NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
राम मनोहर लोहिया हमें किस रूप में याद हैं?
जयंती विशेष: भारत में सामाजिक बदलाव के एक बड़े नायक कहे जाने वाले राम मनोहर लोहिया ने देश की राजनीति में गैर-कांग्रेसवाद की अवधारणा को जन्म दिया। वैसे आज अगर लोहिया होते तो गैर-भाजपावाद का आह्वान करते।
अमित सिंह
23 Mar 2020
राम मनोहर लोहिया
स्केच साभार : अमर उजाला

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि सामाजिक सशक्तिकरण पर उनके विचार हमेशा याद किए जाएंगे।

सोमवार को प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट किया, ‘प्रखर समाजवादी चिंतक और लोकप्रिय राजनेता डॉ. राम मनोहर लोहिया जी को उनकी जयंती पर शत-शत नमन। सामाजिक सशक्तिकरण और सेवा भाव से जुड़े उनके विचार देशवासियों को सदैव प्रेरित करते रहेंगे।’

प्रसंगवश, 1960 के दशक में भी भारतीय लोकतंत्र आज के जैसे खतरे का सामना कर रहा था। कांग्रेस के प्रभुत्व ने देश को एकल-पार्टी शासन तक सीमित कर दिया था।

तब राम मनोहर लोहिया ने राजनीति में गैर-कांग्रेसवाद की अवधारणा को जन्म दिया था। उन्होंने उस समय की कांग्रेस पार्टी का एकाधिकार समाप्त करने और उसके कारण समाज में फैल रही बुराइयों को खत्म करने के लिए गैर-कांग्रेसवाद का आह्वान किया था तो आज अगर वे होते तो निश्चित तौर पर गैर-भाजपावाद का आह्वान करते।

लोहिया से आप किन्हीं मुद्दों पर असहमत हो सकते हैं लेकिन वास्तव में लोहिया युग पुरुष इसीलिए कहे और समझे गए क्योंकि उनका चिंतन किसी एक समय, काल और स्थान के लिए नहीं हर युग और पूरी मानवता के लिए प्रासंगिक होता है।

आज समाज और राजनीति की जिन बुराईयों को लेकर हम लड़ाई लड़ रहे हैं। कई दशक पहले उसकी पहचान करके लोहिया ने उनके उन्मूलन का मार्ग तलाशना शुरू कर दिया था।

जिस जनेऊ यानी जाति के वर्चस्व के खिलाफ आज बहुजन लड़ाई लड़ रहे हैं उसे तोड़ने के लिये लोहिया ने सोशलिस्ट पार्टी के जरिए 'जाति छोड़ो, जनेऊ तोड़ो अभियान' चलाया था और लाखों लोगों के जनेऊ तुड़वाकर जलवा दिया था।

यही नहीं पिछड़ों के राजनीतिक अधिकारों के लिए सबसे पहले लड़ाई भी लोहिया ने ही शुरू की। उन्होंने नारा दिया था ‘संसोपा ने बांधी गांठ, पिछड़े पावें सौ में साठ’। डॉ. लोहिया जाति व्यवस्था को तोड़ने के साथ साथ स्त्रियों को आज़ाद करने की भी बात करते थे।

उनका कहना था कि वर्ण, स्त्री, संपत्ति और सहनशीलता के सवालों को हल किए बिना इस देश का कल्याण नहीं है। अपने हिंदू बनाम हिंदू वाले प्रसिद्ध व्याख्यान में वे कहते भी हैं कि यह लड़ाई पांच हजार साल से चल रही है और अभी तक खत्म नहीं हुई है।

वे सबसे बड़ा खतरा कट्टरता को मानते हैं और कहते हैं कि अगर कट्टरता बढ़ेगी तो न सिर्फ यह स्त्रियों और शूद्रों और अछूतों और आदिवासियों के लिए ख़तरा पैदा करेगी बल्कि इससे अल्पसंख्यकों के साथ भी रिश्ते बिगड़ेंगे।

यही वजह है कि वे भारत की जाति व्यवस्था को हर कीमत पर तोड़ने के हिमायती थे। वे इसके लिए डॉ. आंबेडकर से हाथ मिला रहे थे लेकिन दुर्भाग्य से बाबा साहेब का 1956 में निधन हो गया और यह गठजोड़ नहीं बन पाया।

लोहिया को भारत की परंपराओं और इतिहास की गहरी समझ थी। लोहिया ने राम, शिव और सावित्री पर लिखा और वो गंगा नदी के बारे में उतने ही भावुक थे, जितना वो राजनीति में गिरावट के बारे में थे।

हालांकि डॉ. लोहिया राम, कृष्ण और शिव की जिस तरह से व्याख्या करते हैं उसे लेकर लोग उन्हें जनसंघ के करीब मानते थे लेकिन यह सिर्फ अधूरा सत्य है। धर्म को देखने का उनका अपना नजरिया था जो बेहद अलहदा था। राम, कृष्ण और शिव के बाद लोहिया द्रौपदी बनाम सावित्री की जिस तरह से व्याख्या करते हैं वह बात कट्टर हिंदुओं और जनसंघियों को तो कतई अच्छी नहीं लगती है।

वे स्त्री स्वाधीनता के अनन्य उपासक थे और इसीलिए उनके लिए पांच पतियों की पत्नी और प्रश्नाकुल और बड़े से बड़े से शास्त्रार्थ करने वाली द्रौपदी आदर्श नारी थी न कि पति के हर आदेश का पालन करने वाली सावित्री या सीता। उनकी नजर में भारत गुलाम ही इसीलिए हुआ क्योंकि यहां का समाज जाति और यौनि के कटघरे में फंसा हुआ था।

इसी तरह ‘ज़िंदा कौमें पांच साल इंतजार नहीं करतीं’ का नारा देने वाले लोहिया ने हमेशा 'आदर्शवादी राजनीति' को अपनाया। उन्होंने अपनी पार्टी के सभी सदस्यों के लिए एक सख्त आचार संहिता लागू की। लोहिया चाहते थे कि उनकी पार्टी कांग्रेस के विपरीत हो। वो चाहते थे कि पार्टी को आम लोगों द्वारा पैसे मिलें। पैसे की कमी बनी रही, लेकिन लोहिया ने अपने सिद्धांतों पर कभी आंच नहीं आने दी।

राजनीति में उन्होंने हमेशा वोट की परवाह किए बगैर सिद्धांतों को आगे रखा। जवाहर लाल नेहरू के प्रतिदिन 25 हज़ार रुपये खर्च करने की बात हो, या फिर इंदिरा गांधी को गूंगी गुड़िया कहने का साहस रहा हो। या फिर ये कहने के हिम्मत कि महिलाओं को सती-सीता नहीं होना चाहिए, द्रौपदी बनना चाहिए। लोहिया ने आम जन को झकझोरने वाली बातें कहीं।

इसी लिए उन्हें भारत की साइलेंट रिवॉल्यूशन का नायक कहा जाता है। एक ऐसे समय जब जाति, धर्म, महिला, सियासत सभी क्षेत्रों में एक बड़े बदलाव की जरूरत है तो लोहिया हमें और ज्यादा प्रासंगिक लग रहे हैं। ऐसे में आज जरूरत डॉ. लोहिया के रस्मी स्मरण की नहीं उनके विचारों की रोशनी में नई लोकतांत्रिक राजनीति को गढ़ने की है।

Ram Manohar Lohia
Birth Anniversary of Lohia
Narendra modi
Social empowerment
Congress
BJP

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति


बाकी खबरें

  • भाषा
    श्रीलंका में हिंसा में अब तक आठ लोगों की मौत, महिंदा राजपक्षे की गिरफ़्तारी की मांग तेज़
    10 May 2022
    विपक्ष ने महिंदा राजपक्षे पर शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन कर रहे लोगों पर हमला करने के लिए सत्तारूढ़ दल के कार्यकर्ताओं और समर्थकों को उकसाने का आरोप लगाया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिवंगत फोटो पत्रकार दानिश सिद्दीकी को दूसरी बार मिला ''द पुलित्ज़र प्राइज़''
    10 May 2022
    अपनी बेहतरीन फोटो पत्रकारिता के लिए पहचान रखने वाले दिवंगत पत्रकार दानिश सिद्दीकी और उनके सहयोगियों को ''द पुल्तिज़र प्राइज़'' से सम्मानित किया गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    लखीमपुर खीरी हत्याकांड: आशीष मिश्रा के साथियों की ज़मानत ख़ारिज, मंत्री टेनी के आचरण पर कोर्ट की तीखी टिप्पणी
    10 May 2022
    केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी के आचरण पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा है कि यदि वे इस घटना से पहले भड़काऊ भाषण न देते तो यह घटना नहीं होती और यह जघन्य हत्याकांड टल सकता था।
  • विजय विनीत
    पानी को तरसता बुंदेलखंडः कपसा गांव में प्यास की गवाही दे रहे ढाई हजार चेहरे, सूख रहे इकलौते कुएं से कैसे बुझेगी प्यास?
    10 May 2022
    ग्राउंड रिपोर्टः ''पानी की सही कीमत जानना हो तो हमीरपुर के कपसा गांव के लोगों से कोई भी मिल सकता है। हर सरकार ने यहां पानी की तरह पैसा बहाया, फिर भी लोगों की प्यास नहीं बुझ पाई।''
  • लाल बहादुर सिंह
    साझी विरासत-साझी लड़ाई: 1857 को आज सही सन्दर्भ में याद रखना बेहद ज़रूरी
    10 May 2022
    आज़ादी की यह पहली लड़ाई जिन मूल्यों और आदर्शों की बुनियाद पर लड़ी गयी थी, वे अभूतपूर्व संकट की मौजूदा घड़ी में हमारे लिए प्रकाश-स्तम्भ की तरह हैं। आज जो कारपोरेट-साम्प्रदायिक फासीवादी निज़ाम हमारे देश में…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License