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आंदोलन
भारत
राजनीति
देश के प्रमुख लेखक और सांस्कृतिक संगठन भी 8 दिसंबर के भारत बंद के साथ
हम सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन किसानों के इस अभूतपूर्व आन्दोलन के प्रति अपनी एकजुटता प्रगट करते हैं। हम जनता तथा जनता के संगठनों, पार्टियों से अपील करते हैं कि वे इस आन्दोलन के साथ जुड़ें और 8 दिसम्बर के भारत बंद को सफल बनाकर केंद्र सरकार को एक स्पष्ट संदेश दें।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
06 Dec 2020
भारत बंद
Image courtesy: Hindustan Times

देश के प्रमुख लेखक-सांस्कृतिक संगठनों ने किसान आंदोलन के प्रति एकजुटता जाहिर करते हुए 8 दिसंबर के देशव्यापी बंद को पूर्ण समर्थन देने की घोषणा की है।

न्यू सोशलिस्ट इनीशिएटिव, दलित लेखक संघ, अखिल भारतीय दलित लेखिका मंच, प्रगतिशील लेखक संघ, जन संस्कृति मंच, इप्टा, संगवारी, प्रतिरोध का सिनेमा और जनवादी लेखक संघ ने आज 6 दिसंबर को किसान आंदोलन की मांगों और 8 तारीख़ के भारत बंद के समर्थन में बयान जारी किया। बयान इस प्रकार है-

भारत का किसान – जिसके संघर्षों और कुर्बानियों का एक लम्बा इतिहास रहा है – आज एक ऐतिहासिक मुक़ाम पर खड़ा है।

हज़ारों-लाखों की तादाद में उसके नुमाइन्दे राजधानी दिल्ली की विभिन्न सरहदों पर धरना दिए हुए हैं और उन तीन जनद्रोही क़ानूनों की वापसी की मांग कर रहे हैं जिनके ज़रिए इस हुकूमत ने एक तरह से उनकी तबाही और बरबादी के वॉरंट पर दस्तख़त किए हैं। अपनी आवाज़ को और बुलंद करने के लिए किसान संगठनों की तरफ़ से 8 दिसम्बर को भारत बंद का ऐलान किया गया है।

सरकार भले ही यह दावा करे कि ये तीनों क़ानून - जिन्हें महामारी के दिनों में पहले अध्यादेश के ज़रिए लागू किया गया था और फिर तमाम जनतांत्रिक परंपराओं को ताक़ पर रखते हुए संसद में पास किया गया - किसानों की भलाई के लिए हैं, लेकिन यह बात बहुत साफ़ हो चुकी है कि इनके ज़रिए राज्य द्वारा अनाज की खरीद की प्रणाली को समाप्त करने और इस तरह बड़े कॉर्पोरेट घरानों के लिए ठेका आधारित खेती करने तथा आवश्यक खाद्य सामग्री की बड़ी मात्रा में जमाखोरी करने की राह हमवार की जा रही है।

लोगों के सामने यह भी साफ़ है कि यह महज़ किसानों का सवाल नहीं बल्कि मेहनतकश अवाम के लिए अनाज की असुरक्षा का सवाल भी है। अकारण नहीं कि किसानों के इस अभूतपूर्व आन्दोलन के साथ खेत-मज़दूरों, औद्योगिक मज़दूरों के संगठनों तथा नागरिक समाज के तमाम लोगों, संगठनों ने अपनी एकजुटता प्रदर्शित की है।

जनतंत्र और संवाद हमेशा साथ चलते हैं। लेकिन आज यह दिख रहा है कि मौजूदा निज़ाम की ओर से जिस ‘न्यू इंडिया’ के आगमन की बात की जा रही है, उसके तहत जनतंत्र के नाम पर अधिनायकवाद की स्थापना का खुला खेल चल रहा है।

आज की तारीख में सरकार किसान संगठनों के साथ वार्ता करने के लिए मजबूर हुई है, मगर इसे असंभव करने की हर मुमकिन कोशिश सरकार की तरफ़ से अब तक की जाती रही है। उन पर लाठियां बरसायी गयीं, उनके रास्ते में तमाम बाधाएं खड़ी की गयी, यहां तक कि सड़कें भी काटी गयीं। यह किसानों का अपना साहस और अपनी जीजीविषा ही थी कि उन्होंने इन कोशिशों को नाकाम किया और अपने शांतिपूर्ण संघर्ष के काफ़िलों को लेकर राजधानी की सरहदों तक पहुंच गए।

किसानों के इस आन्दोलन के प्रति मुख्यधारा के मीडिया का रवैया कम विवादास्पद नहीं रहा। न केवल उसने आन्दोलन के वाजिब मुद्दों को लेकर चुप्पी साधे रखी बल्कि सरकार तथा उसकी सहमना दक्षिणपंथी ताक़तों द्वारा आन्दोलन को बदनाम करने की तमाम कोशिशों का भी जम कर साथ दिया। आंदोलन को विरोधी राजनीतिक पार्टी द्वारा प्रायोजित बताया गया, किसानों को खालिस्तान समर्थक तक बताया गया।

दरअसल, विगत कुछ सालों यही सिलसिला आम हो चला है। हर वह आवाज़ जो सरकारी नीतियों का विरोध करती हो – भले ही वह नागरिकता क़ानून हो, सांप्रदायिक दंगे हों, नोटबंदी हो – उसे बदनाम करने और उसका विकृतिकरण करने की साज़िशें रची गयीं। किसानों का आंदोलन भी इससे अछूता नहीं है।

यह सकारात्मक है कि इन तमाम बाधाओं के बावजूद किसान शांतिपूर्ण संघर्ष की अपनी राह पर डटे हैं।

हम सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन किसानों के इस अभूतपूर्व आन्दोलन के प्रति अपनी एकजुटता प्रगट करते हैं। हम जनता तथा जनता के संगठनों, पार्टियों से अपील करते हैं कि वे इस आन्दोलन के साथ जुड़ें और 8 दिसम्बर के भारत बंद को सफल बनाकर केंद्र सरकार को एक स्पष्ट संदेश दें।

हम सरकार से यह मांग करते हैं कि वह अपना अड़ियल रवैया छोड़े और तीन जनद्रोही कृषि-क़ानूनों को रद्द करने का ऐलान करे।

हम आंदोलनरत किसानों से भी अपील करते हैं कि वे शांति के अपने रास्ते पर अडिग रहें।

जीत न्याय की होगी ! जीत सत्य की होगी !! जीत हमारी होगी !!

farmers protest
Farm bills 2020
writer and cultural organization
Bharat Bandh
Bharat Bandh on 8th december
New Socialist Initiative
Dalit Writers Association
All India Dalit Writers Forum
progressive writers association
Jan Sanskriti Manch
IPTA
Sangwari

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