NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
क्या चुनावी साल में आंदोलनों से डरकर नागरिक अधिकारों का हनन कर रही है उत्तराखंड सरकार?
“इस समय ऊर्जा विभाग के कर्मचारियों या उपनल कर्मियों के विरोध समेत जितने भी आंदोलन राज्य के भीतर खड़े हो रहे हैं, राज्य सरकार उन आंदोलनों का सामना करने की स्थिति में नहीं है। इन्हीं आंदोलनो को खत्म करने के लिए रासुका का रास्ता निकाला गया है। बड़े आंदोलन की स्थिति में धारा 144 लगाई जा सकती है। जिसमें किसी एक जगह पांच या उससे अधिक व्यक्तियों को इकट्ठा होने से रोका जा सकता है”।
वर्षा सिंह
07 Oct 2021
Rurkee church attack
3 अक्टूबर को रुड़की में चर्च पर हुआ था हमला

चुनावी वर्ष में उत्तराखंड की हवाओं का मिज़ाज भी बदल रहा है। पिछले कुछ समय में ही प्रदेश की भाजपा सरकार के कुछ बयान चर्चा में रहे। 

हाल की घटनाएं

9 सितंबर को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि लव-जिहाद को रोकने और धार्मिक स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए उत्तराखंड में धर्मांतरण कानून को सख्त बनाने की जरूरत है। अधिकारियों को इसका मसौदा तैयार करने को कहा गया है।

24 सितंबर को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने उत्तराखंड में जनसांख्यिकीय बदलाव को लेकर बयान दिया। उन्होंने कहा कि राज्य के कुछ हिस्सों में जनसांख्यिकीय परिवर्तन देखे जा रहे हैं। राज्य में जनसंख्या घनत्व एकदम से बढ़ा है। इसलिए सरकार राज्य में बाहर से आकर बसने वाले लोगों के बारे में जानकारी जुटाएगी। इसके लिए विशेष अभियान चलाया जाएगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि हम किसी समुदाय विशेष को टारगेट करके ये नहीं कह रहे हैं। ये राज्य के निवासियों की सुरक्षा के लिए है।

3 अक्टूबर को रुड़की में चर्च पर हमले की खबर आई। रविवार सुबह चर्च में प्रार्थना कर रहे लोगों पर लाठी-डंडे चलाए गए। घटना में कुछ लोग घायल हुए। 250 लोगों पर विभिन्न धाराओं में केस दर्ज हुआ। इनमें से कई लोग भाजयुमा, भाजपा ओबीसी मोर्चा, विश्व हिंदू परिषद और भाजपा महिला मोर्चा से जुड़े ते।

अपर मुख्य सचिव ने जारी किया आदेश

रासुका लगाने का अधिकार

4 अक्टूबर को अपर मुख्य सचिव आनंद वर्धन ने राज्य में हिंसक घटनाओं को रोकने के लिए सभी ज़िलाधिकारियों को रासुका लगाने के अधिकार की समयावधि 3 महीने के लिए 31 दिसंबर 2021 तक बढ़ा दी। इसके लिए जारी अधिसूचना में कहा गया कि पिछले दिनों कुछ ज़िलों में हिंसक घटनाएं हुई हैं। इन घटनाओं की प्रतिक्रिया के तौर पर अन्य क्षेत्रों में भी ऐसी घटनाएं होने की आशंका है।

आदेश में राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 की धारा 3 की उपधारा (3) की शक्तियों का इस्तेमाल कर ज़िलाधिकारियों को रासुका की धारा 3 की उपधारा (2) में दी गई शक्तियों का इस्तेमाल करने का अधिकार दिया गया है।

रुड़की चर्च पर हमले की घटना, इससे कुछ दिन पहले टिहरी में सांप्रदायिक तनाव और लखीमपुर घटना के बाद उधमसिंह नगर में किसानों के विरोध प्रदर्शन की घटनाओं के बीच रासुका की अवधि बढ़ायी गई है।

कठोर कानून है रासुका

नैनीताल हाईकोर्ट में वकील रक्षित जोशी बताते हैं राष्ट्रीय सुरक्षा, लोक व्यवस्था और आवश्यक सेवाओं में बाधा डालने की स्थिति में किसी व्यक्ति को डिटेन किया जा सकता है। बंदी बनाया जा सकता है। रासुका के तहत निरुद्ध किये जाने पर व्यक्ति ज़मानत के लिए भी अर्जी नहीं दे सकता है। आमतौर पर व्यक्ति को गिरफ्तार करने पर वजह बताना जरूरी होता है। लेकिन रासुका में बिना वजह बताए भी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जा सकता है। रासुका के तहत व्यक्ति को अधिकतम एक साल तक जेल में रखा जा सकता है। कुछ मामलों में एडवाइजरी बोर्ड में प्रार्थना पत्र दिया जा सकता है। लेकिन उत्तराखंड में ऐसी एडवाइजरी बोर्ड है भी या नहीं?

आंदोलनों का डर!

सीपीआई-एमएल के गढ़वाल सचिव इंद्रेश मैखुरी कहते हैं  “एक तरफ नीति आयोग ने उत्तराखंड पुलिस को कानून व्यवस्था बनाए रखने में देश में अव्वल ठहराया है। वहीं राज्य सरकार लोक व्यवस्था के नाम पर रासुका लगाने के लिए ज़िलाधिकारियों की शक्तियों को बढ़ा रही है। सरकार को किस तरह का खतरा महसूस हो रहा है, हमें तो ऐसा खतरा दिखाई नहीं देता”।

इंद्रेश कहते हैं “इस समय ऊर्जा विभाग के कर्मचारियों या उपनल कर्मियों के विरोध समेत जितने भी आंदोलन राज्य के भीतर खड़े हो रहे हैं, राज्य सरकार उन आंदोलनों का सामना करने की स्थिति में नहीं है। इन्हीं आंदोलनो को खत्म करने के लिए रासुका का रास्ता निकाला गया है। बड़े आंदोलन की स्थिति में धारा 144 लगाई जा सकती है। जिसमें किसी एक जगह पांच या उससे अधिक व्यक्तियों को इकट्ठा होने से रोका जा सकता है”। वह कहते हैं कि ये काम तो धारा 144 से हो जाता इसके लिए रासुका का भय बनाने की जरूरत नहीं थी।

कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना कहते हैं “पिछले साढ़े चार साल में बेरोज़गार, महंगाई जैसे मुद्दों पर भाजपा सरकार पूरी तरह असफल साबित हुई है। कोविड की दूसरी लहर के दौरान हमारा स्वास्थ्य का ढांचा पूरी तरह फेल साबित हुआ। 57 विधायकों के साथ प्रचंड बहुमत के बावजूद तीन मुख्यमंत्री बदले गए। इन्हीं सारी असफलताओं को ढंकने के लिए और लोगों में भय का वातावरण बनाने के लिए रासुका की बात छेड़ी गई है। उपनल और बिजली कर्मचारी आंदोलन पर हैं। इन्हें डराने के लिए राज्य सरकार ने ऐसी बात कही है”।

कांग्रेस नेता कहते हैं “अगर रासुका लगानी है तो रुड़की में चर्च पर हमला करने वालों पर लगाइये”।

चुनाव से पहले जनसांख्यिकीय परिवर्तन का मुद्दा

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने चुनाव से पहले राज्य में जनसांख्यिकीय परिवर्तन का मुद्दा क्यों छेड़ा?

भाजपा नेता अजेंद्र अजय कहते हैं कि वर्ष 2018 में भी ये मामला उठा था। लेकिन उस समय इस पर ज्यादा कुछ किया नहीं गया। वह कहते हैं “उत्तराखंड दो अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं से जुड़ा क्षेत्र है। यहां की डेमोग्राफी बदलेगी तो ये सुरक्षा के लिहाज से खतरा होगा। राज्य के कई क्षेत्रों में जनसांख्यिकीय बदलाव देखने को मिल रहा है। पिछले तीन-चार वर्षों में पर्वतीय क्षेत्र अगस्त्यमुनि, चंबा, सतपुली में सांप्रदायिक तनाव की घटनाएं हुई हैं। धर्म विशेष के लोग यहां ज़मीनें खरीद रहे हैं”।

इससे पहले राज्य में भू-कानून को लेकर भी सोशल मीडिया पर आंदोलन तेज़ रहा। जनसांख्यिकीय बदलाव की बात इसी आंदोलन की अगली कड़ी है। वर्ष 2018 में उत्तराखंड सरकार ने ही उद्योगों को बढ़ावा देने के लिहाज से बाहरी लोगों को राज्य में ज़मीन खरीदने की छूट दी थी।

भू-कानून से जुड़े सोशल मीडिया आंदोलन में भी बाहरी लोगों के राज्य में ज़मीन खरीदने पर रोक लगाने की बात कही जा रही थी।

कांग्रेस नेता सूर्यकांत धस्माना कहते हैं “क्या हम किसी धर्म विशेष के व्यक्ति को ज़मीन खरीदने से रोक सकते हैं। ये धर्म के नाम पर लोगों को बांटने की राजनीति है। लेकिन बेरोजगार-महंगाई झेल रहे लोग अब धर्म के झांसे में नहीं आने वाले?

खबर लिखे जाने तक अपर मुख्य सचिव आऩंद वर्धन से प्रतिक्रिया लेने की कोशिश की गई। लेकिन उनका फ़ोन कनेक्ट होने के बावजूद नहीं उठा।

रासुका जैसे कठोर कानून के दुरुपयोग के मामले देश में पहले भी सामने आ चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट भी इसके दुरुपयोग पर सवाल उठा चुका है।

(देहरादून से स्वतंत्र पत्रकार वर्षा सिंह)

UTTARAKHAND
Rurkee church attack
Uttarakhand government
Civil rights
Attack on Civil Rights Activist
BJP
2022 Uttarakhand Legislative Assembly election

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?


बाकी खबरें

  • itihas ke panne
    न्यूज़क्लिक टीम
    मलियाना नरसंहार के 35 साल, क्या मिल पाया पीड़ितों को इंसाफ?
    22 May 2022
    न्यूज़क्लिक की इस ख़ास पेशकश में वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ने पत्रकार और मेरठ दंगो को करीब से देख चुके कुर्बान अली से बात की | 35 साल पहले उत्तर प्रदेश में मेरठ के पास हुए बर्बर मलियाना-…
  • Modi
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी और शी जिनपिंग के “निज़ी” रिश्तों से लेकर विदेशी कंपनियों के भारत छोड़ने तक
    22 May 2022
    हर बार की तरह इस हफ़्ते भी, इस सप्ताह की ज़रूरी ख़बरों को लेकर आए हैं लेखक अनिल जैन..
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : 'कल शब मौसम की पहली बारिश थी...'
    22 May 2022
    बदलते मौसम को उर्दू शायरी में कई तरीक़ों से ढाला गया है, ये मौसम कभी दोस्त है तो कभी दुश्मन। बदलते मौसम के बीच पढ़िये परवीन शाकिर की एक नज़्म और इदरीस बाबर की एक ग़ज़ल।
  • diwakar
    अनिल अंशुमन
    बिहार : जन संघर्षों से जुड़े कलाकार राकेश दिवाकर की आकस्मिक मौत से सांस्कृतिक धारा को बड़ा झटका
    22 May 2022
    बिहार के चर्चित क्रन्तिकारी किसान आन्दोलन की धरती कही जानेवाली भोजपुर की धरती से जुड़े आरा के युवा जन संस्कृतिकर्मी व आला दर्जे के प्रयोगधर्मी चित्रकार राकेश कुमार दिवाकर को एक जीवंत मिसाल माना जा…
  • उपेंद्र स्वामी
    ऑस्ट्रेलिया: नौ साल बाद लिबरल पार्टी सत्ता से बेदख़ल, लेबर नेता अल्बानीज होंगे नए प्रधानमंत्री
    22 May 2022
    ऑस्ट्रेलिया में नतीजों के गहरे निहितार्थ हैं। यह भी कि क्या अब पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन बन गए हैं चुनावी मुद्दे!
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License