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ईरान का यूरोपीय संघ पर ट्रम्प की नीति को लागू करने का आरोप; सैनिकों को क्षेत्र छोड़ने के लिए कहा
ईरान का आरोप है कि 2018 में परमाणु समझौते से एकतरफा तरीके से हटने के बाद अमेरिका द्वारा लगाए गए अवैध प्रतिबंधों के खिलाफ इस समझौते के यूरोपीय हस्ताक्षरकर्ता आवश्यक सुरक्षा उपाय प्रदान करने में विफल रहे हैं।
पीपल्स डिस्पैच
16 Jan 2020
Iranian FM

भारत की अपनी यात्रा के दौरान दिल्ली में एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए ईरान के विदेश मंत्री जवाद ज़रीफ़ ने यूरोपीय देशों पर अमेरिकी दबाव में परमाणु समझौते या ज्वाइंट कम्प्रिहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन (जेसीपीओए) के प्रावधानों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया।

उन्होंने इन देशों पर इस समझौता को लेकर असंगत भूमिका निभाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि जब उन्होंने खुद इसका उल्लंघन किया है तो ईरान को कैसे इसका अनुपालन करने के लिए कहते हैं। ज़रीफ़ के अनुसार, “वे (इस समझौते पर यूरोप के हस्ताक्षरकर्ता) हमसे तेल नहीं ख़रीद रहे हैं, उनकी सभी कंपनियां ईरान से वापस बुला ली गई हैं। तो यूरोप उल्लंघन करता है।”

इस समझौते को बचाने के लिए यूरोपीय हस्ताक्षरकर्ताओं को कई चेतावनी देने के बाद ईरान ने समझौते के प्रावधानों से अलग होना शुरू कर दिया था। ईरान चाहता था कि 2018 में ओबामा काल के जेसीपीओए से राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा हाथ खींचने के बाद एकतरफा तरीके से लगाए गए अमेरिकी प्रतिबंधों के प्रभाव से निपटने के लिए फ्रांस, जर्मनी और यूके को एक व्यवस्था तैयार करना चाहिए। इसके बजाय हाल ही में इन देशों ने ईरान से अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद इस समझौते के प्रावधानों पर अमल करने के लिए कहा है। ब्रिटेन के नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने भी ईरान को ट्रम्प की पसंद के अनुसार इस समझौते पर फिर से बातचीत शुरू करने के लिए कहा है।

इस बीच ईरान ने राष्ट्रपति हसन रूहानी के साथ इस क्षेत्र में विदेशी सैनिकों की मौजूदगी के ख़िलाफ़ अपने मुहिम की शुरुआत की और सभी विदेशी सैनिकों से इस क्षेत्र को छोड़ने के लिए कहा। 3 जनवरी को बगदाद में अमेरिकी ड्रोन हमले में जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या के बाद ईरान ने अमेरिकी सैनिकों की वापसी की मांग की थी। बीते कल एक टीवी प्रसारण में रूहानी ने यूरोपीय शक्तियों के खिलाफ सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि "आज अमेरिकी सैनिक खतरे में हैं, कल यूरोपीय सैनिक खतरे में पड़ सकते हैं"।

अमेरिका (बहरीन) के अलावा, फ्रांस का भी इस क्षेत्र (अबू धाबी) में एक नौसैनिक अड्डा है जबकि यूके और जर्मनी के इराक में अपने सैनिक हैं।

इराकी संसद द्वारा सैनिकों की वापसी के प्रस्ताव को पारित करने के बावजूद अधिकांश यूरोपीय शक्तियों ने इराक से अपनी सेना वापस लेने से इनकार कर दिया है।

साभार : पीपल्स डिस्पैच

IRAN
European Union
Donand Trump
America
US-Iran Tension
Iranian FM Jawad Zarif
Hassan Rouhani

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