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स्वास्थ्य
भारत
कोरोना से संबंधित कचरे का सही निस्तारण कितनी बड़ी समस्या है?
स्वास्थ्य मंत्रालय के संबंधित अधिकारियों, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) तथा भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) ने कोविड-19 के कचरा प्रबंधन पर कठोर निर्देश तैयार किए हैं।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
12 May 2020
Medical Waste

कोरोना वायरस अपने साथ तमाम चुनौतियां लेकर आया है। इनमें से एक चुनौती कोरोना के इलाज और संक्रमण से बचाव के दौरान इस्तेमाल होने वाले मॉस्क, दस्तानों से लेकर दवाइयों और उपकरणों के सही तरीके से निस्तारण की भी है। कचरा प्रबंधन को लेकर जानकारी रखने वालों के मुताबिक, प्रतिदिन हर राज्य से औसतन एक से 1.5 टन कोविड वेस्ट निकल रहा है।

इससे निपटने के लिए तमाम तरह की गाइडलाइन भी जारी की गई है। कोरोना वायरस की वैश्विक महामारी के लगातार फैलाव को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण कार्यक्रम ने दुनिया भर की सरकारों से कोविड-19 से सम्बंधित कचरे के सावधानीपूर्वक निस्तारण की अपील की है।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने संक्रमण के इलाज के दौरान उत्पन्न होने वाले सभी प्रकार के बायोमेडिकल कचरे पर ‘कोविड-19 कचरा’ लेबल लगाना अनिवार्य किया है। ये दिशानिर्देश बायो-मेडिकल कचरा (बीएमडब्ल्यू) प्रबंधन नियम 2016 के तहत जारी किए गए हैं।

स्वास्थ्य मंत्रालय के संबंधित अधिकारियों, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) तथा भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) ने कोविड-19 के कचरा प्रबंधन पर कठोर निर्देश तैयार किए हैं। दिशानिर्देश के मुताबिक, लेबल से ऐसे कचरे की आसानी से पहचान होगी और उसका त्वरित निस्तारण हो सकेगा।

आइसोलेशन वार्ड, क्वारंटाइन सेंटर, नमूना एकत्र करने वाले केंद्र, प्रयोगशालाएं, शहरी स्थानीय निकाय, सामान्य बायोमेडिकल कचरा उपचार एवं निस्तारण सुविधाओं में लगे सभी स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को कोविड-19 कचरे के प्रबंधन के इस दिशानिर्देश का पालन करना होगा। कोविड-19 से पैदा होने वाले बायो-मेडिकल कचरे को खतरनाक कचरे के रूप में माना जाएगा।

ऐसे कचरे के निस्तारण के लिए स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को तीन स्तरों वाले मास्क समेत पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट, स्प्लैश-प्रूफ एप्रन या गाउन, नाइट्राइल ग्लव्स और सेफ्टी गॉगल्स पहनने चाहिए। इसके साथ ही स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को सैनिटाइजेशन के अलावा बायोमेडिकल कचरा एकत्र करने के बारे में उचित प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।

तो वहीं, राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने भी केंद्र और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के एक संयुक्त दल को कोविड-19 के अपशिष्ट को दिशानिर्देशों के तहत संभालने और वैज्ञानिक निपटान की निगरानी करने के निर्देश दिए हैं।

अधिकरण ने कहा कि जैव चिकित्सा अपशिष्ट नियम के तहत संक्रामक बीमारी से निपटने के दौरान उत्पन्न कचरे को ठिकाने लगाया जाता है जबकि कोरोना वायरस महामारी ने ऐसे उत्पन्न अपशिष्ट को वैज्ञानिक तरीके से निपटने की क्षमता के समक्ष चुनौती बढ़ा दी है।

एनजीटी के अध्यक्ष न्यायाधीश आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिव को निर्देश दिया कि कोविड-19 के अपशिष्ट के वैज्ञानिक भंडारण, परिवहन, रखरखाव, प्रबंधन और निपटाने को लेकर करीबी निगरानी रखी जाए क्योंकि इसमें लापरवाही से पर्यावरण और लोगों के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा हो सकता है।

पीठ ने कहा, 'राष्ट्रीय स्तर पर, पर्यावरण मंत्रालय, स्वास्थ्य, शहरी विकास, जल शक्ति, रक्षा और सीपीसीबी का एक उच्च स्तरीय कार्य दल कोविड-19 के अपशिष्ट को दिशानिर्देशों के तहत संभालने और वैज्ञानिक निपटान की निगरानी करे।'

फिलहाल गाइडलाइन्स तो बन गई हैं, निगरानी के लिए तंत्र भी बना दिया गया है लेकिन इसके बावजूद भी इनका पालन करने में कई तरह की चुनौतियां आ रही हैं।

सबसे पहले हम इस महामारी के पहले के कचरा निस्तारण के हालात को देख लें। आंकड़ों के अनुसार सन 2017 तक भारत में उत्पन्न होने वाले लगभग 200,000 टन बायोमेडिकल कचरे का लगभग 78 फीसदी भाग देश की “कॉमन बायो मेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट फैसिलिटी” (CBWTF) निस्तारित कर रही थी। बाकी कचरा या तो अन्य विभाग निस्तारित करते थे या उसे ज़मींदोज कर दिया जाता था। ये सब मिलाकर भी 92 प्रतिशत कचरे का निस्तारण कर पा रहे थे। ऐसे में  कोविड-19 की वैश्विक महामारी से इस कचरे की उत्पादन मात्रा में कई गुना इजाफा हुआ है।

इस प्रकार के कचरे से संक्रमित होने की सबसे अधिक आशंका कचरा उठाने वालों और उसे फेंकने के स्थान के आस-पास रह रहे लोगों को है। ज्यादातर अस्पतालों में कचरा उठाने वाले कर्मचारी ठेके पर हैं। ऐसे में उन्हें कितनी सुविधाएं मिल पा रही होगी इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।

बीबीसी से बातचीत में दिल्ली एम्स के ठेका कर्मचारी यूनियन के जनरल सेक्रेटरी मृगांक कहते हैं, 'दिल्ली एम्स में 600 सैनिटेशन कर्मचारी हैं। इसमें से अधिकतर सेनिटेशन स्टाफ कॉन्ट्रैक्ट पर काम करते हैं। अस्पताल इन्हें अपना कर्मचारी नहीं मानते। वेस्ट मैनेजमेंट के काम में लगे सेनिटेशन कर्मचारियों को मास्क और सैनेटाइज़ेशन के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है। वेस्ट डिस्पोज़ल करने वाले सैनिटेशन स्टाफ़ को भी प्रोटेक्टिव गियर चाहिए होते हैं, ताकि वो उस वेस्ट के संपर्क में ना आ जाएं। लेकिन ये शुरू में मिल नहीं रहे थे। हमने अस्पताल प्रशासन को चिट्ठियां लिखीं। अब कुछ जगह मिलना शुरू हुए हैं। लेकिन अभी भी परेशानी बनी हुई है।'

ये दिल्ली के सबसे बेहतर अस्पताल का हाल है। बाकी देश भर के अस्पतालों का अंदाजा आप इससे लगा सकते हैं। गौर करने वाली बात यह है कि यदि मेडिकल कचरे का सही तरीके से निस्तारण नहीं किया गया तो यह महामारी के और अधिक फैलने से जुड़े गंभीर खतरे उत्पन्न कर कोविड-19 के खिलाफ छेड़ी गई लड़ाई को कमज़ोर कर सकता है। मेडिकल स्टाफ के साथ-साथ ये भी हमारे सबसे महत्वपूर्ण ‘कोरोना योद्धाओं’ में से एक हैं। कचरा उठाने वाले कर्मचारियों को इंग्लैंड में 'मुख्य-कार्यकर्ताओं' का विशेष दर्जा दिया गया है।

इसके अलावा एक बड़ी समस्या सड़कों और मोहल्लों के कूड़दानों में मॉस्क, गलव्स आदि के ढेर की भी है, जो इन दिनों दिखाई पड़ने लगी है। अस्पतालों के साथ ही बड़ी संख्या में लोग होम क्वारंटाइन हैं। उनके कचरे के निस्तारण में दिक्कत आ रही है।

अगर आंकड़ों पर जाएं तो इस संकट से पहले पिछले साल दिसंबर में केंद्रीय आवास एवं शहरी विकास मंत्रालय द्वारा संसद में दी गई जानकारी के अनुसार देश के 93 प्रतिशत शहरी निकाय स्वच्छ भारत अभियान के जरिए घरों से रोजाना कचरा उठा रहे हैं। यहां से 1.45 लाख टन कचरा निकल रहा है, लेकिन 57 प्रतिशत का ही सही निस्तारण हो रहा है। बाकी कचरा जमीन पर ही बिखरा जा रहा है, या जमीन में दफनाया जा रहा है।

इससे कुछ महीने पहले जुलाई में एनजीटी ने कहा था कि देश का कोई भी राज्य, स्थानीय निकायों के स्तर पर ठोस कचरा, प्लास्टिक कचरा, मेडिकल कचरा और निर्माण कार्यों के कचरे के निस्तारण से संबंधित कचरा प्रबंधन नियम 2016 का पालन नहीं कर पा रहा है।

यानी स्थिति पहले से ही बुरी थी। अब कोविड के आने के बाद यह और भी बुरी हो गई है। ऐसे में इस स्थिति पर ध्यान देने की महती जरूरत है। हमें यह याद रखना होगा कि कोरोना वायरस से चल रही लड़ाई सही कचरा प्रबंधन के बिना भी नहीं जीती जा सकती। इस दिशा में किए गए अभी तक के प्रयास नाकाफी हैं। 

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