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भारत
राजनीति
क्या ‘आपदा में अवसर’ है यूपी के बेसिक शिक्षा मंत्री के भाई की ग़रीब कोटे के तहत नियुक्ति?
नियुक्ति की जांच के संबंध में राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को लिखे एक पत्र में कहा गया है कि अरुण द्विवेदी मंत्री के भाई तो हैं ही, यहां नियुक्त होने के पहले वनस्थली विद्यापीठ, राजस्थान में मनोविज्ञान विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर भी थे। इस स्थिति में उनके द्वारा ईडब्ल्यूएस का सर्टिफिकेट प्राप्त करना जांच का विषय है।
सोनिया यादव
24 May 2021
क्या ‘आपदा में अवसर’ है यूपी के बेसिक शिक्षा मंत्री के भाई की ग़रीब कोटे के तहत नियुक्ति?

‘मंत्री का भाई गरीब कैसे हो सकता है? और वो भी तब जब वह खुद किसी विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हो और उनकी पत्नी भी एक डिग्री कालेज में प्रवक्ता पद पर सेवाएं दे रही हों।’

ये सवाल सोशल मीडिया पर तूल पकड़ता जा रहा है। मामला यूपी के बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश द्विवेदी के भाई अरुण द्विवेदी का गरीब कोटे से यूनिवर्सिटी में बने असिस्टेंट प्रोफेसर का है। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो अरुण इससे पहले राजस्थान की वनस्थली विद्यापीठ में सहायक प्रोफेसर के पद पर सेवाएं दे रहे थे और उनकी पत्नी भी बिहार के एक डिग्री कालेज में प्रवक्ता पद पर कार्यरत हैं। ऐसे में बड़ा सवाल है कि आखिर इनके नाम ईडब्ल्यूएस यानी आर्थिक तौर पर कमज़ोर होने का प्रमाण पत्र जारी कैसे हुआ?

भ्रष्टाचार पर जीरों टॉलरेंस का दावा करने वाली उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की भर्तियां अक्सर सवालों के घेरे में ही रहती हैं, फिर वो 69,000 शिक्षक भर्ती का घोटाला हो या 2018 की यूपीएसएसएससी द्वारा ग्राम विकास अधिकारी भर्ती का तीन साल बाद धांधली के चलते निरस्तीकरण हो। राज्य के युवा, सरकार के चार साल में चार लाख नैकरी के दावों पर भी समय-समय पर प्रदर्शन कर लगातार सवाल उठाते ही रहते हैं। ऐसे में विपक्षी दलों ने बेसिक शिक्षा मंत्री के भाई की ईडब्ल्यूएस कोटे में नियुक्ति को लेकर योगी सरकार पर सीधा निशाना साधा है, इसे नौकरी के लिए लाठी खा रहे युवाओं का अपमान बताया है।

पूरा मामला क्या है?

प्रदेश के बेसिक शिक्षा मंत्री डॉक्टर सतीश द्विवेदी, सिद्धार्थनगर जिले की इटवा विधानसभा सीट से विधायक हैं। अब इसी सिद्धार्थनगर जिले के सिद्धार्थ विश्वविद्यालय कपिलवस्तु में उनके भाई अरुण द्विवेदी का चयन बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर हुआ है। विवाद नियुक्ति की पारदर्शिता को लेकर है क्योंकि अरुण का सलेक्शन आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित कैटेगरी में हुआ है। यानी उनके पास सर्टिफिकेट है कि वह आर्थिक रूप से कमजोर हैं। ये सर्टिफिकेट इलाके की तहसील से बनता है और इसके लिए सरकारी जांच भी होती है। यदि किसी की सालाना आमदनी 8 लाख रुपये से कम है, तब वह इस श्रेणी का सर्टिफिकेट हासिल कर सकता है।

केंद्र सरकार की नीतियों और शैक्षणिक संस्थानों में आर्थिक तौर पर कमज़ोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए 10 फ़ीसदी आरक्षण का कानून 2019 में पारित हुआ था। ये आरक्षण उन लोगों के लिए है, जो जनवरी, 2019 के पहले 49.5 फ़ीसदी रिज़र्वेशन पूल से बाहर थे और जिनकी आय आठ लाख रुपये से कम थी। आसान भाषा में समझें तो ये आरक्षण सवर्ण गरीबों के लिए है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सिद्धार्थ विश्वविद्यालय प्रशासन ने मनोविज्ञान संकाय में एसोसिएट प्रोफेसर के दो पदों की नियुक्ति के लिए अभ्यर्थियों से आवेदन मांगा था। एक पद पिछड़ा वर्ग और  दूसरा आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित था। आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लिए बेसिक शिक्षा मंत्री के भाई ने भी आवेदन किया। जबकि यह बतौर प्रोफेसर कार्यरत हैं। इन्होंने अपने फेसबुक प्रोफाइल में इस जानकारी को दर्शाया भी है। पारिवारिक सदस्यों के अनुसार इनकी पत्नी भी बिहार के एक डिग्री कालेज में प्रवक्ता पद पर कार्यरत हैं।

हालांकि नियुक्ति पर तमाम सवाल उठने के बाद मंत्री के भाई डॉ. अरुण कुमार द्विवेदी ने अपने फेसबुक एकाउंट से सभी पोस्ट हटा दिए हैं और अपनी प्रोफाइल लॉक कर दी है। उनके फेसबुक एकाउंट पर मंत्री का भाई बताते हुए कई तस्वीरें थीं जो अब नहीं दिख रही हैं। सोशल मीडिया में लोग इसकी कड़ी आलोचना कर रहे हैं।

विश्वविद्यालय प्रशासन का क्या कहना है?

सिद्धार्थ विश्वविद्यालय  के कुलपति प्रोफेसर सुरेंद्र दुबे के अनुसार, विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर पद के लिए नियुक्तियां हो रही है। मनोविज्ञान संकाय के लिए दो पदों पर नियुक्ति प्रक्रिया पूरी की गई। अरुण कुमार के शैक्षिक प्रमाणपत्र सही पाए गए हैं। साक्षात्कार की वीडियोग्राफी कराई गई है। पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता बरती गई है। आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग का प्रमाणपत्र प्रशासन की ओर से जारी होता है। अगर इसमें कहीं गड़बड़ी है तो वह दंड के भागी होंगे।

प्रशासन क्या कह रहा है?

मीडिया में आई खबरों के मुताबिक जो ईडब्ल्यूएस प्रमाणपत्र लगा है, वह 2019 का है। सिद्धार्थ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सुरेंद्र दुबे के मुताबिक नियुक्ति प्रक्रिया 2019 में शुरू हुई थी। उनका प्रमाणपत्र भी तभी का है। आवेदन पत्र में वही प्रमाणपत्र लगाया गया है।

दैनिक जागरण की रिपोर्ट के मुताबिक, इटवा तहसील के शनिचरा गांव के लेखपाल छोटई प्रसाद ने पहले कहा कि उन्होंने कोई रिपोर्ट नहीं दी। बाद में बताया कि 2019 में रिपोर्ट लगाई थी, तब उनकी आय आठ लाख रुपये से कम थी।

एसडीएम इटवा उत्कर्ष श्रीवास्तव ने बताया कि ईडब्लूएस प्रमाणपत्र तहसील से जारी किया गया है। अगर कोई शिकायत मिलती है तो नए सिरे से जांच कराएंगे।

विपक्ष ने नियुक्ति को बताया ‘आपदा में अवसर’

इस नियुक्ति पर आम लोगों के साथ-साथ विपक्षी दलों ने भी सवाल उठाते हुए इसे भ्रष्टाचार का मुद्दा बताया है। पूरे मामले पर बीजेपी के मंत्री और नेताओं ने चुप्पी साध रखी है तो वहीं कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों ने इस नियुक्ति की जांच की मांग करते हुए कहा है कि इस मामले में बेसिक शिक्षा मंत्री की संलिप्तता की भी जांच कराई जाए।

उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने कहा, “मंत्री के भाई आर्थिक रूप से कमजोर कैसे हो सकते हैं? उन्होंने किसकी सिफारिश पर जिला प्रशासन से निर्धन आय वर्ग का प्रमाण पत्र हासिल किया, इसकी भी जांच जरूरी हो गई है।”

उन्होंने इस नियुक्ति को तत्काल रद्द करने की मांग करते हुए कहा कि बेसिक शिक्षा मंत्री की इस पूरे प्रकरण में गंभीर संलिप्तता है और वह सवालों से बच रहे हैं। इस मामले में उनकी भूमिका की जांच की जानी चाहिए। उन्हें सामने आकर बताना चाहिए कि उनके भाई गरीब कैसे हो गए और उन्हें निर्धन आय वर्ग का प्रमाण पत्र किसकी सिफारिश पर मिला।

कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी ने भी इस नियुक्ति पर सवाल उठाया है और कहा है कि “संकटकाल में यूपी सरकार के मंत्रीगण आम लोगों की मदद करने से तो नदारद दिख रहे हैं लेकिन आपदा में अवसर हड़पने में पीछे नहीं हैं।”

प्रियंका गांधी ने फ़ेसबुक पर लिखा, “यूपी के बेसिक शिक्षा मंत्री के भाई गरीब बनकर असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति पा गए। लाखों युवा यूपी में रोजगार की बाट जोह रहे हैं, लेकिन नौकरी ‘आपदा में अवसर’ वालों की लग रही है। ये गरीबों और आरक्षण दोनों का मजाक बना रहे हैं। ये वही मंत्री महोदय हैं जिन्होंने चुनाव ड्यूटी में कोरोना से मारे गए शिक्षकों की संख्या को नकार दिया और इसे विपक्ष की साज़िश बताया। क्या मुख्यमंत्री जी इस साज़िश पर कोई ऐक्शन लेंगे?

आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह ने इस मामले को लेकर सतीश द्विवेदी पर निशाना साधा है। उन्होंने इसे नौकरी के लिए लाठी खा रहे युवाओं का घोर अपमान बताया है।

आदित्यनाथ जी के मंत्री सतीश द्विवेदी जी का कारनामा।
1621 शिक्षक चुनाव ड्यूटी में मर गये मंत्री जी को नही मालूम उन्होंने सिर्फ़ 3 बताया।
लेकिन अपने सगे भाई को EWS (ग़रीबी के कोटे ) में नौकरी कैसे देनी है ये मंत्री जी को मालूम है।
नौकरी के लिये लाठी खा रहे UP के युवाओं का घोर अपमान pic.twitter.com/aVIHe0qei8

— Sanjay Singh AAP (@SanjayAzadSln) May 23, 2021

संजय सिंह ने ट्विटर पर लिखा, “आदित्यनाथ जी के मंत्री सतीश द्विवेदी जी का कारनामा। 1621 शिक्षक चुनाव ड्यूटी में मर गये मंत्री जी को नहीं मालूम उन्होंने सिर्फ़ 3 बताया। लेकिन अपने सगे भाई को EWS (ग़रीबी के कोटे ) में नौकरी कैसे देनी है ये मंत्री जी को मालूम है। नौकरी के लिये लाठी खा रहे UP के युवाओं का घोर अपमान।”

समाजवादी युवजन सभा के अध्यक्ष अरविंद गिरी ने अपने ट्विटर हैंडल से सीएम योगी और उनके मंत्री को घेरते हुए लिखा, “यू.पी. सरकार के मंत्री सतीश द्विवेदी के भाई अरुण द्विवेदी का सिद्धार्थ विश्वविध्यालय में EWS कोटे के तहत असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर चयन हुआ हैं। यह नियुक्ति मंत्री सतीश द्विवेदी की नैतिकता और यू.पी.के मंत्री और मुख्यमंत्री के भ्रष्टाचार में सम्मलित होने की भी पोल खोलती है।”

यू॰पी०सरकार के मंत्री सतीश द्विवेदी के भाई अरुण द्विवेदी का सिद्धार्थ विश्वविध्यालय में EWS कोटे के तहत असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर चयन हुआ हैं।
यह नियुक्ति मंत्री सतीश द्विवेदी की नैतिकता और यू०पी०के मंत्री और मुख्यमंत्री के भ्रष्टाचार में सम्मलित होने की भी पोल खोलती हैं। pic.twitter.com/sY6RKkM3lK

— Arvind Giri (@sparvindgiri) May 22, 2021

नेशनल स्टूडेंट यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआई) के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीरज कुंदन ने भी ट्वीट के जरिए बेसिक शिक्षा मंत्री पर सवाल उठाते हुए लिखा, “जहाँ एक ओर यूपी के बेरोजगार हर रोज शिक्षक भर्ती से लेकर सालों से अटकी हुई परीक्षाओं व नियुक्तियों के लिए अभियान चला चलाकर थक गए पर रोजगार न मिला। वहीं यूपी के शिक्षा मंत्री सतीश द्विवेदी जी अपने भाई को आपदा में अवसर खोजकर असिस्टेंट प्रोफेसर बना दिया। क्या कमाल है सिस्टम!”

जहाँ एक ओर यूपी के बेरोजगार हर रोज शिक्षक भर्ती से लेकर सालों से अटकी हुई परीक्षाओं व नियुक्तियों के लिए अभियान चला चलाकर थक गए पर रोजगार न मिला।
वही यूपी के शिक्षा मंत्री सतीश द्विवेदी जी अपने भाई को आपदा में अवसर खोजकर असिस्टेंट प्रोफेसर बना दिया
क्या कमाल है सिस्टम!

— Neeraj Kundan (@Neerajkundan) May 22, 2021

आजाद समाज पार्टी के प्रवक्ता सूरज कुमार ने भी सतीश द्विवेदी के भाई की नियुक्ति को लेकर ट्वीट किया है।

आरक्षण चोर मंत्री और उनकी मेरिट।

यह UP बेसिक शिक्षा मंत्री डॉ सतीश द्विवेदी हैं जो 'सिद्धार्थ विश्वविद्यालय' में अपने भाई को चोरी से EWS कोटे में असिस्टेंट प्रोफेसर बनवा दिए हैं। पढ़ लिख लो द्विवेदी, कब तक दूसरे का हक़ खाओगे?

— Suraj Kumar Bauddh (@SurajKrBauddh) May 23, 2021

सतीश द्विवेदी और उनके भाई अरुण द्विवेदी का क्या कहना है?

बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश द्विवेदी और उनके भाई अरुण द्विवेदी ने इन आरोपों को गलत बताया है। सतीश द्विवेदी का कहना है कि उनके भाई को नौकरी उनकी योग्यता से मिली है। और उनकी आमदनी को उनके भाई की आमदनी से नहीं जोड़ना चाहिए।

जबकि अरुण द्विवेदी का कहना है कि उनकी आमदनी दुर्बल आय वर्ग में आती है। सरकार के नियम के मुताबिक दुर्बल आय वर्ग में वे लोग आते हैं जिनकी सालाना आमदनी आठ लाख से ज़्यादा न हो। उनका कहना है कि इसके पहले उन्होंने राजस्थान और हरियाणा में दो और जगह पढ़ाया है, जहां उनकी तनख्वाह इससे कम थी।

नियुक्ति की जांच के लिए राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को पत्र

गौरतलब है कि हाल में जबरन रिटायर किए गए आईपीएस अफसर अमिताभ ठाकुर और उनकी पत्नी आरटीआइ एक्टिविस्ट-अधिवक्ता डॉ. नूतन ठाकुर ने राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को पत्र लिखकर मंत्री के भाई डॉ. अरुण कुमार द्विवेदी द्वारा ईडब्ल्यूएस सर्टिफिकेट के तथ्यों की गहन व निष्पक्ष जांच कराते हुए कार्यवाही का अनुरोध किया है। पत्र के अनुसार डॉ. द्विवेदी मंत्री के भाई तो हैं ही, यहां नियुक्त होने के पहले वनस्थली विद्यापीठ, राजस्थान में मनोविज्ञान विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर थे। इस स्थिति में उनके द्वारा ईडब्ल्यूएस का सर्टिफिकेट प्राप्त करना जांच का विषय है।

UP शिक्षा मंत्री @drdwivedisatish के भाई अरुण कुमार की EWS कोटे से सिद्धार्थ यूनिवर्सिटी में सहायक प्रोफेसर पद पर नियुक्ति की जाँच की मांग. @UPGovt @Uppolice @CMOfficeUP @ChiefSecyUP pic.twitter.com/pZ423HuaDO

— Nutan Thakur (@ANutanThakur) May 23, 2021

आपको बता दें कि सिद्धार्थ विश्वविद्यालय में शिक्षकों की नियुक्तियों पर पहले भी विवाद की खबरें सामने आई हैं। लेकिन एक मंत्री के भाई को गरीब बताते हुए गरीब सवर्णों के कोटे में नियुक्ति का यह पहला मामला राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोर रहा है। सवाल इस बात को लेकर भी किए जा रहे हैं कि आखिर जब कुलपति का कार्यकाल 21 मई तक ही था तब ठीक एक दिन पहले 20 मई को उनका कार्यकाल अगले कुलपति की नियुक्ति होने तक क्यों बढ़ा दिया गया। सोशल मीडिया पर तमाम ऐसी अटकलें लगाई जारी हैं कि इसके पीछे भी इस नियुक्ति को लेकर कोई खास वजह थी, जिससे आम जनता अंजान है। वैसे बेसिक शिक्षा मंत्री तो पहले से ही पंचायत चुनाव में ड्यूटी के दौरान कोरोना संक्रमण से सिर्फ तीन शिक्षकों की मृत्यु वाले बयान से आलोचना झेल रहे थे। अब भाई की नियुक्ति मामले में सीधा निशाने पर आ गए है।

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