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मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
पीएम मोदी ने मधुर भाषा में फिर से पुराने पैकेज को पेश किया
ग़रीब कल्याण रोज़गार अभियान अपने आप में कुछ नहीं बल्कि 12 मंत्रालयों/विभागों की मौजूदा योजनाओं को जोड़ कर बनाया गया नया कार्यक्रम है, और इसके लिए बिहार विधानसभा चुनाव को भाजपा ने अगला लक्ष्य बनाया है।
सुबोध वर्मा
23 Jun 2020
Translated by महेश कुमार
PM Modi Migrant Labour

20 जून को प्रधानमंत्री मोदी ने घोषणा की कि गरीब कल्याण रोज़गार अभियान (जीकेआरए) के तहत एक टिकाऊ ग्रामीण बुनियादी ढांचे का निर्माण किया जाएगा और प्रवासियों को नौकरी देने के लिए इसके तहत 50,000 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। उन्होंने इसकी घोषणा ग्रामीणों की भरी-पूरी प्रशंसा करके की, और कहा की उन्होने "कोरोनोवायरस को ग्रामीण भारत में फैलने से प्रभावी ढंग से रोका है", एक ऐसा दावा जो सच्चाई से बहुत दूर है। लेकिन मोदी के अधिकांश दावे कुछ इसी तरह के है।

तो, यह जीकेआरए क्या बला है? 24 मार्च की मध्यरात्रि से शुरू होने वाले देशव्यापी लॉकडाउन के बाद शहरों से गांवों की तरफ पलटे और लौटे प्रवासियों द्वारा पहले से भयावह बेरोजगारी के संकट को कैसे हल किया जाएगा, जबकि लॉकडाउन में जून के महीने में कुछ हद तक ढ़ील दी गई है?

मोदी के अनुसार, गांवों में रोजगार के लिए 25 रोजगार के क्षेत्रों की पहचान की गई है, जिसमें गरीबों के लिए ग्रामीण आवास, वृक्षारोपण, जल जीवन मिशन के माध्यम से पेयजल की व्यवस्था, पंचायत भवन बनाना, सामुदायिक शौचालय का निर्माण, ग्रामीण मंडियां, ग्रामीण सड़कें, मवेशी शेड का निर्माण, आंगनवाड़ी भवन आदि, इनमें से अधिकांश में निर्माण गतिविधि शामिल है।

प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में उच्च गति और सस्ते इंटरनेट जैसी आधुनिक सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी। दूसरे शब्दों में, एक अन्य गतिविधि जिसमें ऑप्टिक फाइबर केबल बिछाने और संबंधित कार्य भी अभियान का एक हिस्सा होगा।

मोदी ने जोर देकर कहा कि ये सभी काम शहरों में जाए बिना, गांव में रहते हुए किए जा सकते हैं। यह अभियान 125 दिनों तक चलेगा और इसे उन छह राज्यों के 116 जिलों में लागू किया जाएगा, जिनमें बड़े पैमाने पर प्रवासी श्रमिक मौजूद हैं। ये हैं: बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, झारखंड और ओडिशा।

यह भी कहा गया कि प्रत्येक मजदूर के कौशल को मैप किया जाएगा और उसके कौशल के हिसाब से  उसे उपयुक्त नौकरी दी जाएगी। इन बिन्दु पर आकर यह पूरा विचार ठोकर खाना शुरू कर देता है और यहां आकर ऐसा महसूस होने लगता है – कि हमेशा की तरह – यह भी एक धोखेबाज़ी या बड़े झांसे की कहानी से कम नहीं है। यदि उपलब्ध की जाने वाली अधिकांश नौकरियां नागरिक कार्य या निर्माण कार्य से संबंधित हैं, तो कौशल को मॅप करने का क्या फायदा और सभी के कौशल को कैसे समायोजित किया जाएगा?

पुरानी बोतल, नई शराब 

यदि आप इस भव्य योजना के लिए आवंटित फंडिंग को देखना शुरू करें, तो विचार और भी अधिक थका हुआ या पुराना लगता है। जैसा कि इस सरकार की प्रथा रही है, उसने इस कार्यक्रम के लिए भी अपनी ओर से कोई अतिरिक्त फंड आवंटित नहीं किया है। इस अभियान के लिए 12 अलग-अलग मंत्रालयों/ विभागों की पहले से मौजूद योजनाओं/कार्यक्रमों को एक साथ मिलाकर इसे लागू किया जाएगा, जिसमें ग्रामीण विकास, पंचायती राज, सड़क परिवहन और राजमार्ग, खान, पेयजल और स्वच्छता, पर्यावरण, रेलवे, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस, नई और नवीकरणीय ऊर्जा, सीमा सड़कें, दूरसंचार और कृषि शामिल है।

इसलिए, उदाहरण के तौर पर, भारत नेट के लिए फाइबर ऑप्टिक केबल बिछाना पहले से ही योजना का हिस्सा था और इस साल के बजट में इसके लिए पहले से ही धनराशि आवंटित कर दी गई थी। यह योजना अब जीकेआरए का हिस्सा बन गई है। ग्रामीण सड़कों, आंगनवाड़ी केंद्रों और पंचायत सभाओं आदि के लिए भी यही तथ्य सही है।

मोदी सरकार ने जो बड़ी ही होशियारी की है, वह यह कि इन गतिविधियों के लिए पहले से ही निर्धारित धनराशि 116 जिलों को जारी कर दी जाएगी। यह अपने आप में एक विवादास्पद प्रश्न है कि यह कैसे अतिरिक्त नौकरियों को पैदा करने में मदद करेगा - बाद में भी, इसी काम को उन लोगों द्वारा किया जाएगा, जो अधिकतर लोग स्थानीय होंगे। अब, यह स्थानीय लोगों की उसी संख्या के द्वारा किया जाएगा। इससे होने वाला क्या है, कि आप बेरोजगारी के संकट को कुछ हद तक टाल देगे, जैसे कि लगा लो, दो-तीन महीने तक। न इससे कुछ ज्यादा, न इससे कुछ कम।

बिहार विधानसभा चुनाव चिंता का विषय है  

अब, इन 116 जिलों पर एक नजर डालते हैं। बताया गया है कि इनका चयन 25,000 प्रवासी श्रमिक की संख्या के आधार पर किया गया है। कोई भी जिला जिसके भीतर इतने प्रवासी आए हैं उसे कम से कम जीकेआरए में शामिल किया गया है। इस संबंध में डेटा उपलब्ध नहीं है, लेकिन छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने उनके राज्य को शामिल नहीं किए जाने का पुरजोर विरोध किया है और इससे पता चलता है कि जिलों को तय कराते वक़्त कुछ पूर्वाग्रहों को ध्यान में रखा गया है। जबकि पांच लाख से अधिक प्रवासी छत्तीसगढ़ लौटे हैं।

फिर, एक तथ्य यह है कि बिहार के 38 में से 32 जिलों को इस सूची में शामिल किया गया हैं। इस कार्यक्रम का शुभारंभ बिहार के पिछड़े जिलों में से एक खगड़िया से किया गया। स्पष्ट रूप से, मोदी के पास इस सब में उनका एक एजेंडा छिपा है, और इसे देखना मुश्किल नहीं है। 

बिहार में इस साल अक्टूबर में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। गृहमंत्री अमित शाह पहले ही बिहार में एक आभासी सार्वजनिक रैली कर चुके हैं। मोदी की घोषणा और चुनाव कोई संयोग की बात नहीं है - यह चुनाव के बिगुल की आवाज है। इसीलिए महामारी से लड़ने में ग्रामीणों और उनकी "वीरता" और "साहस" की प्रशंसा की जा रही है। यही कारण है कि प्रवासियों की दुर्दशा और इस कार्यक्रम पर जोर देने से उन्हें सबसे अधिक राजनीतिक मदद मिलेगी।

मोदी को पता है कि शहर लौटे प्रवासी मजदूरों की संख्या - एक रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 67 लाख है, जिसमें से कुछ 23.6 लाख मजदूर बिहार से हैं – जिन्हे इस आघात का सामना करना पड़ा था जब लॉकडाउन होने पर बिना किसी नौकरी या कमाई के अचानक उनके दम पर छोड़ दिया गया था। फिर उन्हें अपने गाँवों में वापस लौटने पर भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उन्हें वापस लाने के लिए श्रमिक ट्रेनों को कुछ हफ्तों बाद शुरू किया गया था। एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में कुल 15 में से आठ जिले ऐसे हैं जहां एक लाख से अधिक प्रवासी वापस आए हैं।

इसलिए, बिहार में आने वाले चुनावी युद्ध में, नीतीश कुमार की नेतृत्व वाली सरकार के खिलाफ बाधाओं का अंबार लगा हुआ है, जिसमें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) भी शामिल है। याद रखें कि 2015 में बिहार में सरकार विपक्षी राष्ट्रीय जनता दल के साथ गठबंधन से बनी थी, जिसे नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ मिलकर तोड़ दिया था और नई सरकार भाजपा के साथ बनाई थी। इसलिए नीतीश कुमार और बीजेपी के गठबंधन को इन कठिन परिस्थितियों में मतदाताओं का सामना करना पड़ेगा, न कि बहुत सारी प्रशंसाओं का जिन्हे उनके कार्यकाल में अर्जित किया गया है। जीकेआरए की घोषणा मीठे शब्दों में लिपटी  चुनावों के लिए- शायद श्रृंखला की पहली घोषणा है।

इसके अलावा, जीकेआरए की घोषणा फिर से उस पिंजरे की तरफ इशारा करती है, जिसमें वर्तमान सरकार खुद को कैद करना चाहती है। यानि वह वैश्विक उधारदाताओं और क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों को नाराज़ करने से डरती है और कोई भी नया पैसा खर्च नहीं करना चाहती है। और इसलिए राहत और कल्याण के पहले के कार्यक्रम - जैसे कि पीएम गरीब कल्याण योजना और बाद में आत्मनिर्भर भारत पर - सरकारी खजाने का वास्तविक खर्च सिर्फ सकल घरेलू उत्पाद का 3 प्रतिशत ही है, बाकी सभी क्रेडिट लाइनें हैं यानि उधार लो और खर्च करो।  वर्तमान रोजगार कार्यक्रम एक ही बात से ग्रस्त है - और संभवतः उन्ही कारणों से विफल भी हो जाएगा।

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित इस लेख को भी आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं-

With Honeyed Words, PM Modi Sells Another Repackaged Programme

Garib Kalyan Rozgar Abhiyan
Narendra modi
Lockdown Impact on Migrant Workers
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Returnee Migrants
Bihar Assembly Elections
Atma Nirbhar Bharat
Nitish Kumar Government
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