NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आधी आबादी
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
ईरान के नए जनसंख्या क़ानून पर क्यों हो रहा है विवाद, कैसे महिला अधिकारों को करेगा प्रभावित?
ईरान का नया जनसंख्या कानून अपनी एक आधुनिक समस्या के कारण सुर्खियों में है, जिसके खिलाफ अब ईरान ही नहीं, बल्कि दुनिया भर के कुछ मानवाधिकार संगठन आवाज उठा रहे हैं।
शिरीष खरे
21 Feb 2022
iran
प्रतीकात्मक तस्वीर, साभार: ईरान सरकार का जनसंपर्क मंत्रालय।

एक ओर इस आधुनिक दुनिया में नित नए वैज्ञानिक आविष्कार हो रहे हैं, आर्थिक प्रगति को देख लगता है कि दुनिया हजारों साल आगे निकल आई है, लेकिन इसी दुनिया में कई देश हैं, जिन्होंने तरक्की तो खूब की है, बावजूद इसके यदि लैंगिक संवेदनशीलता की प्रचलित कसौटी पर उन्हें देखें, तो सवाल आता है कि क्या वे आज भी हजारों साल पीछे चल रहे हैं, या फिर हमें ही बदली स्थिति में नये सिरे से सोचने की आवश्यकता है? ताजा मामला इन दिनों ईरान का नया जनसंख्या कानून है, जो अपनी एक आधुनिक समस्या के कारण सुर्खियों में है, जिसके खिलाफ अब ईरान ही नहीं, बल्कि दुनिया भर के कुछ मानवाधिकार संगठन आवाज उठा रहे हैं।

दरअसल, कहा यह जा रहा है कि ईरान का नया जनसंख्या वृद्धि कानून यौन और प्रजनन स्वास्थ्य के नजरिए से महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन करता है और महिलाओं के स्वास्थ्य और जीवन को खतरे में डालता है। लिहाजा, यह मांग उठ रही है कि ईरान की सरकार को मानवाधिकारों को प्रतिबंधित करने वाले प्रावधानों को तुरंत निरस्त करना चाहिए। 

बता दें कि पिछले दिनों ईरान की गार्जियन काउंसिल ने 'जनसंख्या का कायाकल्प और परिवार समर्थन' बिल को मंजूरी दी है, जो वहां की सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में नसबंदी और तमाम गर्भ निरोधकों को गैरकानूनी घोषित करता है। यह बिल अगले सात वर्षों तक प्रभावी रहेगा। अगले महीने दिसंबर से ईरान के आधिकारिक राजपत्र में हस्ताक्षर और प्रकाशन के बाद इस कानून को लागू किया जा सकता है।

इस मुद्दे पर मानवाधिकार संगठन 'ह्यूमन राइट्स वॉच' ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की है, जिसमें ईरान विषयों से जुड़ी शोधकर्ता तारा सेपहरी कहती हैं, ''ईरान के जन प्रतिनिधि सरकार की अक्षमता, भ्रष्टाचार और दमनकारी नीतियों सहित यहां की कई गंभीर समस्याओं को संबोधित करने से बच रहे हैं। इसके विपरीत वे महिलाओं के मौलिक अधिकारों पर हमला कर रहे हैं।''

आधी आबादी की गरिमा के खिलाफ

वहीं, ईरान के कुछ महिला अधिकार संगठन यह मानते हैं कि वहां का जनसंख्या वृद्धि कानून देश की आधी आबादी के अधिकारों, गरिमा और स्वास्थ्य को स्पष्ट रूप से कमजोर करता है, उन्हें आवश्यक प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल और जानकारियों से वंचित करता है।

पिछले एक दशक का दौर देखें तो ईरान ने अपने जनसंख्या नियोजन कार्यक्रम को स्थानांतरित कर दिया है, एक समय था जब अंतरराष्ट्रीय संगठनों द्वारा ईरान में परिवार नियोजन से जुड़ी सफलता की कहानियों को उदाहरण के तौर पर पेश किया जाता था, लेकिन अब स्थिति इसके ठीक उलट है, हकीकत यह है कि अब ईरान अपनी जनसंख्या बढ़ाने के लिए यौन और प्रजनन स्वास्थ्य सुविधाओं तक महिलाओं की पहुंच को कम कर रहा है।

यह कानून गर्भवती, स्तनपान कराने और बच्चों की संख्या बढ़ाने वाली महिलाओं को कई तरह के लाभ प्रदान करता है। हालांकि, कानून की एक अच्छी बात यह है कि इसमें कामकाजी गर्भवती महिलाओं के स्थानांतरण पर रोक लगाई गई है, लेकिन इसके प्रावधानों में महिलाओं के साथ बरते जाने वाले धार्मिक व सामाजिक भेदभाव-विरोधी बिंदुओं को नोटिस में नहीं लिया गया है।

सुरक्षित गर्भपात पर बहस

कानून के कई प्रावधानों में सुरक्षित गर्भपात से जुड़ी सुविधाओं और पहुंच को सीमित किया गया है। सबसे अधिक विवाद कानून के अनुच्छेद 56 को लेकर है, जिसमें गर्भपात को हतोत्साहित करने से जुड़े बिन्दु हैं और जिसके दायरे में डॉक्टर, इस्लामी न्यायविद, न्यायपालिका के प्रतिनिधि तथा संसदीय स्वास्थ्य समिति के सदस्यों को रखा गया है।

वर्तमान कानून के तहत, यदि गर्भपात होगा भी तो एक कानूनी प्रक्रिया के तहत, जिसमें तीन डॉक्टरों की सहमति आवश्यक होगी, जो लिखित तौर पर यह मंजूरी देंगे कि गर्भावस्था से महिला के जीवन को खतरा है, या भ्रूण में गंभीर शारीरिक या मानसिक अक्षमता है, जो मां के लिए अत्यधिक कठिनाई पैदा करेगा।  

इसी तरह, बताया जा रहा है कि अनुच्छेद 59 में ईरान के खुफिया मंत्रालय व अन्य सुरक्षा एजेंसियों को 'गर्भपात दवाओं की अवैध बिक्री, अवैध गर्भपात, गर्भपात केंद्रों की सूची एकत्र करने वाली वेबसाइटों, अवैध गर्भपात में भाग लेने वालों के साथ ही चिकित्सा संबंधी परामर्श' से जुड़ी गतिविधियों पर पाबंदी रखने के लिए अधिकार दिए गए हैं।

दरअसल, कानून के यही प्रावधान विवादास्पद कहे जा रहे हैं, जिन्हें लेकर आरोप लग रहे हैं कि महिलाओं के अधिकारों के इस्तेमाल के विरोध में बनाए गए इस कानून में मुकदमा चलाया जाना कैसे वैध है, जिसके तहत स्वतंत्र अभिव्यक्ति भी शामिल है। 

लाभार्थियों को अधूरे लाभ से मुसीबत

दूसरी तरफ, अनुच्छेद 17 में महिलाओं के लिए कई लाभ शामिल हैं, जिसमें सभी क्षेत्रों में नौ महीने का पूरी तरह से भुगतान किए जाने वाला मातृत्व अवकाश है। इसके अलावा, गर्भावस्था के दौरान चार महीने तक घर से काम करने का विकल्प और 7 साल से कम उम्र के बच्चों वाली महिलाओं के लिए चिकित्सा नियुक्तियों के लिए छुट्टी लेने का विकल्प भी रखा गया है। 

हालांकि, यह कानून गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को बर्खास्त करने की गतिविधियों पर रोक लगाता है, लेकिन लाभार्थी को मिलने वाले इस अधूरे लाभ से उल्टा कामकाजी महिलाओं को समस्या का सामना करना पड़ सकता है।

दरअसल, ईरान में इस संदर्भ से जुड़े कुछ शोध बताते हैं कि ऐसी स्थिति में सरकार और निजी क्षेत्र के नियोक्ता शादीशुदा महिलाओं की भर्तियों में भेदभाव कर रहे हैं। वह नहीं चाहते कि जब महिलाएं गर्भवती हों तो कानूनी संरक्षण के कारण संस्थान को नुकसान उठाना पड़े। यही वजह है कि शादीशुदा महिलाओं को नौकरी पर रखने को लेकर कोई उत्साह नहीं दिखाया जा रहा है। जाहिर है कि जब तक एक व्यापक कानूनी ढांचे की मौजूदगी में महिलाओं की भर्ती संबंधी प्रक्रिया से जुड़े प्रावधान भी लागू नहीं होंगे, तब तक समस्या एक नए रूप में सिर उठाती रहेगी। 

ईरानी संस्कृति पर प्रतिकूल प्रभाव

इस कानून के विरोध के कई आयाम और भी हैं, जिनमें से कुछ सांस्कृतिक पहलुओं से संबंधित हैं। उदाहरण के लिए, यह कानून सिर्फ महिलाओं को अधिक बच्चे पैदा करने को ही बढ़ावा नहीं दे रहा है, बल्कि कई जगह परोक्ष तौर पर यह कानून अविवाहित महिलाओं को विवाहित होने के लिए भी बढ़ावा दे रहा है। वहीं, कानून में स्पष्ट तौर पर यह उल्लेख है कि ईरान की शासकीय एजेंसियां कम बच्चे पैदा करने या गर्भपात कराने के फैसलों की निंदा करने के लिए कार्यक्रम तैयार करें। 

यह कानून शिक्षा और विज्ञान मंत्रालयों को जनसंख्या वृद्धि से जुड़े सभी विवादित विषयों पर शिक्षण सामग्री का उत्पादन करने की पहल करता है। वहीं, यह कानून गर्भ निरोधकों व गर्भपात से होने वाले नुकसानों पर अनुसंधान में निवेश करने के लिए जोर देता है। इसके अंतर्गत विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में ऐसी सामग्री तैयार की जा सकती है, जो महिलाओं को अधिक बच्चे पैदा करने के लाभों के बारे में बताएं।

दूसरी तरफ, कानूनी गर्भपात तक पहुंच से इंकार महिलाओं और लड़कियों के जीवन और स्वास्थ्य को खतरे में डालता है। उदाहरण के लिए, 'ह्यूमन राइट्स वॉच' ने दुनिया भर के देशों के अनुभवों के आधार पर जो दस्तावेज तैयार किया है, उसके मुताबिक इससे गर्भपात का अपराधीकरण और अधिक असुरक्षित गतिविधियां होंगी, जो अंतत: महिलाओं के जीवन को ही खतरे में डालते सकती हैं, विशेष रूप से हाशिए की पृष्ठभूमि की महिलाओं को, इसके अलावा बलात्कार, घरेलू और यौन हिंसा से पीड़ित महिलाओं को भी। 'विश्व स्वास्थ्य संगठन' के अनुसार, प्रतिबंधित गर्भपात कानूनों वाले देशों में असुरक्षित गर्भपात की दर उन देशों की तुलना में चार गुना अधिक है, जहां गर्भपात कानूनी है।

जाहिर है कि यह नया कानून महिलाओं के स्वास्थ्य और जीवन के लिए एक गंभीर खतरा है। हालांकि, यह कानून 7 वर्षों के लिए है, लेकिन इसके दूरगामी नुकसान होंगे। स्वास्थ्य और गोपनीयता के अधिकार को सीमित करके जनसंख्या वृद्धि हासिल करने की अपेक्षा करना नीति निर्धारण की एक भ्रमपूर्ण समझ है। इससे केवल अधिकारों का हनन होगा। वहीं, आधुनिक युग में यह कानून मध्यकाल की ओर ले जाने वाला कहा जा सकता है।

(शिरीष खरे पुणे स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

IRAN
Iran Population Law
Women Rights
women's rights
Abortion Rights
Iranian culture

Related Stories

मायके और ससुराल दोनों घरों में महिलाओं को रहने का पूरा अधिकार

इक्वाडोर के नारीवादी आंदोलनों का अप्रतिबंधित गर्भपात अधिकारों के लिए संघर्ष जारी रखने का संकल्प

यूपी से लेकर बिहार तक महिलाओं के शोषण-उत्पीड़न की एक सी कहानी

कोलंबिया में महिलाओं का प्रजनन अधिकारों के लिए संघर्ष जारी

सोनी सोरी और बेला भाटिया: संघर्ष-ग्रस्त बस्तर में आदिवासियों-महिलाओं के लिए मानवाधिकारों की लड़ाई लड़ने वाली योद्धा

निर्भया फंड: प्राथमिकता में चूक या स्मृति में विचलन?

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस: महिलाओं के संघर्ष और बेहतर कल की उम्मीद

दलित और आदिवासी महिलाओं के सम्मान से जुड़े सवाल

महिला दिवस विशेष : लड़ना होगा महिला अधिकारों और विश्व शांति के लिए

बढ़ती लैंगिक असमानता के बीच एक और अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस


बाकी खबरें

  • left
    अनिल अंशुमन
    झारखंड-बिहार : महंगाई के ख़िलाफ़ सभी वाम दलों ने शुरू किया अभियान
    01 Jun 2022
    बढ़ती महंगाई के ख़िलाफ़ वामपंथी दलों ने दोनों राज्यों में अपना विरोध सप्ताह अभियान शुरू कर दिया है।
  • Changes
    रवि शंकर दुबे
    ध्यान देने वाली बात: 1 जून से आपकी जेब पर अतिरिक्त ख़र्च
    01 Jun 2022
    वाहनों के बीमा समेत कई चीज़ों में बदलाव से एक बार फिर महंगाई की मार पड़ी है। इसके अलावा ग़रीबों के राशन समेत कई चीज़ों में बड़ा बदलाव किया गया है।
  • Denmark
    पीपल्स डिस्पैच
    डेनमार्क: प्रगतिशील ताकतों का आगामी यूरोपीय संघ के सैन्य गठबंधन से बाहर बने रहने पर जनमत संग्रह में ‘न’ के पक्ष में वोट का आह्वान
    01 Jun 2022
    वर्तमान में जारी रूस-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि में, यूरोपीय संघ के समर्थक वर्गों के द्वारा डेनमार्क का सैन्य गठबंधन से बाहर बने रहने की नीति को समाप्त करने और देश को ईयू की रक्षा संरचनाओं और सैन्य…
  • सत्यम् तिवारी
    अलीगढ़ : कॉलेज में नमाज़ पढ़ने वाले शिक्षक को 1 महीने की छुट्टी पर भेजा, प्रिंसिपल ने कहा, "ऐसी गतिविधि बर्दाश्त नहीं"
    01 Jun 2022
    अलीगढ़ के श्री वार्ष्णेय कॉलेज के एस आर ख़ालिद का कॉलेज के पार्क में नमाज़ पढ़ने का वीडियो वायरल होने के बाद एबीवीपी ने उन पर मुकदमा दर्ज कर जेल भेजने की मांग की थी। कॉलेज की जांच कमेटी गुरुवार तक अपनी…
  • भारत में तंबाकू से जुड़ी बीमारियों से हर साल 1.3 मिलियन लोगों की मौत
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    भारत में तंबाकू से जुड़ी बीमारियों से हर साल 1.3 मिलियन लोगों की मौत
    01 Jun 2022
    मुंह का कैंसर दुनिया भर में सबसे आम ग़ैर-संचारी रोगों में से एक है। भारत में पुरूषों में सबसे ज़्यादा सामान्य कैंसर मुंह का कैंसर है जो मुख्य रूप से धुआं रहित तंबाकू के इस्तेमाल से होता है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License