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भारत
राजनीति
यूपी और प्रेस की आज़ादी : लखनऊ में स्वतंत्र पत्रकार असद रिज़वी पर मुक़दमा
प्रदेश में लगातार मीडियाकर्मियों के विरुद्ध हो रहे मुक़दमों पर वरिष्ठ पत्रकारों ने चिंता जताते हुए कहा है कि प्रदेश में प्रेस की आज़ादी पर हमला किया जा रहा है, उसकी आवाज़ को दबाने की कोशिश की जा रही है।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
25 Oct 2019
asad rizvi

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के स्वतंत्र पत्रकार असद रिज़वी पर स्थानीय प्रशासन ने मुक़दमा लिखकर उन्हें अपर सिटी मजिस्ट्रेट (द्वितीय) की अदालत में पेश होने को कहा है। प्रदेश में लगातार मीडियाकर्मियों के विरुद्ध हो रहे मुक़दमों पर वरिष्ठ पत्रकारों ने चिंता जताते हुए कहा है कि प्रदेश में प्रेस की आज़ादी पर हमला किया जा रहा है। पत्रकारों की आवाज़ को दबाने का प्रयास किया जा रहा है।

असद रिज़वी ने लखनऊ से प्रकाशित होने वाले एक उर्दू दैनिक समाचार पत्र में 2 सितम्बर, 2019 को,  मोहर्रम की होर्डिंग को ज़िला प्रशासन द्वारा हटाए जाने की ख़बर लिखी थी। उन्होंने ख़बर में इस मामले पर लखनऊ के अपर ज़िलाधिकारी (पश्चिम) की प्रतिक्रिया भी लिखी थी।

क्या थी ख़बर?

असद रिज़वी ने स्थानीय उर्दू अख़बार में लिखा था- "मोहर्रम में होने वाले कार्यक्रमों की होर्डिंग सड़क से उतारे जाने पर शिया उलेमा ने नाराज़गी का इज़हार किया है। उलेमा का कहना है की जब सभी धर्म के लोगों को होर्डिंग, बैनर और प्रचार सामग्री लगाने की अनुमति है,तो सिर्फ़ शिया समुदाय पर प्रशासन प्रतिबंध क्यूँ है? उलेमा का कहना है होर्डिंग आदि को लेकर प्रशासन से कभी कोई समझौता नहीं हुआ है।"
इसी ख़बर में प्रशासन की प्रतिक्रिया भी शामिल की गई, जो इस प्रकार है, "ज़िला प्रशासन का कहना है की शिया समुदाय की होर्डिंग को एहतियात के तौर पर हटवाया गया है। अपर ज़िलाधिकारी (सिटी)  (एडीएम) संतोष कुमार वैश ने बताया की सरकारी सम्पत्ति पर किसी को धार्मिक सामग्री लगाने की अनुमति नहीं है। एडीएम के अनुसार परंपरागत रूप से होने वाले किसी कार्यक्रम पर कोई प्रतिबंध नहीं है। होर्डिंग को लेकर शिया समुदाय और प्रशासन के बीच किसी भी समझौते की बात को एडीएम संतोष कुमार वैश ने भी ग़लत बताया है।"

यह एक सामान्य सी ख़बर थी, जो पुलिस-प्रशासन को नागवार गुजरी। पुलिस ने रिज़वी से कहा कि उनकी ख़बरों से जनता में शासन-प्रशासन के ख़िलाफ़ आक्रोश उत्पन होता है।

चौक पुलिस ने दबाव बनाया

पत्रकार असद रिज़वी के अनुसार होर्डिंग हटाए जाने का मामला सआदतगंज क्षेत्र का था। लेकिन चौक पुलिस ने ख़बर लिखे जाने पर आपत्ति की और उनको फ़ोन पर कहा कि वह भविष्य में शासन-प्रशासन के लिए आलोचनात्मक ख़बरें नहीं लिखें। इतना ही नहीं चौक पुलिस उनके घर गई और उनको ख़बरें न लिखने की धमकी भरे लहजे में चेतावनी दी और उनकी कुछ निजी जानकारियां लेकर वापस लौट गई।

पत्रकार रिज़वी के अनुसार उन्होंने इस सारे प्रकरण की जानकारी राजधानी के दूसरे वरिष्ठ पत्रकारों और पत्रकार संगठनों को दी। जिसके बाद यह मुद्दा निजी टीवी की बहस में भी उठा और कई समाचार पत्रों ने इस विषय पर ख़बरें और सम्पादकीय भी लिखे।

मीडिया में यह प्रकरण आने के बाद चौक पुलिस असद रिज़वी से और अधिक नाराज़ हो गई। एक दिन जब वह किसी निजी काम से जा रहे थे, तो पुलिस ने उनको रोकर कहा कि उनको यह प्रकरण वरिष्ठ पत्रकारों के साथ साझा नहीं करना चाहिए था, क्योंकि यह मामला मीडिया में आने से पुलिस की छवि ख़राब हुई है।

उत्तर प्रदेश मान्यता प्राप्त पत्रकार समिति ने भी इस प्रकरण का संज्ञान लिया और उत्तर प्रदेश कैबिनेट की मीटिंग के बाद प्रेसवार्ता में असद रिज़वी को पुलिस द्वारा धमकाए जाने की शिकायत शासन में करके पूरे प्रकरण का विरोध किया।

इसके बाद 14 अक्टूबर 2019 को पत्रकार समिति का एक प्रतिनिधिमंडल राज्यपाल से मिला और मिर्ज़ापुर में पत्रकार पवन जयसवाल पर मुक़दमा लिखे जाने और असद रिज़वी को पुलिस द्वारा धमकी दिए जाने को लेकर विरोध किया। वरिष्ठ पत्रकारों ने राज्यपाल को पत्र लिखकर भी पत्रकारों के विरुद्ध कार्रवाई करने वाले अधिकारियों की शिकायत की और अपना विरोध दर्ज कराया।
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असद रिज़वी जो न्यूज़क्लिक के अलावा कई और जगह भी बतौर स्वतंत्र पत्रकार लिखते हैं, उन्होंने बताया कि उनको एक एसएमएस से मालूम हुआ की उनके विरुद्ध मुक़दमा लिखा गया है। मुक़दमा सीआरपीसी की धारा 107-116 और 151 के अंतर्गत लिखा गया है। जिसके लिए उनको अपर सिटी मजिस्ट्रेट (द्वितीय) की अदालत में पेश होना है।

जब असद रिज़वी ने पुलिस से सम्पर्क किया तो, स्थानीय पुलिस ने उनको बताया कि उन पर मुक़दमा इसलिए किया गया है, क्योंकि प्रशासन को आशंका है कि वह शांति भंग कर सकते हैं। रिज़वी का आरोप है की प्रशासन ने उन पर मुक़दमा इसलिए लिखा है, क्योंकि वह शासन-प्रशासन की आलोचनात्मक ख़बरें लिखते रहे हैं।

रिज़वी कहते हैं कि अगर उन्होंने कोई ग़लत ख़बर लिखी थी तो उसकी शिकायत अख़बार के सम्पादक या प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया से करना चाहिए। उन्होंने ये भी कहा की उनका किसी से कोई विवाद नहीं है, ऐसे में यह मुक़दमा तो सिर्फ़ दबाव बनाने के लिए लिखा गया है।

रिज़वी ने आरोप लगाया की इससे पहले वाहन चेकिंग के नाम भी चौक पुलिस ने उनसे अभद्र व्यवहार किया। उसके बाद उनका वीडियो सोशल मीडिया वायरल किया, जिसके बाद उनकी छवि धूमिल हुई थी।

पुलिस के इस व्यवहार की शिकायत पत्रकार रिज़वी ने जन सुनवाई पोर्टल पर भी की थी। लेकिन उनकी शिकायत पर भी पुलिस ने ग़लत रिपोर्ट लिखी थी। रिज़वी का कहना है की पुलिस के वायरल वीडियो से ही उसकी रिपोर्ट को ग़लत साबित किया जा सकता है।

स्वतंत्र पत्रकार असद रिज़वी के विरुद्ध मुक़दमे लिखे जाने की वरिष्ठ पत्रकारों ने निंदा की है। वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान ने कहा है की अगर असद रिज़वी पर मुक़दमा लिखा जा सकता है, तो कोई पत्रकार भी सुरक्षित नहीं है। उन्होंने कहा कि एक स्वतंत्र पत्रकार पर मुक़दमा, मीडिया की स्वतंत्रता पर हमला है।

वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि किसी पत्रकार पर मुक़दमा लिखने से शासन-प्रशासन की मंशा पर संदेह उत्पन होता है। बीबीसी के ब्यूरो चीफ़ रह चुके रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि शासन और प्रशासन कभी नहीं चाहते हैं कि उनके प्रतिकूल ख़बरों को प्रकाशित किया जाये। उन्होंने कहा कि पत्रकार असद रिज़वी के ख़िलाफ़ शांति भंग के अंदेशे में मुक़दमा लिखना निंदनीय है।

पत्रकार अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले वरिष्ठ पत्रकार हुसैन अफ़सर कहते हैं कि प्रदेश भर में ख़बर लिखने और दिखाने पर पत्रकरों पर ग़लत मुक़दमे लिखें जाने के समाचार प्राप्त हो रहे हैं। उन्होंने कहा मिर्ज़ापुर के पवन जयसवाल और लखनऊ के असद रिज़वी पर मुक़दमा लिखना आलोकतांत्रिक है।

हुसैन अफ़सर के अनुसार अगर शासन-प्रशासन को किसी पत्रकार की ख़बर पर आपत्ति है तो उस पर मुक़दमा लिखने के बजाए उसके संपादक से सम्पर्क कर के खंडन करना चाहिए है। इसके अलावा ख़बर की शिकायत सही मंच यानी प्रेस काउन्सिल ऑफ़ इंडिया से करना चाहिए, न की मुक़दमे लिखकर पत्रकार को दबाने की कोशिश करना चाहिए।

उल्लेखनीय है कि इसके अलवा प्रदेश के दूसरे हिस्सों से भी गत दिनों में पत्रकार उत्पीड़न के कई मामले भी प्रकाश में आये हैं। मिर्ज़ापुर में मिड डे मील में कथित घोटाले के मामले में मीडिया में काफ़ी चर्चा हुई। लेकिन दोषी अधिकारियों के बदले ख़बर दिखाने वाले पत्रकार पर ही मुक़दमा कर दिया गया।

मिर्ज़ापुर के पत्रकार पवन जयसवाल के विरुद्ध क़ानूनी कार्रवाई का मामला शांत भी नहीं हुआ था कि प्रदेश के बिजनौर ज़िले में फ़र्ज़ी ख़बर दिखाने का आरोप लगाकर पांच पत्रकारों के विरुद्ध मुक़दमा दर्ज करने का समाचार आ गया। बिजनौर में पत्रकारों पर एफ़आईआर इस लिए दर्ज की गई, क्योंकि पत्रकार ने एक ख़बर की थी, जिसमें एक गांव में वाल्मीकि समाज के लोगों को सार्वजनिक नल से पानी भरने से रोका जा रहा था।

दिल्ली के पड़ोसी एनसीआर में आने वाले नोएडा में भी कुछ पत्रकारों को गिरफ़्तार करके उनके ख़िलाफ़ गैंगस्टर ऐक्ट लगाने का मामला भी सामने आया था।

आज़मगढ़ ज़िले में एक पत्रकार की ख़बरों से नाराज़ प्रशासन ने उन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर मुक़दमा दर्ज कर लिया और बाद में पत्रकार को गिरफ़्तार भी कर लिया गया।

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