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आधी-अधूरी तैयारी के साथ दो लाख प्रवासी मज़दूरों की निगरानी कैसे करेगा बिहार?
पंचायत स्कूल में बनाए गए क्वारेंटाइन सेंटर में जब मज़दूर पहुंचे तो न सोने का इंतजाम था, न खाने-पीने का, स्कूल परिसर में शौचालय भी ढंग का नहीं था, हाथ धोने के लिए साबुन वगैरह की व्यवस्था भी नहीं थी। ऐसे में मज़दूर वहां से सीधे अपने घर चले गये, जहां उन्हें नहीं जाना था।
पुष्यमित्र
02 Apr 2020
बिहार यूपी सीमा पर पहुंचने वाले मजदूरों की भीड़
बिहार यूपी सीमा पर पहुंचने वाले मजदूरों की भीड़

बिहार के सुपौल जिले के सुखपुर पंचायत में एक स्कूल में बने क्वारेंटाइन सेंटर की तस्वीर इन दिनों मीडिया में खूब वायरल हो रही है। उस क्वारेंटाइन सेंटर में नंगे फर्श पर कुछ मज़दूर ऐसे ही लेटे हैं। ऐसी ही एक तस्वीर दरभंगा जिले के जाले प्रखंड के राढ़ी पश्चिमी पंचायत की है, वहां फर्श पर सिर्फ दरी बिछी है।

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सुपौल के सुखपुर पंचायत का क्वारेंटाइन सेंटर

दोनों तस्वीरों की पड़ताल करने पर मालूम हुआ कि उन गांवों में पहुंचे मज़दूरों को बताया गया कि अभी 14 दिनों तक इसी स्कूल में रहना है। मगर जब मज़दूर वहां पहुंचे तो न सोने का इंतजाम था, न खाने-पीने का, स्कूल परिसर में शौचालय भी ढंग का नहीं था, हाथ धोने के लिए साबुन वगैरह की व्यवस्था भी नहीं थी। ऐसे में वे मज़दूर वहां से सीधे अपने घर चले गये, जहां उन्हें नहीं जाना था। उन्हें 14 दिनों के लिए सरकार की तरफ से क्वारेंटाइन में रहना था, ताकि अगर उनमें कोरोना वायरस के अंश हों तो उनके गांव की बड़ी आबादी इससे प्रभावित नहीं हो। मगर बिहार सरकार के पंचायत क्वारेंटाइन योजना के इस बेहद लचर क्रियान्वयन की वजह से इन गांवों में मज़दूरों को क्वारेंटाइन नहीं किया जा सका। ऐसा बिहार के कई गांवों में हुआ है।

कोरोना संक्रमण के खतरे से जूझ रहे बिहार राज्य के लिए यह एक अजीब सी स्थिति है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक हाल के दिनों में एक लाख 80 हजार 652 लोग बाहर से आ चुके हैं। लॉकडाउन के बाद के दिनों में ही राज्य में 40 हजार से अधिक मज़दूरों के पहुंचने की खबर है। इसके अलावा चोरी छिपे बंगाल, नेपाल और उत्तर प्रदेश की सीमा से कितने लोगों ने राज्य में प्रवेश किया उसका कोई सटीक आंकड़ा नहीं है। ऐसे में अनुमानतः यह माना जा रहा है कि पिछले दो-तीन हफ्तों में अमूमन दो लाख से अधिक लोग राज्य में बाहर से आये हैं। कोरोना संक्रमण के दौर में जब लोगों के मेलमिलाप को कम करने कोशिश हो रही है, राज्य में इतनी बड़ी आबादी का आना गंभीर चिंता का विषय बन गया है।

इन दो लाख लोगों की स्क्रीनिंग, इन्हें इनके संबंधित पंचायतों में क्वारेंटाइन करना, इनकी स्वास्थ्य की नियमित निगरानी, जिन लोगों में लक्षण नजर आयें उनके टेस्ट और फिर उनका इलाज। बिहार जैसे साधन विहीन और किसी योजना को जमीन पर लागू करने के मामले में पिछड़े राज्य के लिए यह बड़ा गंभीर टास्क है। अगर राज्य सरकार इसमें थोड़ी भी चूक करती है तो उसका बड़ा खामियाजा पूरे राज्य को उठाना पड़ सकता है। मानव और दूसरे संसाधनों के मामले में कमजोर बिहार का स्वास्थ्य विभाग शायद ही उस स्थिति का सामना कर पाये।

हालांकि इस परिस्थिति से निबटने के लिए राज्य सरकार ने सभी जिले में क्वारेंटाइन कोषांग, ट्रैकिंग एवं मॉनिटरिंग कोषांग और आइसोलेशन कोषांग के नाम से तीन टीम का गठन किया है। इन कोषांगों में पंचायत स्तर तक निगरानी के लिए लोगों को जिम्मेदारियां दी गयी हैं। सरकारी दावों के मुताबिक मंगलवार, 31 मार्च तक राज्य के दस फीसदी सरकारी स्कूलों में पंचायत क्वारेंटाइन सेंटर खुल गये थे।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बयान जारी कर कहा है कि हर पंचायत क्वारेंटाइन सेंटर में रहने वाले मज़दूरों के लिए भोजन, बिस्तर, साफ-सफाई के इंतजाम होंगे। सभी रहने वालों की नियमित स्वास्थ्य जांच होगी और उन केंद्रों में सरकारी कर्मचारी तैनात होंगे। सरकार की तरफ से यह भी निर्देश जारी हुए हैं कि घरों में आइसोलेट होने वाले लोगों की भी रोज निगरानी होगी और उनके लक्षणों के बारे में अधिकारियों को सूचित किया जायेगा। राज्य के आपदा प्रबंधन विभाग के प्रधान सचिव प्रत्यय अमृत ने कहा है कि गरुड़ एप से सभी लोगों की निगरानी की जायेगी।

मगर पटना में बनी इन योजनाओं की ज़मीन पर स्थिति बहुत खराब है। कुछ चुनिंदा पंचायत क्वारेंटाइन सेंटरों को छोड़ दिया जाये तो ज्यादातर की स्थिति सुपौल और दरभंगा वाले उन सेंटरों जैसी है, जिसका जिक्र शुरुआत में किया जा चुका है।

पटना जिले के बाढ़ के सकसोहरा पूर्वी पंचायत के क्वारेंटाइन सेंटर से 22 लोगों के फरार होने की खबर बुधवार के अखबारों में छपी है।

मोकामा से मिली खबर के मुताबिक वहां 346 लोगों की स्क्रीनिंग करके उन्हें क्वारेंटाइन सेंटरों में भेजा गया, मगर उनमें से 85 ही अभी सेंटर में स्थापित बताये जा रहे हैं। ज्यादातर लोग सीधे घर चले जा रहे हैं। इस वजह से पटना जिला प्रशासन ने आदेश जारी किया है कि जिन्हें पंचायत क्वारेंटाइन में रहने के लिए कहा गया है, अगर वे बाहर घूमते पाये गये तो उनके खिलाफ प्राथमिकी होगी।

ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायत क्वारेंटाइन के बारे में जानकारी देते हुए मोकामा के किसान प्रणव शेखर शाही कहते हैं, दरअसल ज्यादातर केंद्रों में लोगों के रहने लायक व्यवस्था नहीं है, यह एक बड़ा कारण है। इसके अलावा बाहर से आये लोगों को अपने गांव में रहते हुए घर में नहीं रह पाना भी कचोटता है। वे कहते हैं कि इसके अलावा कोरोना के भय से इन केंद्रों को चलाने के जिम्मेदार अधिकारी और पंचायत के लोग भी इसमें ज्यादा सक्रिय नहीं हो रहे। कुल मिलाकर यह जिम्मेदारी पुलिस प्रशासन की हो जाती है। वह भी कोरोना के भय से लोगों से जोर जबरदस्ती करने में परहेज करती है।

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 दरभंगा के राढ़ी पंचायत में बना क्वारेंटाइन सेंटर

दरअसल सरकार की तरफ से इन पंचायत क्वारेंटाइन सेंटरों का प्रभारी ग्रामीण आवास सहायक नामक कांट्रैक्ट कर्मी को बनाया गया है और उसकी टीम में पांच आंगनबाड़ी सेविका को रखा गया है। पंचायती राज्य व्यवस्था के लोगों को इससे सीधे नहीं जोड़ा गया है, उन्हें बस निगरानी करना है। भोजन की व्यवस्था मध्याह्न भोजन कोषांग से होनी है। ग्रामीण आवास सहायक जो इन केंद्रों के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार है, वह अल्पवेतन भोगी है और वह जिस पंचायत में काम करता है, उसका निवासी नहीं होता है। ऐसे में वह कोरोना के भय से अक्सर गायब रहता है। शेष पांचों महिलाओं पर भी काम के लिए ज्यादा दवाब नहीं बनाया जा सकता है। इन केंद्रों की लचर व्यवस्था के पीछे यह भी एक वजह है।

हां, कुछ केंद्रों में जहां स्थानीय मुखिया और अन्य लोग खुद इनिशियेटिव लेकर काम करते हैं, वहां की व्यवस्था ठीक है। ऐसा ही एक केंद्र सहरसा जिले के चैनपुर गांव का है। मगर ज्यादातर गांवों में स्थिति बेहतर नहीं है।

इसके अलावा इन मज़दूरों के गांव में प्रवेश को लेकर भी कई जगह विवाद की स्थिति बन गयी है। कई जगह लोग पुलिस को सूचित भी करते हैं। कई गांवों को लोगों ने खुद घेर लिया है और वे बिना जांच रिपोर्ट देखे किसी आगंतुक को गांव में घुसने नहीं दे रहे।

इन परिस्थितियों में राज्य के मेडिकल कॉलेजों में जांच रिपोर्ट के लिए मज़दूरों की भारी भीड़ उमड़ रही है। दरभंगा और मुजफ्फरपुर के मेडिकल कॉलेजों में रोज 800 से एक हजार ऐसे लोग पहुंच रहे हैं। उनकी स्क्रीनिंग के लिए वहां के स्वास्थ्य टीम के पास समुचित साधन नहीं हैं, ऐसे में वे केवल पूछताछ करके और हाथ में मुहर लगाकर मज़दूरों को भेज दे रहे हैं।

स्थिति की भयावहता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राज्य सरकार के हेल्पलाइन नंबर 104 पर सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अब तक 45 हजार से अधिक कॉल आ चुके हैं, इनमें से सिर्फ 13 हजार को परामर्श दिया जा सका है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक सिर्फ 5387 यात्रियों को निगरानी में रखा गया है। 25 जनवरी से चल रहे स्क्रीनिंग अभियान के तहत अब तक चार लाख से अधिक लोगों की स्क्रीनिंग का दावा किया जा रहा है। अब तक 1350 लोगों का कोरोना टेस्ट कराया गया है, जिसमें से 23 के पॉजिटिव पाये जाने की ख़बर है। इनमें से एक की मौत हो चुकी है और दो स्वस्थ होकर रिलीज किये जा चुके हैं।

राज्य सरकार के टारगेट में फिलहाज कोरोना से पहले से संक्रमित रहे देशों से आये हुए यात्री हैं, क्योंकि अब तक जो भी मरीज कोरोना से संक्रमित पाये गये हैं, उनमें से या तो विदेश यात्रा करने वाले लोग हैं, या उनके संपर्क में आये लोग। इसलिए लॉक डाउन से पहले और बाद आये दो लाख लोगों को सिर्फ क्वारेंटाइन किया जा रहा है। दुःखद तथ्य यह है कि अभी तक बिहार में पटना के बाहर कहीं टेस्ट की सुविधा उपलब्ध नहीं हो पायी है। इसकी वजह से भी खास कर उत्तरी बिहार में जहां सबसे अधिक संख्या में बाहर से मज़दूर पहुंचे हैं, वहां की कोरोना संक्रमण की वस्तुस्थिति का पता नहीं चल पाया है। 

(लेखक वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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Nitish Kumar

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