NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
नज़रिया
समाज
हम भारत के लोग
भारत
राजनीति
हम भारत के लोग: समृद्धि ने बांटा मगर संकट ने किया एक
जनवरी 2020 के बाद के कोरोना काल में मानवीय संवेदना और बंधुत्व की इन 5 मिसालों से आप “हम भारत के लोग” की परिभाषा को समझ पाएंगे, किस तरह सांप्रदायिक भाषणों पर ये मानवीय कहानियां भारी पड़ीं।
वसीम अकरम त्यागी
16 Feb 2022
hum bharat ke log

हम भारत के लोग जिस संविधान की परिकल्पना के साथ अपने आप को देश का नागरिक मानते हैं वह हमें बंधुत्व यानी भाईचारे के साथ जुड़ी होती है। बंधुत्व- संकट में याद आता है और यह सब हमने कोरोना की दो लहरों के समय देखा है। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारियों के संघर्ष के इतर देश के सामने गुलामी का संकट, हमें अपनी जाति, धर्म और संस्कृति की विभिन्नता के ऊपर एक बंधुत्व से जोड़ पाने में कामयाब हुआ था। कहा जाता है हर संकट का एक सकारात्मक पक्ष होता है। स्वतंत्र भारत में यह बंधुत्व हमें तीन युद्ध काल में नजर आया और एक लंबे समय के बाद इस बंधुत्व की एक झलक हमें कोरोना संकट के समय नजर आई, जब देश भयानक सांप्रदायिक विभेद में बंटा हुआ है। मानवीय मूल्यों की वास्तविकता से परिचय कराते हुए कोरोना की तकलीफ ने हमें बंधुत्व की तरफ आगे बढ़ाया।

मेरी निजी राय है कि कोरोना की दो लहर के बाद लोगों में सांप्रदायिकता का भाव कम हुआ है तथापि जितना भी सांप्रदायिक विष वमन हम देख रहे हैं, उसके स्रोत पर नजर डाली जाए तो वह राजनीतिक भर रह गया है। जनवरी 2020 के बाद के कोरोना काल में मानवीय संवेदना और बंधुत्व की इन 5 मिसालों से आप मेरी बात को स्पष्ट रूप से समझ पाएंगे।

बेटे ने शव लेने से किया इंकार, मोहम्मद उमर ने किया अंतिम संस्कार

पिछले साल अप्रैल में कोरोना महामारी ने जैसा क़हर बरसाया उसमें स्वास्थ्य सेवाओं की पोल तो खुली ही, लेकिन इसके साथ ही ऐसे बहुत से मामले सामने आए जब अपने ख़ून के रिश्तों ने आख़िरी वक्त में साथ छोड़ दिया, और फिर ‘दूसरे’ लोगों ने इंसानी फर्ज़ अदा किया। ऐसी ही एक दास्तां बिहार के दरभंगा में रेलवे में कार्यरत एक बुजुर्ग की है। रेलवे में कार्यरत बुजुर्ग कमतौल थाना के पीडारुच गांव के रहने वाले थे, जब वे कोरोना संक्रमित हुए तो उन्हें दरभंगा के DMCH अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन वे जिंदगी की जंग हार गए। जिसके बाद अस्पताल द्वारा इसकी सूचना परिवार को दी गई लेकिन उनके बेटे ने शव को लेने से इंकार कर दिया और अस्पताल प्रशासन को लिख कर भी दिया। इसके बाद बेटे ने अपना मोबाइल बंद कर लिया। जब बेटे ने शव को लेने से इंकार किया तो इसकी सूचना कबीर सेवा संस्थान को सूचना दी गई जिसके बाद सेवा संस्था में कार्यरत मोहम्मद उमर ने मानव धर्म निभाते हुए शव को हिन्दू रीति रिवाज से दाह संस्कार कर मानव सेवा की मिसाल कायम की।

मंजू को जब अपने छोड़ गए, तब आख़िरी सफ़र पर मंसूर ले गए 

मुरादाबाद के कटघर थाना क्षेत्र के गुलाब बाड़ी इंदिरा कॉलोनी में विश्वनाथ अपनी पत्नी मंजू के साथ रहते थे। बीते वर्ष कोरोना की क़हर बरपाने वाली लहर में दो मई को उन्होंने अपनी पत्नी गंवा दी, विश्वनाथ के लिये जितना गहरा सदमा अपनी पत्नी को खोना था, उससे भी बड़ा सदमा उन्हें उस वक्त लगा, जब मंजू की कोरोना से मृत्यु होने के बाद उनका कोई भी पड़ोसी, रिश्तेदार उनके अंतिम संस्कार के लिये आगे नहीं आया। अपनी पत्नी की कोरोना से मृत्यु के बाद विश्वनाथ ने सभी रिश्तेदारों को पत्नी मंजू की मौत की ख़बर दी। पास के मोहल्ले में जाकर भी पत्नी के अंतिम संस्कार के लिये मदद मांगी, लेकिन कोरोना के डर के कारण कोई सामने नहीं आया। इसके बाद मुस्लिम समुदाय से संबंध रखने वाले मंसूर अली, इरफान, साबिर, गुड्डू, रईस, शादाब आदि ने मिलकर विश्वनाथ की पत्नी मंजू का हिंदू रीती रिवाज़ के अनुसार अंतिम संस्कार कराया। मुस्लिम समुदाय के ये लोग अंतिम संस्कार के लिये जब मंजू की अर्थी ले जा रहे थे, इसी दौरान किसी ने उनका वीडियो बनाकर उसे सोशल मीडिया पर अपलोड कर दिया, जिसके बाद स्थानीय अख़बारों ने इस ख़बर को प्रकाशित किया।

अपनों ने किया लावारिस तब शफी और अली बने वारिस

20 अप्रैल 2020 को तेलंगाना के पेडा कोडापाल मंडल के कटेपल्ली गांव निवासी मोघूलाइया की कोरोना संक्रमण की वजह से मृत्यु हो गई। मोघूलाइया, भंसुवाड़ा के एक अस्पताल में भर्ती थे, जहां उन्होंने आखिरी सांस ली, इसके बाद मोघूलाइया के परिवार के सदस्यों उनको लावारिस छोड़कर चले गए। उन्हें डर था कि अगर वे मोघूलाइया के शव को छुएंगे तो इससे खुद भी बीमार पड़ जाएंगे, इसी डर की वजह से उनके घर वालों ने मोघूलाइया का अंतिम संस्कार करने से इंकार कर दिया। जिसके बाद एंबुलेंस चालक दो सगे भाइयों मोहम्म शफी और मोहम्मद अली ने अपनी जान और कोरोना संक्रमण के संभावित ख़तरे की परवाह किये बग़ैर इंसानियत के फर्ज़ को अदा किया, दोनों भाईयों ने मोघूलाइया का अंतिम संस्कार किया। लोगों ने इन दोनों भाइयों द्वारा किये गए इस सद्भावना और सांप्रदायिक एकता के कार्य की सभी ने तारीफ की और उनका शुक्रिया अदा किया।

डासना और लोनी के वे मुस्लिम

पिछले कई वर्षों से दिल्ली से सटे गाज़ियाबाद जनपद का लोनी और डासना कस्बा चर्चाओं में रहा है। लोनी में नंदकिशोर नामी भाजपा विधायक आए दिन गोश्त बेचने वाले मुस्लिम दुकानदारों के ख़िलाफ विवादित एंव भड़काऊ बयान देते रहे हैं, वहीं डासना के एक मंदिर में रहने वाला यति नरिंसहानंद नामी एक कथित महंत एक बार नहीं बल्कि दर्ज़नों बार मुसलमानों के ख़िलाफ भड़काऊ बयानबाजी कर चुका है। लेकिन डासना और लोनी की पहचान सिर्फ ये दोनों ‘ज़हरजीवी’ नहीं हैं, बल्कि वे मुस्लिम युवा भी इन दोनों नगरों की पहचान हैं, जिन्होंने बीते वर्ष छह मई को कोरोना महामारी के दौरान अपनी जान की परवाह किये बिना उन लाशों का अंतिम संस्कार कराया, जिन्हें उनके ‘अपने’ छोड़ गए थे।

तब रोज़ेदार मुस्लिम युवकों ने कराया अंतिम संस्कार

उत्तर प्रदेश में इन दिनों चुनाव है, चुनावी माहौल में नेताओं की ‘विषवाणी’ ध्रुवीकरण की कोशिशों में लगी है। लेकिन इसी उत्तर प्रदेश में कोरोना महामारी में ‘भारत’ की तस्वीर भी सामने आई थी। यूपी में ऐसी बहुत सी ख़बरें आईं, जिसमें मुस्लिम युवकों द्वारा उन लाशों का अंतिम संस्कार किया गया जिन्हें उनके ‘अपने’ डर की वजह से कोई छूने को भी तैयार नहीं थे। ऐसी ही एक मिसाल चार मई 2020 को बलरामपुर में देखने को मिली, जहां नगर के पुरैनिया निवासी मुकुंद मोहन पांडेय की तीन मई को कोरोना से मौत हो गयी थी। संक्रमण के डर से उनके परिवार के लोगों और पड़ोसियों ने अंतिम संस्कार करने से किनारा कर लिया। लेकिन जब इस की जानकारी नगर पालिका परिषद के चेयरमैन के प्रतिनिधि शाबान अली को मिली तो उन्होंने अपने साथी तारिक, अनस, गुड्डू, शफीक समेत और कई लोगों को बुलाया इन लोगों ने अर्थी और कफ़न तैयार किया जिसके बाद मुकुंद मोहन पांडेय के शव को श्मशान ले गए। वहाँ चिता पर लिटा कर मुकुंद मोहन पांडेय के बेटों को फोन करके बुलाया जिन्होंने आकर अपने पिता को मुखाग्नि दी। वह रमज़ान का महीना था, और शबान अली समेत उनके साथ इस मानव धर्म को निभाने वाले उनके तमाम साथी रोजा रखे हुए थे। रोजेदार युवाओं द्वारा पेश की गई इंसानियत की मिसाल की क्षेत्र में काफी चर्चा रही। अब वही यूपी है, जहां सत्ता की कुर्सी तक पहुंचने के लिये नेताओं की ज़हरीली ज़ुबान ‘हम भारत के लोगों’ के दिमाग़ों को सांप्रदायिक घृण से भर रही है। अब समाज को तय करना है कि उसे क्या चाहिए? उसे घृणा चाहिए या सद्धभाव? क्योंकि जिस समाज को लेकर घृणा फैलाई जा रही है वह समाज संकट के समय में ‘आखिरी सफर का साथी’ बनकर उस घृणा को दूर करने के लिये एक नहीं बल्कि कई क़दम बढ़ा चुका है। लेकिन बीते वर्ष दिल्ली के जंतर-मंतर पर लगने वाले देशविरोधी नारे, गुरुग्राम में जुमा की नमाज़ को लेकर होने वाला विवाद, और फिर हरिद्वार में ‘अधर्म’ संसद के मंच से जनसंहार का आह्वान, पर बहुसंख्यक समाज का खामोश रह जाना, इन तमाम घटनाक्रमों का विरोध न करना, ज़हरजीवियों का विरोध न करना, उन भारतीयों को मायूस कर रहा है जिन्होंने मानवता को बचाने के लिये अपनी जान की भी परवाह नहीं की।

दुःख बांटने के लिए हमारा देश दुनिया में मशहूर रहा है। यह आधी कामयाबी है। हम भारत के लोग उस दिन पूरे कामयाब हो जाएंगे जब खुशी और समृद्धि को बांटना सीख जाएंगे। आधे में गुज़ारा कर लेना भी यूं तो सफलता ही है, क्या हर्ज़ अगर पूरी तरह सफल हो जाएं?

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं, व्यक्त विचार निजी हैं) 

ये भी पढ़ें: आज़ादी के अमृत महोत्सव वर्ष में हमारा गणतंत्र एक चौराहे पर खड़ा है

Hum Bharat Ke Log
We the people of India
preamble of Indian Constitution
Indian constitution
COVID-19
Coronavirus
Unity in Diversity

Related Stories

कार्टून क्लिक: आधे रास्ते में ही हांफ गए “हिंदू-मुस्लिम के चैंपियन”

एक व्यापक बहुपक्षी और बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता

हम भारत के लोग: देश अपनी रूह की लड़ाई लड़ रहा है, हर वर्ग ज़ख़्मी, बेबस दिख रहा है

हम भारत के लोगों की असली चुनौती आज़ादी के आंदोलन के सपने को बचाने की है

हम भारत के लोग : इंडिया@75 और देश का बदलता माहौल

हम भारत के लोग : हम कहां-से-कहां पहुंच गये हैं

संविधान पर संकट: भारतीयकरण या ब्राह्मणीकरण

विशेष: लड़ेगी आधी आबादी, लड़ेंगे हम भारत के लोग!

झंझावातों के बीच भारतीय गणतंत्र की यात्रा: एक विहंगम दृष्टि

आज़ादी के अमृत महोत्सव वर्ष में हमारा गणतंत्र एक चौराहे पर खड़ा है


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License