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ईरान के पास नागोर्नो-करबाख के लिए योजना तैयार है
"ईरान का मानना है कि इस युद्ध का खामियाज़ा इस क्षेत्र के देशों को भुगतना पड़ेगा, और ये देश ही हैं जो युद्ध को ख़त्म करने में सबसे अधिक असर डाल सकते हैं।"
एम. के. भद्रकुमार
05 Nov 2020
Translated by महेश कुमार
ईरान की सीमा के पास अज़रबैजान के गांजा पर बमबारी करता अरमीनिया 
ईरान की सीमा के पास अज़रबैजान के गांजा पर बमबारी करता अरमीनिया 

ईरान ने नागोर्नो-करबाख युद्ध का हल निकालने के लिए क्षेत्रीय पहल की योजना का खुलासा किया है। ईरान के उप-विदेश मंत्री अब्बास अर्घची शांति योजना पर चर्चा के लिए अजरबैजान, रूस, आर्मेनिया और तुर्की का क्षेत्रीय दौरा पूरा कर सप्ताह के अंत में तेहरान लौट आए हैं। विदेश मंत्री जवाद ज़रीफ़ तब से तेहरान की समझ को सबको समझा रहे है।

तेहरान टाइम्स में रविवार को छपी एक रिपोर्ट में ज़रीफ़ के हवाले से लिखा गया है कि, “हमारी पहल का सबसे महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि यह न केवल एक अस्थायी युद्धविराम की वकालत करता है, बल्कि युद्ध की विभीषिका का अंत करने की रूपरेखा तैयार करने की दिशा में एक कदम उठाने की घोषणा भी करता है जिसमें सिद्धांतों के आधार पर दोनों पक्षों की प्रतिबद्धता तय करना इसके स्थायी समाधान के लिए उपाय खोजना जारी रखना और विशेष रूप से सेना द्वारा सभी कब्जे वाले क्षेत्रों को खाली करना है।”

इसमें कुछ दिलचस्प छिपा हैं। सबसे पहली बात तो ये कि ईरान इस मामले में तथाकथित मिन्स्क समूह को विश्वसनीयता नहीं देता है, जो पिछले तीन दशकों से नागोर्नो-करबाख युद्ध/संघर्ष में शांति स्थापित करने में अपनी प्रमुख भूमिका का दावा करता रहा है।

मिन्स्क समूह पूर्व सोवियत संघ के पतन के बाद "एकध्रुवीय" विश्व व्यवस्था का पक्षधर था। 1992 में कॉन्फ्रेंस ऑन सिक्योरिटी एंड कोऑपरेशन इन यूरोप [OSCE] ने इसका निर्माण किया था, जिसके बाद क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्थिति दोनों पूरी तरह से बदल गई है।

ओएससीई हमेशा से रूस को नीचा दिखाने के लिए पश्चिम के हथियार के रूप में बड़ी फुर्ती के साथ काम करता रहा है। ओएससीई ने सीरियाई युद्ध में रासायनिक हथियारों के कथित इस्तेमाल की जांच में संदिग्ध भूमिका निभाई थी। मिन्स्क समूह के "सह-संयोजक"- अमेरिका, फ्रांस और रूस का-मौजूदा अंतरराष्ट्रीय स्थिति में किसी भी मुद्दे पर आम सहमति पर पहुंचने की की संभावना शून्य हैं।

यह कहना काफी होगा कि तेहरान का संदेह बेबुनियाद नहीं है। अगर आप गौर करें तो ईरान की प्राथमिकता हर समय क्षेत्रीय पहल और क्षेत्रीय समाधान की रही है, जो निश्चित रूप से एक सिद्धांत आधारित है और जिस पर ईरान वर्षों से खड़ा है। जैसा कि ज़रीफ़ ने कहा, "ईरान का मानना है कि इस क्षेत्र के देश ही इस युद्ध का खामियाजा भुगतेंगे, और इसलिए ये देश युद्ध को समाप्त करने में सबसे अधिक असर डाल सकते हैं।"

दूसरा, ईरान का मूल्यांकन सही है कि युद्ध विराम केवल एक अस्थायी समाधान हो सकता है और इसलिए मुख्य मुद्दों को संबोधित किया जाना चाहिए, जिसके तहत अर्मेनियाई कब्जे वाले इलाके को मुक्त कराना, संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों को धता बताने पर रोक और यवन द्वारा अज़ेरी के बड़े हिस्से पर कब्जा खत्म होना चाहिए। 

ईरानी प्रस्ताव एक समानांतर प्रयास की जरूरत पर ज़ोर देता है जो विरोधी पक्ष को "सिद्धांतों के आधार" पर सहमत होने और उसके लिए एक रूपरेखा तैयार करने की जरूरत पर ज़ोर देता है जिसके तहत "सभी कब्जे वाले क्षेत्रों से कब्जे वाली सेना अपना दावा छोड़ देंगी।"

इसे सुनिश्चित करने के लिए, नागोर्नो-करबाख का कुछ विशेष दर्जा होना चाहिए जो "लोगों के अधिकारों" और संचार लिंक की सुरक्षा की गारंटी देता हो; साथ ही, इस तरह के शांति पैकेज को लागू करने के लिए क्षेत्रीय राष्ट्रों का एक तंत्र तय होना चाहिए। 

इस क्षेत्र में आतंकवादी तत्वों की उपस्थिति के मामले में तेहरान ने मास्को की चिंता को साझा किया है। ज़रीफ़ ने चेतावनी दी है कि ईरान ऐसी स्थिति को "बर्दाश्त" नहीं करेगा। जैसा कि उन्होंने कहा, आतंकवादी ताक़तें अभी तक एज़ेरी सीमा क्षेत्रों पर दिखाई नहीं दी हैं, "लेकिन ईरान की सीमाओं से दूर उनके मौजूद होने की संभावना अधिक है।"

ईरानी योजना की संभावनाएं क्या हैं? ईरान की पहल मजबूत सुरक्षा की समझ से ओत-प्रोत है। अंतिम बात जो ईरान चाहता है वह युद्ध का खात्मा है। ईरान के आर्मेनिया, अजरबैजान और जॉर्जिया के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध है, और उनके साथ आर्थिक सहयोग भी है, विशेष रूप से ऊर्जा के क्षेत्र में, जो युद्ध के चलते बाधित हो सकता है।

इसके अलावा, ट्रांसकॉकेशिया कैस्पियन सीमा, जो ईरान के लिए अत्यधिक रणनीतिक क्षेत्र है। और ईरान इस बात से बहुत आशंकित है कि अस्थिरता का फायदा उठाने के लिए दुश्मन अतिरिक्त क्षेत्रीय ताक़तें इंतज़ार में हैं।

ईरान-रूस के घनिष्ठ और काफी मैत्रीपूर्ण हैं और तेहरान इस बात के लिए काफी उत्सुक है कि दोनों देश नागोर्नो-करबाख की समस्या पर एक ही रुख रखें। लेकिन तुर्की के साथ ईरान के संबंधों ने मध्य पूर्व में अब्राहम शासन के बाद की स्थिति ने एक नया मोड ले लिया है।

जाहिर है, अगर कोई अर्मेनिया को इस समझ पर लाने के लिए राजी कर सकता है, तो वह केवल मास्को है। लेकिन ऐसा करने के लिए, प्रधान मंत्री निकोल पशिनन को यह महसूस कराया जाना चाहिए या होना चाहिए कि अब वे कोई खेल खेलने की उम्मीद न रखें। जाहिर है, उसे अमेरिका से प्रोत्साहन मिल रहा है। इसलिए कोई सवाल नहीं उठता कि अर्मेनिया अज़ेरी क्षेत्र पर से कब्जे को खाली कर दे। 

ईरान नागोर्नो-करबाख के मसले पर रूस का स्वाभाविक सहयोगी है, इसके विपरीत, तुर्की एक संशोधनवादी शक्ति की तरह व्यवहार कर रहा है। अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने तो उस समय सिर पर जैसे कील ही ठोंक दी जब उन्होंने युद्ध में तुर्की की भागीदारी की निंदा कर दी थी। 

“अब हमारे पास तुर्क हैं, जिन्होंने अजरबैजान में कदम रखा और उन्हे संसाधनों से लैस कर दिया है, जिससे हमारे हमले की ताक़त बढ़ गई है और इस ऐतिहासिक लड़ाई में मारक क्षमता को बढ़ाया। पोम्पेओ ने कहा कि युद्ध का समाधान बातचीत और शांतिपूर्ण चर्चा के माध्यम से होना चाहिए, सशस्त्र संघर्ष के माध्यम से नहीं, और निश्चित रूप से इसमें तीसरे पक्ष के देशों को असला नहीं देना चाहिए, जो पहले से ही लगी आग को और भड़का सकते हैं। उक्त बातें पोम्पेओ ने 10 अक्तूबर को कही थी।  

दरअसल, तुर्की के साथ वाशिंगटन की समस्या नागोर्नो-करबाख तक सीमित नहीं है। बहरहाल, काकेशस को अस्थिर करने की तुर्की की किसी भी चाल से दृढ़ता निपटा जाना चाहिए। (टिप्पणी पढ़ें, यहां, तुर्की समाचार एजेंसी अनादोलु खुलेआम दावा करती कि अजरबैजान को तुर्की सैन्य आपूर्ति एक गेम चेंजर है।)

ऐसा करने का पसंदीदा तरीका लंबे समय से चल रहे अज़ेरी विवाद को संबोधित करना होगा। यहाँ, फिर से कहना होगा कि मास्को के बाकू में नेतृत्व के साथ अच्छे संबंध हैं। मास्को के पास तुर्की के सामने "लाल रेखाएं" खींचने के तरीके और साधन भी हैं।

हालाँकि, हाल ही में मॉस्को के भीतर एक अजीब प्रवृत्ति देखी गई है कि वह पहले हालात को हाथ से निकलने देता है और जब पड़ोसी के घर में आग बेकाबू हो जाती है तभी वह चीजों का जायजा लेता है। यूक्रेन और बेलारूस के बाद रूस अब मोल्दोवा में अमेरिकी समर्थक नेतृत्व के उभरने का सामना कर रहा है, जो रोमानिया का पड़ोसी है (जो कि नाटो का सदस्य देश है।) रूस लगातार मोल्दोवन के राष्ट्रपति इगोर गोडोन का मुख्य रणनीतिक साझेदार रहा है। लेकिन उनके समर्थक यूरोपीय संघ के प्रतिद्वंद्वी माया सैंडू, जिन्होंने अमेरिका को अपने रणनीतिक साझेदार बनाया है, ने रविवार को पहले दौर के चुनाव में कुछ बढ़त बना ली है। 

रूस की तरफ से निर्णायक कार्रवाई की जरूरत है। अमेरिका में चुनाव और यूरोप में कोरोनावायरस महामारी को देखते हुए रूस के पास शांति प्रक्रिया को बढ़ावा देने के लिए अपेक्षाकृत खुला हाथ है। लेकिन यह मौजूदा अवसर लंबे समय तक नहीं रहेगा। 

बहुत सी अतिरिक्त-क्षेत्रीय ताक़तें अपनी आस्तीन चढ़ा रही हैं ताकि वे हस्तक्षेप कर सके और नागोर्नो-करबाख को रूस की दक्षिणी सीमा पर एक भूराजनीतिक टकराव बना दें। इसके लक्षण अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रॉबर्ट ओ'ब्रायन की कथित टिप्पणी में मिलते हैं कि तुर्की को नागोर्नो-काराबाख में शांति सेना के रूप में कोई भूमिका नहीं निभानी चाहिए और वह स्कैंडिनेवियाई सरकारों के साथ मिलकर एक संभावित शांति रक्षा मिशन पर काम कर रहा है।  ओ'ब्रायन ने इस पर मास्को से परामर्श लेना सही नहीं समझा!

यह कहना सही होगा कि ईरान की पहल का तत्काल पालन करने की जरूरी है। अब नागोर्नो-करबाख में युद्ध/संघर्ष अपने छठे सप्ताह में पहुँच गया है। मिसाइलों से आवासीय और नागरिक क्षेत्रों पर हमले जारी हैं। मानवाधिकार पर संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त मिशेल बेचेलेट ने सोमवार को कहा कि "दोनों पक्षों द्वारा क्लस्टर गोला-बारी के इस्तेमाल की रिपोर्ट" गंभीर रूप से परेशान करने वाली है। बाचेलेट ने चेतावनी दी कि ऐसे हमले "युद्ध अपराध” माने जाएंगे।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Iran has a Plan for Nagorno-Karabakh

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