NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
''मैं दान की चीज़ नहीं आपकी बेटी हूं'’ कहकर IAS ने नकारी कन्यादान की रस्म
समाज में समानता और सुधार के लिए एक IAS तपस्या ने अपनी शादी में कन्यादान की रस्म नहीं निभाकर एक सोशल मैसेज देने की कोशिश की है।
रवि शंकर दुबे
18 Dec 2021
kandyadan
फ़ोटो साभार: सोशल मीडिया

कन्यादान… ये सिर्फ एक शब्द नहीं बल्कि हिन्दू संस्कृति की बेहद पवित्र और प्राचीन परंपरा मानी जाती है, हालांकि दो शब्दों से मिलकर बने ''कन्यादान'’ शब्द का अर्थ निकालने पर एक अजीब सा मतलब निकलता है, यानि कन्या का दान।

इस बेहद पवित्र मानी जाने वाली परंपरा से हटकर मध्यप्रदेश की एक लड़की ने अपनी शादी में कन्यादान को छोड़कर बाकी सारी रस्में अदा कीं, जिसके बाद से ही उसकी शादी चर्चा का विषय बनी हुई है। वैसे भी कन्यादान की रस्म को नकारने वाली ये कोई आम महिला नहीं बल्कि आईएएस अधिकारी है। जिन्होंने UPSC की परीक्षा में 23वीं रैंक हासिल की है।

नरसिंहपुर के जोबा गांव की रहने वाली आईएएस तपस्या परिहार ने आईएफएस अधिकारी गर्वित गंगवार से शादी की है। जब तपस्या की शादी की रस्में चल रही थीं तब उन्होंने कन्यादान की रस्म निभाने से ये कहकर मना कर दिया कि- ''मैं दान की चीज नहीं आपकी बेटी हूं'’

तपस्या का ये कदम महिला सशक्तिकरण को ताकत तो देता ही है, साथ ही उन पुरुषों को भी चुनौती है जो शादी के बाद महिलाओं को समान अधिकार नहीं देते। या फिर उनपर अत्याचार करते हैं।

कहा जाता है कि कन्यादान वो रस्म हैं, जिसके लिए हर माता-पिता इंतजार करते हैं, अपनी बेटी की शादी के दिन उपवास रखकर उसके और उसके होने वाले पति के पैरों की पूजा करते हैं, इस रस्म के बाद लड़की के माता-पिता खुद को सौभाग्यशादी मानते हैं। हालांकि ये रस्में सामाजिक तौर पर कितनी सही हैं या गलत इसपर बरसों से बहस हैं, लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि इन रस्मों के साथ छेड़़छाड़ करने वालों या फिर इसपर टिप्पणी करने वालों के खिलाफ प्रदर्शन जरूर शुरू हो जाते हैं।

ऐसा ही एक मामला कुछ दिनों पहले सामने आया था, जब बॉलीवुड अभिनेत्री आलिया भट्ट ने कपड़ों के एक ब्रैंड मान्यवर का प्रचार किया था… इस प्रचार में आलिया भट्ट शादी के जोड़े में दिखाई दे रही थीं, इस प्रचार में उन्होंने कहा था कि 'कन्यादान से अच्छा कन्यामान' होता है। इस प्रचार के बाद जमकर विवाद हुआ था और सोशल मीडिया पर आलिया भट्ट की ट्रोलिंग शुरू हो गई थी। उस दौरान लोगों ने कहा था कि कन्यादान की परंपरा पर सवाल उठाकर हिन्दू संस्कृति को नीचा दिखाने की कोशिश की जा रही है।

इतना ही नहीं हिन्दू संगठन के लोगों ने मुंबई में मान्यवर के शोरूम के बाहर जोरदार प्रदर्शन भी किया था। अमर उजाला के अनुसार- रांड मान्यवर की कंपनी वेदांत फैशंस लिमिटेड के वाशी क्षेत्र में स्थित आउटलेट के बार आयोजित विरोध प्रदर्शन में तख्तियां ले रखी थीं।

अमर उजाला के अनुसार इस प्रचार के बाद दक्षिणपंथी संगठन के प्रवक्ता डॉ उदय धुरी ने एक विज्ञप्ति में दावा किया कि कंपनी के विज्ञापन में विवाह समारोहों के दौरान होने वाली कन्यादान रस्म को गलत तरीके से दिखाया है। इससे समुदाय की धार्मिक भावनाएं आहत हुई हैं। संगठन ने अपनी विज्ञप्ति में कंपनी से बिना शर्त माफी की मांग की है और इसे तुरंत हटाने को कहा है।

दरअसल इस पूरा इस प्रकार था कि- आलिया अपने होने वाले पति के साथ मंडप में बैठी हैं और वो एक-एक पल याद कर रही हैं कि कैसे उनके परिवार ने उन्हें एहसास दिलाया कि वो पराया धन है। मन ही मन वो सोचती है कि 'क्या मैं दान की जाने वाली वस्तु हूं? केवल कन्यादान ही क्यों। नया विचार कन्यामान।

खैर… आलिया भट्ट के प्रचार के विरोध के बाद अब मध्य प्रदेश से ऐसा मामला सामने आया हैं, जिसमें अभी फिलहाल किसी विरोध या प्रदर्शन की बात सामने नहीं आई है, लेकिन आने वाले दिनों में कुछ कहा नहीं जा सकता है कि IAS तपस्या के फैसले पर भी सवाल खड़े किए जाएं।

IAS Tapasya
kandyadan
social message
equal rights for women

Related Stories

विशेष: क्यों प्रासंगिक हैं आज राजा राममोहन रॉय

पत्नी नहीं है पति के अधीन, मैरिटल रेप समानता के अधिकार के ख़िलाफ़

राष्ट्रीय बालिका दिवस : लड़कियों को अब मिल रहे हैं अधिकार, पर क्या सशक्त हुईं बेटियां?

महिलाओं का लंबा क़ानूनी संघर्ष भी सेना में पितृसत्ता की जड़ें नहीं उखाड़ पा रहा!

सेना में महिलाओं के स्थायी कमीशन को मंज़ूरी, सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद बैकफ़ुट पर सरकार!

अंबेडकर को अपनाना आज भी क्यों आसान नहीं है

अम्मू की कहानी


बाकी खबरें

  • ऋचा चिंतन
    WHO की कोविड-19 मृत्यु दर पर भारत की आपत्तियां, कितनी तार्किक हैं? 
    25 Apr 2022
    भारत ने डब्ल्यूएचओ के द्वारा अधिक मौतों का अनुमान लगाने पर आपत्ति जताई है, जिसके चलते इसके प्रकाशन में विलंब हो रहा है।
  • एजाज़ अशरफ़
    निचले तबकों को समर्थन देने वाली वामपंथी एकजुटता ही भारत के मुस्लिमों की मदद कर सकती है
    25 Apr 2022
    जहांगीरपुरी में वृंदा करात के साहस भरे रवैये ने हिंदुत्ववादी विध्वंसक दस्ते की कार्रवाई को रोका था। मुस्लिम और दूसरे अल्पसंख्यकों को अब तय करना चाहिए कि उन्हें किसके साथ खड़ा होना होगा।
  • लाल बहादुर सिंह
    वीर कुंवर सिंह के विजयोत्सव को विभाजनकारी एजेंडा का मंच बनाना शहीदों का अपमान
    25 Apr 2022
    ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध हिन्दू-मुस्लिम जनता की एकता की बुनियाद पर लड़ी गयी आज़ादी के लड़ाई से विकसित भारतीय राष्ट्रवाद को पाकिस्तान विरोधी राष्ट्रवाद (जो सहजता से मुस्लिम विरोध में translate कर…
  • आज का कार्टून
    काश! शिक्षा और स्वास्थ्य में भी हमारा कोई नंबर होता...
    25 Apr 2022
    SIPRI की एक रिपोर्ट के मुताबिक मोदी सरकार ने साल 2022 में हथियारों पर जमकर खर्च किया है।
  • वसीम अकरम त्यागी
    शाहीन बाग़ की पुकार : तेरी नफ़रत, मेरा प्यार
    25 Apr 2022
    अधिकांश मुस्लिम आबादी वाली इस बस्ती में हिंदू दुकानदार भी हैं, उनके मकान भी हैं, धार्मिक स्थल भी हैं। समाज में बढ़ रही नफ़रत क्या इस इलाक़े तक भी पहुंची है, यह जानने के लिये हमने दुकानदारों,…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License