प्रीमियम के रूप में 31905.51 करोड़ रुपये एकत्र किए, जबकि भुगतान किए गए दावों की राशि केवल 21937.95 करोड़ रुपये थी, अर्थात लगभग 10 हजार करोड़ रू0 (सिर्फ 2 साल में) निजी बीमा कंपनियों ने लूट लिए। "

" यह ध्यान देने योग्य है कि स्वयं मोदी जी के गृहराज्य गुजरात तथा आंध्र प्रदेश, बिहार, झारखंड, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना ( PMFBY ) से बाहर होने का विकल्प चुना है। इस योजना के अंतर्गत आने वाले किसानों की संख्या में साल दर साल तेजी से गिरावट आ रही है। उदाहरण के लिए, खरीफ सीजन के दौरान, 2018 में कवर किए गए किसानों की संख्या 21.66 लाख, 2019 में 20.05 लाख, 2020 में 16.79 लाख और 2021 में केवल 12.31 लाख थी। कवरेज में गिरावट की कहानी साल दर साल रबी फसल में भी मौजूद है। खरीफ 2018 के दौरान बीमित क्षेत्र 2.78 करोड़ हेक्टेयर था, जिसमें खरीफ 2021 में 1.71 करोड़ हेक्टेयर की महत्वपूर्ण गिरावट देखी गई। ये आंकड़े विफल फसल बीमा योजना की वास्तविक कहानी कहते हैं। प्रधानमंत्री का इस योजना का उल्लेख करते हुए छोटे किसान की शक्ति बढ़ाने वाला बताना चौंकाने वाला है। " 

कृषि पर संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट में भी स्वीकार किया गया है कि निजी बीमा कंपनियों को प्रीमियम के तौर पर जितनी राशि मिली और कंपनियों द्वारा नुकसान के एवज में जो राशि किसानों को दी गई, अगर इसकी तुलना की जाए तो बीमा कंपनियों ने 30 फीसदी से अधिक की बचत की है।

इस विफल योजना की तुलना ऐसी ही दूसरी हवा-हवाई बीमा योजना " आयुष्मान " से की जा सकती है जिसे प्रधानमंत्री स्वास्थ्य के क्षेत्र में गेम चेंजर बताते थे, लेकिन जब कोविड आपदा के दौरान सरकारी तौर पर करीब साढ़े 4 लाख और गैर सरकारी तौर पर इससे कई गुना ज़्यादा लोग इस देश में मर गए, यह योजना पीड़ितों की कोई मदद नहीं कर सकी। 

दरअसल, छोटे किसानों का दर्द मोदी जी को अचानक इसलिए सताने लगा है ताकि किसान आंदोलन को बड़े किसानों का बताकर बदनाम किया जाय और छोटे किसानों को आंदोलन से अलग करके उसके खिलाफ खड़ा किया जाय।

छोटे किसानों के लिए अचानक घड़ियाली आंसू बहाने वाले मोदी ने क्या छोटे किसानों के हित के लिए कुछ किया ?

5 किलो अनाज के झोले पर फोटो लगाकर प्रचार चाहे जितना हो, आज सच्चाई यह है कि मोदी-राज की महंगाई की सौगात ने गरीब किसानों का जीवन दूभर कर दिया है।

पूर्वांचल के किसान नेता शिवाजी राय की गणना के अनुसार 1 बीघे वाले किसान की जिसे MSP नहीं मिल पा रही है, साल भर में खेती से बचत 12 से 14 हजार रू की है। अगर उसके खर्चों पर गौर किया जाय तो 6 सदस्यों के परिवार के केवल खाने की गैस ( जिसका दाम मोदी राज में 400 से बढ़कर 900 रुपये पहुँच गया है ) भराने का साल भर का खर्च 11 हजार हो गया है। अब अगर इसमें केवल दाल का 19 हजार साल भर का खर्च जोड़ दिया जाय ( जिसकी कीमत मोदी राज में 100 से बढ़कर 180 रुपये किलो हो गयी है ) तो उसे 15 हजार रुपये या तो कर्ज़ लेना होगा या कहीं मजदूरी करना होगा।  मोदी जी द्वारा दी जा रही 6 हजार सम्मान निधि और 6 व्यक्ति के परिवार को ( 95 रुपये का प्रति व्यक्ति प्रति महीने की दर से अनाज ) साल भर में 7200 का अनाज जोड़ लिया जाय, तो भी इस दान से किसान परिवार का गैस और दाल का खर्चा भी पूरा होने वाला नहीं। उसके और सब घर के खर्चे, बच्चों की पढ़ाई, दवा-इलाज, कपड़ा-लत्ता, बिजली, मोबाइल, किराया, आना-जाना सब भगवान भरोसे है।

यही है छोटे किसान के लिए मोदी जी के दर्द का सच !

बहरहाल, किसान-आंदोलन के दबाव में हाल ही में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को कृषि बाजार समितियों के पुनरुद्धार और विकास की घोषणा करनी पड़ी, बिहार सरकार की यह घोषणा उनकी 2006 से अब तक जारी सरकारी मंडी के खात्मे की नीति का reversal है और  मोदी सरकार के कृषि कानूनों के लिए झटका है। 

इस बीच उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में किसान-आंदोलन की हलचल बढ़ती जा रही है। 18 अगस्त को लखनऊ में उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड के किसान नेताओं की बैठक हुई और मिशन UP-UK तेज करने की योजनाओं पर विचार हुआ। 23 अगस्त को जनपक्षधर बुद्धिजीवियों, नागरिक समाज के कार्यकर्ताओं की ओर से लखनऊ लोहिया भवन में एक कार्यक्रम का आयोजन हो रहा है जिसमें बुद्धिजीवी पी साईनाथ और किसान आंदोलन के सम्मानित नेता बलबीर सिंह राजेवाल अपनी बात रखेंगे। 

मोदी सरकार के केंद्रीय मंत्रियों को जगह-जगह किसानों के आक्रोश का सामना करना पड़ रहा है। केंद्रीय रक्षा और पर्यटन राज्य मंत्री अजय भट्ट को अपनी जन आशीर्वाद यात्रा के दौरान स्थानीय किसानों के आक्रोश का सामना करना पड़ा। किसानों के छापामार प्रदर्शनों से बेहाल मंत्री अपना रथ छोड़कर चुपके से दूसरी वाहन से रुद्रपुर कार्यक्रम स्थल पर कई घण्टे विवम्ब से पहुँच पाए। मुजफ्फरनगर में केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी राज्य मंत्री संजीव कुमार बाल्यान के खिलाफ भाकियू टिकैत द्वारा एक अल्टीमेटम जारी किया गया है कि अगर उन्होंने किसानों के मुद्दों का जल्द समाधान नहीं किया, तो उन्हें क्षेत्र में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। 

किसान-आंदोलन अपने लक्ष्य के अनुरूप एक सधी राजनीतिक दिशा और रणनीति पर आगे बढ़ रहा है। एक ओर संयुक्त किसान मोर्चा बंगाल के सफल प्रयोग के बाद UP व UK में भाजपा की घेरेबंदी के रास्ते पर बढ़ रहा है, दूसरी ओर शीर्ष नेताओं में से एक गुरनाम सिंह चढूनी के उस विचार को मोर्चा ने खारिज कर दिया जिसमें वे पार्टी बनाकर पंजाब में मॉडल देने की बात कर रहे थे, इस आशय के उनके सार्वजनिक बयानों पर सख्त रुख अपनाते हुए मोर्चा ने उन्हें निलंबित भी कर दिया था। जल्द ही मोर्चे के निर्णय को मानते हुए चढूनी ने चुनाव में प्रवेश करने के अपने बयान को वापस ले लिया और  कहा कि वे किसी भी राजनीतिक दल का गठन नहीं करेंगे। 

अब 5 सितंबर मुजफ्फरनगर की राष्ट्रीय महापंचायत की ओर सबकी निगाहें लगी हुई हैं, जहां मिशन UP-UK को लेकर अहम एलान की उम्मीद है।

किसान आंदोलन के बड़े नेता जोगिंदर सिंह उगराहा ने न्यूज़क्लिक की वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह से बात करते हुए सरकार के किसान विरोधी रुख पर हमला करते हुए कहा, " ये जो इनका ईगो है, अहंकार है, वह इनका नाश कर देगा। हम तब तक लड़ते रहेंगे जब तक इन्हें खत्म नहीं कर देते।"

जाहिर है मोदी का अहंकार ही नहीं कारपोरेट का हित भी दांव पर है, यह दोनों का एक खतरनाक कॉकटेल है जो आज किसान आंदोलन पर मोदी सरकार की नीति को निर्धारित कर रहा है। देखना यही है कि किस हद तक कारपोरेट पक्षधरता में मोदी जी सियासी हाराकीरी की अपनी मौजूदा नीति पर टिके रहते हैं।

किसानों के लिए तो यह कम्पनी राज और उसकी पैरोकार सरकार से अपनी अस्तित्व रक्षा का निर्णायक संघर्ष है, जिससे पीछे हटने का विकल्प उनके पास नहीं है।

ऐतिहासिक नियति ने किसान-आंदोलन के साथ भारत के लोकतन्त्र की तकदीर नत्थी कर दी है। अधिनायकवादी/फासीवादी सत्ता के खिलाफ किसानों की यह लड़ाई भारतीय लोकतन्त्र के भविष्य की दिशा तय करेगी।

(लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं।  विचार व्यक्तिगत हैं।)

farmers protest
Farm Bills
democracy
Save Democracy
kisan andolan
Narendra modi
Modi government
National Mahapanchayat

Related Stories

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

छात्र संसद: "नई शिक्षा नीति आधुनिक युग में एकलव्य बनाने वाला दस्तावेज़"

दलितों पर बढ़ते अत्याचार, मोदी सरकार का न्यू नॉर्मल!

जन-संगठनों और नागरिक समाज का उभरता प्रतिरोध लोकतन्त्र के लिये शुभ है

राम सेना और बजरंग दल को आतंकी संगठन घोषित करने की किसान संगठनों की मांग

विशाखापट्टनम इस्पात संयंत्र के निजीकरण के खिलाफ़ श्रमिकों का संघर्ष जारी, 15 महीने से कर रहे प्रदर्शन

आईपीओ लॉन्च के विरोध में एलआईसी कर्मचारियों ने की हड़ताल

नौजवान आत्मघात नहीं, रोज़गार और लोकतंत्र के लिए संयुक्त संघर्ष के रास्ते पर आगे बढ़ें

सार्वजनिक संपदा को बचाने के लिए पूर्वांचल में दूसरे दिन भी सड़क पर उतरे श्रमिक और बैंक-बीमा कर्मचारी

झारखंड: केंद्र सरकार की मज़दूर-विरोधी नीतियों और निजीकरण के ख़िलाफ़ मज़दूर-कर्मचारी सड़कों पर उतरे!


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    डिजीपब पत्रकार और फ़ैक्ट चेकर ज़ुबैर के साथ आया, यूपी पुलिस की FIR की निंदा
    04 Jun 2022
    ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर पर एक ट्वीट के लिए मामला दर्ज किया गया है जिसमें उन्होंने तीन हिंदुत्व नेताओं को नफ़रत फैलाने वाले के रूप में बताया था।
  • india ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट
    03 Jun 2022
    India की बात के इस एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, अभिसार शर्मा और भाषा सिंह बात कर रहे हैं मोहन भागवत के बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को मिली क्लीनचिट के बारे में।
  • GDP
    न्यूज़क्लिक टीम
    GDP से आम आदमी के जीवन में क्या नफ़ा-नुक़सान?
    03 Jun 2022
    हर साल GDP के आंकड़े आते हैं लेकिन GDP से आम आदमी के जीवन में क्या नफा-नुकसान हुआ, इसका पता नहीं चलता.
  • Aadhaar Fraud
    न्यूज़क्लिक टीम
    आधार की धोखाधड़ी से नागरिकों को कैसे बचाया जाए?
    03 Jun 2022
    भुगतान धोखाधड़ी में वृद्धि और हाल के सरकारी के पल पल बदलते बयान भारत में आधार प्रणाली के काम करने या न करने की खामियों को उजागर कर रहे हैं। न्यूज़क्लिक केके इस विशेष कार्यक्रम के दूसरे भाग में,…
  • कैथरिन डेविसन
    गर्म लहर से भारत में जच्चा-बच्चा की सेहत पर खतरा
    03 Jun 2022
    बढ़ते तापमान के चलते समय से पहले किसी बेबी का जन्म हो सकता है या वह मरा हुआ पैदा हो सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि गर्भावस्था के दौरान कड़ी गर्मी से होने वाले जोखिम के बारे में लोगों की जागरूकता…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License