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क्या समाज और मीडिया में स्त्री-पुरुष की उम्र को लेकर दोहरी मानसिकता न्याय संगत है?
हमारे समाज की सोच इतनी संकुचित है कि अगर लड़की की उम्र 30 पार कर जाए तो मां-बाप को उसके विवाह की फिक्र सताने लगती है और उसकी उम्र को लेकर हीन भावना पनपने लगती है।... उम्र की दोहरी मानसिकता ही लड़कियों का लड़कों से बराबरी न कर पाने का कारण है।
रचना अग्रवाल
20 Nov 2020
स्त्री-पुरुष
प्रतीकात्मक तस्वीर।

हमारे समाज में स्त्री और पुरुष की उम्र को लेकर जो दोहरी मानसिकता है वह सोचने पर मजबूर  कर देती है| एक आकर्षक 40 वर्षीय महिला अगर अपने से 10 वर्ष छोटे युवक के साथ डेटिंग पर जाती है तो लोग कटाक्ष करना शुरू कर देते है कि ‘देखो इस उम्र में जवान लड़के के साथ घूम रही है,  कितनी बेशरम है’ वगैरह वगैरह। अगर कोई मध्यम आयु की युवती जवान लड़के से विवाह कर लेती है तो मानो पहाड़ ही टूट पड़ता है क्योंकि हमारे समाज में ये धारणा बनी हुई है कि पति की उम्र पत्नी से अधिक होगी तो चलेगा परंतु इसके विपरित अगर पत्नी की उम्र अधिक है तो लोगों के लिए पचाना मुश्किल हो जाता है।

जब एक लड़का विवाह के लिए लड़की देखने जाता है तो सबसे पहले उसकी उम्र को लेकर जिज्ञासा होती है कि कहीं लड़की लड़के से बड़ी तो नहीं है? इसके विपरित अगर कोई चालीस साल का पुरुष पच्चीस साल की युवती के साथ डेटिंग पर जाता है या विवाह कर लेता है तो लोग उसकी प्रशंसा करने से बाज नहीं आते की ‘देखो अभी भी कितना स्मार्ट दिखता है तभी तो कम उम्र की लड़की मिल गई!’

मीडिया में दोगलापन

समाज की इस दोहरी मानसिकता का प्रभाव मीडिया में भी देखने को मिलता है जहां पर चालीस – पैंतालीस साल के हीरो बीस – पच्चीस साल की हीरोइनों के साथ पर्दे पर आते हैं और उनकी जोड़ी को लोग तहेदिल से स्वीकार करते हैं जैसे ' रब ने बना दी जोड़ी ' में अनुष्का से बीस साल बड़े हीरो शाहरुख खान और ‘दबंग’ फिल्म में सलमान खान अपने से उम्र में काफी छोटी सोनाक्षी सिन्हा के साथ हीरो बनकर आते हैं। 'राउडी राठौर' में अक्षय कुमार और सोनाक्षी सिन्हा उम्र में काफी अंतर होने के बावजूद हीरो हीरोइन की रूप में आते है और ' ओम शांति ओम' में शाहरुख खान व दीपिका पादुकोण को भी उम्र में लगभग बीस साल का फासला होने पर भी दर्शकों द्वारा सुपरहिट जोड़ी के रूप में स्वीकारा गया।

आप मात्र कल्पना करके देखिये कि अगर किसी फिल्म में पैंतालीस वर्षीय काजोल और सैंतालीस वर्षीय ऐश्वर्या राय बच्चन जो कि दिखने में आज भी काफी खूबसूरत हैं तैतीस वर्षीय वरुण धवन या पैंतीस वर्षीय रणवीर सिंह के साथ हीरोइन बनकर आ जाती हैं तो क्या दर्शक उनकी जोड़ी को पचा पाएंगे?

सबसे ज्यादा हास्यापद बात तो यह है कि कभी कभी बराबर उम्र होने के बावजूद चालीस पैंतालीस वर्षीय हीरोइन मां के रोल में और चालीस पैंतालीस वर्षीय हीरो बेटे के रूप में आते हैं जो कि वाकई हमारे समाज की पितृसत्तात्मक सोच का प्रभाव है।

सरहद पार का मीडिया भी पितृसत्ता से ग्रसित है

हाल ही में मैंने Netflix पर एक पाकिस्तानी टीवी सीरियल देखा 'बंटी आई लव यू' जिसमें एक 60 साल का बूढ़ा पैसे के दम पर एक 17 साल की लड़की से विवाह कर लेता है और उसकी सारी तम्मनाओं का गला घोटकर उसपे अपना एकछत्र अधिकार समझने लगता है जिसमें समाज को कोई आपत्ति नहीं होती क्योंकि उसके अनुसार आदमी तो कभी बूढ़ा नहीं होता, चाहे उसका चेहरा झुर्रियों से भरा क्यों ना हो और शरीर क्षीण दशा में हो। कहानीकार के अनुसार पति की मृत्यु के पश्चात भी उसकी कम उम्र विधवा का किसी दूसरे मर्द की तरफ आकर्षित होना और अपनी ज़िन्दगी अपने ढंग से जीना एक पति के लिए नागवार होता है इसीलिए समय समय पर पति की आत्मा पत्नी के समक्ष प्रस्तुत होकर इस बात को दर्शाती है कि एक औरत ज़िन्दगी में एक ही बार विवाह कर सकती है चाहे वह जवानी में ही विधवा क्यों ना हुई हो और पुरुष चाहे किसी भी उम्र का क्यों न हो,  जवान हो या बूढ़ा वह पत्नी की मृत्यु के पश्चात विवाह करे तो यह न्यायसंगत है।

कहानी में अपने साठ वर्षीय बूढ़े पति की मृत्यु के बाद उसकी आकर्षक विधवा पत्नी का दिल एक उन्नीस वर्षीय नवयुवक पर आ जाता है लेकिन उम्र में अपने से दस वर्ष बड़ी होने के कारण नवयुवक उसे अपनाने में हिचकिचाता है और कम उम्र की लड़कियों के पीछे भागता है। मेरे अनुसार इस युवक की इस मानसिकता का कारण समाज की दोहरी सोच है जो उसे उम्र में अपने से बड़ी युवती से प्रेम का इजहार करने से रोकती है और उस युवती के प्रति आकर्षित होने के बावजूद उसे मानसिक द्वंद् में फंसा देती है। उस युवती को बेहद पसंद करने पर भी वह प्रपोज नहीं कर पाता।

कहानी में हमें ये दिखाया गया है कि अपने से दस वर्ष कम  नवयुवक को प्यार करना नायिका की अपरिपक्वता है क्योंकि उसकी स्थिति अभी भी एक उन्नीस साल की लड़की की तरह है। ये देखकर मुझे कहानीकार की सोच पर बहुत आश्चर्य हुआ कि साठ साल का बूढ़ा आदमी सत्रह साल की लड़की से विवाह करके समझदार और इज्जतदार कहलाता है और इसके विपरित अगर एक युवती अपने से दस वर्ष छोटे नवयुवक से विवाह करना चाहती है तो वह मानसिक रूप से परिपक्व नहीं हुई है और सही निर्णय लेने योग्य नहीं है। समाज की इस दोहरी सोच की वजह से इस कहानी कि नायिका जो कि एक परिपक्व युवती है और अपनी ज़िन्दगी के निर्णय सोच समझकर लेती है, अपना विवेक खो बैठती है और अंत में उसे इतनी मानसिक प्रताड़ना होती है कि वो जिस नवयुवक को जी-जान से चाहती है, जिस पर सब कुछ  न्योछावर  करने के लिए तैयार रहती है, असुरक्षा की भावना से प्रेरित होकर उसे ही जहर देकर उसकी परीक्षा लेती है, जिसके कारण वो मारा जाता है।

इस कहानी में साठ साल के वृद्ध आदमी अपनी पत्नियों को बुढ़िया कहकर संबोधित करते हैं जो सुनने में काफी अशोभनीय लगता है। वृद्धावस्था में भी अपनी हमउम्र पत्नियों की नजर बचाकर इस कहानी की नायिका से बात करने के लिए लालायित रहते हैं,  और तो और नायिका के एक इशारे पर अपनी पत्नियों को जो कि उनके साथ लंबा वैवाहिक जीवन काट चुकी होती हैं उन्हें तलाक तक देने के लिए तुरंत तैयार हो जाते है। इससे ये साबित होता है कि काम वासना से लिप्त पुरुष की नजर में स्त्री की भावनाओ की कोई क़द्र नहीं है चाहे वो कितना ही उम्रदराज क्यों ना हो,  तो फिर अपनी कम उम्र पत्नी से ये उम्मीद करना की मृत्युपरांत भी वो सारी भावनाओ को मारकर विधवाओं की तरह नीरस जीवन व्यतीत करे और किसी दूसरे पुरुष की परछाई भी उस पर न पड़े ये कहा तक उचित है? मेरी नजर में ये स्त्री के शोषण की पराकाष्ठा है और समाज में व्याप्त दोहरी मानसिकता की परिचायक है।

वेब सीरीज 'एक झूठी लव स्टोरी'  में लड़कियों पर शादी का दबाव

मैंने कई बेटियों की मांओं से बातचीत के आधार पर निष्कर्ष निकाला है कि लड़की को पढ़ाने व उसको समाज में अपनी पहचान बनाने से ज्यादा उनको यह फिक्र लगी रहती है कि पढ़ाई के चक्कर में लड़की के विवाह की उम्र न निकाल जाए और अधिक उम्र होने की वजह से विवाह में बाधा आ सकती है इसीलिए अधिकांश हिन्दुस्तानी मां-बाप लड़की को उच्च शिक्षा देने के स्थान पर उसका विवाह करना ज्यादा उचित समझते है। मेरी रुचि ऐसी महिलाओं की आलोचना करने में लेशमात्र भी नहीं है क्योंकि मै इस बात से भली-भाँति अवगत हूं कि हमारे समाज की सोच का दायरा ही इतना संकुचित है जिससे परिणामस्वरूप एक लड़की को उसकी शिक्षा से वंचित करके उसके विवाह के लिए उसपर दबाव डाला जाता है तो फिर उन महिलाओं को दोषी ठहराना कहा तक उचित है? हमारे समाज की सोच यह बार बार साबित करती है कि विवाह के समय एक लड़की का मूल्यांकन उसकी शिक्षा से नहीं बल्कि उम्र से किया जाता है।

अभी मैंने हाल ही में ZEE 5 पर रिलीज़ हुई एक और पाकिस्तानी वेब सीरीज देखी “'एक झूठी लव स्टोरी” जिसमें एक मां, जिसकी तीन लडकियां होती हैं और उसकी दोनों बढ़ी लडकियां उच्च शिक्षा प्राप्त होती हैं व कॉलेज में पढ़ाती हैं, उनकी शादी को लेकर काफी परेशान रहती है। उसके दिमाग में चौबीस घंटे यही बात घूमती रहती है की किसी तरह उसकी लड़कियों के लिए योग्य वर मिल जाए और वह उनका विवाह कर चैन की सांस ले। सबसे बड़ी लड़की जो काफी पढ़ी-लिखी है व  कॉलेज में लेक्चरर है उसको लड़के वाले देखने आते हैं तब उसकी उम्र को लड़के वालों के सामने कम करके बताती है जिससे कि लड़के वाले उसको पसंद कर ले।

हमारे समाज की विडंबना यह है कि एक पढ़ी-लिखी लड़की जो खुद कमा सकती है और अपने जीवनकोपार्जन के लिए किसी पर निर्भर नहीं है उसकी उम्र को लेकर उसके आत्मविश्वास को ठेस पहुंचाई जाती है। जिस लड़की ने काफी उच्च शिक्षा प्राप्त की है और आत्मनिर्भर होने की वजह से प्रशंसा की पात्र है, उसकी उम्र को लेकर अपमानित करने का हक आपको किसने दिया है?

उच्च शिक्षा में उम्र की वजह से बाधा

हमारे समाज की सोच इतनी संकुचित है कि अगर लड़की की उम्र 30 पार कर जाए तो मां-बाप को उसके विवाह की फिक्र सताने लगती है और उसकी उम्र को लेकर हीन भावना पनपने लगती है। सवाल यह उठता है कि अगर लड़की योग्य है और अपने पैरों पर खड़ी है तो उसकी उम्र को लेकर हीन भावना क्यों? इसके विपरीत लड़कों को उनकी तालीम से महत्व दिया जाता है और अगर वह उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहते हैं तो उनकी मां बाप की तरफ से भरपूर सहयोग मिलता है क्योंकि हमारा समाज विवाह के समय लड़के की उम्र को मद्देनजर ना रखके उसकी शिक्षा में काबिलियत पर जोर देता है। अगर लड़के की उम्र थोड़ी अधिक भी हो तो कोई मायने नहीं रखती और उसके चारों तरफ लड़की वालों की लाइन लग जाती हैं। हमारे समाज की इस दोहरी मानसिकता की वजह से कई लड़कियां शिक्षा के क्षेत्र में आगे नहीं बढ़ पाती और शिक्षा  को बीच में छोड़कर विवाह बंधन में बंध जाती हैं। इसका परिणाम यह होता है कि वे अपना कैरियर बनाने के स्थान पर घर गृहस्थी में उलझ कर रह जाती है जो बहुत ही स्वाभाविक है क्योंकि विवाह पश्चात उन पर सारे घर की जिम्मेदारियां आ जाती हैं और पढ़ाई के लिए समय निकालना संभव नहीं हो पाता। जो लड़कियां उच्च शिक्षा ग्रहण करके समाज का गौरव बन सकती थी वह सामाजिक दबाव में आकर अपनी बढ़ती उम्र के वजह से हीन भावना से ग्रसित हो जाती है और वह बंधन में बंद कर अपनी सारी महत्वाकांक्षाओं का गला घोट देती है।

मेरी समझ में यह नहीं आता कि उम्र को लेकर लड़कियों पर इतना दबाव क्यों डाला जाता है? ‘जल्दी शादी कर लो वरना शादी की उम्र निकल जाएगी और सारी की सारी उम्र कुंवारे रहना पड़ेगा’, इस तरह के जुमले उन्हें अक्सर सुनने को मिलते हैं। कोई यह नहीं कहता कि तालीम हासिल कर लो और आत्मनिर्भर बनो उसके पश्चात विवाह करना अधिक उचित है। विवाह पश्चात खुदा ना खास्ता अगर लड़की को विपरीत परिस्थितियों से जूझना पड़ता है तो एक पढ़ी-लिखी लड़की जो आत्मविश्वास से भरपूर है उनका आसानी से सामना कर सकती है और स्वावलंबन के साथ अपनी जिंदगी व्यतीत कर सकती है। विवाह में अगर लड़की की उम्र को ध्यान में रखकर उसकी तालीम पर ज्यादा ध्यान दिया जाए तो मेरे ख्याल से ज्यादा बेहतर होगा।

उम्र की दोहरी मानसिकता ही लड़कियों का लड़कों से बराबरी न कर पाने का कारण है।

आज हम नारी उत्थान की बात करते नहीं थकते और इस बात पर गर्व महसूस करते हैं कि नारी डॉक्टर, इंजीनियर, आईएएस, पीसीएस जैसे बड़े-बड़े ओहदों पर पहुंचकर अपना परिचय दी रही है। लेकिन आप ही बताइए कि इस तरह के उदाहरण कितने हैं? चंद उदाहरणों के आधार पर हम यह निष्कर्ष नहीं निकाल सकते कि लड़कियों के विवाह की उम्र को दरकिनार करके हमारा समाज उन्हें  उच्च शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करने लगा है। इसके विपरीत आज भी ऊंची तालीम हासिल करने के लिए लड़की की विवाह की उम्र जो कि समाज द्वारा नीयत की गई है निकल जाए तो उसे कितने लोग ताने सुनाने लगते हैं इसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते। इसी कारण अधिकतर युवक उच्च तालीम हासिल करके आत्मनिर्भर होकर ही विवाह करते हैं और वहीं दूसरी तरफ लड़कियों का विवाह कम उम्र में ही कर दिया जाता है। इसका परिणाम क्या होता है कि वह विभिन्न क्षेत्रों में जो शिक्षा से संबंधित है उनमें लड़कों से पीछे रह जाती है, जिससे उसके आत्मविश्वास में कमी आती ही है और उन्हें लड़कों से बराबरी का दर्जा भी नहीं पाता। हमारे देश में जो लड़कियां लड़कों को पीछे छोड़कर आगे बढ़ जाती हैं उनकी संख्या लाखों में एक भी नहीं है जो कि हमारे देश का बहुत बड़ा दुर्भाग्य है। ‘एक झूटी लव स्टोरी’ में सबसे बड़ी लड़की जिसे बार-बार अपनी उम्र की वजह से लोगों का कटाक्ष सुनना पड़ती है वह मेरे अनुसार हमारे दकियानूसी समाज का भी वास्तविक आईना है।

(लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

gender discrimination
Women Rights
male dominant society
patriarchal society
Media
Marriage
Discriminatory system
gender inequality

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