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एक ज़ख़्मी और बेहाल धरती से ईस्टर का पैग़ाम
प्रवासियों के लिए इटली को स्वर्ग के रूप में चित्रित किया जाता रहा है। और यह देश अबतक ऐसा ही था।
अचला मौलिक
18 Apr 2020
ईस्टर का पैग़ाम

ईस्टर संडे को क़रीब चार मिलियन लोगों ने प्रसिद्ध इतालवी गायक, एंड्रिया बोसेली को मिलान के उसी शानदार,लेकिन ख़ाली-ख़ाली शहर,डुओमो से ऑनलाइन गाते हुए सुना,जहां से कोरोनवायरस इटली भर में फैल गया था। मशहूर अरियाओं(इटली में गाये जाने वाला ऐसा संगीत,जो बना वाद्ययंत्र के एकल स्वर में गाया जाता है) को गाते हुए बोसेली की शानदार आवाज़ ने लाखों लोगों को ख़ुश कर दिया और उस आवाज़ को सुनना किसी ख़ुशनसीबी से कम नहीं था। लेकिन मनोरम तालियों की तूफ़ानी गड़गड़ाहट के बीच भी उनके चेहरे पर एक गहरे दर्द का अहसास था। ईस्टर की रात विशाल मौन कैथेड्रल में गाते हुए वह इससे पहले कभी इतने दर्द से भरे नहीं दिखे थे।

मिलान डुओमो या मिलान का कैथेड्रल-दुनिया के लाखों पर्यटक इस मोह लेने वाली अनूठी इतालवी गोथिक इमारत से आकर्षित होकर खींचे चले आते हैं, जिसका अगला भाग शानदार सफ़ेद संगमरमर से बना है और जिसका शिखर उड़ता हुआ मानों आकाश की तरफ़ बढ़ रहा हो। इसका निर्माण 1386 में तब  होना शुरू हुआ था, जब इटली ब्लैक डेथ से उबर रहा था और उस वाणिज्यिक क्रांति से भी गुज़र रहा था,जो पुनर्जागरण का स्वागत करने के लिए तैयार था। मिलान के अलग-अलग ड्यूकों यानी नवाबों, ख़ासकर लुडोविको सेफोर्ज़ा ने इस इमारत का निर्माण कराया, जो आख़िरकार 1965 में बनकर तैयार हो गयी। डुओमो की यह इमारत इतिहास के कई नाटकीय करवटों का गवाह रही है।

दुनिया के महानतम कलाकारों में से एक लियोनार्डो द विंची को लुडोविको सेफोर्ज़ा ने डुओमो के लिए ‘द लास्ट सपर’ को चित्रित करने के लिए नियुक्त किया था। कुछ साल बाद एक फ़्रांसीसी सेना ने मिलान पर हमला कर दिया, सेफोर्ज़ा को पेरिस के एक जेल में क़ैद कर लिया, जबकि लियोनार्डो द विंची हमलावर राजा के साथ चल हो लिए। एक सदी बाद मिलान के लगभग 60,000 निवासी उस प्लेग के शिकार हो गये, जो एक क्रूर स्पैनिश शासक की लापरवाही के चलते फैला था।

यहीं एक निर्णायक युद्ध के बाद, नेपोलियन बोनापार्ट को 1805 में इटली के राजा का ताज पहनाया गया था। विदेशी शासकों और दमनकारी देसी शासकों को चुनौती देते हुए 1848 की क्रांतियां यहीं से शुरू हुईं थीं और यूरोप भर में फैल गयीं थीं। मिलान उस पार्टिगियन्नी की गतिविधियों का केंद्र था, जो हमलावर नाज़ी ताक़तों के ख़िलाफ़ एक कम्युनिस्ट प्रतिरोध  था, जिसने मुसोलिनी को फ़ांसी दे दी और उसे एक भीड़ भरे चौक पर उल्टा लटका दिया था। समृद्ध, फैशनपरस्त मिलान औद्योगिक गतिविधियों और क्रिश्चन डेमोक्रेटिक और कम्युनिस्ट पार्टियों द्वारा उथल-पुथल मचा देने वाली राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बन गया।

मेरे माता-पिता 1960-1980 के समृद्ध "इल बूम" वाले समय के दौरान रोम में ही रहते थे। उनके साथ मेरी बहन और मैंने इस देश के ग्रैंड ऑटोस्ट्रा डेल सोल (हाईवे ऑफ़ द सन) से जुड़े नेपल्स से मिलान तक का शानदार सफ़र किया था। मिलान के इस सफ़र के दौरान हम उन हजारों अन्य आगंतुकों के साथ विशाल पियाज्जा एल डुओमो या डुओमो के सामने वाले चौक के सामने बैठ गये, जो लियोनार्डो दा विंची की उत्कृष्ट रचना की तारीफ़ कर रहे थे। यहां ख़ुशबूदार कॉफ़ी और लोम्बार्डी की हल्की सफ़ेद शराब पीते हैं और नरम-नरम मिलेफुएइल खाते हैं। हज़ारों कबूतरों ने इन मनोहारी दृश्यों में ध्वनि, रंग और ज़ुंबिश पैदा कर दिये। हम शाम में अन्य सैलानियों के साथ मशहूर ओपेरा को सुनने और उसमें भाग लेने के लिए ला स्केला में इकट्ठे होंगे।

प्रवासियों के लिए इटली को स्वर्ग के रूप में चित्रित किया जाता रहा है। और यह देश अबतक ऐसा ही था।

लेकिन,ईस्टर की शाम को मिलान ड्युमो का मंज़र परेशान कर देने वाली वीरानगी से भरा था। बोसेली ने उस गिरजाघर के भीतर गाने गाये, जो अपने इस बेहतरीन मौक़े पर भी अंधेरे और वीरानगी से भरा हुआ है। उस रात यहां ऐसा डरावना भूतहा मंज़र था, जैसे कि पुनर्जीवित आत्मायें अपने इस तहस-नहस और ज़ख़्मी शहर से कूच कर जाने के बाद का गवाह बनने लगी थीं। क्या उन्हें उम्मीद के उस संगीत से सांत्वना मिल रही थी,जिसे बोसेली गा रहे थे।चूंकि उनका जीवन विश्वास और साहस की गाथा है, इसलिए बोसेली का “उम्मीद रखें” का पैग़ाम उन नागरिकों के लिए प्रासंगिक होगा, जो इस समय निराशा के शिकार हैं।

हैरानी की बात है कि एक अनूठा पैग़ाम एक अप्रत्याशित स्रोत से आया था। पोप उस समय ईसाई दुनिया के ध्यान के केंद्र में खड़ा होता है, जब वह सेंट पीटर की बेसीलिका की बालकनी से अपने ईस्टर का उपदेश दे रहे होते हैं। हम वहां उस बढ़ती हुई भीड़ के साथ खड़े हो गयें हैं, जो सार्वभौमिक भावना का एक हिस्सा है। इस साल पोप फ़्रांसिस बालकनी में खड़े नहीं थे, बल्कि अपना ईस्टर संदेश एकांत में दिया था। दुनिया के दर्द को साझा करते हुए, उन्होंने लोगों को धन, शक्ति और सुख का पीछा करते हुए आत्म-मोहित दुनिया में रुग्णता से ओत-प्रोत आत्म-केंद्रित नहीं होने की सलाह दी थी। मसीह के इस प्रतिनिधि ने शक्तिशाली ईसाई राष्ट्रों को उन पीड़ित लोगों को क्रूर और कुचल देने वाले प्रतिबंध नहीं लगाने को लेकर चेतावनी दी थी, जिनमें से कुछ लोग ईसाई नहीं हैं।

क्या पोप को इस बात की उम्मीद थी कि बीमारी, मौत और दु:ख, लॉकडाउन और वैश्विक मंदी की काली छाया के बीच, विशेषाधिकार प्राप्त और दुनिया के शक्तिशाली लोग,अपने कम भाग्यशाली साथी प्राणियों के बारे में सोचने और अपनी दौलत का एक हिस्सा उनसे साझा करने को लेकर सोचेंगे ? बोसेली ने नाउम्मीदी के बीच उम्मीद का गीत गाया । पोप फ़्रांसिस ने ज़िम्मेदारी और करुणा पर एक ज़ोरदार और मार्मिक उपदेश दिया। एक ज़ख़्मी धरती से दिये गये इस पैग़ाम ने मेरे जैसे लाखों हिंदुओं और अलग-अलग मज़हबों के लोगों को भीतर से छू लिया है। क्या हम उनकी बातों पर अमल कर सकते हैं?

लेखक एक सेवानिवृत्त सिविल सर्वेंट हैं और अंतर्राष्ट्रीय इतिहास पर लिखती हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

अंग्रेज़ी में लिखे मूल आलेख को आप यहाँ पढ़ सकते हैं।

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