NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
कानून
भारत
राजनीति
भारतीय अंग्रेज़ी, क़ानूनी अंग्रेज़ी और क़ानूनी भारतीय अंग्रेज़ी
न्यायिक फ़ैसलों और दूसरे क़ानूनी दस्तावेज़ों में साहित्यिक श्रेष्ठता का होना ज़रूरी नहीं है।
विक्रम हेगडे
19 Nov 2021
law

विक्रम हेगड़े लिखते हैं कि न्यायाधीशों को अपने फ़ैसले सरल और सीधी भाषा में लिखने की जरूरत है, ताकि देश में अंग्रेज़ी समझने वाला एक छोटा सा हिस्सा उन्हें आसानी से समझ सके और बाकी के नागरिकों के लिए उन्हें अनुवादित किया जा सके।

कुछ दिन पहले वरिष्ठ वकील फली नरीमन ने वकालत के लिए जरूरी कौशल के बारे में बात करते हुए कहा था, "भारत में क़ानूनी क्षेत्र में अच्छा तभी किया जा सकता है, जब क़ानूनी भाषा पर कुछ हद तक अविरल पकड़ बनाई जा सके। साम्राज्यवादी दौर में, 200 साल पहले, अंग्रेज़ी को हमेशा एक विदेशी भाषा के तौर पर देखा जाता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। अंग्रेज़ी आज़ाद भारत की एक भाषा बन गई और अब हम अपने मत से इसे अपना चुके हैं।"

इसमें कोई शक नहीं है कि उन्होंने वैध तर्क दिया है। फिर हाल में भारत के मुख्य न्यायाधीश और सॉलिसिटर जनरल के बीच शनिवार को हुई बातचीत पर नज़र डालिए। दोनों ने बताया कि उन्होंने अंग्रेज़ी भाषा कक्षा 8 के बाद सीखी। उनकी शिक्षा का माध्यम, सिर्फ़ क़ानूनी पढ़ाई को छोड़कर, मातृभाषा ही रहा है। इन दोनों विद्वानों और भारत के 10 फ़ीसदी लोगों में यह साझा चीज है, जो अंग्रेज़ी को दूसरी या तीसरी भाषा के तौर पर बोलते हैं।

इन दो उदाहरणों से हमें वह अजीबो-गरीब़ तस्वीर देखने को मिलती है, जिसके तहत हम काम करने के आदी हो चुके हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि आज अंग्रेज़ी भारत की एक भाषा बन चुकी है। लेकिन इसे बोलने वालों के साथ इसका संबंध "अंग्रेज़ी हमारी दूसरी भाषा है" का बना हुआ है। 

सरल और स्पष्ट भाषा में फ़ैसले

तो जब नेशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी द्वारा आयोजित कार्यक्रम में रविवार को मुख्य न्यायाधीश ने कहा, "चूंकि हमारे फ़ैसलों का बड़ा सामाजिक प्रभाव होता है, तो वे आसानी से समझ आने वाले होने चाहिए और उन्हें सरल व स्पष्ट भाषा में लिखा जाना चाहिए", तो इससे हमें सोचने पर मजबूर होना पड़ा। 

मुख्य न्यायाधीश द्वारा दिया गया वक्तव्य, उनके द्वारा पहले उल्लेखित "न्यायिक व्यवस्था के देशीकरण" के लक्ष्य से मेल खाता है। 

मैंने पहले भी बड़े स्तर पर न्यायिक फ़ैसलों के अनुवाद और भारतीय कोर्ट में स्थानीय भाषाओं के ज़्यादा उपयोग की वकालत की है। इस प्रक्रिया में कुछ खर्च, कोशिश और वक़्त भी लग सकता है, लेकिन इसका मूल्य चुकाना होगा। लेकिन इसके पहले कोर्ट को फ़ैसले देते वक़्त कुछ चीजों को ध्यान में रखना चाहिए। 

पहली बात, अंग्रेज़ी बोलने वाले भारतीय अपनी मूल भाषा की ध्वनियों, वाक्य-विन्यास, उतार-चढ़ाव, यहां तक कि शब्दों और मुहावरों से गहरे स्तर तक प्रभावित होते हैं। भाषा विज्ञान में इसे “भाषा स्थानांतरण या L1 हस्तक्षेप” कहते हैं। भारत में पूरा समाज इस तरह के प्रभाव में है, तो हर भाषा से प्रभावित अंग्रेज़ी अपने आप ही स्थानीय स्तर पर खुद को बदल लेती है, मतलब इसमें अलग-अलग जगहों में फर्क करने लायक कुछ चीजें होती हैं।

दूसरी बात, अंग्रेज़ी बोलने वाले भारतीयों में एक बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है, जिन्होंने अपने पेशेवर स्तर पर ही अंग्रेज़ी सीखी है। इनमें से कई अपने पेशेवर क्षेत्र के बाहर अंग्रेज़ी का उपयोग नहीं करते। इसका मतलब यह हुआ कि उनकी अंग्रेज़ी पर उनके पेशे और काम की जगह पर उपयोग किए जाने वाले शब्दों का बहुत प्रभाव होगा। जब कोई भाषा ज्ञान के परिवहन में भूमिका निभाती है, तो यह अवधारणा बनाना आसान होता है कि उस पेशे की भाषा, खुद अंग्रेज़ी के साथ सहअस्तित्व में है।

इसका मतलब हुआ कि यह मानना पूरी तरह सही नहीं है कि औसत अंग्रेज़ी भाषी, साहत्यिक उद्धरणों या सांस्कृतिक पृष्ठभूमि वाले शब्दों या मुहावरों बारे में कुछ जानकारी नहीं रखता है। "क्लाफम ओमनीबस पर मौजूद इंसान" मुहावरे का मतलब, एक भारतीय की तुलना में क्लाफम ओमनीबस पर मौजूद व्यक्ति ज्यादा जल्दी समझेगा।

न्यायिक फ़ैसलों की स्पष्टता और सटीकता तब एक नया आयाम लेती है, जब आप यह ध्यान में रखते हैं कि इन फ़ैसलों को स्पष्ट तरीके से सिर्फ़ 10 फ़ीसदी अंग्रेज़ी बोलने वाले लोग ही नहीं समझें, बल्कि इनका अनुवाद बाकी 90 फ़ीसदी को भी समझ आए, जो अंग्रेज़ी नहीं बोलते, जिनके लिए इसका अनुवाद अंग्रेज़ी बोलने वाले 10 फ़ीसदी लोगों में से कोई करेगा। फ़ैसले लिखने वाले लोग, और अपने मसौदों व दस्तावेज़ों के ज़रिए फ़ैसले लिखने के लिए जरूरी कच्चा माल उपलब्ध कराने वाले वकीलों को ध्यान रखना चाहिए कि फ़ैसले की भाषा ऐसी हो, जिसका आसानी से हमारे देश की विविध भाषाओं में अनुवाद किया जा सके। 

फिर एक दिन ऐसा भी आ सकता है, जब क़ानून के ज़रिए सीधी और साधारण भाषा की अनिवार्यता कर दी जाए। ब्रिटेन का उपभोक्ता अधिकार अधिनियम 2015 सीधी और सरल भाषा के उपयोग की बाध्यता करता है और अमेरिका का सुरक्षा और प्रतिभूति आयोग इसके लिए जरूरी दिशा-निर्देश उपलब्ध कराता है। यह बेहद विरोधाभासी होगा कि क़ानून सीधी और सरल भाषा का उपयोग अनिवार्य करे, लेकिन इस क़ानून के तहत दिए गए फ़ैसलों में आसान भाषा का उपयोग ना किया गया हो। 

पहले दिए गए फ़ैसलों की व्याख्या और उनका संदर्भ दिया जाना

आसान भाषा के उपयोग का मतलब होगा कि हर वाक्य अपने आप में सटीक नहीं होगा और उसके लिए पृष्ठभूमि व संदर्भ की जरूरत पड़ेगी। यह बहुत जटिल काम नहीं है और फ़ैसले सुनाने के मान्य तरीकों के साथ मेल में है। लेकिन यह पहले दिए गए फ़ैसलों के संदर्भ में उपयोग करने के तरीके को बदल देगा।  

अक्सर न्यायिक फ़ैसलों में, पुराने फ़ैसलों से जरूरी सिद्धांत का उद्धरण उठाने के बजाए, पूरा पैराग्राफ़ ही उठा लिया जाता है।  इससे फ़ैसले लंबे हो जाते हैं और उन्हें पढ़ने में कठिनाई होती है। आसान भाषा में लिखने से यह चीजें दूर होंगी।

न्यायिक फ़ैसलों और दूसरी क़ानूनी दस्तावेज़ में साहित्यिक श्रेष्ठता का होना जरूरी नहीं है। वे एक उपयोगितावादी उद्देश्य के लिए हैं और उनकी व्याख्या किया जाना आसान होना चाहिए।  

वकीलों द्वारा जमा की जाने वाली याचिकाओं के साथ भी यही चीज है, भले ही यह थोड़ी कम है। वकीलों द्वारा जमा किए गए दस्तावेजों में पाठक जज होते हैं, जो अंग्रेज़ी और क़ानूनी भाषा में प्रवीण होते हैं। जबकि न्यायिक फ़ैसले का लक्षित वर्ग हर एक नागरिक होता है, जिससे उस फ़ैसले के पालन की उम्मीद की जाती है। 

(विक्रम हेगड़े सुप्रीम कोर्ट में वकील हैं। यह उनके निजी विचार हैं।)

साभार- द लीफ़लेट

इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Indian English, legal English and legal Indian English

Judiciary
India
Supreme Court of India

Related Stories

एमएसपी कृषि में कॉर्पोरेट की घुसपैठ को रोकेगी और घरेलू खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करेगी

क्यों मोदी का कार्यकाल सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में सबसे शर्मनाक दौर है

राज्य कैसे भेदभाव के ख़िलाफ़ संघर्ष का नेतृत्व कर सकते हैं

सुप्रीम कोर्ट की क्षेत्रीय बेंचों की ज़रूरत पर एक नज़रिया

विरोध प्रदर्शन को आतंकवाद ठहराने की प्रवृति पर दिल्ली उच्च न्यायालय का सख्त ज़मानती आदेश

न्यायाधीश आनंद वेंकटेश को बहुत-बहुत धन्यवाद 

क्या सीजेआई हाई कोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति की पहल कर सकते हैं?

भीमा कोरेगांव : पहली गिरफ़्तारी के तीन साल पूरे हुए

पेटेंट बनाम जनता

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अधिनियम, 2021 की संवैधानिकता क्या है?


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    डिजीपब पत्रकार और फ़ैक्ट चेकर ज़ुबैर के साथ आया, यूपी पुलिस की FIR की निंदा
    04 Jun 2022
    ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर पर एक ट्वीट के लिए मामला दर्ज किया गया है जिसमें उन्होंने तीन हिंदुत्व नेताओं को नफ़रत फैलाने वाले के रूप में बताया था।
  • india ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट
    03 Jun 2022
    India की बात के इस एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, अभिसार शर्मा और भाषा सिंह बात कर रहे हैं मोहन भागवत के बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को मिली क्लीनचिट के बारे में।
  • GDP
    न्यूज़क्लिक टीम
    GDP से आम आदमी के जीवन में क्या नफ़ा-नुक़सान?
    03 Jun 2022
    हर साल GDP के आंकड़े आते हैं लेकिन GDP से आम आदमी के जीवन में क्या नफा-नुकसान हुआ, इसका पता नहीं चलता.
  • Aadhaar Fraud
    न्यूज़क्लिक टीम
    आधार की धोखाधड़ी से नागरिकों को कैसे बचाया जाए?
    03 Jun 2022
    भुगतान धोखाधड़ी में वृद्धि और हाल के सरकारी के पल पल बदलते बयान भारत में आधार प्रणाली के काम करने या न करने की खामियों को उजागर कर रहे हैं। न्यूज़क्लिक केके इस विशेष कार्यक्रम के दूसरे भाग में,…
  • कैथरिन डेविसन
    गर्म लहर से भारत में जच्चा-बच्चा की सेहत पर खतरा
    03 Jun 2022
    बढ़ते तापमान के चलते समय से पहले किसी बेबी का जन्म हो सकता है या वह मरा हुआ पैदा हो सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि गर्भावस्था के दौरान कड़ी गर्मी से होने वाले जोखिम के बारे में लोगों की जागरूकता…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License