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दिल्ली को 'कोरोना कैपिटल' बनाने में केंद्र और नगर निगम की कितनी बड़ी भूमिका है?
दिल्ली में कोरोना वायरस के लगातार बढ़ते मामले के बीच अब कमान गृह मंत्री अमित शाह ने संभाल ली है। लेकिन पिछले साढ़े तीन महीने के दौरान केंद्र सरकार और बीजेपी प्रशासित निगम क्या कर रहे थे?
अमित सिंह
15 Jun 2020
कोरोना वायरस
Image courtesy: Business Today

दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी में कोरोना महामारी का विस्तार लगातार हो रहा है। इस कारण देश की राजधानी की स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की कलई खुल गई है। अपने स्वास्थ्य मॉडल पर चुनाव जीतकर दोबारा दिल्ली की सत्ता पर काबिज हुई केजरीवाल सरकार जहां लाचार नजर आ रही है तो अब कमान केंद्र सरकार में सबसे ताकतवर और गृह मंत्री अमित शाह ने संभाल ली है।

दिल्ली में कोरोना संकट पर हमने इस रिपोर्ट के पहले भाग में राज्य की केजरीवाल सरकार की भूमिका की पड़ताल की थी। इस दूसरे भाग में हम केंद्र और दिल्ली नगर निगम की भूमिका की पड़ताल कर रहे हैं कि वो इस संकट में किस तरह काम कर रहे हैं।

इसे पढ़ें : दिल्ली में कोरोना संकट का ज़िम्मेदार कौन? क्या विफल हो गई है केजरीवाल सरकार!

यहां आपको यह बता दें कि राष्ट्रीय राजधानी में सभी स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएं दिल्ली सरकार द्वारा नहीं चलाई जाती हैं। यहाँ केंद्र संचालित अस्पताल और नगर निगम संचालित अस्पताल भी हैं। केंद्र की सत्ता पर पिछले छह सालों से बीजेपी की सरकार है तो पिछले कई सालों से निगम पर भी बीजेपी का कब्जा है।

गौरतलब है कि दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश है। साथ ही यह देश की राजधानी भी है। इस कारण दिल्ली के शासन में केंद्र की भूमिका होती है। इसके अलावा देश के सबसे बड़ी स्थानीय निकायों में से एक दिल्ली नगर निगम है। दिल्ली के शासन में इसका भी बहुत अहम रोल है। दिल्ली नगर निगम का हाल पहले भी अच्छा नहीं था लेकिन जबसे निगम को तीन भागों में बांटा गया है तब से नगर निगमों की स्थति और भी बदतर हुई है।

कोरोना संकट में फेल हुआ नगर निगम

अब जब राजधानी की स्वास्थ्य व्यवस्था बदहाल नजर आ रही है तो राज्य सरकार के साथ साथ केंद्र और नगर निगम की भी जिम्मेदारी है। वैसे प्रदेश में स्वास्थ्य का दायित्व राज्य सरकार का है और केजरीवाल सरकार का दावा है कि वह कुल जीडीपी का 13 से 14 प्रतिशत स्वास्थ्य क्षेत्र पर खर्च करती है लेकिन दिल्ली में प्राथमिक स्वास्थ्य के साथ ही कई बड़े अस्पतालों का संचालन नगर निगम करते हैं। हालांकि इस माहमारी के समय जब उनकी सबसे अधिक जरूरत थी तब उसमे से अधिकांश बंद नजर आए। इसका कारण वहां इस महामारी से लड़ने के साधन मौजूद नहीं हैं।

दिल्ली में नगर निगम के अस्पतालों की बात करें तो उसमें लगभग 3500 बिस्तर हैं। हालांकि इस महामारी से लड़ने में उनका कोई खास योगदान नहीं रहा है। जैसे हिंदू राव अस्पताल नगर निगम का सबसे बड़ा अस्पताल है। यहां लगभग 1000 बिस्तर हैं। लॉकडाउन के दरम्यान यह लगभग एक महीने बंद ही रहा। बताया गया कि नगर निगम के पास इसे चलाने के लिए साधन नहीं हैं।

अब जब पानी सर से ऊपर निकल गया है तो गत रविवार को दिल्ली सरकार ने उत्तरी दिल्ली नगर निगम द्वारा संचालित हिंदू राव अस्पताल को कोविड-19 समर्पित अस्पताल घोषित किया है। हालांकि इसके बीच में राजनीति और आरोप प्रत्यारोप का दौर भी खूब चलता रहता है। नगर निगम में सत्ताधारी बीजेपी इसके लिए आम आदमी पार्टी की सरकार को जिम्मेदार ठहराती है। उसका कहना है कि उन्होंने दिल्ली सरकार से कहा है कि वो हमारे अस्पतालों का टेक ओवर कर लें और कोरोना संक्रमित मरीजों का इलाज करें।

लेकिन सवाल यह है कि दिल्ली सरकार उनके अस्पताल को क्यों चलाए? ये अस्पताल नगर निगम  द्वारा संचालित हैं और नगर निगम एक स्वतंत्र निकाय है। इसका अपना एक अलग बजट है। लेकिन आज जब इनकी सबसे अधिक जरूरत है तो यह पूरी तरह से फेल दिख रहे हैं। दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार का भी यह कहना है कि नगर निगम की तरफ से उन्हें कोई सहयोग नहीं मिल रहा है।

सिर्फ इतना ही नहीं इस महामारी के सबसे बड़े योद्धा डॉक्टर हैं लेकिन नगर निगम ने अपने अस्पतालों के डॉक्टरों को वेतन तक नहीं दिया है। इस वजह से डॉक्टरों ने सामूहिक इस्तीफे की भी चेतावनी दी है। उत्तरी दिल्ली नगर निगम के स्टैंडिंग कमेटी चेयरमैन और बीजेपी नेता जय प्रकाश ने भी मीडिया से बात करते हुए माना है कि वो अभी डॉक्टरों के वेतन देने के हालत में नहीं और उन्होंने इसके लिए दिल्ली सरकार से मदद मांगी हैं।

इसे भी पढ़ें : दिल्ली: वेतन न मिलने पर शिक्षकों की हड़ताल जारी, डॉक्टरों की सामूहिक इस्तीफ़ा देने की चेतावनी

इसे भी पढ़ें : दिल्ली : क्या सरकार ने शिक्षकों को कोरोना की जंग में अकेला छोड़ दिया है?

विफल हुई केंद्र सरकार

इसी तरह केंद्र सरकार के रैवये को लेकर भी गंभीर सवाल उठ रहे हैं। दिल्ली में केंद्र के अंडर में एम्स, सफ़दरजंग और आरएमएल जैसे बड़े अस्पताल आते हैं। हालंकि उनके सभी अस्पतालों में कोरोना का इलाज हो रहा है लेकिन ये अस्पताल पूरी क्षमता के साथ कोरोना की लड़ाई नहीं लड़ रहे हैं। मीडिया में आई खबरों के मुताबिक केंद्र सरकार के अस्पतालों की क्षमता लगभग 10,320 बिस्तरों की है। लेकिन इसमें से कोरोना के लिए केवल 835 बिस्तर ही समर्पित हैं। यह उनकी क्षमता का 10% भी नहीं है।

इसके साथ ही दिल्ली सरकार ने यह आरोप भी लगाया है कि केंद्र सरकार ने पूरे देश को कोरोना से लड़ने के लिए आर्थिक रूप से मदद भी किया है लेकिन दिल्ली की सरकार को उन्होंने एक रुपये की भी आर्थिक मदद नहीं दी थी।

आपको यहां याद दिला दें कि केंद्र की सरकार भी दिल्ली से ही चलती है और इस समय देश के स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन हैं। उनका कार्यक्षेत्र भी दिल्ली ही है। इसके बावजूद केंद्र सरकार का दिल्ली को लेकर यह दुर्भाग्यपूर्ण रवैया रहा है।

अजीब बात यह है कि पूरे देश को कोरोना से उबारने के लिए रणनीति बनाने का काम दिल्ली से ही हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह से लेकर सारे बड़े रणनीतिकार यही बैठे हुए हैं लेकिन फिर भी राष्ट्रीय राजधानी अब कोरोना राजधानी बनने की तरफ अग्रसर है।

हालांकि बेहद असामान्य होते हालात के बीच रविवार से कमान गृह मंत्री अमित शाह ने संभाली है। उन्होंने उपराज्यपाल अनिल बैजल और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के साथ बैठक के बाद कुछ कदमों की घोषणा की।

उन्होंने कहा कि अगले दो दिनों में दिल्ली में कोरोना वायरस जांच की संख्या दोगुनी की जाएगी और छह दिनों बाद इसे तीन गुना तक बढ़ाया जाएगा। गृह मंत्री ने कहा कि कुछ दिनों में दिल्ली के निरुद्ध क्षेत्रों में हर मतदान केंद्र पर कोविड-19 की जांच शुरू की जाएगी और संक्रमितों के संपर्क में आए लोगों का पता लगाने के लिए अधिक प्रभावित क्षेत्रों यानी हॉटस्पॉट्स में घर-घर जाकर व्यापक स्वास्थ्य सर्वेक्षण कराया जाएगा।

उन्होंने कहा कि कोविड-19 के मरीजों के लिए बिस्तरों की कमी के मद्देनजर केंद्र दिल्ली को 500 रेलवे बोगियां भी उपलब्ध कराएगा। इसके अलावा महामारी से जान गंवाने वालों के अंतिम संस्कार के लिये भी विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किये जाएंगे।

शाह ने कहा कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय,दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य विभाग, एम्स और दिल्ली के तीनों नगर निगमों के चिकित्सकों का एक संयुक्त दल राजधानी के कोविड समर्पित अस्पतालों का दौरा कर वहां स्वास्थ्य व्यवस्था और तैयारियों की स्थिति पर रिपोर्ट तैयार करेगा।

आपको यहां याद दिला दें कि गृह मंत्री को दिल्ली की याद उच्चतम न्यायालय द्वारा मिली फटकार के बाद आई है। उच्चतम न्यायालय द्वारा तीन दिन पहले दिल्ली के अस्पतालों में खराब स्थिति को लेकर केंद्र और राज्य सरकार को फटकार लगाई गई थी।

शीर्ष अदालत ने राष्ट्रीय राजधानी में कम संख्या में हो रही जांच पर भी नाराजगी जाहिर करते हुए इन्हें बढ़ाने को कहा था। दिल्ली में कोविड-19 की गंभीर स्थिति को देखते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी आप सरकार और केंद्र को कोरोना वायरस से संक्रमितों के लिये बिस्तरों और वेंटिलेटरों की संख्या बढ़ाने को कहा था। 

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