NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आधी आबादी
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
जंग और महिला दिवस : कुछ और कंफ़र्ट वुमेन सुनाएंगी अपनी दास्तान...
जब भी जंग लड़ी जाती है हमेशा दो जंगें एक साथ लड़ी जाती है, एक किसी मुल्क की सरहद पर और दूसरी औरत की छाती पर। दोनो ही जंगें अपने गहरे निशान छोड़ जाती हैं।
नाइश हसन
07 Mar 2022
International Women's Day
'प्रतीकात्मक फ़ोटो' साभार: National Catholic Reporter

जंग एक मर्दाना, काफ़ी ताक़त का इज़हार करता शब्द है, ताक़त में ठहराव या सब्र नहीं होता, वह रोज़ अपना विस्तार चाहती है। ये चाहत बड़ी अजीब है जो घर की दहलीज, दूसरे की सीमाओं पर क़ब्ज़ों के साथ ही औरत के जिस्म पर भी क़ब्ज़ा करना चाहती है। मर्दाना ताक़त जैसे विज्ञापनों से पटा बाजार भी कमोबेश इसी का एक उदाहरण है। इसी शक्ति के विस्तार ने मानवता के हजार टुकडे कर डाले। 

अरसे दराज़ से कायम एक बात जिसमें ज़रा सी भी तब्दीली नहीं देखी गई वो ये है जब भी जंग लड़ी जाती है हमेशा दो जंगें एक साथ लड़ी जाती है, एक किसी मुल्क की सरहद पर और दूसरी औरत की छाती पर। दोनो ही जंगें अपने गहरे निशान छोड़ जाती है। 

सन् 622 से 632 के बीच का दौर जब मदीना शहर की हुकूमत का विस्तार हो रहा था, बड़ी-बड़ी जंगें लड़ी जा रही थी। लड़ाके यमन और स्पेन तक हुकूमत कायम करते चले जा रहे थे, उन जंगों में माल-अस्बाब के साथ औरतें भी लूटी जा रही थीं, फिर उन औरतों को सरदार अपनी मर्जी के मुताबिक बांटता था, बेचता था, गुलाम और सेक्स स्लेव बना कर भी रख लेता था, इसके बारे में अरबी में एक आदेश का उल्लेख भी मिलता है। औमा मल्लकत अइमानकुम यानि वो औरतें जिन्हें जंग में जीता गया है वह तुम्हारे दाएं हाथ की कमाई हैं। उस दौर में दुनिया भर में यही हो रहा था, युद्ध औरतों पर कहर बरपा कर देते थे, समय बदला लेकिन युद्धों में औरतों पर कभी रहम नहीं किया गया। 

दूसरे विश्वयुद्ध का वो भारी वक्त जब जापानी सेना अपनी ताक़त के बल पर सब कुछ जीत लेना चाहती थी, उस वक्त की तमाम मासूम बच्चियां जिन्हें झपट कर धोखे से उनके घरों, खेतो, दुकानो, से उठा लिया गया था, उन्हें नहीं पता चला कि उन्हें कहां ले जाया जा रहा है, उनकी चीखें असरकार न हो सकी, सरकार को भी उनकी चीखें नहींं सुनाई दी, सुनाई भी भला कैसे देती सरकार तो अपने जांबाज सैनिकों के जिस्मानी सुख का इंतजाम कर रही थी, उन मासूमों को कोरिया,फिलीपींस, चीन, और जापान से उठाया गया था, और ऐसी जगह रखा गया जहां बंद दरवाजों के भीतर से निकलती उनकी चीखें वहीं दम तोड़ देती थी। उन मासूमों को पांच हजार सैनिकों के लिए खुद को परोसना था, यानी हर रोज़ लगभग 40 से 50 भारी भरकम सैनिकों का उन्हें रेप सहना था। उन जगहों पर जहां उन्हें बंद दरवाजों के भीतर रखा गया उन्हें कंफ़र्ट स्टेशन कहा गया और उन मासूमों को नाम दिया गया कंफ़र्ट वुमेन। वो सैनिकों के जिस्म की भूख मिटाएं पर गर्भवती न होने पाएं इसका भी पुख्ता इंतजाम था, उन्हें एक इंजेक्शन जिसका नंबर था 606 दिया जाता वो केमिकल इन बच्चियों की नसों में घुल जाता, जिससे उनका गर्भपात भी हो जाता। 

इसके साइड इफेक्ट बहुत ज्यादा थे जो उनकी सेहत को गिरा रहे थे, उन्हें अंदरूनी हिस्से से खून रिसने लगा था, वो इंजेक्शन उन्हें मौत के मुंह में ले जा रहे थे। युद्ध के तकरीबन दो दशक बाद जब उन कंफ़र्ट वुमेन ने सवाल उठाया, अपने ऊपर हुई यातना का हिसाब मांगा, मुकदमा दर्ज किया, उसकी गूुज तो उठी लेकिन दुनिया ने उसे अनसुना कर दिया, वो अनसुने सवाल, अपनी पुरखिनों की लूटी गई स्मत के सवाल आज भी औरतें उठा रही है, उन्हें जिंदा रख रही है, उनका हिसाब मांग रही है। 1944 में ली गई उन कंफ़र्ट वुमेन की तस्वीर आज भी अमेरिका के राष्ट्रीय अभिलेखागार में मौजूद है। 

सैनिकों को युद्ध में औरतें परोसने का सिलसिला आगे भी नहीं थमा, अमेरिका ने 1955 में वियतनाम को सबक सिखाने के लिए युद्ध छेड़ दिया, जो बड़ी तबाही लेकर आया। तारीख गवाह है कि उस वक्त भी 13-14 साल की बच्चियों के जिस्म पर एक युद्ध लड़ा गया, नतीजनत एक ऐसा वक्त आया जब जंग तो खतम हुई लेकिन एक ही वक्त में तकरीबन 50 जहार से ज्यादा बच्चों का जन्म हुआ, वो बच्चे युद्ध में जबरन उठाई गई बच्चियों ने जने, इस बेबी बूम में ज्यादातर बच्चे कमजोर , अपाहिज, बीमार पैदा हुए, जिन्हें जबरन बना दी गई मांए अपने सीने से भी न लगा सकीं। बहुतेरे बच्चे सड़कों पर फेंक दिए गए अनमें जो बचे वो अनाथालयों में पले। उन बच्वों को वियतनाम में बुई दोई यानि ( डर्ट ऑफ लाइफ ) या जीवन की गंदगी कहा गया। 

अल्लाह की ओर मुड़ जाने की ललकार कोई पांच बरस पहले बडे जोर-शोर से उठाई आईएसआईएस जैसे संगठन ने, वो शरीयत कानून का राज स्थापित करना चाहते थे। सीरिया में जंग की धधक धीरे-धीरे बढती गई। उन लड़ाकों के पास गोला बारूद रसद, एक से एक आधुनिक हथियार सब कुछ था, उनके शरीर की भूख मिटाने के लिए वहां की अल्पसंख्यक यजीदी औरतों को पकड़-पकड़ कर बंदी बना लिया गया, फिर उनकी बाक़ायदा मंड़ी लगाई गई। वो लड़ाके जो इस्लामिक स्टेट बनाने के लिए युद्ध कर रहे थे, वो उन मंडियों से नौजवान लडकियों को देख-परख कर खरीदते, ऐसे जैसे तरकारी भाजी खरीद रहे हों। अल्लाह की राह में किए गए काम में अल्लाह की बनाई गई आधी आबादी की अस्मत लूटने से भला क्या फर्क पड़ता है। काम तो दीन का हो रहा है। 18 साल की लामिया अजी बशर जब चौथी कोशिश में उनकी पकड़ से भाग निकलने में कामयाब हुई फिर दुनिया ने एक भयानक यौन शोषण के तजर्बे को उनकी जुबानी सुना।  

भारत में उत्तर पूर्व के राज्यों में, कश्मीर में सेना को जंग करने का ईनाम मिलता है। घरों से लड़कियां उठा ले जाना, तलाशी के नाम पर बलात्कार करना जिनके कभी मुकदमें तक दर्ज नहीं किए जाते, सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम-1956 में इतने सूराख सैनिकों को अपनी मनमर्जियों को एक तरह से परमिट करता है। इरोम शर्मिला की 17 साल की भूख हडताल भी इस कानून का कुछ न बिगाड़ सकी। 

पाकिस्तान और बंगलादेश की तक्सीम के दर्द की जिंदा दास्तानें औरतों के सीनों में दफ्न है। जब बार्ड़र पार कर रही गाड़ियों को जंगलों में रोक-रोक कर उनमें से औरतें घसीट कर उतार ली जाती थी, उनका यौन शोषण किया जाता था, फिर उन्हें कही भी फेंक दिया जाता था। 

दो मुल्कों ही नहीं दो मजहबों की आपसी जंग में भी औरतों का जिस्म निशाने पर रहता है। गुजरात नरसंहार में पेट में पल रहे बच्चों को चीर देना, औरतों को नंगा कर उन्हें सड़कों पर दौड़ाया जाना, इस जुर्म में कितनों पर मुकदमें चले, कितने जेल गए, इस सच से भी दुनिया वाकिफ है। 

2018 में जब नोबेल पुरस्कारों का ऐलान हुआ तो उसमें कांगों के डॉक्टर डेनिस मुकवेज को भी नोबेल पुुरस्कार मिला जिन्होंने युद्धों में यौन दासी के तौर पर इस्तेमाल हुई औरतों के जननांगों को रिपेयर किया था। लेकिन उन औरतों का क्या जिनकी रूह को छलनी कर डाला गया, जिनके टुकडे भीतर से बाहर तलक बिखरे पडे़ हैं, जिनकी रिपेयर कभी न हो सकी। 

इतिहास से वर्तमान तक यही युद्धों की हकीकत रही, इसी लिए जब यूक्रेन से लड़कियों के वीड़ियों आने शुरू हुए कि उन्हें सेनेट्री पैड़ तक मोहय्या नहींं हो पा रहे है, सिसकियां भरती लड़कियों के वीड़ियों किसी और अनहोनी की तरफ भी इशारा कर रहे है। तो डर इस बात का सताना लाजमी है कि कहीं युद्धों के इतिहास की भेंट ये लड़कियां भी न चढा दी जाएं। बंकरों रिफयूजी कैंपों में जिंदगी काट रही वो महिलाएं रूसी फौज की हवस का निवाला न बना दी जाएं। खेरसन, मेलिटोपोल, कसेनोतोप, सुमी खारकीव पर रूस का क़ब्ज़ा हो चुका है, सेना शहर के भीतर है, और लोग सड़कों पर है। एक आशियाने की तलाश में सड़कों पर भागती महिलाएं कब रूस के सैनिकों के क़ब्ज़ोंं में आ जाएं इस आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता। आशंका तो यह भी है कि एक और युद्ध वहां महिलाओं के जिस्म पर लड़ा जा रहा होगा, जिन्हें कुचला और रौंदा जा रहा हागा, फिर कुछ कंफ़र्ट वुमेन की कहानियां दोहराई जाएंगी, और उनका हिसाब देने वाला कोई न होगा। बहरी सरकारें ऐसी कहानियां कभी नहीं सुनतीं।  

ऐन मुमकिन है कि एक रोज़ ये युद्ध भी खत्म हो जाएगा, शांति समझौते, व्यापार, रोज़गार के समझौतों के साथ युक्रेन फिर आगे बढ़ निकलेगा, लेकिन जो युद्ध औरतों के जिस्म पर लड़ा गया न तो कोई सरकार उसका हिसाब मांगेगी, न ही किसी यूएनओ को उन मासूमों की चिंता होगी जो सैनिकों की हवस का शिकार बनाई गईं, ऐसी कहानियों की तफ़तीश ख़ाली औरतें करती हैं, वही उसे ज़िंदा रखती हैं, और बार-बार उसका हिसाब मांगती हैं, लेकिन गूंगी-बहरी सरकारें उन्हें अनसुना कर देती हैं, ये तथाकथित आधुनिक दुनिया का काला सच है, युक्रेनी औरतों का हिसाब भी औरतें ही मांगेंगी।

International Women's Day
women's day
War and Women
World War
Russia-Ukraine Conflict

Related Stories

किसान आंदोलन में महिलाओं की भागीदारी एक आशा की किरण है

भाजपा ने अपने साम्प्रदायिक एजेंडे के लिए भी किया महिलाओं का इस्तेमाल

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस: महिलाओं के संघर्ष और बेहतर कल की उम्मीद

दलित और आदिवासी महिलाओं के सम्मान से जुड़े सवाल

महिला दिवस विशेष : लड़ना होगा महिला अधिकारों और विश्व शांति के लिए

बढ़ती लैंगिक असमानता के बीच एक और अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस


बाकी खबरें

  • प्रियंका शंकर
    रूस के साथ बढ़ते तनाव के बीच, नॉर्वे में नाटो का सैन्य अभ्यास कितना महत्वपूर्ण?
    19 Mar 2022
    हालांकि यूक्रेन में युद्ध जारी है, और नाटो ने नॉर्वे में बड़ा सैन्य अभ्यास शुरू कर दिया है, जो अभ्यास ठंडे इलाके में नाटो सैनिकों के युद्ध कौशल और नॉर्वे के सैन्य सुदृढीकरण के प्रबंधन की जांच करने के…
  • हर्षवर्धन
    क्रांतिदूत अज़ीमुल्ला जिन्होंने 'मादरे वतन भारत की जय' का नारा बुलंद किया था
    19 Mar 2022
    अज़ीमुल्ला ख़ान की 1857 के विद्रोह में भूमिका मात्र सैन्य और राजनीतिक मामलों तक ही सिमित नहीं थी, वो उस विद्रोह के एक महत्वपूर्ण विचारक भी थे।
  • विजय विनीत
    ग्राउंड रिपोर्ट: महंगाई-बेरोजगारी पर भारी पड़ी ‘नमक पॉलिटिक्स’
    19 Mar 2022
    तारा को महंगाई परेशान कर रही है तो बेरोजगारी का दर्द भी सता रहा है। वह कहती हैं, "सिर्फ मुफ्त में मिलने वाले सरकारी नमक का हक अदा करने के लिए हमने भाजपा को वोट दिया है। सरकार हमें मुफ्त में चावल-दाल…
  • इंदिरा जयसिंह
    नारीवादी वकालत: स्वतंत्रता आंदोलन का दूसरा पहलू
    19 Mar 2022
    हो सकता है कि भारत में वकालत का पेशा एक ऐसी पितृसत्तात्मक संस्कृति में डूबा हुआ हो, जिसमें महिलाओं को बाहर रखा जाता है, लेकिन संवैधानिक अदालतें एक ऐसी जगह होने की गुंज़ाइश बनाती हैं, जहां क़ानून को…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    मध्यप्रदेश विधानसभा निर्धारित समय से नौ दिन पहले स्थगित, उठे सवाल!
    19 Mar 2022
    मध्यप्रदेश विधानसभा में बजट सत्र निर्धारित समय से नौ दिन पहले स्थगित कर दिया गया। माकपा ने इसके लिए शिवराज सरकार के साथ ही नेता प्रतिपक्ष को भी जिम्मेदार ठहराया।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License