हम सबको लगता है कि जब देश में सांप्रदायिक हिंसा बढ़ती है तो करोबार का माहौल खराब होता है. क्या वाकई ऐसा होता है? या यह महज धारणा है? सांप्रदायिक मनोभाव का शिकार नौजवान क्यों हो रहे है? साल 1990 के आर्थिक सुधार, साम्प्रदायिकता और बहुसंख्यक राजनीति के बीच क्या रिश्ता है? इन सब मुद्दों पर वरिष्ठ पत्रकार ऑनिंद्यो चक्रवर्ती के साथ बातचीत।