NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
SC ST OBC
भारत
राजनीति
अपनी ज़मीन बचाने के लिए संघर्ष करते ईरुला वनवासी, कहा- मरते दम तक लड़ेंगे
पिल्लूर में स्थानीय समुदायों की लगभग 24 बस्तियां हैं, जो सामुदायिक वन अधिकारों की मांग कर रही हैं, जैसा कि एफआरए के तहत उन्हें आश्वस्त किया गया था।
पलानीवेल राजन सी
16 Apr 2022
Irula Forest
कुरुम्बास, शोलिगास और इरुलास जैसे कई आदिवासी समुदाय, अनुसूचित जाति की बड़ी आबादी, और अन्य समुदाय के लोग वन पर आश्रित एसईएस संरक्षित क्षेत्रों (पीए) में या आसपास के क्षेत्रों में रहते हैं। साभार: https://www.flickr.com/photos/indiawaterportal/ 

तमिलनाडु को देश भर में अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पारंपरिक वन रहवासियों (वन अधिकार मान्यता) अधिनियम, 2006 (एफआरए) के क्रियान्वयन के मामले में सबसे खराब प्रदर्शन करने वालों में से एक माना जाता है।

इसका एक जीता-जागता उदाहरण भूमि अधिकारों के लिए लड़ने वाले विभिन्न देशज समुदायों द्वारा चलाया जा रहा संघर्ष है। इनमें से एक ईरुला समुदाय है, जिसे बेदखल कर दिया गया है और उनके मूल अधिकारों से वंचित कर दिया गया है।

वन अधिकार समिति के नेता, मरियप्पन ने न्यूज़क्लिक को बताया, “हम जंगल तक पहुँच के अपने जन्मजात अधिकार के लिए संघर्षरत हैं, जहाँ पर हम कई पीढ़ियों से रहते आ रहे हैं। वे आगे कहते हैं, “सामुदायिक वन अधिकारों (सीएफआर) के बगैर तो हम जंगल में जाने और अपनी जरूरत की वस्तुओं को इकट्ठा करने के अपने अधिकार तक से वंचित हो जाते हैं।”

वन अधिकार अधिनियम, जिसे दिसंबर 2006 में अधिनियमित किया गया था, को दिसंबर 2009 में जंगलों में निवास करने वाले समुदायों को वहां पर रहने के अधिकार और अपने वनों के प्रबंधन एवं संरक्षण की शक्ति देने के लिए अमल में लाया गया था। एफआरए में व्यक्तिगत वन अधिकार (आईएफआर), सामुदायिक वन अधिकार एवं वन प्रबंधन अधिकार शामिल हैं, जो व्यक्तियों को अपनी भूमि तक पहुँच का अधिकार प्रदान करते हैं।

पिल्लूर जो कि एक आरक्षित जिसमें ईरुला समुदाय से संबंधित 24 बस्तियों का समूह है। ईरुला तमिलनाडु के उन छह स्वदेशी समुदायों में से एक है, जिन्हें विशेष रुप से कमजोर जनजातीय समूहों (पीवीटीजी) के तहत सूचीबद्ध किया गया है।

मरियप्पन कहते हैं, “हम मूलतः शहद, बांस, घास आदि जैसी गैर-लकड़ी के उत्पादों (एनटीपी) पर निर्भर हैं, जो जंगल में पैदा होते हैं। लेकिन सीएफआर, जिसे हमारी वन भूमि के लिए जारी नहीं किया गया है, हमें अपनी आजीविका के लिए एनटीपी का उपयोग करने से रोकता है।

उन्होंने अपनी बात में आगे कहा, “एक साल पहले आईएफआर के लिए हमें लगभग 86 पट्टे मिले थे, जो हमें अपनी पैतृक भूमि पर बने रहने की इजाजत प्रदान करता है, लेकिन सीएफआर के अनुमोदन के बिना जो अधिकार हमें एफआरए में हासिल हैं उसे अमान्य बना देता है।

एफआरए की धारा (6) (1) के तहत, वन अधिकार समिति (एफआरसी) को आईएफआर और सीएफआर दोनों के लिए भूमि के दावों की प्रक्रिया को शुरू करने की अनुमति प्राप्त है।

मरियप्पन के अनुसार एफआरसी के फैसले से, जिसे सामूहिक प्रतिक्रियाओं के बाद लिया जाता है, को वनों में उनके इस्तेमाल योग्य क्षेत्र का दावा करने के लिए उपयोग किया जाता है। मरियप्पन कहते हैं, “हमने एक नक्शा तैयार किया था, जो उन क्षेत्रों को दर्शाता है जिनका उपयोग हम एनटीपी को एकत्र करने एवं अन्य उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल में लाते हैं। इसे वन विभाग और आरडीओ के द्वारा अनुमोदित किया जाता है।” उन्होंने आगे बताया कि अक्सर, “जिस नक़्शे को हमारी ओर से जमा कराया गया था, उसे या तो ख़ारिज कर दिया गया या कभी-कभार कह दिया जाता है कि आरडीओ ऑफिस में गुम हो गया।”

कोयंबटूर जिला राजस्व प्रभाग अधिकारी (आरडीओ) रविचंद्रन कहते हैं:“हमें अक्सर उचित प्रारूप में दावे प्राप्त नहीं होते हैं। इसलिए हमें उन दावों को ख़ारिज करने के लिए बाध्य होना पड़ता है।” जब उनसे नक्शों को ख़ारिज किये जाने के बारे में पूछा गया तो उन्होंने यह कहते हुए जवाब देने से इंकार कर दिया कि उन मामलों को उनके वरिष्ठ अधिकारियों के द्वारा देखा जा रहा है। 

प्रक्रिया

संसाधनों और शासन के मुद्दों पर लिखने वाले लेखक सी.आर. बिजॉय इस बारे में कहते हैं “सिर्फ ग्राम सभा को ही वन क्षेत्र को निर्धारित करने का अधिकार है, जिसपर दावा किया जाना है. उन्होंने आगे कहा, “अन्य अधिकारी जैसे आरडीओ, जिलाधिकारी एवं वन विभाग सिर्फ पट्टे के अधिकार को दर्ज और जारी कर सकते हैं।”

जब एफआरए के लिए दावों पर चर्चा की जाती है और एफआरसी में पुष्टि कि जाती है, जिसमें सात सदस्य होते हैं, तब इसे ग्राम सभा की बैठक में ले जाया जाता है, जहाँ दावों को आगे बढ़ाने पर फैसला लिया जाता है। अगला स्तर उप-मंडल समिति का है, जहाँ आरडीओ, वन रेंजर और तहसीलदार दावों पर फैसला लेते हैं और उन्हें जिला स्तरीय समिति के लिए पारित कर देते हैं जिसकी अध्यक्षता जिलाधिकारी के द्वारा की जाती है, और इसमें जिला वन अधिकारी (डीएफओ), अनुसूचित जनजाति कल्याण अधिकारी और एक आदिवासी प्रतिनिधि प्रतिनिधित्व करते हैं। आखिरी और अंतिम निर्णायक चरण अनुसूचित जनजाति निदेशक एवं प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) कि अध्यक्षता वाली राज्य स्तरीय निगरानी समिति है।

संयोगवश, रामकुमार, उप-जिलाधिकारी, अनुसूचित जनजाति कल्याण विभाग, कोयंबटूर जिले ने कहा कि उन्हें अभी तक कोई दावा नहीं प्राप्त हुआ है और “ये निश्चित रूप से उपमंडल समिति के पास ही अटका पड़ा होना चाहिए।”

27 वर्षीय किसान, रघु का कहना है कि प्रशासन एफआरए में शामिल प्रकिया के बारे में खुद भी अनिश्चित है। उनके मुताबिक, “वन विभाग ने एक ग्राम वन समिति (वीएफसी) का गठन किया है, जो वन विभाग के अंतर्गत आता है और सरकार से प्राप्त होने वाले धन के प्रबंधन में शामिल है।” वे कहते हैं, “वीएफसी, एफआरए के मूल मकसद को बदनाम कर रहा है, क्योंकि वन विभाग जंगल में उपलब्ध एनटीपी को गैर-आदिवासी लोगों को पट्टे पर देने के लिए लाता है।”

हालाँकि, देशज लोग कई अन्य कामों में शामिल हैं। वे सीएफआर को लागू किये जाने की मांग कर रहे हैं क्योंकि वे काम की तलाश में बाहर नहीं जाना चाहते हैं। राजेश, जो इन 24 बस्तियों में से एक में फसल उगाने का काम करते हैं, कहते हैं, “जंगलों की रक्षा के नाम पर, वन विभाग के द्वारा गैर-आदिवासी लोगों को जंगलों में घुसने और हमारे संसाधनों को लूटने की अनुमति प्रदान की जाती है।”

उन्होंने अपनी बात में आगे कहा, “हम अपनी ही जमीन में उपजाई हुई फसल की मार्केटिंग नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि वन विभाग हमें चेक पोस्ट पर रोक देता है और दस्तावेज दिखाने की मांग करता है।”

ग्रामीणों के द्वारा स्कूल, अस्पताल, सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं की मांग की जा रही है। सी.आर. बिजॉय कहते हैं, “वन विभाग के द्वारा आमतौर पर प्रचारित किया जाता है कि वनों को नष्ट करने के लिए आदिवासी लोग जिम्मेदार हैं, जो कि एक छलावा है।”

मरियप्पन इस बारे में दृढ़ हैं। वे कहते हैं, “जंगल को संरक्षित रखने और अपनी परंपरा को अगली पीढ़ी को सौंपने के लिए हमें जल्द से जल्द हमारी जमीनों का पट्टा देना होगा।”

(लेखक एशियन कॉलेज ऑफ़ जर्नलिज्म, चेन्नई के छात्र हैं।) 

अंग्रेज़ी में प्रकाशित इस मूल आलेख को पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें: 

Denied Access to own Land, Irula Forest Dwellers Say They Will Fight to the Finish

fra
Forest Rights Act
TN Government
TN Tribals
Irula Community
Tribal Land Rights

Related Stories

सालवा जुडूम के कारण मध्य भारत से हज़ारों विस्थापितों के पुनर्वास के लिए केंद्र सरकार से हस्तक्षेप की मांग 

उप्र चुनाव: बेदखली नोटिस, उत्पीड़न और धमकी—चित्रकूट आदिवासियों की पीड़ा

सामूहिक वन अधिकार देने पर MP सरकार ने की वादाख़िलाफ़ी, तो आदिवासियों ने ख़ुद तय की गांव की सीमा

गोवा : क्या आईआईटी का निर्माण आदिवासी अधिकारों के हनन से किया जाना चाहिए?

इतिहास से उत्पीड़ितों को न्याय की आस: वन अधिकार क़ानून के चौदह बरस


बाकी खबरें

  • srilanka
    न्यूज़क्लिक टीम
    श्रीलंका: निर्णायक मोड़ पर पहुंचा बर्बादी और तानाशाही से निजात पाने का संघर्ष
    10 May 2022
    पड़ताल दुनिया भर की में वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह ने श्रीलंका में तानाशाह राजपक्षे सरकार के ख़िलाफ़ चल रहे आंदोलन पर बात की श्रीलंका के मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ. शिवाप्रगासम और न्यूज़क्लिक के प्रधान…
  • सत्यम् तिवारी
    रुड़की : दंगा पीड़ित मुस्लिम परिवार ने घर के बाहर लिखा 'यह मकान बिकाऊ है', पुलिस-प्रशासन ने मिटाया
    10 May 2022
    गाँव के बाहरी हिस्से में रहने वाले इसी मुस्लिम परिवार के घर हनुमान जयंती पर भड़की हिंसा में आगज़नी हुई थी। परिवार का कहना है कि हिन्दू पक्ष के लोग घर से सामने से निकलते हुए 'जय श्री राम' के नारे लगाते…
  • असद रिज़वी
    लखनऊ विश्वविद्यालय में एबीवीपी का हंगामा: प्रोफ़ेसर और दलित चिंतक रविकांत चंदन का घेराव, धमकी
    10 May 2022
    एक निजी वेब पोर्टल पर काशी विश्वनाथ मंदिर को लेकर की गई एक टिप्पणी के विरोध में एबीवीपी ने मंगलवार को प्रोफ़ेसर रविकांत के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया। उन्हें विश्वविद्यालय परिसर में घेर लिया और…
  • अजय कुमार
    मज़बूत नेता के राज में डॉलर के मुक़ाबले रुपया अब तक के इतिहास में सबसे कमज़ोर
    10 May 2022
    साल 2013 में डॉलर के मुक़ाबले रूपये गिरकर 68 रूपये प्रति डॉलर हो गया था। भाजपा की तरफ से बयान आया कि डॉलर के मुक़ाबले रुपया तभी मज़बूत होगा जब देश में मज़बूत नेता आएगा।
  • अनीस ज़रगर
    श्रीनगर के बाहरी इलाक़ों में शराब की दुकान खुलने का व्यापक विरोध
    10 May 2022
    राजनीतिक पार्टियों ने इस क़दम को “पर्यटन की आड़ में" और "नुकसान पहुँचाने वाला" क़दम बताया है। इसे बंद करने की मांग की जा रही है क्योंकि दुकान ऐसे इलाक़े में जहाँ पर्यटन की कोई जगह नहीं है बल्कि एक स्कूल…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License