NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
चुनाव आयोग क्या सरकार का 'आज्ञाकारी सेवक’ है?
केरल हाई कोर्ट के हस्तक्षेप से एक ग़लत नज़ीर कायम होने से बच गई। मगर सवाल है कि क्या चुनाव आयोग भविष्य के लिए इससे कोई सबक़ लेगा।
अनिल जैन
16 Apr 2021
चुनाव आयोग

पिछले छह-सात सालों के दौरान केंद्र सरकार की करतूतों से वैसे तो देश की सभी संवैधानिक संस्थाओं की साख और विश्वसनीयता पर बट्टा लगा है, लेकिन चुनाव आयोग की साख तो पूरी तरह ही चौपट हो गई है। हैरानी की बात यह है कि अपने कामकाज और फैसलों पर लगातार उठते सवालों के बावजूद चुनाव आयोग ऐसा कुछ करता नहीं दिखता, जिससे लगे कि वह अपनी मटियामेट हो चुकी साख को लेकर जरा भी चिंतित है। उसकी निष्पक्षता पलड़ा हमेशा सरकार और सत्तारूढ़ दल के पक्ष में झुका देखते हुए अब तो कई लोग उसे चुनाव मंत्रालय और केंचुआ तक तक कहने लगे हैं।

यह सही है कि केंद्रीय चुनाव आयोग भारत सरकार के कानून एवं न्याय मंत्रालय के अधीन आता है, लेकिन देश के संविधान ने उसे एक स्वायत्त संवैधानिक संस्था का दर्जा दिया है। चुनाव की तारीख तय करने से लेकर स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने का जिम्मा चुनाव आयोग का होता है और इस काम में सरकार या कोई भी मंत्रालय उसे सलाह या निर्देश नहीं दे सकता है। लेकिन मोदी सरकार में यह संवैधानिक व्यवस्था और परंपरा लगभग टूट चुकी है। केरल की राज्यसभा सीटों के मामले में ऐसा ही हुआ है, जिसमें हाई कोर्ट के हस्तक्षेप से चुनाव आयोग को और प्रकारांतर से केंद्रीय कानून एवं न्याय मंत्रालय को भी मुंह की खानी पडी है। हाल ही चार राज्यों में संपन्न हो चुके और पश्चिम बंगाल में जारी विधानसभा चुनाव में भी चुनाव आयोग ने जिस तरह सरकार के इशारे पर काम किया है और अभी भी कर रहा है, वह तो एक अलग ही कहानी है।

फिलहाल चर्चा केरल के राज्यसभा चुनाव की। पिछले महीने के तीसरे सप्ताह में जब चुनाव आयोग ने केरल की तीन राज्यसभा सीटों के चुनाव की तारीख का ऐलान किया तो कानून मंत्रालय ने उसे इस आधार पर चुनाव टालने का निर्देश भेज दिया कि केरल में इस समय विधानसभा चुनाव हो रहे हैं और दो मई को नया निर्वाचक मंडल (नई विधानसभा) अस्तित्व में आ जाएगा, लिहाजा मौजूदा निर्वाचक निर्वाचक से चुनाव कराने का कोई औचित्य नहीं है।

कानून मंत्रालय का इस तरह का निर्देश भेजना अभूतपूर्व और हैरान करने वाला था, क्योंकि ऐसा करना उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है। लेकिन इसके बावजूद चुनाव आयोग ने कानून मंत्रालय के निर्देश को सिर-माथे लेते हुए चुनाव कार्यक्रम पर रोक लगा दी। दरअसल चुनाव आयोग ने 17 मार्च को ऐलान किया था कि केरल की तीन विधानसभा सीटों के लिए 14 अप्रैल को चुनाव होगा और 24 मार्च को इसके लिए अधिसूचना जारी होगी।

उल्लेखनीय है कि केरल से राज्यसभा के तीन सदस्यों केके रागेश (सीपीएम), वायलार रवि (कांग्रेस) और अब्दुल वहाब (आईयूएमएल) का कार्यकाल 21 अप्रैल को समाप्त हो रहा है। नियमानुसार किसी भी सदस्य का कार्यकाल पूरा होने के एक सप्ताह पहले ही उस सीट का चुनाव करा लिया जाता है। ऐसा सिर्फ उसी स्थिति में नहीं होता है जब संबंधित राज्य की विधानसभा अस्तित्व में नहीं रहती है यानी विधानसभा भंग हो जाती है। चूंकि केरल विधानसभा भंग नहीं हुई है, लिहाजा चुनाव आयोग ने इन तीन सीटों के चुनाव के लिए 14 अप्रैल की तारीख मुकर्रर की थी। आयोग चुनाव की अधिसूचना जारी करता, उससे एक दिन पहले ही 23 मार्च को उसे कानून मंत्रालय से चुनाव रोकने का फरमान मिल गया।

हालांकि यह फरमान चुनाव आयोग के लिए भी चौंकाने वाला था और उसने दबी जुबान में इस पर एतराज भी जताया। आयोग की ओर से कानून मंत्रालय को कहा गया कि ऐसा पहले भी होता रहा है कि किसी राज्य में विधानसभा चुनाव के दौरान वहां राज्यसभा के चुनाव भी हुए हैं और यह चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है कि वह सेवानिवृत्त हो रहे राज्यसभा सदस्यों का कार्यकाल पूरा होने से पहले उनकी सीटों के लिए चुनाव कराए। लेकिन कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद के नेतृत्व वाले कानून मंत्रालय ने चुनाव आयोग की यह दलील नहीं मानी। 'स्वतंत्र और निष्पक्ष’ माने जाने वाले चुनाव आयोग की भी आगे कुछ और बोलने की हिम्मत नहीं हुई और उसने ’आज्ञाकारी सेवक’ की तरह कानून मंत्रालय के फरमान के मुताबिक चुनाव पर रोक लगा दी।

चुनाव आयोग के इस फैसले को राज्य में सत्तारूढ वाम मोर्चा ने केरल हाई कोर्ट में चुनौती दी। हाई कोर्ट ने जब इस मामले में चुनाव आयोग से जवाब तलब किया तो जाहिर है कि उसके पास चुनाव रोकने की कोई वाजिब वजह बताने को नहीं थी। उसने अदालत में बेहद लचर दलीलें पेश की लेकिन अदालत ने आयोग को उन कारणों का खुलासा करने के लिए हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया, जिनके चलते राज्यसभा की तीन सीटों का चुनाव स्थगित करने का फैसला किया गया था।

चूंकि चुनाव आयोग के पास चुनाव रोकने का कोई वाजिब कारण नहीं था, लिहाजा उसने 9 अप्रैल को हाई कोर्ट को सूचित किया कि उसने 21 अप्रैल को केरल से राज्यसभा के तीन सदस्यों का कार्यकाल समाप्त होने से पहले उनकी सीटों के लिए द्विवार्षिक चुनाव की घोषणा करने और चुनाव कार्यक्रम को अधिसूचित करने का निर्णय लिया है। हालांकि आयोग ने अपने इस जवाब में यह स्पष्ट नहीं था किया कि वह चुनाव किस तारीख को कराएगा। अंतत: हाई कोर्ट के निर्देश पर ही उसने 12 अप्रैल को ऐलान किया कि तीनों सीटों के लिए 30 अप्रैल को चुनाव होगा। उसके दो दिन बाद दो मई को ही विधानसभा चुनाव के नतीजे घोषित होंगे। यानी राज्यसभा सीटों का चुनाव मौजूदा विधानसभा ही करेगी।

हाई कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद घोषित हुए राज्यसभा चुनाव कार्यक्रम के बाद अब सवाल है कि जिस आधार पर केंद्रीय कानून मंत्रालय ने पूर्व में घोषित चुनाव कार्यक्रम पर आपत्ति जताते हुए चुनाव आयोग को चुनाव स्थगित करने का निर्देश दिया था और आयोग ने चुनाव रोका था, उस आधार का क्या हुआ? क्या वह आधार खत्म हो गया? अगर नहीं तो आयोग को यह बताना चाहिए कि उसने चुनाव क्यों रोका था?

हालांकि चुनाव आयोग के पास इन सवालों का कोई जवाब नहीं है और जवाब हो भी नहीं सकता, क्योंकि चुनाव रोकने संबंधी कानून मंत्रालय का निर्देश सरासर अनुचित था और उससे भी ज्यादा आपत्तिजनक चुनाव आयोग का उस निर्देश पर अमल करना था। बहरहाल केरल हाई कोर्ट के हस्तक्षेप से एक गलत नजीर कायम होने से बच गई। मगर सवाल है कि क्या चुनाव आयोग भविष्य के लिए इससे कोई सबक लेगा या सरकार का 'आज्ञाकारी सेवक’ बना रहेगा?

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

election commission
Modi government
BJP
Kerala high court
CPM
Congress
IUML

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !


बाकी खबरें

  • एजाज़ अशरफ़
    दलितों में वे भी शामिल हैं जो जाति के बावजूद असमानता का विरोध करते हैं : मार्टिन मैकवान
    12 May 2022
    जाने-माने एक्टिविस्ट बताते हैं कि कैसे वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि किसी दलित को जाति से नहीं बल्कि उसके कर्म और आस्था से परिभाषित किया जाना चाहिए।
  • न्यूज़क्लिक टीम
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 2,827 नए मामले, 24 मरीज़ों की मौत
    12 May 2022
    देश की राजधानी दिल्ली में आज कोरोना के एक हज़ार से कम यानी 970 नए मामले दर्ज किए गए है, जबकि इस दौरान 1,230 लोगों की ठीक किया जा चूका है |
  • सबरंग इंडिया
    सिवनी मॉब लिंचिंग के खिलाफ सड़कों पर उतरे आदिवासी, गरमाई राजनीति, दाहोद में गरजे राहुल
    12 May 2022
    सिवनी मॉब लिंचिंग के खिलाफ एमपी के आदिवासी सड़कों पर उतर आए और कलेक्टर कार्यालय के घेराव के साथ निर्णायक आंदोलन का आगाज करते हुए, आरोपियों के घरों पर बुलडोजर चलाए जाने की मांग की।
  • Buldozer
    महेश कुमार
    बागपत: भड़ल गांव में दलितों की चमड़ा इकाइयों पर चला बुलडोज़र, मुआवज़ा और कार्रवाई की मांग
    11 May 2022
    जब दलित समुदाय के लोगों ने कार्रवाई का विरोध किया तो पुलिस ने उन पर लाठीचार्ज कर दिया। प्रशासन की इस कार्रवाई से इलाके के दलित समुदाय में गुस्सा है।
  • Professor Ravikant
    न्यूज़क्लिक टीम
    संघियों के निशाने पर प्रोफेसर: वजह बता रहे हैं स्वयं डा. रविकांत
    11 May 2022
    लखनऊ यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रविकांत के खिलाफ आरएसएस से सम्बद्ध अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) के कार्यकर्ता हाथ धोकर क्यों पड़े हैं? विश्वविद्यालय परिसरों, मीडिया और समाज में लोगों की…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License