NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अर्थव्यवस्था
मोदी जी, क्या रोज़गार पैदा करने की कोई योजना है?
अक्टूबर महीने में बेरोज़गारी दर 8.5 प्रतिशत पर पहुंच गई जो दो साल पहले के मुक़ाबले लगभग दोगुनी हो गई है, लेकिन सरकार के पास अब भी स्थिति से निपटने की कोई योजना या विज़न नहीं है।
सुबोध वर्मा
16 Nov 2019
Translated by महेश कुमार
unemployment

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र में बैठी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार कश्मीर, अयोध्या और अन्य मुद्दों को सुलझाने में काफ़ी व्यस्त दिख रही है, यहां तक कि ख़ुद मोदी जी ने हाल ही में अमेरिका में 'हाउडी मोदी' की असाधारण भूमिका निभाई है। चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ सार्थक समय बिताया और विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है। लेकिन देश में जो तूफ़ान उमड़ रहा है उस पर मोदी और उनके सरकार के सहयोगी इस बात से बेखौफ़ और अनभिज्ञ है कि देश में न रुकने वाली बेरोज़गारी का ज्वार तेज़ी से बढ़ रहा है।

भारतीय अर्थव्यवस्था पर निगरानी रखने वाली संस्था (CMIE) के अनुमान के अनुसार नई बेरोज़गारी दर का मासिक औसत 8.5 प्रतिशत है। नवंबर 2017 के मुक़ाबले यह क़रीब-क़रीब दोगुना हो गई है। तब से यह दर लगातार बढ़ रही है।

इससे भी ज़्यादा चिंताजनक बात यह है कि इन दो वर्षों में रोज़गार दर (कामकाजी उम्र की आबादी जो कार्यरत है) का हिस्सा सिकुड़ गया है। नवंबर 2017 में काम करने वाली उम्र की आबादी का कुल 43.83 प्रतिशत हिस्सा कार्यरत था जो अब सिकुड़ कर 43.1 प्रतिशत रह गया है। [नीचे चार्ट देखें]

हालांकि यह फ़र्क़ बहुत अधिक प्रतीत नहीं होता है, लेकिन यह भी याद रखें कि कामकाज करने वाली आयु की आबादी लगातार बढ़ रही है क्योंकि जैसे ही कोई व्यक्ति या नौजवान 15 वर्ष की आयु को पार करता है, वह नौकरियों की तलाश शुरू कर देता है। इसलिए, भले ही नौकरीशुदा व्यक्तियों का हिस्सा कुछ हद तक स्थिर रहता है, लेकिन फिर भी वास्तव में इसका मतलब है कि नौकरियां कम संख्या में मिल रही हैं।

Capture_11.JPG

इस बात का भी ध्यान रखें कि किसी भी एक बिंदु पर, रोज़गारशुदा या बेरोज़गारों की संख्या 100 प्रतिशत पर नहीं पहुंचेगी क्योंकि ऐसे लोगों की संख्या भी बहुत अधिक है जो कार्यबल का हिस्सा बिल्कुल भी नहीं हैं - वे या तो पढ़ रहे हैं या इसका सबसे बड़ा हिस्सा वे महिलाएं हैं जो बाहर बिल्कुल काम नहीं करती हैं।

निस्संदेह, भारत एक गंभीर रोज़गार के संकट का सामना कर रहा है जो लगातार बिगड़ रहा है। बेरोज़गारों की संख्या में हुई यह नवीनतम वृद्धि भी मंदी का एक सीधा परिणाम है जिसने सितंबर से अर्थव्यवस्था को जकड़ रखा है। इसके कारण बड़ी संख्या में औद्योगिक श्रमिकों की छटनी हुई है या फिर उन्हें रोज़गार से निकाल दिया गया है। यह संख्या लाखों में होती है और विविध क्षेत्रों से आती है जिसमें मुख्य रूप से ऑटोमोबाइल और ऑटो-पार्ट बनाने से लेकर कपड़ा, सीमेंट, इस्पात, परिवहन, निर्माण, चमड़ा, आभुषण रत्न आदि सेक्टर शामिल हैं।

इसके अलावा, इस मंदी की वजह से मांग में कमी का असर उपभोक्ता उत्पादों की बिक्री पर भी पड़ा है, इसका असर तेज़ी से उपयोग में लाई जाने वाली सामग्रियों के साथ-साथ टिकाऊ सामग्री पर भी पड़ा है।

हालांकि मोदी सरकार ने मान लिया है कि देश में मंदी है। कम से कम अपने कामों में तो मान ही लिया है अगर शब्दों में नहीं – इस मामले में सरकार की प्रतिक्रिया आमतौर पर संवेदनहीन रही है। सरकार ने कॉर्पोरेट सेक्टर को रियायत देने के उपायों के बारे में घोषणाएँ की है, क्योंकि उनका विश्वास है कि इससे निवेश में तेज़ी आएगी और लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था फिर से रास्ते पर आ जाएगी। केंद्र सरकार ने कॉर्पोरेट कर की दर को मौजूदा 30 प्रतिशत से घटाकर 25.17 प्रतिशत कर दिया है, जिसमें सभी उपकर/अधिभार शामिल हैं। इसके अलावा, नई कंपनियों, शेयर बायबैक, पूंजीगत लाभ, आदि पर करों को कम करने के उपायों की भी घोषणा की है। ये रियायतें क़रीब 1.45 लाख करोड़ रुपए की है, जिसे वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अर्थव्यवस्था को "प्रोत्साहन" के देने नाम पर क़ुर्बान किया है, जबकि वास्तव में इसका मतलब है कि देश को करों का बड़ा नुक़सान।

सरकार ने विदेशी पोर्टफ़ोलियो निवेशकों पर बढ़ाए गए अधिभार को वापस ले लिया है, इसके लिए सरकार ने बैंकों में 70,000 करोड़ रुपये और राष्ट्रीय आवास बैंक के माध्यम से हाउसिंग फ़ाइनेंस कंपनियों के लिए 20,000 करोड़ रुपये की इमदाद की घोषणा की है, निर्यात को बढ़ावा देने के लिए 50,000 करोड़ रुपये की योजना बनाई है, और 10,000 करोड़ रुपये की योजना अधूरे घरों को पूरा करने में रियल एस्टेट डेवलपर्स की मदद के लिए रखा है, और इसी तरह से स्टार्ट-अप के लिए एंजल टैक्स को वापस कर लिया दिया गया है।

केंद्र सरकार ने बिल्डरों को अपनी अधूरी परियोजनाओं को पूरा करने में मदद देने के लिए 25,000 करोड़ रुपये का एक फ़ंड भी स्थापित किया है, जिसका अनुमान चार लाख से अधिक आवास इकाइयों को खड़ा करना है। इन कर रियायतों और आर्थिक पेकेज देने के अलावा सरकार ने कई सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के विलय की घोषणा भी की है, कोयला सेक्टर को 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए खोल दिया है, निवेश के लिए अधिक धन देने के लिए बैंक क्रेडिट विनियमों को आसान बना दिया है।

मोदी 2.0 सरकार ने कॉर्पोरेट्स को शानदार आर्थिक तोहफ़े (फ़्रीबीज़) देने का एक संदिग्ध रिकॉर्ड बनाया है। सरकार ने केवल 120 दिनों के भीतर पिछले साल की तुलना में 33 प्रतिशत से अधिक रियायतों की घोषणा की है। 2014 के बाद से नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साढ़े पांच साल के कार्यकाल में, कॉर्पोरेट को आर्थिक तोहफ़े (फ़्रीबीज़) के रूप में साढ़े पांच लाख करोड़ रुपये इमदाद देने की घोषणा की है।

फिर भी, नौकरियों के संकट को सीधे तौर पर संबोधित करने का कोई इरादा नज़र नहीं आता है। ऊपर सूचीबद्ध किए गए सभी उपाय बड़े कॉर्पोरेट की मदद करने के लिए हैं। इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि वे इस धन का उपयोग निवेश का विस्तार करने और रोज़गार पैदा करने की क्षमता को बढ़ाने के लिए करेंगे। यह विचित्र किंतु सत्य है कि जो सरकार हर साल एक करोड़ नौकरियों देने के वादे के साथ सत्ता में आती है, वह अपने इस वादे को पूरी तरह भूल जाती है।

हाल के विधानसभा चुनाव परिणामों ने यह साबित कर दिया है कि अल्ट्रा-नेशनलिस्ट बयानबाज़ी को अब जनता के बीच ख़ास समर्थन नहीं मिल रहा है, जिन्हें आर्थिक संकट ने नीचे धकेल दिया है। यह चलन समय बीतने के साथ-साथ बढ़ता जा रहा है और कश्मीर या अयोध्या के माध्यम से जनता का ध्यान हटाने की मोदी की कोशिश बड़े पैमाने पर असंतोष को रोकने नाकामयाब हो रही है।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

How About Fixing Jobs Now, Mr. Modi?

Economic slowdown
unemployment rate
Freebies to Corporates
Modi government
Hyernationalism
Assembly Poll Results
Jobs Crisis

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

आख़िर फ़ायदे में चल रही कंपनियां भी क्यों बेचना चाहती है सरकार?

तिरछी नज़र: ये कहां आ गए हम! यूं ही सिर फिराते फिराते

'KG से लेकर PG तक फ़्री पढ़ाई' : विद्यार्थियों और शिक्षा से जुड़े कार्यकर्ताओं की सभा में उठी मांग

मोदी के आठ साल: सांप्रदायिक नफ़रत और हिंसा पर क्यों नहीं टूटती चुप्पी?

कोविड मौतों पर विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट पर मोदी सरकार का रवैया चिंताजनक

किसानों और सत्ता-प्रतिष्ठान के बीच जंग जारी है

ज्ञानवापी विवाद, मोदी सरकार के 8 साल और कांग्रेस का दामन छोड़ते नेता


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License