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राजनीति
योगी की पुलिस कैसे कर रही चुनाव में ग़रीबों से वसूली: एक पड़ताल
सवाल यह है कि क्या मात्र विज्ञापन या भाषण स्थितियों की असलियत बयान कर सकते हैं? हमने हालिया पुलिसिया दमन की पड़ताल करनी चाही, तो ‘अमृतकाल’ में ग़रीब बस्तियों का हाल कुछ और ही दिखा।
नाइश हसन
19 Feb 2022
police
तस्वीर, केवल प्रतीकात्मक प्रयोग के लिए। साभार: अमर उजाला

उत्तर प्रदेश में चुनावी सरगर्मियां तेजी पर है। दो चरणों का मतदान समाप्त होते ही चुनावी तपिश थोड़ा और बढ चुकी है। जानकार बताते है कि एक तरफ मुकाबला कांटे का है, तो नेताओं की भागदौड़ भी खासा तेज नजर आ रही है। ऐसे माहौल में तरह-तरह के नारे सुनने को मिल रहे है। मुख्यमंत्री जी कभी पूर्व की सरकारों को तो कभी नेहरू को ललकार रहे है, कभी भाषा की मर्यादा लांघते उनके अपशब्द उत्तर प्रदेश में गर्मी पैदा कर रहे हैं। मौजूदा सरकार की ईमानदारी के विज्ञापनों से पटा टीवी चैनल, अखबार और सोशल मीडिया। सवाल यह है कि क्या मात्र विज्ञापन या भाषण स्थितियों की असलियत बयान कर सकते हैं? हमने हालिया पुलिसिया दमन की पड़ताल करनी चाही, तो ‘अमृतकाल’ में गरीब बस्तियों का हाल कुछ और ही दिखा।

बस्तौली इलाके में रहने वाले राम दास पेशे से मजदूर हैं, उम्र तकरीबन 50 साल, बताते हैं कि सुबह जब वह दूध लेने जा रहे थे पुलिस ने आकर उन्हें रोका और कहा कि तुम्हारे वृद्व माता-पिता का वोट घर पर ही पड़ेगा, अपना नाम पता बता दो, घबराने की कोई बात नही है। इस तरह पुलिस ने उनके परिवार की जानकारी हासिल की। इसी प्रकार की घटना राम खेलावन, मनोज कुमार, सीताराम, अदनान, शमीम बेग, रिजवान बेग, गुफरान दानिश, राजा, सहित हजारों गरीब दिहाड़ी मजदूरों के साथ हुई। जो बस्तौली, समोदीपुर, गाजीपुर, लवकुश नगर, भाखा मऊ कुर्सी रोड,  जैसी बस्तियों और गांवों के रहने वाले है। जिनमें अधिकतर निम्न कही जाने वाली जातियों से ही ताल्लुक रखते हैं।

पुलिस के आने के चार दिन बाद घर पर चिट्ठी आ गई कि कमिश्नरेट महानगर पर हाजिरी दो और मुचलका भरो। वहां जाने पर पता चला कि वोट घर पर डलवाने जैसी कोई बात नहीं है, सभी का नाम अपराधी की लिस्ट में डाला गया है, सभी धारा 107-16 के मुल्जिम बना दिए गए हैं। उनसे शांति भंग का खतरा बताया गया है। भीड़ की भीड़ कमिश्नरेट लखनऊ, न्यायालय, कार्यपालक मजिस्ट्रेट के यहां पहुंच रही है। वहां मौजूद वकील फुर्ती से उस भीड़ के पास पहुंच एक मुचलका फार्म भरने लगते हैं, उन्हें उसी पुलिस जो अब न्यायाधीश भी है के कोर्ट में (जो अगले कमरे में है) पेश करते हैं। जब तक वह मजदूर समझ पाए कि उसकी खता क्या है उसका अंगूठा एक कागज पर चस्पा हो चुका होता है। सभी काम बड़ी फुर्ती के साथ। तीन सौ रुपये वकील लेकर थेाड़ा अंदर बाहर करके उन्हें अगली तारीख पर आने को कह कर वापस भेज देते हैं। उस कोर्ट की तारीखें बहुत जल्दी-जल्दी पड़ रही हैं। राम दास बताते हैं कि पहले उन्हें 3 फरवरी को बुलाया गया अगली तारीख 8 फिर 14 और फिर 17 फरवरी। हर तारीख पर मजदूरों से 200 रुपये लिए जा रहे हैं। सवाल जवाब करने की हिम्मत आप नहीं कर सकते। वहां सब कुछ मुस्तैदी से चल रहा है। वह किससे पूछे कि वह कभी अपराधी नहीं रहा, उसका कभी किसी से झगड़ा नहीं हुआ। कोई जवाब वहां नहीं मिलता। 

वहीं मौजूद एक वकील ने हमें नाम न छापने की शर्त पर बताया कि कमिश्नरेट बनने के बाद स्थिति थोड़ा और खराब हुई है। एक चौकी इंचार्ज ही इलाके के कुछ लोगों को पकड़ लाता है और सीओ रैंक का दूसरा पुलिस वाला जो अब मजिस्ट्रेट की भूमिका में है, यानी वहां जो न्यायालय बना हुआ है उसका जज जिसे कार्यपालक मजिस्ट्रेट कहते है वह सीओ ही हैं, जिसे अब एसीपी कहा जाता है, वही न्यायाधीश की भूमिका में हैं। वही फैसला सुनाने वाले हैं तो इस मामले में कौन किसकी शिकायत करेगा। एक पुलिस अपने ही विभाग के खिलाफ क्या कहेगी। बस इसी तरह चल रही है यह मनमानी व्यवस्था। गरीबों को यहां तक पहुंचाने वाला वह पहला व्यक्ति चौकी इंचार्ज के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं होती। आप खुद को बेगुनाह चिल्लाते रहिए।

वकील ने हमें यह भी बताया कि हर थाने को लगभग 500 लोगों को 107-16 के तहत पकड़ने का आदेश होता है। वह इसी तरह किसी को भी पकड़ लेते हैं, पकड़े जाने वालों में सभी गरीब, अशिक्षित और निम्न वर्ग के ही होते हैं। उन्हें तारीखें भी जल्दी-जल्दी इसी लिए दी जाती हैं कि उनसे हर तारीख पर वसूली की जा सके। पुलिस और वकील के गठजोड़ से सब चल रहा है। इतना जरूर दिख रहा था कि अनेक बेगुनाह नौजवान लड़के और अधेड़ उम्र के लोग इसके शिकार बने हैं। जिनका कभी कोई आपराधिक रिकार्ड ही नहीं रहा, जो थाने तक नहीं गए कभी, आज वह अपनी जमानत के लिए लाइन में लगे हैं। जिन्हें एक ही प्रक्रिया से गुजरना था, और अगर आप कहते हैं कि आप अपराधी नहीं है तो अपना दावा पेश कीजिए और वकील कीजिए मोटी फीस भरिए अन्यथा चुनाव तक ऐसे ही हाज़िरी लगाते रहिए।

इस संबंध में जनवादी महिला समिति की प्रदेश अध्यक्ष मधु गर्ग ने कमिश्नर डी के ठाकुर को एक पत्र देकर इस बात की जांच कराने की मांग की, उनका कहना था कि जो एक बार अपराधी बना दिया गया वह हर बार इसी प्रकार पुलिस द्वारा पकड़ा जाएगा और जो कभी अपराधी रहा ही नहीं उसका नाम इस लिस्ट से हटाया जाए। जिस पर कार्यवाही करने से कमिश्नर ने साफ इनकार करते हुए कहा कि यह कोर्ट का मामला है। वही कोर्ट जो उसी पुलिस की है। एक पीड़ित की बहन सुशीला ने भी थाने से नाम हटाने की बात कही, इस संबंध में पड़ताल में थाना गाजीपुर के सिपाही मिथलेश यादव ने कहा कि पुलिस के पास इतना समय नहीं होता है कि वह आप के सवालों का जवाब दे सके। वही के एक सिपाही दुर्गेश कुमार तिवारी ने बताया कि गाजीपुर थाना ऐसा थाना है जहां पूर्व का कोई रिकार्ड ही नहीं है कि हम आप को दिखा सकें कि अमुक व्यक्ति अपराधी था या नहीं था। अर्थात थाने का रिकार्ड विभाग इतना कमजोर है कि उसके पास कुछ भी पुख्ता जानकारी नहीं है।    

सरकार को इन मजदूरों से खतरा है, जिनके पास रोटी कमाने का जरिया तक नहीं, जो मुश्किल से अपना घर चला रहे हैं जिनका कभी कोई आपराधिक रिकार्ड ही नहीं, उन्हें हाज़िरी देने को कहा जाता है, और जो वास्तविक अपराधी हैं जो किसानों पर गाड़ी चढ़ा देते हैं, जो धर्म संसद में एक समुदाय विशेष के खिलाफ जहरीले भाषण देते हैं उन्हें ज़मानत मिल जाती है, किसानों मजदूरों को जमानत तक नहीं मिलती। ये है उत्तर प्रदेश सरकार का असली चेहरा जो हिंदुत्व के नकाब में है पर कारनामे अपराधियों वाले।

ये हालात है आप की सेवा में तत्पर उत्तर प्रदेश पुलिस का, एक भगवाधारी मुख्यमंत्री जो अपनी और अपने प्रशासन की तारीफ करते नहीं थकता, उसकी पुलिस का हाल इस तरह का है। एक ऐसा समय जब लोग गरीबी से बेहाल हैं, उत्तर प्रदेश का आंकड़ा अपराध और गरीबी दोनों में आगे है, कोरोना के बाद छोटे कारोबारी मजदूर बन चुके हैं, जिनके लिए रोज कुआं खोदना रोज पानी पीने की स्थिति है उन लोगों से चुनाव के नाम पर वसूली योगी जी की नाक के नीचे राजधानी लखनऊ में हो रही है, तो प्रदेश का हाल और ईमानदार प्रशासन के हालात का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।

(लेखिका रिसर्च स्कॉलर व सामाजिक कार्यकर्ता हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

Uttar pradesh
Yogi Adityanath
UP police
UP Assembly Elections 2022
CAA

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